संसार से हमने जो लिया उसे लौटाना भी है, तभी मुक्ति मिलेगी - संतश्री नागर जी
▪️खुरई में श्री नागर जी की श्रीमद् भागवत कथा का तृतीय सोपान
खुरई। ’त्याग ईश्वर का दूसरा रूप है। यदि त्याग वृत्ति आ जाए तो त्याग में शांति है, संग्रह में उतना आनंद नहीं जितना त्याग में है। मिल गया तो दूध बराबर, मांग लिया तो पानी, चूस लिया तो खून बराबर, यह संतों की वाणी। जीवन के अंत में देह के वस्त्र, कमर का कडोरा, हाथ पांव का तागा सब निकाल दिया जाता है, बस आत्मा और परमात्मा ही शेष रह जाता है।’ पूज्य संत श्री कमल किशोर नागर जी ने खुरई में प्रवाहित हो रही श्रीमद् भागवत कथा के तृतीय दिवस त्याग और पुण्य की महिमा पर अपने अमृत वचनों में यह आशीर्वचन कहे।
व्यास गादी पर विराजमान संत श्री नागर जी ने आज मेले में खिलौना खरीद कर उसे खिलौने को बरतने की अमीर और गरीब के बच्चों की प्रवृत्ति से जीव आत्मा और देह की समानता करते हुए कहा कि रईस का बच्चा खिलौने को कुछ ही देर में खेलकर तोड़ फोड़ देता है लेकिन गरीब पिता का अभावों में पला बच्चा अपने पिता की शिक्षा पर चलता हुआ खिलौने से संभाल कर खेलता है और मन भर जाने पर ज्यों का त्यों पिता को वापस लौटा देता है ताकि पिता उसी मेले में खिलौने को बेच कर अपने परिवार को संध्या के भोजन की व्यवस्था कर सके। श्री नागर जी ने कहा कि हमारा जीवन और देह भी एक खिलौने की तरह है, इससे खूब खेल लो और जीवन के चौथे पहर अगले जन्म की तैयारी के लिए जस का तस वापस कर दो। जैसे कबीर ने किया। ध्रुव प्रह्लाद सुदामा ने ओढ़ी, दास कबीर ने ऐसी ओढ़ी ज्यों की त्यों धर दीन्हीं चदरिया। एक दाग नहीं लगने दिया जीवन की चदरिया में। खराब नहीं होने दी और वापस लौटा दी। स्मरण रखिए कि संसार से जो हमने लिया उसे लौटाना भी है, फिर जो मिलेगा वह मुक्ति ही मिलेगी। इस कथा से हमें शिक्षा मिलती है कि जीवन में धंधा, रोजगार, नौकरी सब खेल खेलो और जीवन के चौथे आश्रम के लिए निवृत हो जाओ, मुक्ति की व्यवस्था करो। जा का वा को दीजिए जिसका जो कुछ होए। आखिरी में हाय हाय समाप्त हो हरि-हरि शेष रह जाए।
संत श्री नागर जी ने जैन दर्शन का उल्लेख करते हुए कहा कि वहां अहिंसा की बात होती है। असंचय और आस्तेय की चर्चा होती है। पहनने, खाने, रहने और रहनी में आत्मा को भी चोट न लग जाए, देखने में भी हिंसा हो सकती है ऐसा संयम भाव। हमारे चमक धमक भरे आचरण से ,पहनने ओढ़ने से भी किसी को आघात लग जाए तो वह भी हिंसा न हो पाए। जैनियों के कपड़े के मार्केट होते हैं पर उनके साधु साध्वियों को देखिए। अगले जन्म की तैयारी ऐसी होती है। इसी कंचन काया से हम जीवन में खेलते हैं और इसी से दोबारा मनुष्य जन्म मिलता है। इसलिए मन ऐसों निर्मल करो,ज्यों गंगा को नीर, पीछे पीछे हरि फिरैं ,कहते कबीर कबीर।
श्री नागर जी ने बताया कि संत रैदास जी को पूर्व में सात जन्म ब्राह्मण रूप में मिल चुके थे। सात जन्मों से सभी उनका आदर करते थे, असंख्य लोग उनके चरण स्पर्श करते थे। उन्होंने अपना अगला जन्म मांगा कि मुझे अब जूते बनाने वाले मोची के रूप में जन्म मिले। इसके पीछे उनकी यह विनम्र सोच थी कि किसी से चरण स्पर्श कराने में उसे अपने पुण्य का कुछ हिस्सा देना भी पड़ता है। सात जन्मों में पुण्य दे दें कर पुण्यों का क्षरण हो गया और अब चरणों में जूते पहनाना है कि किसी के पांवों में कांटा, कंकर न चुभे। सात जन्मों तक मेरे चरण स्पर्श करने वालों का कर्ज उतारना है। इस प्रसंग से समझिए कि यहां जीवन में जो मौज मस्ती करते हैं उसमें पुण्य का खर्च मत करो। यदि रूखा सूखा नहीं खाया, पैदल नहीं चले तो बाद में यही करना पड़ेगा। इसलिए पुण्यों को बचाओ जैसे और जहां से बच सकें। माता सीता जी का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि उनकी सास उन्हें ज्योति की बत्ती खिसकाने तक का कष्ट नहीं करने देती थीं। बहू पर इतना लाड़ था कि वह महलों में भी कालीन पर चलती थी कि कहीं महल की धूल न लग जाए। और उस कोमल जीवन जीने वाली बहू को वनों के कांटों, भयानक जीवों, असुरों के भयानक वातावरण में रह कर कष्ट भोगना पड़े। संत श्री ने कहा कि जिस तरह जीवन में दूध, घी, शक्कर जैसी वस्तुओं को बचा कर खर्च करते हो वैसे ही पुण्यों को बचा कर खर्च करो। मंहगी चीजें खरीदने से बचो यदि सस्ती से काम चल सकता है। सुख को थोड़ा कम किया जा सकता है। ऐसी कथाएं सुनकर ही मनुष्य जीवन के ब्रेक पर पांव रखता है। उन्होंने बताया कि राजा हरिश्चंद्र का बेटा हीरा मोती जड़े वस्त्र पहनता था किन्तु उसे जब आवश्यकता आई तब कफ़न के लिए एक गज का टुकड़ा भी नहीं मिल सका।
श्री नागर जी ने रविवार के दिन कथा श्रवण के लिए हजारों की संख्या में आए युवाओं और बच्चों को विशेष संदेश देते हुए कहा कि जो भी हरि निंदा करे उसके पास मत बैठो, इससे नास्तिकता बढ़ेगी। मूर्खों को समझाने में अपना समय नष्ट मत करो क्योंकि इसके लिए तुम्हें उनके स्तर पर उतरना पड़ेगा। मोबाइल संस्कृति, आधुनिक जीवन शैली साथ सज्जा, सुंदरता से आवश्यक दूरी बना कर रखो। इनसे बचना घाटे का सौदा नहीं है। बाल कैसे कटे, जींस कैसी फटी रह सब इंद्रियों का खेल है। यह सब युवाओं बच्चों को डुबाने के लिए हो रहा है।
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कथा के तृतीय सोपान का आरंभ आज मुख्य यजमान नगरीय विकास एवं आवास मंत्री श्री भूपेंद्र सिंह की धर्मपत्नी श्रीमती सरोज सिंह व पुत्र अभिराज सिंह द्वारा व्यास गादी के पूजन से हुआ। संत श्री नागर जी ने कहा कि वे खुरई में सिर्फ कथा नहीं वांच रहे बल्कि आस्था से बोल रहे हैं। आयोजक परिवार का प्रभाव नहीं अपितु उनकी सादगी, सरल स्वभाव ने मेरे मन को जीत लिया है इसलिए यहां कथा कहने आए हैं। इस श्रीमद् भागवत कथा का मनोरथ श्री भूपेंद्र सिंह के परिवार को प्राप्त हुआ है जिन्होंने यह ज्ञान यज्ञ प्रारम्भ किया है। हम सब मिलकर यजमान परिवार के लिए कहें साधोसाधो, आप धन्य हों, आपका पुरुषार्थ प्रबल हो।
कथा के तृतीय दिवस मंत्री प्रतिनिधि लखन सिंह, अशोक सिंह, पृथ्वी सिंह, डा सुखदेव मिश्रा, चंद्रप्रताप सिंह, नगर पालिका अध्यक्ष नन्हींबाई अहिरवार, उपाध्यक्ष चौधरी राहुल जैन, रश्मि सोनी, देशराज यादव, बलराम यादव, विजय पटेल, विनोद राजहंस, इंद्रकुमार राय, अर्चना जैन, पूर्व विधायक धरमू राय, अजय तिवारी देवलचौरी, राजेंद्र पटैरिया, अनेक पार्षदगण और लगभग एक लाख का श्रोता समूह उपस्थित था। गांव गांव से उमड़ रहे श्रद्धालुओं के अनुसार लगातार पंडाल के आकार और बैठक व्यवस्था में वृद्धि की जा रही है। प्रशासनिक अधिकारियों, आयोजन समिति सदस्यों, स्वयं सेवकों द्वारा कथा स्थल पर की गई व्यवस्थाओं की प्रशंसा हो रही है।