नर्मदा पथ के महायोगी समर्थ दादा गुरु 9 सितम्बर को सागर में : "नर्मदा चिंतन एक संवाद " पर करेंगे चर्चा
तीनबत्ती न्यूज : 06 सितम्बर,2023
सागर। भारत की महान योग परम्परा के वाहक ,महान योगी नर्मदा पथ के महायोगी समर्थ दादा गुरु 9 सितम्बर को स्वामी विवेकानंद विश्वविद्यालय, सागर में "नर्मदा चिंतन एक संवाद " विषय पर
पर उद्बोधन देंगे। विश्विद्यालय के संस्थापक कुलपति डा अनिल तिवारी ने आज मीडिया को जानकारी देते हुए बताया कि महायोगी समर्थ दादा गुरु पहली बार सागर आधार रहे है । वे नर्मदा नदी के भक्त है। 1058 दिन (2 साल 11 माह से) निराहार केवल माँ नर्मदा जल पर आश्रित रहकर प्रकृति की सेवा में लगे है। नदी को जानो नदी है तो सदी है।के साथ उनकी जीवन यात्रा चल रही है। प्रकृति बचाओ का उद्देश्य लेकर दादा गुरु जुटे है। वे स्वामी विवेकानंद विश्वविद्यालय सिरोंज में 9 सितम्बर 2023, शनिवार, को स्वाद करेंगे। कार्यक्रम दोपहर 12 बजे. से शुरू होगा।
एक महायोगी जिनकी सेवा साधना वर्ल्ड रिकार्ड में दर्ज :जानिए
नर्मदा पथ के महायोगी की सेवा साधना क्यों वर्ल्ड रिकार्ड में दर्ज है जानिए प्रमाणिक निर्विकार सत्य।
लगभग ढाई लाख किलो मीटर सम्पूर्ण भारत वर्ष के अनेक प्रांतो में अखंड निराहार जन जागरण यात्रा कर चुके और आज भी जारी है। श्री दादागुरु 3200 किलो मीटर की पैदल निराहार केवल नर्मदा जल पर नर्मदा सेवा परिक्रमा भी पूर्ण कर चुके हैं। तीन बार रक्त दान कर चुके ज्ञान विज्ञान के लिए अकल्पनीय अविश्वनीय किंतु सत्य प्रत्यक्ष दादागुरु की अखंड निराहार महाव्रत साधना देश दुनियां के लिए अब एक शोध का विषय बन चुकी है।
सात वर्ल्ड रिकार्ड बने
प्रकृति पर्यावरण नदियों के शुद्धिकरण संरक्षण संवर्धन और जीवंत शक्ति की प्रमाणिक मिशाल बने दादागुरु के नाम अभी तक सात सात वर्ल्ड रिकार्ड दर्ज हो चुके है देश दुनियां के पहले अवधूत संत है जिनका नाम कई बार वर्ल्ड रिकार्ड में दर्ज हो चुका है।सदी की अकल्पनीय यात्रा में निकले दादागुरु ने प्रकृति, पर्यावरण, नदियो, जल, मिट्टी के संरक्षण व संवर्धन के लिए 3200 किलो मीटर की पैदल, निराहार नर्मदा परिक्रमा की है यह देश दुनिया की पहली ऐसी यात्रा है जिसमें कोई संत प्रकृति, पर्यावरण जल मिट्टी के लिए निराहार चल रहे हैं।
निराहार साधना महाव्रत
मां नर्मदा धरा,धेनु,प्रकृति पर पूर्ण केंद्रित दादागुरु समर्थ सद्गुरु की अकल्पनीय अखंड निराहार महाव्रत साधना मां नर्मदा पथ के परम् तपस्वी तपोमूर्ति, महायोगी समर्थ सदगुरु दादागुरु आज देश दुनियां के लिए एक रहस्य बनता जा रहा है ।
देश दुनियां के एक मात्र ऐसे अवधूत संत गुरु जिन्होंने प्रकृति, धरा, धेनु, जीवनदायिनी पवित्र नदियों के साथ मां नर्मदा पर पूर्ण केंद्रित जीवन जीकर अपना सर्वस्व समर्पित कर जीवंत मिसाल बने । एक अपराजित महायोगी जिसने ज्ञान विज्ञान की जड़ो को हिला दिया, विगत 35 माह से अनवरत एक अवधूत की निर्विकार सेवा साधना का जीवंत प्रामणिक सत्य देखिए.. दादागुरु की 35 माह से जारी अखंड निराहार महाव्रत साधना के दौरान प्रतिदिन की दिनचर्या जो आज भी निरंतर जारी है.....
अनवरत नित्य 18 घंटे दिन रात चल रहा
सेवा ध्यान साधना जागरण
संपूर्ण भारत व नर्मदा तीर्थ क्षेत्र व अन्य प्रांतों में अखंड सत्संग, धर्म सभाएं, जन जागरण , संवाद, निरंतर सेवा कार्य कर रहे ।अभी तक लगभग दो लाख किलोमीटर की जन जागरण यात्रा पूर्ण कर चुके। भारत के अनेक राज्य जिसमें दिल्ली, महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक, उड़ीसा, उत्तराखंड, झारखंड, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल मुख्यतः है । तीन बार महाव्रत के दौरान ही रक्त दान किया ज्ञान विज्ञान जगत के लिए शोध का विषय बना।
13 बार मांधाता परिक्रमा कर चुके
देश के अनेक प्रांतों में अनवरत प्रकृति धरा धेनु नदियों पर केंद्रित विशेष संवाद सत्संग निरंतर जारी । भारत के अनेक विद्यालय महाविद्यालय में समर्थ संवाद "नदी को जानो", नदी नही तो सदी
नही के महावाक्य के साथ अनेक जिले प्रांत में युवा संवाद की अखंड श्रृंखला जारी। ओम्कारेश्वर तीर्थ क्षेत्र में अकल्पनीय चातुर्मास साधना में दादागुरु निर्विकार ओमकार प्रकृतिमयी साधना में लीन रहे । विश्व के असाधारण पर्वत मांधाता में साधना के दौरान प्रकृति केंद्रित जीवन शैली व्यवस्था और विकास संरक्षण सम्वर्धन के साथ, आत्मनिर्भर भारत के नव निर्माण के लिए, जन जन को जाग्रत कर रहे राष्ट्र आराधना प्रकृति उपासना का जीवंत केंद्र बना मांधाता ।
चातुर्मास के समय मांधाता पर्वत बना दादागुरु की निर्विकार प्रकृति संरक्षण संवर्धन की पाठशाला । नित्य नर्मदा दर्शन के साथ देववृक्षों की पूजन स्थापना के साथ, धरा धेनु नर्मदा, ओमकार स्वरूप मांधाता की सगुण शक्ति उपासना से जोड़ने, दादागुरु की अनूठी पाठ शाला बना मांधता ।