Sagar: विक्रय पत्रों के नामांतरण की ऐवज में रिश्वत लेने वाले पटवारी को 4 साल की सजा
सागर । विक्रय पत्रों के नामांतरण के ऐवज में रिष्वत लेने वाले पटवारी विवेक जैन को विशेष न्यायाधीश, भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, सागर म.प्र श्री आलोक मिश्रा की अदालत ने दोषी करार देते हुये भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 की घारा-7 के अंतर्गत 03 वर्ष का सश्रम कारावास एवं पॉच हजार रूपये अर्थदण्ड व धारा-13(1)(डी)सहपठित धारा-13(2) के तहत 04 वर्ष का सश्रम कारावास व पॉच हजार रूपये अर्थदण्ड की सजा से दंडित किया है।मामले की पैरवी श्री श्याम नेमा सहा. जिला लोक अभियोजन अधिकारी ने की।
घटना संक्षिप्त में इस प्रकार है कि दिनांक 29.01.16 को आवेदक रतिराम पटैल ने पुलिस अधीक्षक, लोकायुक्त कार्यालय सागर को लिखित शिकायत/आवेदन दिया कि वह बीना मंे वकालत करता है, उसके समाज के रिश्तेदार बालकिशन ने अपना व अरविंद पटैल के विक्रयपत्र नामांतरण हेतु उसे दिये थे, इसी प्रकार नंदराम ने अपनी बहू के नाम क्रय की गई भूमि का विक्रयपत्र नामांतरण हेतु उसे दिया, उसने अपने रिश्तेदारांे के तीनों विक्रयपत्र नामांतरण कराने के लिये अभियुक्त विवेक जैन को दिनांक 20.12.2015 को दिये, तो अभियुक्त ने उससे प्रति विक्रयपत्र 3,000/-रू कुल 9,000/-रू रिश्वत की मांग की, उसने यह बात अपने रिश्तेदारों को बताई, तो उन्होने रिश्वत देने से मना किया व लोकायुक्त पुलिस को शिकायत करने को कहा, जिसके संबंध में लिखित सहमति भी दी कि वह अभियुक्त को रिश्वत नहीं देना चाहते, बल्कि रंगे हाथों पकड़वाना चाहते है। आवेदन में वर्णित तथ्यों के सत्यापन हेतु एक डिजीटल वॉयस रिकॉर्डर दिया गया इसके संचालन का तरीका बताया गया, अभियुक्त से रिश्वत मांग वार्ता रिकॉर्ड करने हेतु निर्देशित किया तत्पश्चात् आवेदक द्वारा मॉग वार्ता रिकार्ड की गई एवं अन्य तकनीकि कार्यवाहियॉ की गई एवं टेªप कार्यवाही आयोजित की गई । नियत दिनॉक को आवेदक द्वारा अभियुक्त को राषि दी गई व आवेदक का इषारा मिलने पर टेªपदल के सदस्य मौके पर पहुॅचे और निरीक्षक विजय सिंह परस्ते ने अपना व टेªपदल का परिचय देकर अभियुक्त का परिचय प्राप्त करने के उपरांत, अभियुक्त से रिश्वत राशि के संबंध में पूछे जाने पर बताया गया कि उसने रिश्वत राशि आवेदक से लेकर अपनी पहनी हुयी शर्ट की बायीं जेब में रख लेना तथा लोकायुक्त टीम की शंका होने पर कार्यालय में ही खड़े व्यक्ति को दे देना बताया, तब अभियुक्त विवेक जैन के बताये अनुसार पास में ही खड़े व्यक्ति से पूछे जाने पर उसने रिश्वत राशि अभियुक्त विवेक जैन के द्वारा देना व खुद के हाथ में रखे होना बताया, तत्पश्चात् अग्रिम कार्यवाही प्रारम्भ की गई। विवेचना के दौरान साक्षियों के कथन लेख किये गये, घटना स्थल का नक्षा मौका तैयार किया गया अन्य महत्वपूर्ण साक्ष्य एकत्रित कर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 की धारा-7 एवं धारा-13(1)(डी) सपठित धारा 13(2) का अपराध आरोपी के विरूद्ध दर्ज करते हुये विवेचना उपरांत चालान न्यायालय में पेष किया। विचारण के दौरान अभियोजन द्वारा अभियोजन साक्षियों एवं संबंधित दस्तावेजों को प्रमाणित किया गया, अभियोजन ने अपना मामला संदेह से परे प्रमाणित किया । जहॉ विचारण उपरांत न्यायालय-विषेष न्यायाधीष भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, सागर श्री आलोक मिश्रा की न्यायालय ने आरोपी को दोषी करार देते हुये उपरोक्त सजा से दंडित किया है ।