“सन 2025” : नाटक का अलग फ्लेवर : आजकल कल्चर गरज के बरसता है सिर्फ चाँद के उस छोर पर ...जहाँ कोई आबादी नहीं बसती ...
▪️ समीक्षक : नवनीत धगट
तीनबत्ती न्यूज : 02 जुलाई ,2024
‘पोस्ट वॉर जर्मन प्लेज़’ संग्रह में संकलित स्विस जर्मन नाटककार फेडरिक डियुरेनमैट के नाटक 'इंसीडेंट एट टवाइलाइट' के *हिन्दी रूपांतरण ‘सन 2025’ का सागर में मंचन नाटक प्रेमियों को रंगमंच के बिलकुल नए अंदाज से साक्षात्कार कराता हुआ है ।
प्रख्यात थिएटर निर्देशक और हिंदी नाटककार पीयूष मिश्रा की नज़र उनके राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में अध्ययन के दौरान गई । पीयूष मिश्रा ने पहले इस नाटक का अनुवाद और बाद में सन 2012 रूपांतर किया जिस पर निर्भया काण्ड का प्रभाव दिखाई दिया ।स्थानीय रंग साधक थियेटर द्वारा तिली रोड स्थित ‘रागायन’ सभा कक्ष में मंचित यह नाटक लगभग 50 – 60 मिनट अवधि का है ।
नाटक की खासियत यह है की ये बिना बड़े सेट पर भी बखूबी हो सकता है । नाटक के निर्देशक रंगकर्मी, रंग साधक मनोज सोनी, नाटक के मुख्य किरदार उपन्यासकार 'धीरज अधिकारी ब्रहमात्मे' की भूमिका में दिखे । ये ही नाटक के सूत्रधार भी हैं । नाटक के दूसरे बड़े पात्र निजी जासूस 'सूफी' की भूमिका में संदीप दीक्षित लगभग पूरे समय मंच पर रहे । ये दोनों अपने-अपने पात्रों में डूब गए दिखे ।
हत्या जैसे संगीन अपराधों पर आधारित अपने उपन्यासों के लिए चर्चित, अनेक प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित लेखक ब्रहमात्मे, आत्ममुग्ध,ऐशो- आराम पसंद है । लेखक से इटावा जैसे छोटे शहर का मिडिल क्लास व्यक्ति सूफी, लेखक ब्रहमात्मे से बतौर प्रशंसक मिलने पहुँचता है । वह ना केवल शौकिया जासूस है, बल्कि ब्रहमात्मे को लगातार 10 सालों से पीछा कर रहा है । संवाद क्रम सूफी बताता है कि उसने ऐसे प्रमाण इक्कट्ठे कर रखे हैं । बातचीत में कई खुलासे होते हैं कि ब्रहमात्मे के आपराधिक कहानियों वाले 21 उपन्यासों का हत्यारा पाचरित्र स्वयं है । यानी ब्रहमात्मे ना केवल एक उपन्यासकार लेखक है, अपनी कहानियों में वास्तविकता दिखाने के लिए उसने ना केवल वर्णित अपराध किये, बल्कि कानून के शिकंजे से बच भी निकला ।जासूस सूफी इस जानकारी को छिपाने के लिए दोषी लेखक ब्रहमात्मे से पेंशन के रूप में रकम की मांग करता है । ब्रहमात्मे ,सूफी की इस मांग को ठुकरा देता है । एक पेशेवर हत्यारे की तरह सूफी को भी डरा- धमका कर होटल की ऊपरी मंजिल से कूद कर आत्महत्या करने को मजबूर कर देता है । इस अपराध को भी अपने अगले 22 वें उपन्यास की जीवंत कहानी के लिए प्लाट की तरह लेता है । अपने को बचाने की तिकड़म भी कर लेता है ।
नाटक के संवाद लेखन के क्षेत्र की त्रासद सच्चाइयों को उजागर करते हुए हैं । इनका भाव पक्ष नाटक को बहुत सशक्त बना देता है । कला,साहित्य क्षेत्र में वास्तविकता, रियलिटी की बेतहाशा मांग लेखकों, रचनाकारों का एक अलग ही संसार गढ़ रही है । उन्माद, हिंसा, अपराधों को परोसने वालों के पास ये तर्क होता है कि पाठक, दर्शक की जैसी मांग हो रही है, हम वैसा ही रच रहे हैं । रियलिटी शोज़ के नाम पर अंधाधुंध अपराध और अश्लीलता के भोंडे प्रदर्शन भी समाज की बदलती हुई मानसिकता का ही प्रतिबिम्ब हैं ।
नाटक का निहित सन्देश इसके कथानक पर बहुत भारी है । यदि हम फिल्मों,डिजिटल मीडिया,और टी.व्ही. कार्यक्रमों में बढ़ती ही जा रही हिंसा, यौन और आर्थिक अपराधों के चित्रण को लेकर चिंतित हैं, तो जान लें कि इसके पीछे केवल छद्म लोकप्रियता की चाहत नहीं, दर्शकों-पाठकों का बेतहाशा अवमूल्यन भी बराबर जिम्मेदार है । पाठक-दर्शक नकारत्मक चरित्रों को खुद जी लेना चाह रहा होता है । यहाँ हमें उन सवालों के जवाब भी मिलते हैं ,जहाँ हम देखते हैं कि किसी अपराधी ने अमुक फिल्म आदि से अपराध का दुष्प्रेरण लिया, और इनकी सजा से बच निकलने के रास्ते भी सीखे ।
ज्योति रायकवार और अमजद खान और जीतेन्द्र सोनी अपनी सहायक भूमिकाओं में उपयुक्त हैं । रंगमंच के अन्य सहायक तत्व लाइट(कपिल नाहर) ,साउंड(प्रवीण कैमया) ,मंच सज्जा(अतुल श्रीवास्तव) ,मेक अप आदि भी अपने उद्देश्यों की पूर्ति करते हैं । छोटे कथानक और लम्बे संवादों वाला ये नाटक दर्शकों की एकाग्रता की मांग करता हुआ है ।
▪️डॉ.नवनीत धगट , 8 सनराइज रेजीडेंसी, राजघाट रोड,तिली, सागर (म. प्र )