संकल्प का कोई विकल्प नहीं होता : पद्मश्री संतोष यादव
★ डॉ गौर विवि में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर आयोजन
सागर. 08 मार्च.
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के उपलक्ष्य में डॉ हरिसिंह गौर विश्विद्यालय के स्वर्ण
जयंती सभागार में ‘ब्रेक द बायस’ थीम पर समारोह का आयोजन किया गया. कार्यक्रम की मुख्य
अतिथि प्रख्यात पर्वतारोही पद्मश्री संतोष यादव थीं. केन्द्रीय कैबिनेट मंत्री
स्मृति जुबिन ईरानी ने वीडियो संदेश के माध्यम से समारोह को संबोधित किया. इस अवसर
पर सामाजिक कार्यकर्ता और बुंदेलखंड रत्न पुरस्कार विजेता डॉ. श्रीमती मीना
पिंपलपुरे, राज्य महिला आयोग, म.प्र. की पूर्व अध्यक्ष डॉ. लता वानखेड़े,
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रही विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. नीलिमा गुप्ता, एचएनबी
गढ़वाल विश्वविद्यालय, श्रीनगर गढ़वाल की
कुलपति प्रो. अन्नपूर्णा नौटियाल, हिमाचल प्रदेश राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय की
कुलपति प्रो. निष्ठा जसवाल, गलगोटिया विश्वविद्यालय, नोएडा की कुलपति प्रो. प्रीति
बजाज, ढाका विश्वविद्यालय, बंगलादेश की प्रो. हामिदा खानम ऑनलाइन-ऑफलाइन माध्यम से
उपस्थित रहीं.
संकल्प का कोई विकल्प नहीं होता- पद्मश्री संतोष यादव
मुख्य अतिथि पद्मश्री संतोष यादव
ने कहा कि मानव जीवन का उद्देश्य स्वस्थ रहना होना चाहिए. आज पूरी दुनिया कई तरह
की समस्याओं से जूझ रही है. ऐसे में हमें भय और प्रेम के सत्य को जानना बहुत
आवश्यक है. उन्होंने कहा कि दृढ़ संकल्प और इच्छाशक्ति का कोई विकल्प नहीं है. बिना संकल्प के हम किसी उद्देश्य की प्राप्ति
नहीं कर सकते. जीवन की समस्याएं हमें अनुभव देते हैं इससे हमारा विवेक जागृत होता
है. आज पर्यावरण, वायरस, युद्ध जैसी चुनौतियाँ हमारे सामने हैं. एक महिला यदि छह
ले तो दुनिया बदल सकती है. उन्होंने कहा कि मातृशक्ति से ही सृष्टि का अस्तित्व
है. माँ पर बहुत जिम्मेदारी होती है. गर्भधारण से लेकर बच्चे की अच्छी परवरिश और
एक राष्ट्र का जिम्मेदार नागरिक माँ ही बना सकती है. उन्होंने पंचतत्त्व से रचित
शरीर की शुद्धता पर भी बल दिया.
राष्ट्र
नवनिर्माण में महिलाओं की अग्रणी भूमिका- स्मृति ईरानी
कार्यक्रम में केन्द्रीय
कैबिनेट मंत्री स्मृति जुबिन ईरानी ने वीडियो संदेश के माध्यम से संबोधित किया.
उन्होंने कहा कि आज पूरे विश्व में महिलाओं के त्याग, साहस, बलिदान और संघर्ष की
चर्चा की जा रही है. भारत सरकार बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ के लिए संकल्पबद्ध है. आज
मुद्रा जैसी योजनाओं में महिलाओं की 70 प्रतिशत भागीदारी है स्टैंड अप योजना में
उनकी भागीदारी 80 प्रतिशत है. यह इस बात के प्रमाण हैं कि देश की बेटी सशक्त हो
रही है. भारत की महिलाएँ हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं और राष्ट्र के नवनिर्माण
में भागीदारी कर रही हैं. शिक्षा एवं अन्य नीतियों में भी समानता और सशक्ति करण को
बढ़ावा मिला है।
महिलाओं
को अपनी क्षमता पहचानने की आवश्यकता- मीनाताई पिम्पलापुरे
प्रसिद्ध समाजसेवी और
बुंदेलखंड रत्न पुरस्कार से सम्मानित मीनाताई पिंपलापुरे ने कहा कि महिला दिवस
महिलाओं के संघर्ष, बलिदान और उनके त्याग को याद करने का दिन है. उन्हीं के कारण
आज महिलाओं को बराबरी का अधिकार मिला है. अभी भी दुनिया के अधिकाँश हिस्सों में यह
संघर्ष जारी है. जब तक महिलाओं को बराबरी का दर्जा नहीं मिलता तब तक हम बेहतर
दुनिया नहीं बना सकते है. समाज को बहुत सारे पूर्वाग्रहों को तोडना होगा. हाल के
वर्षों में समाज की पुरुषवादी मानसिकता में बदलाव आया है और यह इस बात का सूचक है
कि हम एक नए समाज को गढ़ रहे हैं. आज महिलाओं को अपनी क्षमताएं पहचानने की आवश्यकता
है. वे हर क्षेत्र में पदार्पण कर रही हैं और वे ही एक समतामूलक समाज का निर्माण
कर सकती हैं.
हमें
पूर्वाग्रह तोड़ने ही होंगे, तभी महिलाओं की उन्नति संभव- कुलपति प्रो. नीलिमा
गुप्ता
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहीं
कुलपति प्रो. नीलिमा गुप्ता ने कहा कि विभिन्न आंकड़ों से हमें पता चलता है कि महिला
और पुरुष में कितना भेद है. उन्होंने कहा कि जिस तरह सफल पुरुष के पीछे महिला का योगदान
होता है, उसी तरह सफल महिला के पीछे पुरुषों
का भी सहयोग होता है. एक महिला के लिए उत्कृष्ट प्रदर्शन करने की प्रक्रिया को
जानना बहुत ही आवश्यक है. उन्होंने कहा कि महिलाएं कभी निर्बल नहीं रहीं. वे हमेशा
से सशक्त थीं और आज भी हैं. लेकिन सशक्त महिलाओं की संख्या कम है. आज महिला
साक्षरता के आंकड़े कम हैं. सबसे पहले हमें इसे बढ़ाना होगा. पूर्वाग्रहों को तोड़ने
के लिए हमें अपनी क्षमता की पहचान करनी होगी. हमें सर्वश्रेष्ठ होने और करने के
सपने देखना चाहिए. पिछले 4-5 दशकों में महिला शिक्षा के दृष्टिकोण को लेकर काफी
बदलाव आया है. महिलाओं को हमेशा ऊंचे सपने देखने चाहिए और जो कुछ वे कर रही हैं
उसे भी न्यायोचित ढंग से करना चाहिए. उन्होंने कहा कि हमे अपने क्षेत्र में सफलता अवश्य
मिलेगी बस हमें अंदर से प्रयास करने की आवश्यकता है। जब हर दिन महिला दिवस के रूप में
मनाया जाएगा तब असल मायने में महिलाओं की उन्नति दिखाई देगी.
लैंगिक
असमानता महिलाओं के विकास में बाधक- प्रो. नौटियाल
मुख्य वक्ता प्रो. अन्नपूर्णा नौटियाल
ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति के प्रावधान में ऐसे बहुत से अवसर हैं जिनसे महिला
सशक्तिकरण की दिशा में सुधार होगा। उन्होंने भारत में विभिन्न क्षेत्रों में
महिलाओं की भागीदारी का विस्तृत आंकडा प्रस्तुत किया. उन्होंने न्यायालयों में
महिलाओं की कम संख्या पर चिंता व्यक्त की. उन्होंने विभिन्न आंकड़ों के माध्यम से लैंगिक
समानता के मुद्दे को भी रेखांकित किया साथ ही सम्मिलित विकास की बात की जिससे महिलाएं
हर क्षेत्र में ऊपर उठ सके। उन्होंने कहा कि एक महिला के पास भी उतने ही अधिकार होने
चाहिए जितने पुरुष के पास हैं । उन्होंने हर क्षेत्र में महिलाओं को आगे आने के
अवसर देने की वकालत की और कहा कि हमें इस तरह का वातावरण बनाना होगा जिससे महिलाएँ
अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर सकें.
बदलाव
के लिए सिर्फ क़ानून पर्याप्त नहीं, मानसिक बदलाव जरूरी- प्रो. जसवाल
प्रो. निष्ठा जसवाल ने कहा कि जब
हम पूर्वग्रहों को तोड़ने की बात करते हैं तब हमें महिला-पुरुष के आपसी प्रतिस्पर्धा
को तोड़ने के बारे में भी सोचना चाहिए। आज हमें महिलाओं की शिक्षा पर ध्यान देने की
ज़रूरत है। काबिलियत के बाद भी आज महिलाओं को अपने अधिकारों के लिए लड़ना पड़ता है।
उन्होंने लैंगिक समानता और भेदभाव की चर्चा करते हुए कई न्यायालय केस का जिक्र किया
और कहा कि कानून के द्वारा हम पूर्वाग्रह को नहीं तोड़ सकते। सिर्फ मानसिकता में बदलाव
लाने से ही पूर्वाग्रहों को तोड़ा जा सकता है।
सम्मिलित
प्रयासों से ही आगे बढ़ सकती हैं महिलाएँ- प्रो. हामिदा
प्रो हमीदा खानम ने कहा कि महिलाओं
का विकास सिर्फ नारीवादी आंदोलन के कारण नहीं उसमें हुए सम्मिलित प्रयासों से हुआ है।
कोविड के दौरान संसाधनों की कमी के चलते हुए सबसे ज्यादा महिलाओं ने संघर्ष किया। महिला
स्वास्थ में मानसिक और शारीरिक स्वस्थ की बात करते हुए उन्होंने कहा कि आज महिलाओं
को रिप्रोडक्टिव आजादी की ज़रूरत है। उन्होंने कहा कि महिला होने का सही अर्थ तभी मालूम
होता है जब हम अपनी क्षमताओं की पहचान कर सकें। उन्होंने कहा कि महिला ईश्वर का खूबसूरत
तोहफा है और वह हर परिस्थिति में खूबसूरत है।
व्याख्यान उपरान्त
परिचर्चा-सत्र में आईआईएलएम विश्वविद्यालय, गुरुग्राम की कुलपति प्रो. सुजाता शाही,
पुण्यश्लोक अहिल्या देवी होल्कर सोलापुर विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. मृणालिनी फडणवीस, जीएच
रायसोनी विश्वविद्यालय, छिंदवाड़ा (म.प्र.) की कुलपति प्रो. मीना राजेश ने अपने
विचार प्रस्तुत किये. प्रो. सुजाता ने कहा कि महिलाएं सभी की प्रेरणा स्रोत हैं। उन्होंने
कहा कि इतिहास में महिलाओं को सम्मान दिया गया है क्योंकि वो विज्ञान,
दर्शन
और उपचार में आगे थी। इतिहास गवाह है कि समय के साथ महिलाओं की स्थिति खराब हुई है।
उन्होंने कहा कि जब सभी साथ में काम करते हैं तभी आर्थिक उन्नति होती है इसलिए बेहतर
कल के लिए लैंगिक समानता जरूरी है इसके लिए प्रयास होने चाहिए। प्रो. मृणालिनी फडणवीस
ने कहा कि सत्ता में रहने के लिए समान अवसर मिलने चाहिए। सत्ता में आने के लिए महिलाओं
को कुशल नेतृत्व में आने की ज़रूरत है। वर्तमान में महिलाएं अन्य क्षेत्र में ज्यादा
हैं। उन्होंने महिलाओं की आंतरिक और बाह्य शक्ति को विस्तार से समझाया. प्रो. मीना
राजेश ने महिलाओं की उच्च शिक्षा के बारे में बात करते हुए कहा कि हमें निजी और व्यावसायिक
दुनिया में सामंजस्य स्थापित करना पड़ता है। उन्होंने कहा कि महिला सीमित संसाधन में बेहतर काम कर
सकती है और यह हर महिला की आंतरिक क्षमता होती है। उन्होंने कहा कि महिलाएं काम
श्रम के फल या निष्कर्ष के बजाए काम की प्रक्रिया पर ज्यादा ध्यान देती हैं जिससे बेहतर
परिणाम आते है। उन्होंने कहा कि शिक्षक व्यवसाय महिला के लिए अनुकूल है क्योंकि एक
महिला ही बेहतर शिक्षक हो सकती है.
कार्यक्रम की मुख्य संयोजक
प्रो. जनक दुलारी आही स्वागत वक्तव्य दिया. संचालन प्रो. अनुपमा कौशिक ने किया और
प्रो. निवेदिता मैत्रा ने आभार वक्तव्य दिया. कार्यक्रम के अंत में महिला दिवस के
उपलक्ष्य में आयोजित पोस्टर प्रतियोगिता के विजेता विद्यार्थियों को पुरस्कृत किया
गया। विश्वविद्यालय महिला समाज की विभिन्न गतिविधियों पर केंद्रित वृत्तचित्र का
भी प्रदर्शन किया गया.
वजूद
है..... थीम पर मूक अभिनय की प्रस्तुति
विश्वविद्यालय
के सांस्कृतिक परिषद् के विद्यार्थियों ने हिन्दी विभाग के सहायक प्राध्यापक डॉ
आशुतोष द्वारा लिखित और समन्वयक डॉ राकेश सोनी द्वारा निर्देशित ‘वजूद है....’ थीम पर ‘मूक अभिनय’ की प्रस्तुति
दी.
कार्यक्रम
में विश्वविद्यालय के विद्यार्थी, शिक्षक, अधिकारी, कर्मचारी और महिला समाज के
सदस्य बड़ी संख्या में उपस्थित थे.