दुनियाँ भर में डॉयबिटीज DIABETES एक ऐसी बीमारी बन कर उभरी है , जो बहुत तेज़ी से बच्चों से लेकर युवाओं को अपना निशाना बना रही है । आज 14 नवंबर को विश्व मधुमेह दिवस है। जाने इस बीमारी के लक्षण और उपाय।
मोटापा एवं डॉयबिटीज का आपस में गहरा रिश्ता है । मोटे लोगों को डॉयबिटीज ज़्यादा होती है । मोटापा एवं डॉयबिटीज के मरीज़ पिछले कुछ सालों में समानान्तर रूप से बढ़े हैं ।
पेनक्रियॉज ग्रंथि से इंसुलिन हार्मोन निकलता है , जो खून में शक्कर की मात्रा को नियंत्रित करता है । जब शरीर में इंसुलिन की कमी अथवा इंसुलिन की कार्यक्षमता में कमी हो जाती है तब खून में शुगर की मात्रा सामान्य से ज़्यादा हो जाती है , इसी अवस्था को डॉयबिटीज ( मधुमेह) कहते हैं..
जब हम भोजन करते हैं , भोजन का कार्बोहाईड्रेट शरीर में ग्लूकोज़ में परिवर्तित हो जाता है । इंसुलिन इस ग्लूकोज़ को जलाकर शरीर की लाखों कोशिकाओं को ऊर्जा प्रदान करता है । इंसुलिन के बिना ग्लूकोज़ हमारे शरीर की कोशिकाओं में प्रवेश नहीं कर सकता।
डॉयबिटीज के प्रकार :
1.TYPE I / IDDM / JUVENILE DIABETES :
किशोर अवस्था की यह डॉयबिटीज 5 से 15 वर्ष के बच्चों को होती है । इसमें पेनक्रियास से इंसुलिन कम बनती है या नहीं बनती । इन मरीज़ों को गोलियों से कंट्रोल नहीं कर सकते , इन्हें ज़िंदगी भर इंसुलिन चिकित्सा आवश्यक है ।
2.TYPE II / NIDDM / MATURITY ONSET
DIABETES : वयस्क अवस्था की यह डॉयबिटीज 30 से 35 वर्ष की उम्र में होती है । इन मरीज़ों में या तो इंसुलिन ज़रूरत के अनुसार नहीं बनती अथवा इंसुलिन की कार्यक्षमता प्रभावित होने (Insulin Resistance) से इंसुलिन का सही उपयोग नहीं हो पाता । कई बार तो डॉयबिटीज का पता तब चलता है जब बीमारी बहुत ज़्यादा बढ़ चुकी होती है ।
3.गर्भावस्था की डॉयबिटीज :
यह डॉयबिटीज गर्भावस्था के दौरान पहली बार पता चलती है । अक्सर गर्भावस्था में 5 से 6 महिने के दौरान इसका पता चलता है ।
4.सेकंडरी डॉयबिटीज (Secondary Diabetes):
पेनक्रियॉज की बीमारी , वायरस संक्रमण , थायरॉइड एवं कुछ हार्मोंस , कुछ दवाइयाँ जैसे कार्टिसोन , बीटा ब्लॉकर्स , कोलेस्ट्रोल कम करने वाली स्टेटिन , थॉयज़ायड पेशाब की गोलियाँ तथा गर्भनिरोधक दवाएँ खून में शक्कर की मात्रा बढ़ाते हैं ।
5.वंशानुगत डॉयबिटीज :
डॉयबिटीज के लक्षण :
यह दुर्भाग्यपूर्ण बात है कि लगभग 50% डॉयबिटीज के रोगियों में बीमारी के शुरुआती लक्षण दिखाई नहीं देते , जिससे कई बार बीमारी खून की जाँच करवाने पर अचानक पता चलती है ।
अगर किसी को भी निम्न लक्षण हों , तो डॉयबिटीज की जाँच करवाएँ । अगर समय रहते डॉयबिटीज को कंट्रोल नहीं किया तो कई नई बीमारियाँ पैदा हो सकती हैं ।
1.ज़्यादा प्यास लगना , बार बार गला सूखना ।
2.बार बार पेशाब जाना , रात में पेशाब के लिए बार बार उठना ।
3.ज़्यादा भूख लगना , अधिक खाना खाने के बावजूद वज़न घटना..अकारण कमजोरी ,थकान महसूस करना..
पिंडलियों में दर्द , पंजों में सनसनाहट , शून्यता या भारीपन होना ।
4.चोट एवं घाव का जल्दी ठीक ना होना ।
5.चमड़ी के इनफ़ेक्शन - फोड़ा , फुंसी एवं खुजली बार बार होना ।
6.हाँथ पैर की उंगलयों के बीच एवं स्तन के नीचे चमड़ी में फ़ँगस इनफ़ेक्शन ( खुजली ) होना ।
7.पुरुषों में लेंगिक शिथिलता , नपुंसकता होना तथा लिंग में बार बार खुजली होना ।
8.महिलाओं में योनि ( गुप्तांगों ) में बार बार फ़ँगस इंफ़ेक्शन ( खुजली ) होना ।
9.आँख़ों से धुँधला दिखना । बार बार द्रष्टि में अंतर आने के कारण बार बार चश्मे का नम्बर बदलना एवं युवावस्था में ही आँखों में मोतियाबिंद होना ।
डॉयबिटीज से होने वाले ख़तरे :
अगर डॉयबिटीज कंन्ट्रोल में नहीं है तो उससे निम्न ख़तरे हो सकते हैं ...
डॉयबिटीज से शरीर की धमनियाँ प्रभावित होती हैं जिससे ब्लड प्रेशर , हार्ट अटेक , लकवा , गुर्दे की ख़राबी , गेंग्रीन एवं आँखों में अंधापन आदि की सम्भावना बढ़ जाती है ।
डॉयबिटीज कोमा : लम्बे समय तक डॉयबिटीज बहुत ज़्यादा होने पर मरीज़ को अत्यधिक थकान , पेट में दर्द एवं उल्टी होने लगती है । मरीज़ की साँस से एसीटोन ( पके फलों जैसी ) की बदबू आने लगती है एवं मरीज़ के बेहोश होने की स्थिति बन जाती है । इस अवस्था में मरीज़ को भर्ती कर इंसुलिन चिकित्सा आवश्यक होती है...
किन मरीज़ों को डॉयबिटीज की जाँच करवाना चाहिए :
1.जिनके परिवार में किसी सदस्य को डॉयबिटीज की बीमारी है ..
2.जो व्यक्ति मोटे हैं , व्यायाम नहीं करते , मानसिक तनाव में रहते हैं , अनियमित खानपान है एवं अत्यधिक शराब का सेवन करते हैं....
3.जिन्हें डॉयबिटीज की बीमारी के लक्षण मौजूद हैं ...
4.जिन मरीज़ों को ब्लड प्रेशर , हार्ट अटेक , लकवा , आँख या गुर्दे में ख़राबी है ...
5.जिन्हें गेंग्रीन हुआ है ..
6.जो लम्बे समय से दमॉं श्वांस की एवं जोड़ों के दर्द की प्रचलित आयुर्वेदिक पुड़िया ( जिसमें कार्टिसोंन रहता है ) ले रहे हों..
डॉयबिटीज के मरीज़ों के लिए आवश्यक परीक्षण :
जब भी डॉ. के यहाँ दिखाने जाएँ , हर बार ब्लड ग्लूकोज़ , पेशाब में शुगर की जाँच , वज़न , ब्लड प्रेशर एवं पैरों की जाँच करवाना चाहिये ..
हर ६ माह में ग्लायकोसायलेटेड हीमोग्लोबिन ( HbA1c) : इस जाँच से पिछले 4 से 6 महिने का डॉयबिटीज का औसत कंन्ट्रोल पता चलता है।
साल में कम से कम एक बार ..डॉयबिटीज से प्रभावित होने वाले शरीर के सभी अंग जैसे हार्ट , गुर्दे , लिवर , आँखे एवं नसों का परीक्षण होना चाहिये । साल में एक बार कोलेस्ट्रोल की जाँच भी होना चाहिये ।
डॉयबिटीज का इलाज :
1.संतुलित पौष्टिक आहार एवं नियमित जीवन शैली इस बीमारी का मुख्य इलाज है । जब संतुलित आहार एवं नियमित व्यायाम से डॉयबिटीज कंट्रोल ना हो तभी दवाएँ शुरु करना चाहिए ।
2.वज़न को संतुलित रखें । वज़न का घटना या बढ़ना दोनों नुक़सानदायक हैं ।
3.व्यायाम : प्रतिदिन 30 से 40 मिनिट तेज़ चलना , सायकिल चलाना , बेडमिंटन खेलना एवं जोगिंग करना आवश्यक है ।
4.तनाव मुक्त जीवन शैली : योग व प्राणायाम तनाव कम करने में सहायक हैं ।
5.नींद : ७ घण्टे की पर्याप्त नींद ज़रूरी है ।
6.पैरों की देखभाल : पैरों की देखभाल चेहरे से ज़्यादा ज़रूरी है । पैरों को साफ़ एवं सूखे रखें । नंगे पैर ना चलें । नाखून सावधानी से काटें । पैरों में अगर कोई छाला या घाव है तो उसका तुरंत इलाज करवाएँ । पैरों में खून का संचार बनाए रखने के लिए पैरों के व्यायाम नियमित करें.
7.तंग कपड़े ना पहिनें , इससे खून का संचार बाधित होता है ।
8.शारीरिक स्वच्छता पर विशेष ध्यान दें , क्योंकि डॉयबिटीज के मरीज़ों को संक्रमण रोग अधिक होते हैं ।
भोजन शैली :
1.एक बार में इकट्ठा भोजन २ बार करने के स्थान पर ..थोड़ा थोड़ा हल्का भोजन दिन में 4-5 बार में लें ।
2. हाई प्रोटीन युक्त भोजन लें । आप साबुत अनाज़ , गेहूँ , ज्वार , दालें , माढ़ निकला चाँवल , हरी सब्ज़ियाँ , सलाद , सप्रेटा दूध , दही , मठा सभी ले सकते हैं , पर निर्धारित मात्रा में । अदरक एवं दालचीनी लाभकारी है ।
3.शुद्ध घी , बटर एवं तेल का इस्तेमाल सीमित मात्रा में करें । हमेशा एक ही तरह का तेल के इस्तेमाल की जगह , तेल बदल बदल कर उपयोग करें ।
4.गुड़ , शक्कर एवं मिठाई ना लें ।
5.ड्रॉय फ़्रूट्स में काजू , बादाम , पिस्ता एवं अखरोट लाभदायक हैं ।
6.डब्बा बंद ज़ूस , कोल्ड ड्रिंक्स ना लें , इसकी जगह ताज़े फल का सेवन करें ।
7.ग्रीन टी : इसमें मौजूद एन्टीओक्सिडेंन्ट खून में शुगर को नियंत्रित करता है ।
8.शराब : शराब का परहेज़ आवश्यक है ।शराब से डॉयबिटीज की दवाओं का असर प्रभावित होता है ,
जिससे खून में शुगर कम / बढ़ हो सकती है ।
9.धूम्रपान : बीड़ी , सिगरेट पूर्णतः वर्जित है । इससे ब्लड प्रेशर , हार्ट अटेक , लकवा एवं गेंग्रीन की संभावना बढ़ जाती है ।
10.उपवास : उपवास ना रखें
11.अगर आपका BP भी बढ़ता है तो उसे नियंत्रित रखें ।
औषधियाँ :
जब संतुलित आहार एवं नियमित व्यायाम के बावजूद डॉयबिटीज कंट्रोल ना हो तभी दवाएँ शुरु करना चाहिए..
डॉयबिटीज के इलाज के लिए कई तरह की औषधियाँ उपलब्ध हैं । डॉयबिटीज के प्रकार एवं शरीर के विभिन्न अंगों पर डॉयबिटीज के प्रभाव के आधार पर दवाइयों का चयन किया जाता है ।
अगर ब्लड प्रेशर , हार्ट अटेक ,हार्ट फ़ेलयर , गुर्दे एवं लीवर की समस्या साथ में हो ...तो दवा सावधानी पूर्वक देना पड़ती है ।
औषधियाँ भोजन करने के 15 से 20 मिनिट पहिले लेना है । डॉयबिटीज कंट्रोल में आने के बाद भी दवा लेना बंद नहीं करना है । खून में शुगर की जाँच कराने के दिन दवाइयाँ यथावत लेते रहना है ।
इंसुलिन चिकित्सा :
बच्चों की डॉयबिटीज , गर्भावस्था की डॉयबिटीज , किसी भी आपरेशन के दौरान एवं गम्भीर बीमारियों के दौरान इंसुलिन चिकित्सा ज़रूरी है ।
आजकल ह्यूमन इंसुलिन इस्तेमाल करते हैं । आवश्यकतानुसार इंसुलिन को दिन में एक बार , दो बार एवं दिन में तीन बार भी इस्तेमाल करते हैं ।
🙏🏻आपके अच्छे स्वास्थ्य की कामना के साथ..🙏🏻
डॉ. राजेन्द्र चउदा..MD
सीनियर मेडिसिन विशेषज्ञ..सागर
•ब्लड प्रेशर • हृदय रोग • डॉयबिटीज
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