जो वासना से मुक्त है वह दिगम्बर साधु है-- विरंजन सागर
सागर। गौराबाई दिगम्बर जैन मंदिर कटरा में नित्य धर्म सभा को संबोधित करते हुए छुल्लक विसौम्य सागर जी ने कहा कि जीवन भर पाप करने वाले व्यक्ति को मरण के बाद भी हम स्वर्गवासी कहते हैं, जबकि हमें नहीं पता होता कि वह स्वर्ग में है या नर्क में, वह व्यक्ति कैसा था उसका आचरण कैसा था इस बात से हमें मतलब नहीं होता, बल्कि हम कैसे हैं हम यह बात ध्यान में रखकर अपना धर्म निर्वाहन करते हैं। हम आर्य हैं और आर्य का अर्थ होता है अच्छे आचरण के साथ अच्छी सभ्य और मीठी भाषा का प्रयोग करना। अतः हम अपने संस्कारो और इंसानियत का परिचय देते हुए मरे हुए आदमी को स्वर्गवासी ही कहते हैं। उन्होंने भाषा के साथ आचरण को भी शुद्ध करने की बात कही। इसके उपरांत जनसंत विरंजन सागर जी ने उपदेश देते हुए कहा कि वासना के उतरने पर वस्त्र उतर जाते हैं, जो अपनी इन्द्रिय पर काबू पा लेते हैं, वो दिगम्बर हो जाते हैं। उन्होंने दिगम्बर का अर्थ बतलाते हुए कहा दिग और अम्बर अर्थात जिनकी दिशाएं ही वस्त्र होती हैं । गृहस्त इंसान वस्त्र इसलिए पहनता है कि उसका शरीर वासना से भरा है और जो वासना से मुक्त है वह दिगम्बर साधु है। उन्होंने उपसर्ग और परिसह में अंतर बतलाते हुए कहा परिसह वह है। जिसमे स्वयं के द्वारा स्वयं को कष्ठ होता है जैसे अपने हाँथ से ही अपने पैर को सुई का चुभाना। जबकि अकस्मात पीड़ा, तूफान, पानी, ओलावृष्टि, चोट लगना ये सब उपसर्ग है। इन सब चीजों में समता भाव रखना ही व्यक्ति का धर्म है।
उन्होंने कहा पाप अंधकार की और तो पुण्य प्रकाश की और ले जाता है। अतः जीवन मे अधिक से अधिक अच्छे कार्य कर मानवता की सेवा करें और धर्म ध्यान जैसे पुनीत कार्यो में अग्रसर होकर मानव जीवन को सफल बनायें।आज की सभा मे मुनि श्री को शास्त्र देने का अवसर प्रेम चन्द्र गुप्ता जी को प्राप्त हुआ।। प्रवचन उपरांत मुनि श्री के गृहस्त जीवन के चाचा सेठ प्रेमचन्द्र जी जैन के देहावसान पर समस्त उपस्तिथ समाज द्वारा श्रद्धांजलि अर्पित की गई।। आज की सभा का संचालन अशोक पिडरुआ ने किया।