आंगनबाडी कार्यकर्ताओं की हड़ताल 28 वाँ दिन , 11 आंगनबाडी कार्यकर्ता सरे भरते हुए पहुंची बाघराज मंदिर ★ तीन आंगनबाडी कार्यकर्ता हड़ताल पर हुई बेहोश
व्यापम घोटाला - 3 ,कांस्टेबल भर्ती, शिक्षक वर्ग -3 में हुये फर्जीवाड़े की सी.बी.आई जांच की मांग , ★NSUI कार्यकर्ताओ पर वाटर केनन से रोका, प्रदेश अध्यक्ष मंजुल त्रिपाठी सहितअनेक गिरफ्तार
प्रदर्शन मे मुख्य रूप से पूर्व सांसद आनन्द अहिरवार, राकेश राय, दीपक दुबे,विजय साहू, देवेन्द्र कुर्मी, महेश जाटव,, अनुराग ठाकुर, जितेंद्र चौधरी, राजू डिस्क, सुरेन्द्र करोसिया, मुकेश खटीक, बलराम साहू, राहुल गर्ग, बसीम खान,संजय रोहिदास, गोपाल तिवारी,पवन केशरवानी, मनोज पवार, राकेश सरवैया, तोता यादव, ठाकुर दास कोरी, सुधीर जैन, राहुल जाटव, निशांत आठिया, अभिषेक तिवारी, शुभम उपाध्याय, आंनद अहिरवार, रीतेश रोहित, मोनू भाईजान, दीपक कुर्मी,भूरे खटीक, नरेश कुमार राजा राय, आसिफ खान, अजय राजा,विरेन्द्र वर्मा, चंदन रैदास, मयंक कटारे, रविकेश तिवारी,सन्दीप रैदास, सुभाष चौधरी, प्रभात व्यास, शेख रिजवान, देवेंद्र पटेल गढ़ाकोटा, बंटी कोरी, कन्नू कोरी सहित सैकड़ों की संख्या में कार्यकर्ता मौजूद रहे।
चिकित्सा शिक्षक संघ की बैठक ,मांगो को लेकर दी दो महीने की मोहलत
डॉ गौर विवि : हिमालय के ‘लिटिल आइस एज’ पर शोध के लिए भूगोल विभाग के डॉ. राकेश सैनी को मिला 79.52 लाख का प्रोजेक्ट
डॉ गौर विवि : हिमालय के ‘लिटिल आइस एज’ पर शोध के लिए भूगोल विभाग के डॉ. राकेश सैनी को मिला 79.52 लाख का प्रोजेक्ट
सागर. 03 अप्रैल. डॉक्टर हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर के सामान्य एवं अनुप्रयुक्त भूगोल विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ राकेश सैनी (पीआई) को विज्ञान एवं इंजीनियरिंग अनुसंधान बोर्ड (एसईआरबी), भारत सरकार से 79.52 लाख का अनुदान प्राप्त हुआ. यह शोध परियोजना 3 वर्ष के लिए स्वीकृत की गई है. यह अनुदान उन्हें पश्चिमी हिमालय क्षेत्र के ‘लिटिल आइस एज’ (हिम युग) की शैली पर शोध-अध्ययन करने के लिए मिला है। उनके साथ डॉ संजय देसवाल, सहायक प्रोफेसर गवर्नमेंट कॉलेज छारा (झज्जर) भी सह शोध पर्यवेक्षक के रूप में काम करेंगे।. इस परियोजना के अंतर्गत हिमालयी क्षेत्र में लगभग 4000 से 5000 मीटर ऊंचाई पर स्थित लाहौल स्पीति और लद्दाख में शोध एवं अध्ययन किया जाएगा। डॉ राकेश सैनी ने बताया कि परियोजना राशि के अंतर्गत कई उपयोगी उपकरणों, शोध सहायकों और फील्डवर्क आदि सहित सभी सहायता प्रदान की गई है. डॉ सैनी की इस उपलब्धि पर कुलपति प्रो नीलिमा गुप्ता ने बधाई एवं शुभकामनाएं दी हैं। विभाग के सभी शिक्षकों ने भी अपनी शुभेच्छा प्रेषित की हैं।
विश्वविद्यालय:
भूगोल विभाग के विद्यार्थियों ने किया रूग्णता सर्वेक्षण
सागर. 03 अप्रैल. डॉ हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय के भूगोल विभाग के बी.एससी. छठवें सेमेस्टर के विद्यार्थियों ने बरारु-पटकुई गांव में कोर्स समन्वयक डॉ. हेमंत पाटीदार एवं डॉ. सतीश सी. के निर्देशन में रूग्णता (मोर्बिडिटी) पर सर्वेक्षण किया. इसके अंतर्गत विद्यार्थियों ने इन दोनों गाँवों के कुल 180 परिवारों के बीच जाकर उनके स्वास्थ्य की स्थितियों के बारे जानकारी का संकलन किया. कोर्स समन्वयक डॉ. हेमंत ने बताया कि मानव विकास में स्वास्थ्य अत्यंत ही महत्वपूर्ण पहलू होता है। ऐसे में रूग्णता के कारणों एवं रोकथाम के संभावित उपायों का अध्ययन अत्यंत ही प्रासंगिक है।
उन्होंने बताया कि इस
सर्वेक्षण के माध्यम से हम यह भी पता लगाने की कोशिश करेंगे कि लोगों की
सामाजिक-आर्थिक स्थितियाँ उनके स्वास्थ्य को कैसे प्रभावित करती हैं. इससे रूग्णता
पर सामाजिक, आर्थिक एवं व्यावहारिक कारणों
के प्रभावों को समझने में मदद मिलेगी । इस सर्वेक्षण में शोध छात्र राहुल मिश्रा,
कुंदन
परमार एवं शुभम पटेल सहित कई विद्यार्थियों ने सहयोग किया।
भगवान झूलेलाल जयंती की शोभायात्रा का सेवादल ने किया स्वागत
साप्ताहिक राशिफल : 4 अप्रैल से 10 अप्रैल तक★ पण्डित अनिल पांडेय
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भारत भवन में किताबों के साथ के वो तीन दिन… ★ ग्राउंड रिपोर्ट / ब्रजेश राजपूत
वैसे तो हमारे भोपाल की खूबसूरती का कोई जवाब नहीं मगर ये खूबसूरती तब और बढ जाती है जब बडे तालाब के किनारे बसे भारत भवन में कोई शाम रोशनी से सजी होती हो। बाहर तालों में ताल भोपाल ताल की शांत सतह और भारत भवन के अंतरंग सभागार में आज के दौर के चर्चित लेखक विक्रम संपत की मधुर शांत आवाज में अपनी बात कहना कि सावरकर को इतने सालों जो कहा गया वो नहीं बल्कि इतिहास की किताबों से संदर्भों से खोज कर जो मैंने लिखा उसे पढिये और विचार करिये कि वो क्रांतिकारी वीर थे या कुछ और मगर पढिये फिर तय करिये। गाढे लाल रंग के कुर्ते पर क्रीम कलर की बंडी पहन कर आये विक्रम को अंतरंग में बैठे लोग अपने सवालो के साथ सुन रहे थे।
तो दूसरे वागर्थ सभागार में एवरेस्ट फतह करने वाले आईएएस अफसर रवींद्र कुमार से पूछा जा रहा था कि जिंदगी में सब कुछ पद प्रतिष्ठा होने के बाद दो बार एवरेस्ट में जान जोखिम में डालने क्यों गये। इस गूढ सवाल का सरल जवाब रवींद्र कुमार का था जोखिम कहां नहीं है मगर जिंदगी में अपने आपको मुश्किलों से परखते रहना चाहिये। एवरेस्ट पर दो बार चढने के बाद पता चलता है कि इतनी तरक्की के बाद भी हम सब प्रकृति के आगे बौने हैं।
यही बौनेपन का अहसास हमें तब होता है जब किसी लेखक का उसकी किताब पर हम सुनते हैं। सूचना क्रांति के इस दौर में हमें लगता है कि हम बहुत जानते हैं मगर सच ये है कि बहुत कुछ नहीं जानते। भोपाल के भारत भवन में पिछले हफ्ते हुये भोपाल लिटरेचर एंड आर्ट फेस्टिवल के अधिकतर सत्रों में बैठकर सुनने पर ये अहसास गहराता था। और तब लगता था कि कुछ और किताबें पढनी चाहिये। मोबाइल को परे रखकर किताबों से दोस्ती बढ़ानी चाहिये। खरीद कर सेल्फ में रखी किताबों को फिर निकालना चाहिये। इस फेस्टिवल में तीन दिनों में करीब साठ से ज्यादा लेखकों ने अपनी किताबों पर पाठकों से रूबरू होकर चर्चा की। कुछ विदेशी लेखक जो आ ना सके उन्होंने आनलाइन भी अपने सेशन लिये। इन तीन दिनों में डिफेंस, डिप्लोमेसी, सोशल मीडिया, पर्यावरण, कोविड, लाकडाउन, आध्यात्म, आत्मकथाएं, इतिहास, फिल्म और पत्रकारिता पर लिखी गयी किताबों के लेखकों से भोपाल के लोग रूबरू हुये। उनको सुना और सवाल किये।
कुछ लेखक तो कभी भुलाये ना जा सकेंगे जब ब्रुसेल्स एयरपोर्ट में 2016 को हुये आतंकवादी हमले में घायल हुयी जेट एयरवेज की कर्मचारी निधि छापेकर ने हादसे का वर्णन किया तो सुनने वालों की आंखे भर उठीं। आतंकी हमले मे निधि जिंदा तो बच गयीं मगर खडे होकर चलने फिरने के लिये बीस से ज्यादा सर्जरी करवानी पडी। निधि अपनी किताब अनब्रोकन पर बात करने आयीं थीं। ये जिंदगी का संघर्ष था तो पेशे की कशमकश की कहानी कमर्शियल पायलट मनीषा मोहन ने सुनाई। भोपाल के बैरागढ में पली बढी मनीषा ने बचपन से घर के उपर से गुजरते प्लेन को देखा और पायलट बनने की ठानी। पहले पायलट बनने ओर फिर वहां रह कर पायलट बने रहने के संघर्ष की दास्तान सुन कर लगा कि मनीषा किस गजब मिटटी की बनीं हैं।
कोविड की पहली लहर में जब हमें घरों में कैद किया जा रहा था तब प्रशासनिक अफसर सडकों पर थे। हमारे आसपडोस में एक कोविड मरीज आता था तो कैसी बैचेनी होती थी मगर जिनके जिम्मे पूरा शहर और जिला होता था उन्होंने कैसी कोविड के दौरान रातें जाग कर गुजारी आइएएस अफसर तरूण पिथोडे की किताब बैटल अगेंस्ट कोविड पर हुयी चर्चा में सामने आया। पिथोडे ने बताया कि जब अचानक शहर में कोविड के नंबर बढे तो लगा कहां जाकर मुंह छिपा लें मगर घर परिवार से अलग गेस्ट हाउस में एसएसपी इरशाद वली के साथ रहकर शहर को कोविड से कैसे बचाया बहुत सारी चौंकाने वाली बातें पता चलीं। उनके मुताबिक सबसे बडी चुनौती लोगों को घरों से ना निकलने देना और उनके लिये घरों तक जरूरी सामान पहुंचाना रहा।
आयोजन के प्रमुख राघव चंद्रा ने कहा कि कोविड की तीसरी लहर के चलते जनवरी का फेस्टिवल मार्च के अंत में भारी गर्मी के बीच करना पडा मगर अच्छी संख्या में आये लोगों ने बताया कि सोशल मीडिया के इस दौर में भी भोपाल आज भी साहित्य संस्कृति और किताबों का शहर बचा हुआ है। वरिष्ठ पत्रकार और लेखक अभिलाष खांडेकर भी नयी बात कहते हैं कि मकसद ये था कि लोगों को बतायें कि कितना कुछ अलग अलग विषय पर लिखा जा रहा है लेखकों को सुनिये और पढिये, कुछ हद तक हम अपने मकसद में कामयाब रहे क्योंकि पूरे फेस्टिवल में युवाओं की भागीदारी अच्छी रही। यही इस आयोजन की बडी बात रही।
यहां फिर गुलजार याद आते हैं जो कहते हैं
किताबें झांकती हैं बंद अलमारी के शीशों से बडी हसरत से तकती हैं
महीनों अब मुलाकातें नहीं होतीं,,
तो किताबों से मुलाकातों का दौर जारी रखिये क्योंकि
सफदर हाशमी कह गये हैं,,,
किताबें कुछ कहना चाहती हैं, तुम्हारे पास रहना चाहती हैं..
तो किताबों की सोहबत में रहिये क्योंकि किताबों में ज्ञान है वाटसएप में सिर्फ झूठी सच्ची जानकारी। तय करिये आपको क्या चाहिये।
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