भारत हिन्दू राष्ट्र नहीं बन पायेगा तो मेरा संकल्प बिखर जाएगा - बागेश्वर धाम सरकार
सागर,28 अप्रैल ,2023 । जब राम जन्म हुआ तब एक महीने तक दिन रहा, सूर्यकुल भूषण को देखने सूरज भगवान डूबे ही नहीं तो वहीं रात इसीलिए परेशान थी कि मुझे दर्शन नहीं मिल रहे। जब महीने भर बाद रात ने भगवान से कहा तो भगवान ने विश्वास दिलाया कि द्वापर युग में भादों के महीने में रात के 12 बजे जन्म लूंगा इसीलिए राम जन्म का दिन बड़ा माना जाता है तो कृष्ण जन्म की रात बड़ी होती है। यह बात बागेश्वरधाम के पीठाधीश्वर पं धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री ने सागर के बहेरिया में हो रही श्रीमद्भागवत कथा के पांचवे दिन कही। उन्होंने कहा कि भगवान जब गोकुल पहुँचे तो उनके दर्शन करने भोलेनाथ भी पहुंचे, देवी देवता पहुंचा सुंदर भजनों के माध्यम से उन्होंने इस कथा का वर्णन किया। जब मां यशोदा ने भोले बाबा के जटा जूट देखकर भगवान के बाल रूप के दर्शन नहीं दिए की कहीं बालक डर न जाये। तो भगवान रोने लगे जब मां यशोदा बाहर लेकर आईँ तब भोले बाबा की गोद मे आते ही रोना चुप किया। कथा में भगवान की विभिन्न बाल लीलाओं के प्रसंग हुए।
उन्होंने कहा कि जब भगवान का जन्म हुआ तब नंद बाबा और देवकी बस जाग रहे थे बाकी सब सो रहे थे। ऐसे ही जब हनुमानजी महाराज सीता माता का पता लगाने लंका में गए तब भी सब सो रहे थे बस विभीषण जाग रहे थे। भगवान की लीला ही यही है कि जब वह आये हैं तब पापी सो जाते हैं और भक्त जाग जाते हैं।
"राम काज कीन्हे बिनु मोहि कहां विश्राम"
कथा आरंभ में उन्होंने कथा का सूत्र बताया उन्होंने कहा कि काम के बंदर नहीं राम के बंदर बनो, आलस्य नहीं करना चाहिए। हनुमानजी महाराज से सीखिए "राम काज कीन्हे बिनु मोहि कहां विश्राम" भारत हिन्दू राष्ट्र नहीं बन पाएगा तो मेरा संकल्प बिखर जाएगा। इसीलिये में भी विश्राम नहीं करता। निरंतर राम नाम की अलख लिए अनवरत रहता हूँ।
भगवान एक ही तत्व हैं
भगवान एक हैं जिस तर हम एक हैं लेकिन किसी के लिए भाई, किसी के लिए चाचा, किस के लिए मित्र हैं। ज़िज़ तरह स्वर्ण एक है लेकिन उसे अलग अलग आभूषण बन जाते हैं। जिस तरह एक ही मिट्टी से अलग अलग चीजें बन जाती हैं ऐसे ही भगवान भी एक हैं।
सत्यनारायण की कथा, चटपटा अंदाज
एक सेठ ने मुझसे कहा सत्यनारायण की कथा करा दो, मोटरसाइकिल से खेत मे पहुंचे जहां उनका घर था। संकल्प कराया सत्यनारायण की कथा की पुस्तक की जगह गुरुवार की कथा थैले में रख ली थी। अब संकट फस गया लेकिन हम छोटे से ही थे। इसलिए जल्दी जल्दी गुरुवार की ही बांच दी। सेठ ने कहा गुरुजी आप हैं तो विद्वान लेकिन लीलावती कलावती कहां गयीं। हम भी बुंदेलखंड के हमने भी कह दिया बड़े घराने की बेटियां जंगल में कहां आती। लेकिन इतना स्पष्ट है कि सत्यनारायण की कथा के विषय में हर कोई जानता है।
कथा में चौथे दिन उन्होंने मीरा की भक्ति का मार्मिक प्रसंग सुनाया। उन्होंने कहा कि भक्ति हो तो मीरा की तरह हो जिसमें कोई शर्त नहीं है। केवल निष्काम निश्छल प्रेम है। राम हो या कृष्ण सभी को प्रेम ही सबसे प्यारा लगता है। गुण, ज्ञान, कौशल, धन, निष्ठा आदि सब कुछ भी नहीं है। उन्हें तो केवल प्रेम ही प्यारा। गुरुवार को कृष्ण जन्म हुआ जिसमें अद्भुत पुष्पवर्षा की गई। जहां कई प्रसंगों में भक्ति रस में ओतप्रोत श्रद्धालु भावुक हो उठे तो कृष जन्म होते ही भजनों पर झूमकर ठाकुर जी की मस्ती में नाच उठे और उत्सव का माहौल हो गया।
कथा में उन्होंने कहा कि कल दिव्यदरबार के दिन एक लाख से अधिक लोगों ने भंडारे में भोजन किये बड़ी संख्या में लोग पहुंचे। लेकिन उन्होंने मीरा बाई के प्रसंग के माध्यम से यह भी स्पष्ट किया कि यदि आप लोग इसलिए आते हैं कि हम आपके बारे में बताएंगे, आपकी ओर देखेंगे तो सुनिए अगर मेरे लिए आते हो तो आपकी भक्ति बहुत छोटी और ओछी है। भक्ति करनी है तो तन से बैरागी और मन से श्री राम जी के अनुरागी बन जाओ वही सार्थक रखती है, जिसमें कोई शर्त ना हो। उन्होंने बच्चों को संस्कार देने की बात पर ज़ोर दिया और उन्हें मांस की शिक्षा अवश्य देने की बात भी कही।
बताए सुखी जीवन के तीन सूत्र
- कभी भगवान से कुछ मत मांगो
भगवान से शर्त लगाकर कुछ कुछ मत मांगो की ऐसा होगा तो यह चढ़ाऊंगा। यदि शर्त लगाकर मांगते हो तो व्यापार करते हो भक्ति व्यापार नहीं है। भक्ति तो समर्पण है मीरा ने कितने कष्ट पाए लेकिन ठाकुर जी को नहीं छोड़ा। उन्होंने विदाई के वक़्त भी सभी भेंट ठुकराकर केवल मंदिर में रखे ठाकुर जी को जी मांगा और सांसारिक लोग बीएते की नौकरी बेटी की शादी जैसी चीजें ही भक्ति मागते हैं। परमात्मा को नहीं।
मुस्कुराना सीखो
ठाकुरजी का अवतार सुख का भंडार है। वे मुस्कुराना सिखाते हैं सभी लीलाओं में वह सदा मुस्कुराते रहे। मथुरा में जन्म होते ही मां को छोड़ना पड़ा पर मुस्कुराते रहे। गोकुल से विदा ली तो मैया, पिता, ग्वाल, गोपियों और राधा को छोड़कर भी मुस्कुराते रहे। मथुरा में कंस वध फिर वहां से भी सांदीपनि आश्रम फिर सुदामा को त्यागा, द्वारिका गए महाभारत में गीता सुनाई पांडवों को त्याग और अंत मे बंधु बांधवो के अंत के बाद भी मुस्कुराते रहे। उनसे सीखना है तो मुस्कुराना सीखो जीवन में हर दुख छोटा हो जाएगा।
प्रेरक प्रसंग सुनो
एक महात्मा को एक भक्त ने गाय देदी। महात्मा प्रसन्न हुए बोले वाह ठाकुर जी को दूध, मावे का भोग लगाऊंगा बहुत ही आंनदित हुआ। गाय की सेवा कार्य ठाकुर जी को मेवे का भोग लगाता बहुत दिन ऐसा चलता रहा। बाकी चेले भी गुरु का यह आनद देख आंनदित थे। लेकिन एक दिन भक्त आया और गाय को ले गया। उसने कहा गुरुजी गाय ले जा रहा हूँ। मातम बोले ले जाओ बहुत आनंद की बात है ले जाओ। किसी ने पूछा इसमे क्या आनंद अब भोग कैसे लगेगा। महात्मा बोले जैसे पहले लगता था। अब झंझट खत्म गोबर नहीं उठाना पड़ेगा भूसा चारा बजी नहीं लाना होगा। इस प्रसंग में आनंद का सूत्र है कि जो हुआ वह अच्छा हुआ उसमें प्रसन्नता खोजिए दुख नहीं।
चार दिन की प्रमुख बातें
-ऐसा कोई हिन्दू नहीं है जिसे रामचरित मानस की कोई न कोई चौपाई नहीं आती हो।
-भारत की संस्कृति से बड़ी कोई संस्कृति नहीं।
- साल भर न सही त्यौहार के दिन अपने बच्चे को धोती कुर्ता पहनकर बाहर भेजें।
-जो धर्म के मार्ग पर होगा वह हताश नहीं होता क्योंकि उसने मानस को पढ़ा है वह हल निकाल लेगा।
- सभी हिन्दू तिलक लगाने का संकल्प लेलें तो दृश्य ही बदल जायेगा।
- परीक्षित की सात दिन में मृत्यु तय थी हमेह भी हफ्ते के सात दिन में ही मरना है। क्योंकि इनके अलावा कोई और दिन नहीं है।
ये रहे मोजूद
आज की कथा में मुख्य आयोजक भूपेंद्र सिंह बहेरिया, सुरवेंद्र सिंह, शुभम सिंह, सुरेंद्र दुबे सागर शिष्य मंडल और संदीप दुबे सहित प्रभात सिंह, अजीत सिंह चील पहाड़ी, राजा ठाकुर, लक्ष्मण सिंह, पूर्व विधायक सुधा जैन, सांसद रीती पाठक सीधी, विधायक शैलेंद्र जैन आदि उपस्थित थे।
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एडिटर: विनोद आर्य
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+91 94244 37885
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