मातृभाषा
से ही राष्ट्र की समृद्धि संभव है : प्रो. वृषभ प्रसाद जैन
★ अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस पर आयोजन
सागर. 21 फरवरी. डॉ. हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर के जवाहरलाल
नेहरू ग्रंथालय सभागार में अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के अवसर पर ‘हमारी
मातृभाषाएं’ विषय पर व्याख्यान का आयोजन किया गया. प्रख्यात
भाषाविद और चिन्तक प्रो. वृषभ प्रसाद जैन मुख्य वक्तव्य देते हुए कहा कि भाषा हमें
पहचान देती है और पहचान बनाती है. व्यक्तित्व निर्माण में मातृभाषा भाषा एक
महत्त्वपूर्ण कारक है. उन्होंने वर्तमान समय में मातृभाषा की स्थिति को देखते हुए
चिंता व्यक्त की और कहा कि आज़ादी के बाद
के वर्षों में यह पहचान धूमिल होती जा रही है और भाषायी परतंत्रता बढ़ी है. केवल हिन्दी ही नहीं बल्कि तमिल, मलयालम, तेलगू
जैसी तमाम भाषाओं की स्थिति एक जैसी है. भारतीय भाषाओं का व्याकरणकोश अंग्रेजी
भाषा से प्रभावित है. हम अभी तक भारतीय भाषाओं के व्याकरण और शब्दकोष निर्माण में
पीछे हैं. आज नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में
मातृभाषा में शिक्षा देने की बात की जा रही है. भाषायी स्वतन्त्रता के साथ
आर्थिक स्वतन्त्रता भी जुडी हुई है. इस बात को उन्होंने आंकड़ों और उदाहरणों के
माध्यम से समझाया. उन्होंने कहा कि भारत में सबसे समृद्ध शहर मुंबई है. इसका
एकमात्र कारण वहां की मातृभाषा है. भारतीय भाषा के फॉण्ट निर्माण का काम आज विदेशी
कम्पनियां कर रही हैं. भाषायी रूप से समृद्ध होने के बावजूद हम भारतीय भाषाओं के
फॉण्ट निर्माण में भी पीछे हैं. भाषाओं की समृद्धि से ही राष्ट्र की समृद्धि का
सपना देखा जा सकता है. उन्होंने कई उदाहरणों के जरिये मातृभाषा की पहचान करने के
तरीके भी बताये. उन्होंने कहा कि भाषा के बिना मनुष्यता अधूरी है.
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राष्ट्रीय अस्मिता का द्योतक: अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस,★प्रो. नीलिमा गुप्ता ,कुलपति ,डॉ गौर विवि सागर का विशेष आलेख
सांस्कृतिक मूल्य,
परंपरा एवं इतिहास को एक सूत्र में बांधती है भाषा- प्रो. नीलिमा गुप्ता
कार्यक्रम की अध्यक्षता
करते हुए कुलपति प्रो. नीलिमा ने कहा कि मनुष्य अपने जन्म से ही भाषा का प्रयोग
शुरू कर देता है. पैदा होने के बाद सबसे पहला शब्द वह ‘माँ’ सीखता है. इसलिए इस
शब्द से उसको अलग नहीं किया जा सकता. उन्होंने कहा कि यूनेस्को ने मातृभाषा दिवस मनाने
का प्रावधान किया. भारत 19500 भाषाओं से समृद्ध देश है जिसमें 121 भाषाएँ केवल दस
हज़ार लोगों तक सीमित है, जिनके द्वारा वे बोली जाती हैं. इस तरह 22 प्रमुख भाषाएँ
जो भारत के लोग बोलते हैं उन्हें संविधान में शामिल किया गया. मातृभाषा की महत्ता बताते
हुए उन्होंने कहा कि नोबेल पुरस्कार से ज़्यादातर उन्हीं लोगों को सम्मानित किया
गया है जिन्होंने अपना कार्य मातृभाषा में किया है. सांस्कृतिक मूल्य, परंपरा एवं
इतिहास इन तीनों को भाषा ही बाँध कर रखती है.
उन्होंने आकड़ों के माध्यम से विश्व
में हिंदी भाषा की स्थिति पर बात रखते हुए कहा कि आज दो तिहाई आबादी हिंदी समाचार
पत्र पढ़ रही है व विश्व भर के सिनेमाघरों में हिंदी सिनेमा प्रदर्शित होती है.
कोविडकाल के दौरान जब सभी चीज़ों का डिजिटलीकरण हुआ उसके साथ हिंदी भाषा की भी
तकनीक में सहभागिता बढ़ी है. गूगल के आकड़ों के अनुसार वर्ष 2024 तक हिंदी में
मोबाइल उपयोगकर्ताओं की संख्या अंग्रेज़ी से ज्यादा रहेगी. अपने उद्बोधन के अंत में
उन्होंने हिंदी भाषा की विविधता को सरलता से समझाया और सभी को मातृभाषा के संवर्धन
एवं संरक्षण के लिए संकल्पित होने का संदेश दिया.
भाषा विज्ञान और हिन्दी
विभाग की अध्यक्ष प्रो. चन्दा बेन ने स्वागत वक्तव्य दिया और कहा कि स्वतंत्रता
संग्राम के पश्चात एकीकरण के कारण भाषा के रूप में भारतेंदु युग के सभी भाषाविदों
का अहम योगदान रहा है. उन्होंने त्रिभाषा सूत्र के माध्यम से बात रखते हुए कहा कि
प्राथमिक शिक्षा हमारी मातृभाषा में होनी चाहिए. नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति ने भाषा
संबंधों को अधिक प्रगाढ़ बनाने का प्रावधान किया है. छात्र कल्याण अधिष्ठाता प्रो.
अम्बिकादत्त शर्मा ने विषय प्रवर्तन किया और कहा कि इस वर्ष मातृभाषा दिवस आजादी
के अमृत महोत्सव वर्ष में आया है. आज़ादी के तीन सोपान होते हैं जिन्हें पार करके
आजादी पाई जा सकती है. पहला- राजनीतिक परतंत्रता से मुक्ति, दूसरा-वैचारिक स्वराज
और तीसरा-भाषायी स्वराज की प्राप्ति. भाषायी स्वराज मातृभाषा को महत्त्व देकर ही प्राप्त
किया जा सकता है. उन्होंने प्रसिद्ध कवि रवीन्द्रनाथ टैगोर और बलवंत गार्गी के बीच
वार्तालाप का उद्धरण देते हुए मातृभाषा के महत्त्व के रेखांकित किया.
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व्याख्यान के उपरांत मातृभाषा
दिवस के उपलक्ष्य में विश्वविद्यालय स्तर पर आयोजित ‘आत्मनिर्भरता में मातृभाषा का
योगदान’ विषय पर निबंध प्रतियोगिता एवं ‘बहुभाषिकता भारत के लिए वरदान है’ विषय पर
वाद-विवाद प्रतियोगिता में विजयी प्रतिभागियों को मुख्य समारोह में पुरस्कृत किया
गया. कार्यक्रम का संचालन हिंदी विभाग के प्राध्यापक डॉ राजेंद्र यादव ने किया एवं
आभार डॉ आशुतोष ने ज्ञापित किया. आयोजन में प्रो. बीआई. गुरु, प्रो. नवीन कांगो,
प्रो. निवेदिता मैत्रा, प्रो. उमेश पाटिल, डॉ राकेश सोनी, डॉ अलीम खान, डॉ हिमांशु,
विवेक विसारिया, डॉ शशि सिंह, डॉ.
अरविन्द, डॉ मुकेश साहू सहित कई शिक्षक, शोधार्थी एवं विद्यार्थी उपस्थित थे.