ओबीसी आरक्षण को लेकर रिव्यू पिटीशन दायर करेंगे : मंत्री भूपेन्द्र सिंह
★ कांग्रेस ने न्यायालयीन प्रक्रिया में उलझाकर ओबीसी हितों को कुचला
सागर।नगरीय विकास एवं आवास मंत्री भूपेन्द्र सिंह ने कहा है कि मध्यप्रदेश सरकार ओबीसी आरक्षण के संबंध में आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर रिव्यू पिटीशन दायर करके पुनः अदालत से आग्रह करेगी कि मध्यप्रदेश में ओबीसी आरक्षण के साथ ही पंचायत एवं स्थानीय निकाय चुनाव सम्पन्न हों। मंत्री श्री सिंह ने यह भी कहा कि वर्तमान परिस्थिति कांग्रेस के कारण निर्मित हुई है। मध्यप्रदेश में तो 27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण के साथ पंचायत चुनाव प्रक्रिया चल ही रही थी, कांग्रेस ही इसके विरूद्ध सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट गई और महाराष्ट्र की नजीर वहां प्रस्तुत की।_
मंत्री भूपेन्द्र सिंह ने कहा कि मध्यप्रदेश सरकार ने संवैधानिक आयोग बनाकर 600 पेज की जो रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट में प्रस्तुत की उसमें प्रदेश में ओबीसी वर्ग की आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक परिस्थितियों के साथ एरियावाईज संख्या के आंकड़े विस्तृत रूप से प्रस्तुत किए थे। जिसमें बताया गया था कि 48 प्रतिशत से ज्यादा ओबीसी मतदाताओं की औसत संख्या मध्यप्रदेश में है। कुल मतदाताओं में से अजा/जजा के मतदाताओं के अतिरिक्त शेष मतदाताओं में अन्य पिछड़ावर्ग के मतदाताओं की संख्या 79 प्रतिशत है यह भी आयोग की रिपोर्ट में पेश किया गया था। आयोग ने स्पष्ट अभिमत दिया था कि त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों तथा समस्त नगरीय निकाय चुनावों के सभी स्तरों में अन्य पिछड़ा वर्ग के मतदाताओं को कम से कम 35 प्रतिशत स्थान आरक्षित होना चाहिए। श्री सिंह ने कहा कि वह कमलनाथ सरकार ही थी जिसने विधानसभा में 8 जुलाई 2019 को मध्यप्रदेश लोकसेवा आरक्षण संशोधन विधेयक में यह भ्रामक और असत्य आंकड़ा प्रस्तुत किया कि अन्य पिछड़े वर्ग की मध्यप्रदेश में कुल आबादी सिर्फ 27 प्रतिशत है। यह कांग्रेस का वह असली ओबीसी विरोधी चेहरा है जो मध्यप्रदेश की विधानसभा के दस्तावेजों में सदैव के लिए साक्ष्य बन गया है।
प्रदेश की भाजपा सरकार ने विधानसभा में यह संकल्प पारित कराया कि बिना ओबीसी आरक्षण के पंचायत व नगरीय निकाय चुनाव नहीं होना चाहिए और इसके लिए सरकार अध्यादेश तक लेकर आई थी। लेकिन कांग्रेस ने हमेशा की तरह क्षुद्र राजनैतिक स्वार्थ में पूरे प्रकरण को अपने याचिकाकर्ताओं जया ठाकुर व सैयद जाफर के माध्यम से न्यायालयीन प्रक्रिया में उलझाकर ओबीसी हितों को कुचलने का काम किया है। मध्यप्रदेश सरकार ने ओबीसी के लाभार्थिंयों को आरक्षण का उचित अनुपात में लाभ मिल सके इस हेतु अध्यादेश वर्ष 2021 की धारा 9(अ) को लागू किया था लेकिन कांग्रेस के याचिकाकर्ताओं ने धारा 9(अ) को लागू किए जाने का सर्वोच्च न्यायालय में तीव्र विरोध किया था और इसे संविधान के अनुच्छेद 243(सी) एवं (डी) का उल्लंघन बताते हुए इस संशोधन का निरस्त करने की मांग की थी।
मंत्री श्री सिंह ने कहा कि कांग्रेस ने मध्यप्रदेश में ओबीसी आरक्षण का 50 प्रतिशत से अधिक का मुद्दा नहीं उठाया होता तो माननीय सुप्रीम कोर्ट महाराष्ट्र के गवली केस में दिए गए सिद्धांत का उल्लेख नहीं करती और संपूर्ण आरक्षण को निरस्त नहीं करती। कांग्रेस के पक्षकार चाहते तो महाराष्ट्र गवली केस से अलग के रोटेशन सिस्टम पर विचार करने का निवेदन कर सकते थे। लेकिन अब यह तथ्य स्पष्ट है कि कांग्रेस एक तरफ तो ओबीसी का आरक्षण स्थगित और निरस्त कराती है और दूसरी तरफ ओबीसी वर्ग का हितैषी होने का ढिंडोरा पीटती है।
मंत्री भूपेन्द्र सिंह ने कहा कि कमलनाथ को बताना चाहिए कि जब जबलपुर हाईकोर्ट ने ओबीसी आरक्षण के लिए सिर्फ तीन परीक्षाओं पर स्टे लगाया था तब एक साल मुख्यमंत्री रहते हुए भी उन्होंने सारी परीक्षाओं और नियुक्तियों में 27 प्रतिशत के बजाए 14 प्रतिशत आरक्षण देकर ओबीसी वर्ग के अभ्यार्थियों के साथ अन्याय क्यों किया। यह सर्वमान्य तथ्य है कि कमलनाथ ने अपनी सरकार के रहते पिछड़ा वर्ग के एक भी अभ्यर्थी को 27 प्रतिशत आरक्षण का लाभ नहीं मिलने दिया। जबकि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह जी ने मुख्यमंत्री बनने के एक महीने के भीतर ही यह संभव कर दिखाया था।
मंत्री श्री सिंह ने कहा कि केन्द्र और राज्य की भाजपा सरकार के कई निर्णयों से ओबीसी आरक्षण की प्रतिबद्धता का प्रमाण मिलता है। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी की सरकार ने ओबीसी की केन्द्रीय सूची का दर्जा बढ़ाकर इस सूची को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया और इसमें परिवर्तन करने के लिए संसद को शक्ति प्रदान की। संविधान संशोधन अधिकनियम 2018 राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (एनसीबीसी) को संवैधानिक दर्जा दिया। हाल ही में मेडीकल व डेंटल काॅलेजों के अखिल भारतीय कोटे में ओबीसी के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण केन्द्र की मोदी सरकार ने ही प्रदान किया जिससे ओबीसी वर्ग के छात्रों को प्रतिवर्ष 4 हजार सीटों की अतिरिक्त उपलब्धता सुनिश्चित होगी।