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वृक्ष हमें पीढ़ियों तक प्राणवायु प्रदान करते है : सांसद राजबहादुर सिंह◾पितृपक्ष में पुरखों की याद में वृक्षारोपण

 वृक्ष हमें पीढ़ियों तक प्राणवायु प्रदान करते है : सांसद राजबहादुर सिंह

◾पितृपक्ष में पुरखों की याद में वृक्षारोपण

सागर । सागर सांसद राज बहादुर सिंह की अनूठी पहल पर पितृपक्ष में अपने परिजनों के पुण्य स्मरण में वृक्षारोपण और उनके पुख्ता संरक्षण का मनोभाव अनुकरणीय है ।वर्ष 2020 में केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद सिंह पटेल की विशेष उपस्थिति में पितृपक्ष में शुरू किया गया नवाचार अब जन आंदोलन बन गया है ।

विगत 2 वर्षों में उनकी पहल पर रोपित गुलमोहर एवं वानस्पतिक महत्व के पौधे अब वृक्ष का आकार लेने लगे हैं ।
आज तीसरे वर्ष पितृपक्ष पर एकता कॉलोनी, वृंदावन वार्ड में धार्मिक महत्व के कदम के 20 पौधे परिजनों द्वारा अपने दिवंगतों के स्मरण में रोपित किए गए । सभी परिजनों ने पौधों के संरक्षण एवं संवर्धन की शपथ लेकर इस आंदोलन का हिस्सा बने । आयोजित कार्यक्रम अवसर पर सांसद राजबहादुर सिंह ने कहा कि सनातन धर्म में पितृपक्ष का विशेष महत्व है । 
मान्यता है कि इन दिनों श्रद्धा भाव से पूजा अर्चना करने पर या फिर वृक्षारोपण करने पर हमारे पितर प्रसन्न हो जाते हैं ।
हमारे जतन करने पर जब वहीं पौधा वृक्ष बनता है उस वृक्ष को देखकर हम अपने पुरखों को याद करते हैं ।
हमारे द्वारा रोपित वहीं वृक्ष हमें पीढ़ियों तक प्राणवायु प्रदान करते हैं ।
इस अवसर पर विशेष रूप से उपस्थित महापौर संगीता तिवारी ने कहा कि वृक्ष लगाकर उन्हें पूर्ण संरक्षण एवं संवर्धन करना बेहद कठिन कार्य है । इस धारणा को सांसद सिंह के संकल्प ने चरितार्थ कर दिखाया ।

वरिष्ठ भाजपा सुशील तिवारी ने कहा कि जो व्यक्ति पितृपक्ष में वृक्षों को लगाता है वह अपनी बीती हुई तथा आने वाली पीढ़ियों के सभी पितृकुलों का उद्धार कर देता है ऐसा शिव पुराण में वर्णन आता है ।उन्होंने सांसद सिंह की अनूठी पहल का स्वागत किया ।

इस अवसर पर पार्षद शैलेंद्र सिंह, पार्षद शैलेश जैन, पार्षद सोमेश जड़िया, मन्नू कक्का, देवराज चन्नी,राजाराम सैनी, आलोक गौतम,बबलू राय, अनिल जैन नैनधरा, सूर्यांश तिवारी,आकाश श्रीवास्तव, सचिन दुबे लल्ला, एड.आकाश शुक्ला, राजेंद्र सिंह बन्नाद,अरुण सिंह राजपूत, इंदु चौधरी, अरुण श्रीवास्तव पप्पू, मोनू सिंह, रमाकांत मिश्रा, डॉ. राजू सेन, राजू तिवारी, पंचरत्न, अनुराग ताम्रकार, राम मिश्रा, संदीप बोहरे, दिनेन्द्र पांडे,अनिल पुरोहित,सुरेश ठाकुर, दीपक रैकवार, कविंद्र राय, योगेश शर्मा एवं नदीम खान सहित शहर के प्रबुद्ध नागरिक बड़ी संख्या में उपस्थित थे ।
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समस्या विहीन बनेगा सुरखी विधानसभा क्षेत्र :गोविंद सिंह राजपूत

समस्या विहीन बनेगा सुरखी विधानसभा क्षेत्र :गोविंद सिंह राजपूत


सागर। मुख्यमंत्री जन सेवा शिविर में कोई भी व्यक्ति छूटना नहीं चाहिए जीरो टारगेट लेकर मुख्यमंत्री जन सेवा शिविर में काम करना है सुरखी विधानसभा क्षेत्र को समस्या विहीन बनाना हमारा लक्ष्य है   अधिक से अधिक लोगों के काम अधिकारी, कर्मचारी  निपटाएं ,नहीं तो खुद निपटने को तैयार हो जाएं यह बात राजस्व एवं परिवहन मंत्री गोविंद सिंह राजपूत ने ग्राम घूघर में आयोजित मुख्यमंत्री जन सेवा शिविर के दौरान कही।

श्री राजपूत ने  कहा कि मुख्यमंत्री जन सेवा अभियान एक ऐसा अभियान है जिसमें ऐसे पात्र हितग्राहियों को लाभ देने का कार्य किया जाएगा जो किसी कारण से महत्वपूर्ण जनकल्याणकारी योजनाओं से वंचित रह गए हैं इसको लेकर पूरी सुरखी विधानसभा क्षेत्र में हर जगह शिविर लगाए जा रहे हैं ताकि हमारे क्षेत्र वासियों की समस्याओं का निराकरण उनके गांव में हो सके हमारे क्षेत्र के लोग अपने कामों के लिए अधिकारियों और कार्यालयों के चक्कर ना लगाएं इस उद्देश्य को लेकर हर ग्राम पंचायत में यह शिविर आयोजित किए जा रहे हैं जहां अधिकारियों का पूरा दल पहुंचेगा और आपकी समस्याओं का निराकरण करेगा।


एक ही स्थान पर दो बार लगेंगे शिविर

मुख्यमंत्री जन सेवा अभियान का शिविर सिर्फ औपचारिकता नहीं है बल्कि यह एक ऐसा अभियान है जिसमें लोगों की समस्याओं का निराकरण उनके गांव में होगा श्री राजपूत ने कहा कि यह शिविर एक ही गांव में दो बार लगाए जाएंगे पहली बार में लोगों की समस्याओं से संबंधित आवेदन लिए जाएंगे तथा दूसरी बार में उसी स्थान पर शिविर लगाकर अधिकारी कर्मचारी लिए गए आवेदनों की जानकारी लोगों को देंगे कि उनके आवेदनों पर क्या कार्यवाही अब तक हुई है। इसके लिए इसके लिए हर ग्राम पंचायत में शिविर की रिपोर्टिंग करने के लिए अध्यक्ष ,महामंत्री तथा बीएलए नियुक्त किए गए हैं जो शिविर की जानकारी हम तक पहुंचाएंगे श्री राजपूत ने अधिकारियों को निर्देशित किया कि जो लोग आवेदन लेकर नहीं आ रहे हैं उनकी समस्या सुनकर अधिकारी कर्मचारी खुद आवेदन बनाएं और उनकी समस्या का निराकरण करें।
ग्राम गुरु घर में लगभग 126 आवेदन आए मुख्यमंत्री जन सेवा अभियान का दूसरा शिविर 18 अक्टूबर को आयोजित किया जाएगा।

 करोड़ों के विकास कार्यों का किया भूमिपूजन

सुरखी विधानसभा क्षेत्र में 10हजार करोड़ के विकास कार्य चल रहे हैं मुख्यमंत्री जन सेवा शिविर के अवसर पर राजस्व एवं परिवहन मंत्री गोविंद सिंह राजपूत ने ग्राम घूघर में करोड़ों की लागत के विकास कार्यों का भूमि पूजन किया जिनमें रोड निर्माण ,आंगनवाड़ी, भवन पंचायत भवन ,पानी की टंकी आदि शामिल है।
इस अवसर पर इस अवसर पर वरिष्ठ भाजपा नेता हरनाम सिंह, जनपद अध्यक्ष रामबाबू सिंह, साहब सिंह ,गुड्डा शुक्ला ,राज किशोर तिवारी ,अरुण दुबे ,अर्जुन पटेल ,सरपंच गीता ,जिला पंचायत सदस्य संतोष पटेल ,उदय सिंह, योगेंद्र ,अभिषेक रोहण, रवि सोनी भैया राम ,मोती लाल पटेल, मंसाराम पटेल, शीतल जैन गोरेलाल पटेल ,छतर सिंह भगवान दास, तखत सिंह सहित एसडीएम ,तहसीलदार तथा संबंधित विभाग के अधिकारी कर्मचारी शिविर में मौजूद रहे।
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सैकड़ो कांग्रेसियों ने चुनाव प्रचार के अन्तिम दिन कर्रापुर में किया महा जनसम्पर्क

सैकड़ो कांग्रेसियों ने चुनाव प्रचार के अन्तिम दिन कर्रापुर में किया महा जनसम्पर्क

सागर। नरयावली विधानसभा क्षेत्र अन्तर्गत नगर परिषद कर्रापुर के चुनाव प्रचार के अन्तिम दिन मध्यप्रदेश कांग्रेस कमेटी के कार्यकारी अध्यक्ष एवं पूर्व मंत्री श्री सुरेन्द्र चौधरी,मध्यप्रदेश कांग्रेस के महामंत्री एवं जिला प्रभारी श्री अविनाश भार्गव, पूर्व मंत्री श्री प्रभू सिंह ठाकुर,पूर्व विधायक श्री सुनील जैन आदि कांग्रेस नेताओं ने सैकड़ों कार्यकर्ताओं के साथ नगर परिषद कर्रापुर के विभिन्न वार्डों में कांग्रेस प्रत्याशियों के पक्ष में महा जनसम्पर्क कर विजय श्री दिलाने की अपील की।

जनसम्पर्क के दौरान कांग्रेस पार्टी की रीति नीति से प्रभावित होकर नगर परिषद कर्रापुर के वार्ड क्रमांक 15 से निर्दलीय प्रत्याशी श्री मुन्ना सिंह राजपूत व एड.शैलेन्द्र सिंह राजपूत अपने दर्जनों साथियों के साथ कांग्रेस पार्टी में शामिल हुए। महा जनसम्पर्क में मुख्य रूप से वरिष्ठ कांग्रेस नेता सुरेन्द्र सुहाने, कार्यकारी जिला अध्यक्ष देवेंद्र पटैल,ब्लॉक कांग्रेस अध्यक्ष सुरेन्द्र सिंह, पुष्पेन्द्र सिंह, अवदेश सिंह, मुकुल पुरोहित, राजकुमार पचौरी,

 रामकुमार पचौरी, विजय साहू,अवदेश तोमर, मुकेश खटीक,प्रेम नारायण उपाध्याय, गोपाल सिंह राजपूत, निकलंक जैन,अशरफ खान,सरफराज पठान, शारदा खटीक, माधवी चौधरी,सिंटू कटारे, आर.आर. पारासर,देवेंद्र तोमर,एड.धनसिंह अहिरवार, हीरालाल चौधरी,आनंद तोमर, शैलू तोमर, राहुल चौबे, ज्योति पटैल, सुश्री अंचल आठ्या,अक्षय दुबे, राजा बुन्देला, अभिजीत सिंह,अरविंद मिश्रा, जितेन्द्र चौधरी, जितेंद्र खटीक, आदित्य चौधरी, रीतेश रोहित, विश्वनाथ अग्निहोत्री, इदरीश खान, परवेज खान, गोविन्द उपाध्याय, ठाकुर दास कोरी, मंगल पटैल,सहेंद्र राठौर,एड. शैलेन्द्र सिंह, दीपक शर्मा,सुरेन्द्र राजपूत, बाल किशन अग्निहोत्री, कदम सिंह, सत्यभान सिंह, हरनाम सिंह, सौरभ लोधी, धर्मेन्द्र सिंह, चांद अली,प्रदीप पटैल, राजीव सिंह, पुष्पेन्द्र सिंह, मनोज सिंह,भैया राम,मोहन अहिरवार, रंजीत अहिरवार,अजय भदौरिया, जयदीप तिवारी, गोपाल तिवारी, जीवन लाल भदौरिया, विकेश शर्मा, दीपक कुर्मी, संदीप कुमार, सूरज अहिरवार, पप्पू राजपूत, बाबू सिंह, पुष्पेन्द्र राजपूत, सतपाल सिंह, राममिलन राजपूत, विक्रम राजपूत, देवेंद्र सिंह, दरोगा सिंह, अकील खान,शब्बीर खान, हनीफ खान, हफीज खान सहित सैकड़ों कार्यकर्ता मौजूद थे।
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आचार्य स्वामी श्री धर्मेंद्र जी महाराज को गौ सेवा संघ सागर ने दी श्रद्धांजलि

आचार्य स्वामी श्री धर्मेंद्र जी महाराज को गौ सेवा संघ सागर ने दी श्रद्धांजलि

सागर। श्रीपंचखण्ड पीठाधीश्वर एवं गौ सेवा संघ सागर  के परम संरक्षक आचार्य स्वामी श्री धर्मेंद्र जी महाराज के देवलोक गमन होने पर गौ सेवा संघ प्रांगण, मोती नगर, सागर में रविवार को  श्रद्धांजलि सभा दी गई।

सदगुरुदेव, प्रातः स्मरणीय, परम गौ-भक्त, श्रीमन्महात्मा स्वामी रामचंद्र वीर जी महाराज के उत्तराधिकारी, सनातन संत परंपरा के प्रकाश पुंज, राम-जन्मभूमि आंदोलन के पुरोधा, अद्वितीय धर्म संस्कृति मर्मज्ञ, गोरक्षा एवं गौ सेवा की अप्रतिम  प्रतिमा, प्रखर प्रचंड ओजस्वी राष्ट्रभक्त के चरणो में कोटि कोटि वंदन करते हुए 

उनके शिष्यों ने श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए अपने संस्मरण सुनाये। श्रद्धांजलि सभा में  रघु ठाकुर , विधायक शैलेंद्र जैन , लालचंद घोषी, रूप किशोर अग्रवाल, कार्तिक साहू, प्रेम नारायण घोषी, राजेंद्र  खटीक, राजेश मिश्रा,  वीरेंद्र पाठक, जगन्नाथ गुरैया, अर्पित  पांडे,  लवेश चौधरी, संतोष सोनी मारुति, संतोष नामदेव, रिंकू नामदेव, प्रदीप गुप्ता, सचिन घोषी, सचिन पटेल, राकेश दुबे  कु. सत्या घोषी, अनिल रजक अभिषेक रजक, राजेंद्र चऊदा, संजय जैन, उपेंद्र गुप्ता, रनछोडी सोनी, कौशल घोषी, पंकज सोनी, महेंद्र गुप्ता, अखिलेश सेन, बद्री विशाल रावत, रिंकू नामदेव, संदीप घोषी, प्रमोद घोषी, आकाश ठाकुर उपस्थित थे।


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SAGAR: सेवादल का मासिक ध्वजवंदन कार्यक्रम परंपरा और गरिमा के साथ संपन्न


SAGAR: सेवादल का मासिक ध्वजवंदन कार्यक्रम परंपरा और गरिमा के साथ संपन्न


सागर।अखिल भारतीय कांग्रेस सेवादल की मंशानुरूप हर माह के अंतिम रविवार को शहर के विभिन्न स्थानों पर ध्वजवंदन कार्यक्रम आयोजित किया जाता है,इसी श्रृंखला में सितंबर माह के इस अंतिम रविवार को इमाम चौक, मछरयाई, केशवगंज वार्ड में आयोजित किया गया।
केशवगंज वार्ड पार्षद श्रीमति नीलोफर चमन अंसारी के करकमलों से ध्वजरोहण संपन्न हुआ।



वार्ड के बच्चों में कार्यक्रम को लेकर गजब का उत्साह देखने को मिला। इस अवसर पर पार्षद नीलोफर ने कहा कि हिंदू मुस्लिम एकता का वजूद ऐसे ही कार्यक्रमों से और मजबूत होता है। कार्यक्रम में मुख्य रूप से उपस्थित रहे पूर्व विधायक सुनील जैन ने वर्तमान में कमर तोड मंहगाई और सांप्रदायिकता को लेकर भाजपा सरकार की कार्यप्रणाली पर प्रश्न उठाये।
कार्यक्रम के आयोजक सेवादल अध्यक्ष सिंटू कटारे और संचालन द्वारका चौधरी ने किया।



कार्यक्रम में मुख्य रूप से सेवा ईदल के प्रदेश महासचिव विजय साहू,युवक कांग्रेस अध्यक्ष राहुल चौबे, महेश जाटव,पार्षद शशि जाटव,रिचा सिंह,रोशनी खान,रजिया खान,लीलाधर सूर्यवंशी,दीनदयाल तिवारी, नितिन पचौरी, कल्लू पटैल, प्रीतम यादव,वसीम खान,चमन अंसारी,सौरभ खटीक,कौसर बी,फातिमा बी, अंकुर यादव, मो.आबिद ,सज्जू, शाकिर अंसारी,अंसार,आसिफ,
अनीस,यासिर,दानिश,राजू वाल्मीकि, मनोज वाल्मीकि,रोहित वाल्मीकि,रीतेश रोहित,सगीर चौधरी,रहीश भाईजान, अकबर,पप्पू, हनीफ, अंजार, रेहान, शलील,गोपाल कोरी,अन्नू,नफीस,अनवर आदि उपस्थित रहे।
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Navratri 2022: शारदीय नवरात्रि पर बन रहे हैं खास योग, जानें तिथि और मुहूर्त

 Navratri 2022: शारदीय नवरात्रि पर बन रहे हैं खास योग, जानें तिथि और मुहूर्त

धर्म:
नवरात्रि के हर दिन एक देवी की पूजा,आराधना और मंत्र जाप का विधान होता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार देवी दुर्गा में नवग्रहों का वास माना गया है। इसलिए नवरात्रि में मां दुर्गा की पूजा-आराधना करने के साथ ही नवग्रहों की शांति पूजा भी जरूरी होती है। ज्योतिष के अनुसार कुंडली में ग्रहों की स्थिति जातकों को शुभ अशुभ परिणाम प्रदान करती है। शारदीय नवरात्रि का आरंभ 26 सितंबर से हो रहा है और इसका समापन 5 अक्तूबर को होगा। नवरात्रि के इन नौ दिनों को धार्मिक दृष्टि से बेहद ही शुभ माना गया है। 9 दिनों तक मां दुर्गा के भक्त उपवास रखते हुए मां कीआराधना , पूजा-पाठ और मंत्रों का जाप करते हैं। ऐसी मान्यता है कि नवरात्रि के नौ दिनों तक शक्ति की विशेष पूजा करने से हर तरह की मनोकामना पूरी होती है और दुख-दर्द दूर हो जाते हैं। इस बार नवरात्रि पर कुछ विशेष योग बन रहे हैं। आइए जानते हैं शारदीय नवरात्रि की तिथि, शुभ योग और मुहूर्त। 
नवरात्रि पर बनेंगे शुभ संयोग
शारदीय नवरात्रि 2022 की तिथि
प्रतिपदा तिथि की शुरूआत- 26 सितंबर 2022 को सुबह 03 बजकर 22 मिनट पर
प्रतिपदा तिथि का समापन-  27 सितंबर 2022 को सुबह 03 बजकर 09 मिनट पर
कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त 

26 सितंबर को देवी आराधना की पूजा और कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त: प्रातः  06 :11 मिनट से  प्रातः 07: 51 मिनट तक
अभिजीत मुहूर्त:  26 सितंबर, प्रातः 11: 49 मिनट से 12: 37 मिनट तक। 

शारदीय नवरात्रि पर बनेगा शुभ योग

25 सितंबर को सर्वपितृ अमावस्या के बाद 26 सितंबर को शारदीय नवरात्रि आरंभ हो जाएगी। 26 सितंबर 2022 को कलश स्थापना के दिन बहुत ही शुभ मुहूर्त का संयोग बन रहा है। इस दिन दो शुभ योग बन रहे हैं पहला शुक्ल योग और दूसरा ब्रह्म योग। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार पूजा-पाठ और धार्मिक अनुष्ठान के लिए इन योग को बहुत शुभ माना जाता है।


Navratri 2022:  आश्विन मास में शारदीय नवरात्रि का पर्व हर साल मनाया जाता है। नवरात्रि में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की अलग-अलग दिन पूजा का विधान है। इस बार शारदीय नवरात्र 26 सितंबर को शुरू होकर 5 अक्टूबर को समाप्त होगी। इस दौरान विधि-विधान से माता की पूजा से जीवन में सुख-समृद्धि और शक्ति का संचार होता है। नवरात्रि मुख्य रूप से साल में दो बार चैत्र और आश्विन मास में मनाई जाती है। शारदीय नवरात्रि हर वर्ष आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से शुरू होकर दशमी तिथि को माता दुर्गा की प्रतिमा विसर्जन के साथ समाप्त होती है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार देवी दुर्गा ने महिषासुर नामक राक्षस का वध करके आसुरी शक्तियों का सर्वनाश किया था। मां भवानी ने 9 दिनों तक युद्ध किया और दसवें दिन दैत्य का वध किया। वह समय आश्विन मास का था। अतः ये नौ दिन मां दुर्गा की पूजा-अर्चना के लिए समर्पित हैं। आइए जानते हैं मां दुर्गा के सभी स्वरूप, मंत्र, आरती और पूजन विधि सहित जरूरी बातें।
देवी दुर्गा के नौ रूप होते हैं। दुर्गाजी पहले स्वरूप में शैलपुत्री के नाम से जानी जाती हैं। ये नवदुर्गाओं में प्रथम दुर्गा हैं। पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री रूप में उत्पन्न होने के कारण इनका नाम शैलपुत्री पड़ा। नवरात्रि में प्रथम दिन इन्हीं की उपासना की जाती है।

वृषभ स्थिता माता शैलपुत्री खड्ग, चक्र, गदा, धनुष, बाण, परिघ, शूल, भुशुण्डी, कपाल और शंख को धारण करने वाली, सम्पूर्ण आभूषणों से विभूषित, नीलमणि के समान कान्ति युक्त, दस मुख और दस चरणवाली हैं। इनके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल पुष्प सुशोभित है। देवी शैलपुत्री शक्ति, दृढ़ता, आधार व स्थिरता का प्रतीक है। माता की उपासना जीवन में स्थिरता देती है।

मंत्र- ऊँ शं शैलपुत्री देव्यैः नमः।

ध्यान मंत्र- वन्दे वांच्छितलाभाय चंद्रार्धकृतशेखराम। वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्री यशस्विनीम्।।

आरती देवी शैलपुत्री

शैलपुत्री मां बैल असवार। करें देवता जय जयकार।
शिव शंकर की प्रिय भवानी। तेरी महिला किसी ने ना जानी।
पार्वती तू उमा कहलावे। जो मुझे सिमरे सो सुख पावे।
ऋद्धि-सिद्धि परवान करे तू। दया करो धनवान करे तू।
सोमवार को शिव संग प्यारी। आरती तेरी जिसने उतारी।
उसकी सगरी आस पूजा दो। सगरे दुख तकलीफ मिला दो।
घी का सुंदर दीप जला के। गोला गरी का भोग लगा के।
श्रद्धा भाव से मंत्र गाएं। प्रेम सहित फिर शीश झुकाएं।
जय गिरिराज किशोरी अंबे। शिव मुख चंद्र चकोरी अंबे।
मनोकामना पूर्ण कर दो। भक्त सदा सुख संपत्ति भर दो।

देवी ब्रह्मचारिणी

नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की आराधना की जाती है। भगवान शिव से विवाह हेतु प्रतिज्ञाबद्ध होने के कारण ये ब्रह्मचारिणी कहलाई। ब्रह्म का अर्थ है तपस्या और चारिणी यानी आचरण करने वाली। इस प्रकार ब्रह्मचारिणी का अर्थ- तप का आचरण करने वाली है।
स्वरूप
देवी ब्रह्मचारिणी के दाहिने हाथ में जप की माला है। बायें हाथ में कमंडल है। देवी ब्रह्म का स्वरूप हैं आर्थात तपस्या का मूर्तिमान रूप है। माता भगवती दुर्गा, शिवस्वरूपा, गणेशजननी, नारायणी, विष्णु माया और पूर्ण ब्रह्मस्वरूपिणी के नाम से प्रसिद्ध हैं। देवी ब्रह्मचारिणी की उपासना से मनुष्य में तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार और संयम की वृद्धि होती है। माता की कृपा से सर्वत्रि सिद्धि और विजय की प्राप्ति होती है।


मंत्र- या देवी सर्वभूतेषु मां ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।

ध्यान मंत्र- दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलु। देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।

आरती देवी ब्रह्मचारिणी

जय अंबे ब्रह्मचारिणी माता। जय चतुराना प्रिय सुख दाता।।
ब्रह्मा जी के मन भाती हो। ज्ञान सभी को सिखलाती हो।।
ब्रह्म मंत्र है जाप तुम्हारा। जिसको जपे सरल संसारा।।
जय गायत्री वेद की माता। जो जन जिस दिन तुम्हें ध्याता।।
कमी कोई रहने ना पाए। उसकी विरति रहे ठिकाने।।
जो तेरी महिमा को जाने। रद्रक्ष की माला ले कर।।
जपे जो मंत्र श्रद्धा दे कर। आलस छोड़ करे गुणगाना।।
मां तुम उसको सुख पहुंचाना। ब्रह्मचारिणी तेरो नाम।।
पूर्ण करो सब मेरे काम। भक्त तेरे चरणों का पुजारी।।रखना लाज मेरी महतारी।

देवी चंद्रघंटा

मां दुर्गा की तीसरी शक्ति चंद्रघंटा है। इस देवी के मस्तक में घंटा के आकार का अर्द्धचंद्र है। इसलिए इनका नाम चंद्रघंटा है। इनके चण्ड भयंकर घंटे की ध्वनि से सभी दुष्ट दैत्य-दानव और राक्षसों के शरीर का नाश होता है।

स्वरूप
मां के शरीर का रंग स्वर्ण के समान चमकीला है। देवी के तीन नेत्र और दस हाथ हैं। इनके कर-कमल गदा, धनुष-बाण, खड्ग, त्रिशूल और अस्त्र-शस्त्र लिए, अग्नि जैसे वर्ण वाली ज्ञान से जगमगाने वाली और दीप्तिमती हैं। ये सिंह पर आरूढ़ हैं तथा युद्ध में लड़ने के लिए उन्मुख हैं। मां की कृपा से साधक के समस्त पाप और बाधाएं विनष्ट हो जाती है। देवी की कृपा से जातक पराक्रमी और निर्भयी हो जाता है।

मंत्र- या देवी सर्वभूतेषु मां चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता।नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

ध्यान मंत्र- पिण्डजप्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकैर्युता। प्रसादं तनुते मद्मं चंद्रघण्टेति विश्रुता।।

आरती देवी चंद्रघंटा

जय मां चंद्रघंटा सुख धाम। पूर्ण कीजो मेरे काम।।
चंद्र समाज तू शीतल दाती। चंद्र तेज किरणों में समाती।।
क्रोध को शांत बनाने वाली। मीठे बोल सिखाने वाली।।
मन की मालक मन भाती हो। चंद्रघंटा तुम वर दाती हो।
सुंदर भाव को लाने वाली। हर संकट में बचाने वाली।।
हर बुधवार को तुझे ध्याये। श्रद्धा सहित तो विनय सुनाए।।
मूर्ति चंद्र आकार बनाए। शीश झुका कहे मन की बात
पूर्ण आस करो जगग दाता। कांचीपुर स्थान तुम्हारा।।
कर्नाटिका में मान तुम्हारा। नाम तेरा रटू महारानी।।
भक्त की रक्षा करो भवानी।

देवी कूष्मांडा


नवरात्रि-पूजन के चौथे दिन कूष्मांडा देवी के स्वरूप की ही उपासना की जाती है। त्रिविधि ताप युक्त संसार इनके उदर में स्थित हैं। इसलिए ये भवगती कूष्मांडा कहलाती है। ईषत् हंसने से अंड को अर्थात् ब्रह्माण्ड को जो पैदा करती है। वहीं शक्ति कूष्मांडा है। जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था, तब देवी ने ब्रह्मांड की रचना की थी।

स्वरूप

मां की आठ भुजाएं हैं। अतः ये अष्टभुजा देनवी के नाम से विख्यात हैं। इनके सात हाथों में क्रमशः कमंडल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा है। 8वें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जपमाला है। इनका वाहन सिंह है। मां कूष्मांडा की आराधना से जातक के समस्त रोग-शोक मिट जाते हैं। देवी आयु, यश, बल और अरोग्य देती हैं।

मंत्र- ऊँ कूष्माण्डायै नम:।।

ध्यान मंत्र- सुरासंपूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च। दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्मांडा शुभदास्तु मे।।

आरती देवी कूष्मांडा

कूष्मांडा जय जग सुखदानी। मुझ पर दया करो महानारी।।

पिंगला ज्वालामुखी निराली। शाकंबरी मां भोली भाली।।

लाखों नाम निराले तेरे। भक्त कई मतवाले तेरे।।

भीमा पर्वत पर है डेरा। स्वीकारो प्रणाम ये मेरा।।

सबकी सुनती हो जगदंबे। सुख पहुंचती हो मां अंबे।।

तेरे दर्शन का मैं प्यासा। पूर्ण कर दो मेरी आशा।।

मां के मन में ममता भारी। क्यों न सुनेगी अरज हमारी।।

तेरे दया पर किया है डेरा। दूर करो मां संकट मेरा।।

मेरे कारज पूरे कर दो। मेरे तुम भंडारे भर दो।।

तेरा दास तुझे ही ध्याए। भक्त तेरे दर शीश झुकाए।।

देवी स्कंदमाता
माता दुर्गा का स्वरूप स्कंद माता के रूप में नवरात्रि के पांचवें दिन पूजा की जाती है। शैलपुत्री ने ब्रह्मचारिणी बनकर तपस्या करने के बाद भगवान शिव से विवाह किया। तदनन्तर स्कन्द उनके पुत्र रूप में उत्पन्न हुए। ये भगवान स्कन्द कुमार कार्तिकेय के नाम से जाने जाते हैं। छान्दोग्य श्रुति के अनुसार मां होने से वे स्कन्द माता कहलाती हैं।
स्वरूप
स्कंदमाता की दाहिनी भुजा में कमल, बाई भुजा वरमुद्रा में है। इनकी तीन आंखें और चार भुजाएं हैं। वर्ण पूर्णतः शुभ्र कमलासन पर विराजित और सिंह इनका वाहन है। इसी कारण इन्हें पद्मासन देवी भी कहा जाता है। पुत्र स्कंद इनकी गोद में बैठे हैं। मां की उपासना से भक्त की समस्त इच्छाएं पूर्ण होती है। उसे परम शांति और सुख का अनुभव होता है। भक्त को अभीष्ट वस्तु की प्राप्ति होती है। उसे ऐश्वर्य मिलता है।
मंत्र- ऊँ देवी स्कन्दमातायै नमः।।
ध्यान मंत्र- सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया। शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी।।
आरती देवी स्कंदमाता
जय तेरी हो स्कंद माता। पांचवां नाम तुम्हारा आता।।
सबसे मन की जानन हारी। जग जननी सबकी महतारी।।
तेरी जोत जलाता रहूं मैं। हरदम तुझे ध्याता रहूं मैं।।
कई नामों से तुझे पुकारा। मुझे एक है तेरा सहारा।।
कहीं पहाड़ों पर है डेरा। कई शहरों में तेरा बसेरा।।
हर मंदिर में तेरे नजारे। गुण गाएं तेरे भक्त प्यारे।।
भक्ति अपनी मुझे दिला दो। शक्ति मेरी बिगड़ी बना दो।।
इंद्र आदि देवता मिल सारे। करें पुकार तुम्हारे द्वारे।।
दुष्ट दैत्य जब चढ़ कर आए। तू ही खंडा हाथ उठाए।।
दासों को सदा बचाने आयी। भक्त की आस पुजाने आयी।।
देवी कात्यायनी
मां दुर्गा के छठे रूप को मां कात्यायनी के नाम से पूजा जाता है। महर्षि कात्यायन की कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर उनकी इच्छानुसार उनके यहां पुत्री के रूप में पैदा हुई थीं। महर्षि कात्यायन ने इनका पालन-पोषण किया। इसलिए इनको कात्यायनी कहा गया।
स्वरूप
मां कात्यायनी का स्वरूप अत्यन्त दिव्य और स्वर्ण के समान चमकीला है। ये अपनी प्रिय सवारी सिंह पर विराजमान रहती हैं। इनकी चार भुजायें भक्तों को वरदान देती हैं। इनका एक हाथ अभय मुद्रा में है, तो दूसरा हाथ वरदमुद्रा में है। अन्य हाथों में तलवार तथा कमल का फूल है। माता की भक्ति जातक को अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष चारों फल प्रदान करती है। साधक अलौकिक, तेज और और प्रभाव से युक्त हो जाता है।

मंत्र- ऊँ देवी कात्यायन्यै नम:।।
ध्यान मंत्र- चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना। कात्यायनी शुभं दद्याद् देवी दानवघातिनी।।
आरती देवी कात्यायनी
जय जय अंबे जय कात्यायनी। जय जगमाता जग की महारानी।।
बैजनाथ स्थान तुम्हारी। वहां वरदानी नाम पुकारा।।
कई नाम है कई धाम हैं। यह स्थान भी तो सुखधाम है।।
हर मंदिर में जोत तुम्हारी। कही योगेश्वरी महिमा न्यारी।।
हर जगह उत्सव होते रहते। हर मंदिर में भक्त हैं कहते।।
कात्यायनी रक्षक काया की। ग्रंथि काटे मोह माया की।।
झूठे मोह से छुड़ानेवाली। अपना नाम जपनेवाली।।
बृहस्पतिवार को पूजा करियो। ध्यान कात्यायनी का धरियो।।
हर संकट को दूर करेगी। भंडारे भरपूर करेगी।।
जो भी मां को भक्त पुकारे। कात्यायनी सब कष्ट निवारे।।

देवी कालरात्रि
दूर्गापूजा के सातवें दिन मां कालरात्रि की उपासना का विधान है। सम्पूर्ण प्राणियों की पीड़ा हरने वाली, अग्नि भय, जल भय, जन्तु भय, रात्रि भय दूर करने वाली, काम, क्रोध और शत्रुओं का नाश करने वाली, काल की भी रात्रि विनाशिका होने से देवी का नाम कालरात्रि पड़ा।

स्वरूप
माता के शरीर का रंग काला, बाल बिखरे हुए, गले में मुंड माला, तीन नेत्र और गदहा है। दाहिना हाथ वरमुद्रा में, दूसरा हाथ अभयमुद्रा में है। बाईं हाथ में लोहे का कांटा और नीचे वाले हाथ में कटार है। इनकी पूजा करने से सभी पापों से मुक्ति, दुश्मनों का नाश और तेज बढ़ता है। मां अपने भक्तों को सभी प्रकार के कष्टों और भय के मुक्त करती है।
आरती देवी कालरात्रि
कालरात्रि जय जय महाकाली। काल के मुह से बचाने वाली।।
दुष्ट संघारक नाम तुम्हारा। महाचंडी तेरा अवतारा।।
पृथ्वी और आकाश पे सारा। महाकाली है तेरा पसारा।।
खडग खप्पर रखने वाली। दुष्टों का लहू चखने वाली।।
कलकत्ता स्थान तुम्हारा। सब जगह देखूं तेरा नजारा।।
सभी देवता सब नर-नारी। गावें स्तुति सभी तुम्हारी।।
रक्तदंता और अन्नपूर्णा। कृपा करे तो कोई भी दुख ना।।
ना कोई चिंता रहे बीमारी। ना कोई गम ना संकट भारी।।
उस पर कभी कष्ट ना आवें। महाकाली मां जिसे बचावे।।
तू भी भक्त प्रेम से कहा। कालरात्रि मां तेरी जय।।
देवी महागौरी
मां दुर्गाजी की आठवीं शक्ति का नाम महागौरी है। हिमालय में तपस्या करते समय गौरी का शरीर धूल-मिट्ठी से ढंककर मलिन हो गया था। जिसे शिवजी ने गंगा जल से मलकर धोया। तब गौरवर्ण प्राप्त हुआ था।
स्वरूप
देवी महागौरी के वस्त्र एवं आभूषण श्वेत हैं। इनकी चार भुजाएं और वाहन वृषभ है। दाहिना हाथ अभय मुद्रा और दूसरे हाथ में त्रिशूल है। बाएं हाथ में डमरू और नीचे का बायां हाथ वर-मुद्रा में है। ये सुवासिनी, शांतमूर्ति और शांत मुद्रा हैं। मां की कृपा से अलौकिक सिद्धियों की प्राप्ति होती है। देवी महागौरी भक्तों का कष्ट दूर करती हैं।
मंत्र- सिद्धगन्धर्वयक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि। सेव्यामाना सदा भूयात सिद्धिदा सिद्धिदायिनी।।
ध्यान मंत्र- श्वेते वृषे समारूढ़ा श्वेताम्बरधरा शुचिः। महागौरी शुभं दद्मान्महादेवप्रमोददा।।

आरती देवी महागौरी
जय महागौरी जगत की माया। जया उमा भवानी जय महामाया।।
हरिद्वार कनखल के पासा। महागौरी तेरी वहां निवासा।।
चंद्रकली ओर ममता अंबे। जय शक्ति जय जय मां जगंदबे।।
भीमा देवी विमला माता। कौशिकी देवी जग विख्यता।।
हिमाचल के घर गौरी रूप तेरा। महाकाली दुर्गा है स्वरूप तेरा।।
सती हवन कुंड में था जलाया। उसी धुएं ने रूप काली बनाया।।
बना धर्म सिंह जो सवारी में आया। तो शंकर ने त्रिशूल अपना दिखाया।।
तभी मां ने महागौरी नाम पाया। शरण आनेवाले का संकट मिटाया।।
शनिवार को तेरी पूजा जो करता। मां बिगड़ा हुआ काम उसका सुधरता।।
भक्त बोलो तो सोच तुम क्या रहे हो। महागौरी मां तेरी हरदम की जय हो।।
देवी सिद्धिदात्री
मां दुर्गाजी की नौवीं शक्ति का नाम सिद्धिदात्री है। ये सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाली हैं। ममता मोह से विरक्त होकर महर्षि मेधा के उपदेश से समाधि ने देवी की आराधना कर, ज्ञान प्राप्त कर मुक्ति प्राप्त की थी। सिद्धि अर्थात् मोक्ष को देने वाली होने से देवी का नाम सिद्धिदात्री पड़ा।
स्वरूप
मां सिद्धिदात्री की चार भुजाएं, वर्ण रक्त, वाहन सिंह है। कमलपुष्प पर आसीन, एक हाथ में कमल, दूसरे हाथ में चक्र, तीसरे हाथ में गदा और चौथे में शंख है। देवी प्रसन्न मुद्रा में है। इनकी आराधना से साधक को अणिमा, लधिमा, प्राकाम्य, महिमा, सर्वकामावसायिता, दूर श्रवण, सिद्धि आदि समस्त सिद्धियों नव निधियों की प्राप्ति होती है। इनकी पूजा से असंभव कार्य भी संभव हो जाते हैं।

मंत्र- ऊँ सिद्धिदात्र्यै नमः।।
ध्यान मंत्र- सिद्धगन्धर्वयक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि। सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी।।
आरती देवी सिद्धिदात्री
जय सिद्धिदात्री मां तू सिद्धि की दाता। तू भक्तों की रक्षक तू दासों की माता।।
तेरा नाम लेते ही मिलती है सिद्धि। तेरे नाम से मन की होती है शुद्धि।।
कठिन काम सिद्धि करती हो तुम। जभी हाथ सेवक के सिर धरती हो तुम।।
तेरी पूजा में तो ना कोई विधि है। तू जगदंबे दाती तू सर्व सिद्धि है।
रविवार को तेरा सुमिरन करे जो। तेरी मूर्ति को ही मन में धरे जो।।
तू सब काज उसके करती है पूरे। कभी काम उसके रहे ना अधूरे।।
तुम्हारी दया और तुम्हारी यह माया। रखे जिसके सिर पर मैया अपनी छाया।।
सर्व सिद्धि दाती वह है भाग्यशाली। जो है तेरा दर का ही अंबे सवाली।।
हिमाचल है पर्वत जहां वास तेरा। महा नंदा मंदिर में है वास तेरा।।
मुझे आसरा है तुम्हारा ही माता। भक्ति है सवाली तू जिसकी दाता।।
नवरात्रि पूजन सामग्री
रोली, मौली, केसर, सुपारी, चावल, जौ, पुष्प, इलायची, लौंग, पान, श्रृंगार-सामग्री, दूध, दही, शहद, गंगाजल, शक्कर, घी, जल, वस्त्र, आभूषण, बिल्वपत्र, यज्ञोपवतीत, सर्वौषधि, अखंड दीपक, पंचपल्लव, सप्तमृत्तिका, कलश, दूर्वा, चंद्रन, इत्र, चौकी, लाल वस्त्र, दुर्गाजी की प्रतिमा, सिंहासन, फल, धूप, नैवेद्य, मिट्टी, थाली, कटोरी, नारियल, दीपक, ताम्रकलश, रुई, कर्पूर, माचिस, दक्षिणा आदि।


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नवरात्रि त्योहार : नवरात्रि पर्व 9 रात्रियों का पर्व @पंडित अनिल पांडेय

नवरात्रि त्योहार : नवरात्रि पर्व 9 रात्रियों का पर्व 

@पंडित अनिल पांडेय

इस बार मैं आपको नवरात्र त्यौहार क्या है इसे क्यों मनाते हैं और इसकी आराधना किस तरह से करें ,इस संबंध में आपको बताने का प्रयास करूंगा ।
नवरात्र शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है पहला नव और दूसरी रात्रि । अर्थात नवरात्रि पर्व 9 रात्रियों का पर्व है ।
9 के अंक का अपने आप में बड़ा महत्व है । यह इकाई की सबसे बड़ी संख्या है । भारतीय ज्योतिष के अनुसार ग्रहों की संख्या भी नौ है । 
9 का अंक एक ऐसी वस्तु का द्योतक है जिसे कभी नष्ट नहीं किया जा सकता । क्योंकि 9 के अंक को चाहे जिस अंक से गुणा किया जाए प्राप्त अंको का योग भी 9 ही होगा ।
हमारे शरीर में 9 द्वार हैं। 2 आंख ,  दो कान , दो  नाक , एक मुख ,एक मलद्वार , तथा एक मूत्र द्वार। नौ द्वारों को सिद्ध करने हेतु पवित्र करने हेतु नवरात्रि का पर्व का विशेष महत्व है। नवरात्रि में किए गए पूजन अर्चन तप यज्ञ हवन आदि से यह नवो द्वार शुद्ध होते हैं।

नवरात्रि दो तरह की होती है एक प्रगट नवरात्रि और दूसरी गुप्त नवरात्रि । हम यहां केवल प्रगट नवरात्रि की ही चर्चा करेंगे।  दो प्रगट नवरात्रि होती हैं । पहली नवरात्रि चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा  से प्रारंभ होती है । इसे वासन्तिक  नवरात्रि भी कहते हैं ‌। यह 2 अप्रैल 2022 से थी।
दूसरी नवरात्रि अश्वनी महासके शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से प्रारंभ होती है । इसे शारदीय नवरात्रि कहते हैं । यह इस वर्ष 26 सितंबर से प्रारंभ हो रही है।
दोनों नवरात्रि में नवरात्रि पूजन प्रतिभा का सीन प्रतिपदा से नौमी पर्यंत किया जाता है प्रतिपदा के दिन घट की स्थापना करके नवरात्रि व्रत का संकल्प करके गणपति तथा मातृका पूजन किया जाता है । इसके उपरांत पृथ्वी का पूजन कर घड़े में आम के हरे पत्ते दूर्वा पंचामृत पंचगव्य डालकर उसके मुंह में सूत्र बांधा जाता है । घट के पास में गेहूं अथवा जव का पात्र रखकर वरुण पूजन करके भगवती का आह्वान करना चाहिए । नवरात्रि में  कन्या पूजन का विशेष महत्व है ।
विभिन्न ग्रंथों के अनुसार नवरात्रि पूजन के कुछ नियम है । जैसे :-देवी भागवत के अनुसार अगर अमावस्या और प्रतिपदा एक ही दिन पड़े तो उसके अगले दिन पूजन और घट स्थापना की जाती है। विष्णु धर्म  नाम के ग्रंथ के अनुसार सूर्योदय से 10 घटी तक प्रातः काल में घटस्थापना शुभ होती है। 
  रुद्रयामल नाम के ग्रंथ के अनुसार यदि प्रातः काल में चित्र नक्षत्र या वैधृति योग हो तो उस समय घट स्थापना नहीं की जाती है अगर इस चीज को टालना संभव ना हो तो अभिजीत मुहूर्त में घट स्थापना की जाएगी।
  देवी पुराण के अनुसार देवी की देवी का आवाहन प्रवेशन नित्य पूजन और विसर्जन यह सब प्रातः काल में करना चाहिए।
 निर्णय सिंधु नाम के ग्रंथ के अनुसार यदि प्रथमा तिथि वृद्धि हो तो प्रथम दिन घटस्थापना करना चाहिए।
 नवरात्र के वैज्ञानिक पक्ष की तरफ अगर हम ध्यान दें तो हम पाते हैं कि दोनों प्रगट नवरात्रों के बीच में 6 माह का अंतर है। चैत्र नवरात्रि के बाद गर्मी का मौसम आ जाता है तथा शारदीय नवरात्रि के बाद ठंड का मौसम आता है। हमारे महर्षि यों ने शरीर को गर्मी से ठंडी तथा ठंडी से गर्मी की तरफ जाने के लिए तैयार करने हेतु इन नवरात्रियों की प्रतिष्ठा की है। नवरात्रि में व्यक्ति पूरे नियम कानून के साथ अल्पाहार  एवं शाकाहार  या पूर्णतया निराहार व्रत रखता है । इसके  कारण शरीर का डिटॉक्सिफिकेशन होता है ।अर्थात शरीर के जो भी विष तत्व है वे बाहर हो जाते हैं । पाचन तंत्र को आराम मिलता है । लगातार 9 दिन के  आत्म अनुशासन की पद्धति के कारण मानसिक स्थिति बहुत मजबूत हो जाती है ।जिससे डिप्रेशन माइग्रेन हृदय रोग आदि बिमारियों  के होने की संभावना कम हो जाती है।
 देवी भागवत के अनुसार सबसे पहले मां ने महिषासुर  का वध किया । महिषासुर का अर्थ होता है ऐसा असुर जोकि भैंसें के गुण वाला है अर्थात जड़  बुद्धि है । महिषासुर का विनाश करने का अर्थ है समाज से जड़ता का संहार करना। समाज को इस योग्य बनाना कि वह नई बातें सोच सके तथा निरंतर आगे बढ़ सके।

समाज जब आगे बढ़ने लगा तो आवश्यक था कि उसकी दृष्टि पैनी होती और वह दूर तक देख सकता ।अतः तब माता ने धूम्रलोचन का वध कर समाज को दिव्य दृष्टि दी। धूम्रलोचन का अर्थ होता है धुंधली दृष्टि। इस प्रकार माता जी माता ने धूम्र लोचन का वध कर समाज को दिव्य दृष्टि प्रदान की।

समाज में जब ज्ञान आ जाता है उसके उपरांत बहुत सारे तर्क वितर्क होने लगते हैं ।हर बात के लिए कुछ लोग उस के पक्ष में तर्क देते हैं और कुछ लोग उस के विपक्ष में तर्क देते हैं । जिससे समाज की प्रगति  अवरुद्ध जाती है । चंड मुंड इसी तर्क और वितर्क का प्रतिनिधित्व करते हैं ।माता ने चंड मुंड की हत्या कर समाज को बेमतलब के तर्क वितर्क से आजाद कराया।

समाज में नकारात्मक ऊर्जा के रूप में मनो ग्रंथियां आ जाती हैं ।रक्तबीज इन्हीं मनो ग्रंथियों का प्रतिनिधित्व करते हैं। जिस प्रकार एक रक्तबीज को मारने पर अनेकों रक्तबीज पैदा हो जाते हैं उसी प्रकार एक नकारात्मक ऊर्जा को समाप्त करने पर हजारों तरह की नकारात्मक ऊर्जा पैदा होती है। जिस प्रकार सावधानी से रक्तबीज को मां दुर्गा ने समाप्त किया उसी प्रकार नकारात्मक ऊर्जा को भी सावधानी के साथ ही समाप्त करना पड़ेगा।

शारदीय नवरात्र में प्रतिपदा को माता शैलपुत्री की पूजा की जाती है । उसके उपरांत द्वितीया को ब्रह्मचारिणी त्रितिया को चंद्रघंटा चतुर्थी को कुष्मांडा पंचमी को स्कंदमाता षष्टी को कात्यायनी सप्तमी को कालरात्रि अष्टमी को महागौरी और नवमी को सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है ।

नवरात्रि के दिनों में हमें मनसा वाचा कर्मणा शुद्ध रहना चाहिए। किसी भी प्रकार के मदिरा का सेवन नहीं करना चाहिए । नवरात्र में लोग बाल बनवाना दाढ़ी बनवाना नाखून काटना पसंद नहीं करते हैं । शुद्ध रहने के लिए आवश्यक है कि हम मांसाहार प्याज लहसुन  आदि तामसिक पदार्थों का त्याग करें । तला खाना भी त्याग करना चाहिए ।
अगर आपने नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापित किया है या अखंड ज्योत जला रहे हैं तो आपको इन दिनों घर को खाली छोड़कर नहीं जाना चाहिए ।
नवरात्र में प्रतिदिन हमें साफ कपड़े साफ और झूले हुए कपड़े पहनना चाहिए । एक विशेष ध्यान देने योग्य बात है कि इन 9 दिनों में नींबू को काटना नहीं चाहिए । क्योंकि अगर आप नींबू काटने का कार्य करेंगे तो तामसिक शक्तियां आप पर प्रभाव जमा सकती हैं।
विष्णु पुराण के अनुसार नवरात्रि व्रत के समय दिन में सोना निषेध है।

अगर आप इन दिनों मां के किसी मंत्र का जाप कर रहे हैं पूजा की शुद्धता पर ध्यान दें ।जाप समाप्त होने तक उठना नहीं चाहिए।

इन दिनों शारीरिक संबंध नहीं बनाने चाहिए।
नवरात्रि में रात्रि का दिन से ज्यादा महत्व  है ।इसका विशेष कारण है। नवरात्रि में हम व्रत संयम नियम यज्ञ भजन पूजन योग साधना बीज मंत्रों का जाप कर सिद्धियों को प्राप्त करते हैं। राज्य में प्रचलित के बहुत सारे और रोज प्रकृति स्वयं ही समाप्त कर देती है। जैसे कि हम देखते हैं अगर हम जिनमें आवाज दें तो वह कम दूर तक जाएगी परंतु रात्रि में वही आवाज दूर तक जाती है दिल में सूर्य की किरणें आवाज की तरंगों को रेडियो तरंगों को आज को रोकती है अगर हम दिन में रेडियो से किसी स्टेशन के गाने को सुनें तो वह रात्रि में उसी रोडियो से उसी स्टेशन के गाने से कम अच्छा सुनाई देगा और संघ की आवाज भी घंटे और  शंख की आवाज भी दिन में कम दूर तक जाती है जबकि रात में ज्यादा दूर तक जाती है। दिन में वातावरण में कोलाहल रहता है जबकि रात में शांति रहती है। नवरात्रि में  सिद्धि हेतु रात का ज्यादा महत्व दिया गया है ।
नवरात्रि हमें यह भी संदेश देती है की सफल होने के लिए सरलता के साथ ताकत भी आवश्यक है जैसे माता के पास कमल के साथ चक्र एवं त्रिशूल आदि हथियार भी है समाज को जिस प्रकार  कमलासन की आवश्यकता है उसी प्रकार सिंह अर्थात ताकत ,वृषभ अर्थात गोवंश , गधा अर्थात बोझा ढोने वाली  ताकत , तथा पैदल अर्थात स्वयं की ताकत सभी कुछ आवश्यक है।

मां दुर्गा से प्रार्थना है कि वह आपको पूरी तरह सफल करें ।आप इस नवरात्रि में  जप तप पूजन अर्चन कर मानसिक एवं शारीरिक दोनों रुप में आगे के समय के लिए पूर्णतया तैयार हो जाएं।
जय मां शारदा।

निवेदक:-
पण्डित अनिल कुमार पाण्डेय
सेवानिवृत्त मुख्य अभियंता
प्रश्न कुंडली विशेषज्ञ और वास्तु शास्त्री
साकेत धाम कॉलोनी, मकरोनिया
 सागर। 470004
 मो 8959594400
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