सागर की तरह बेबस नहीं नदियों,झरनों की तरह बनो: नागर जी
★ गीता पाठ के साथ श्रीमद् भागवत कथा की पूर्णाहुति समापन
सागर| सागर में रहने वाले सागर से ही शुरू होते हैं| सागर का फैलाव तो करोड़ों कोस है लेकिन उसकी बेबसी है, जो वह किसी से कह नहीं सकता ।सागर की बेबसी यह है कि वह सब कुछ कर सकता है, लेकिन बह नहीं सकता। इससे तो लाख अच्छी नदियां और झरने हैं ,जो हिंदुस्तान की यात्रा तो करते हैं फिर चाहे वह भले ही सागर में समा जाए। उक्त अमृतमयी वचन संत कमल किशोर नागर जी ने पटकुई बरारू वृंदावन धाम में श्रीमद् ज्ञानगंगा भागवत कथा की पूर्णाहुति के अवसर पर श्रद्धालुओं के समक्ष व्यक्त किए ।
श्रीमद् ज्ञानगंगा भागवत कथा सप्ताह के अंतिम दिवस कथा वाचक पं. कमल किशोर नागर जी ने कहा कि कथा यजमान ने श्रद्धा भाव से जो पुरुषार्थ किया है भुलाया नहीं जा सकेगा। हमें हमेशा ध्यान रखना है कि छोटी सी व्यवस्था से संतुष्ट रहना है ।यदि विस्तार कर दिया तो सागर की तरह कर सकते हो, लेकिन फिर अव्यवस्था होती है ।ध्यान रखो कि सागर भी नदी, झरना की तरह बनना चाहता है ,ताकि बह सके । सागर भी तैयार होकर उठता है बहने के लिए, निकलता है लेकिन किनारे से टकराकर वापस लौट जाता है। सागर की बेबसी को समझ कर आप भी नदी, झरने की तरह बनो और धर्म कर्म की राह पर बहने का प्रयास करो। सत्कर्म के मार्ग पर चलोगे तो नदी, झरने की तरह दूसरों के काम आओगे और खुद का भी उदधार करोगे।
धर्म के लिए घर से निकलो:-
संत श्री नागर जी ने कहा कि लोग परिवार से बंधे हैं। धन दौलत ,जमीन, जायदाद के चक्कर में उलझे हैं ।धन कमाने की लालसा उतनी है कि उसमें ही सुख तलाशा जा रहा है ।जो सुख पाने के चक्कर में लगा रहा और धर्म सत्कर्म ध्यान में मन नहीं लगा, तो उसे आखिर में दुख अवश्य उठाना पड़ेगा। धर्म के लिए घर से बाहर निकलो और आग लगा दो ऐसी प्रॉपर्टी, संपत्ति को जो अपनी रक्षा के लिए आपको रोकती है। संत श्री ने कहा कि आजकल सबसे बड़ी समस्या है सुख के पीछे भागना, धन के पीछे भागना ।धन तो एक नर्तकी भी कमा लेती है। धन कमाओ तो दान पुण्य भी कमाते चलो। अंत समय में दुख नहीं सहना पड़ेगा और आराम से सद्गति मिलेगी।
समस्या पाने की नहीं, छोड़ने की है:-
संत श्री नागर जी ने कहा कि वर्तमान में समस्या कोई चीज पाने की नहीं बल्कि किसी का त्याग करने की है। जो आपाधापी में लगे रहे और उस पृथ्वी पर कीमती सामान छोड़ गए ,उन्हें फिर वापस आना पड़ेगा और जो झोपड़ पट्टी में रहे, भगवान में ध्यान लगाया ,ना कुछ लाए ना ले गए ,उन्हें लौटना नहीं है। यह युग भी हल्का है और लोग की सोच भी हल्की है। हम खाए जा रहे हैं लेकिन त्यागने की इच्छा नहीं है ।जिस तरह भोजन ग्रहण करते हो, पेट में संग्रह करते हो और यदि अचानक मल के रूप त्यागने की बारी आ जाए तो व्यवस्थाएं जैसे लोटा ,एकांत जगह आदि तलाश लेते है। संग्रह के बारे में नहीं सोचा लेकिन त्यागने के बारे में कितना सोचना पड़ा। व्यवस्थाएं करना पड़ी। ,इसलिए कोई भी वस्तु संग्रह करने के पहले उसके त्यागने पर ध्यान दो, त्याग करके भगवान के भजन में मन लगाओ तो जीवन तर जाएगा।
भजन करो तो देश के लिए आत्मा के लिए:-
संत श्री नागर जी ने कहा कि हमेशा भजन करो तो यह ध्यान रखो कि अपने देश के लिए कर रहे हो। मेरा भारत महान बने ऐसी कामना रखो। भजन अपनी सीमा पर देश की रक्षा के लिए लगे जवानों के लिए करो ,ताकि वह यश कीर्ति प्राप्त करके लौटे और भारत का गौरव बढ़ाएं। भजन गाय के लिए करो और ऐसी भावना हो कि भारत में भी ऐसा सूर्य कभी निकले कि उस दिन एक भी गौ माता ना काटी जाए। भजन धर्म के लिए करो, यदि इस धरती पर धर्म रहेगा, सत्कर्म रहेंगे, तो सब जगह सुख शांति समृद्धि होगी। आखिर में भजन अपनी आत्मा के लिए करो, इसलिए कि वह पवित्र रहे। धन की नहीं ,ईश्वर की लालसा आत्मा से निकले।ईश्वर से सदैव यही कामना करना कि मेरा देश और मेरी काया कभी पराधीन ना हो। भक्ति और भजन करोगे तो यह सब करने वाला भी ऊपर बैठा है, वह है गोविंद ।
पाषाण में ही परमात्मा का निवास:-
रुक्मणी ने दुर्गा के रूप में मूर्ति की पूजा की थी तब उन्हें भगवान मिले। मूर्ति भले ही पाषाण की हो, लेकिन उसमें निवास भगवान का ही होता है। पाषाण में भगवान का नाम होता है ,इसलिए उसे पूजा जाता है। भगवान राम का नाम लिखकर, जब पत्थर पानी में तैरने लगे तो, मनुष्य भी राम का नाम लेकर इस बैतरणी रूपी सागर को पार कर सकता है।
आखिर में 108 ही काम आएगी:-
संत श्री ने कहा कि माला टांगने के लिए नहीं, फेरने की चीज है ।यदि माला टांग दी जाए तो आपकी जिंदगी भी टंगी रह जाएगी ।माला में 108 मनके रहते हैं और इससे जाप करने से हरि मिलते हैं। आजकल तो शासन ने भी 108 एंबुलेंस की व्यवस्था कर रखी है। इसको समझो जब आप किसी दुर्घटना या शारीरिक क्षति के शिकार होते हो ,तो 108 को फोन लगाते हो। वह तत्काल आकर आपको मुकाम तक पहुंचा देती है। इसी तरह 108 मनकों की माला फेरोगे तो शासन की 108 की जरूरत नहीं पड़ेगी । ध्रुव ,प्रहलाद ने भी जप किया कष्ट के समय भगवान खड़े नजर आए । जाप करोगे तो भगवान अवश्य आएंगे ।करोड़ों की गाड़ी चलाने वाले गाड़ी में लगे 4 फुगगो की सुरक्षा के भरोसे हैं ,और जब गाड़ी ठुकती है तो 108 ही नजर आती है ।जीवन में माला के 108 मनको को अपनाओगे तो फिर भगवान से साक्षात्कार होगा, ना कि अस्पताल से ।भजन करते रहो और जीवन को सुखमय बनाओ।
नारी की किनारी में भगवान का वास:-
संत श्री नागर जी ने कहा की बहू बेटियां साड़ी पहनती है और उसकी जो किनारी रहती है वह गिरधारी की होती है जिसके सिर पर किनारी रहती है उस पर भगवान की असीम कृपा होती है भगवान करे सब नारियों के सिर पर किनारी हो गिरधारी है तो नारी है, सनातन धर्म है। सब कुछ उसी से चल रहा है । दुशाशनो का काम तो है साड़ी खींचना, लेकिन किनारी है तो गिरधारी है ।और फिर कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकेगा।
नीति धर्म भगवान को मत छोड़ो:-
संत नागर जी ने कहा कि राम जी जब वन को गए तो वह यह कुछ नहीं कह गए कि यह संभालना ,वह संभालना ,सिर्फ एक बात कह गए कि भरत जब आए तो उन्हें एक संदेश देना कि राज पाकर नीति नहीं तज देना। राज को पाकर नीति पर चले यह धर्म का संदेश है। राज तो लंका में ,अयोध्या में भी था लेकिन एक जगह अनीति थी ,तो राज्य नष्ट हुआ है और दूसरी जगह नीति थी जिससे विजय हुई। रावण के पास महाशंख (दौलत) थी लेकिन वह उसे छोड़कर एक शंख वाले को नहीं पकड़ सका ।धन में शून्य बढ़ाने की ओर ध्यान देने की वजह, शंख वाले के प्रति भक्ति बढ़ाओगे तो राम अवश्य मिलेगे। ध्यान रखो कि राजनीति संख्या है और धर्म को शंख से जीता जा सकता है ।जो नीति पर चलते हैं, जो धर्म पर चलते हैं उनकी वजह होती है इसलिए राम को, धर्म को हमेशा पकड़ कर रखो मनुष्य जीवन मिला है इसकी को पर्याप्त समझो और कुछ भी पाने के लिए भागम भाग मत करो।
फिर हो सकती है कथा:-
संत श्री कमल किशोर नागर जी ने श्रीमद्भागवत कथा के यजमान श्रीमती राम श्री, श्याम केशरवानी का विभिन्न व्यवस्थाओं के लिए तारीफ की, धन्यवाद ज्ञापित किया एवं कहा की एक और यजमान ने अगले वर्ष इन्हीं दिनों में कथा कराने के लिए इच्छा व्यक्त की है। सागर तो सागर है और यहां के श्रद्धालुओं की इच्छा, भावनाओं को देखकर को इस पर विचार किया जा सकता है ।गीता पाठ के साथ पटकुई बरारू में श्रीमद् भागवत कथा का समापन हुआ।
नागर जी ने किया सम्मानित:-
श्रीमद् भागवत कथा के अंतिम दिवस पीडब्ल्यूडी मंत्री पंडित गोपाल भार्गव ने कथा का रसास्वादन किया एवं पंडित नागर जी से भेंट की ।कथा के सफल आयोजन के लिए खनिज विकास निगम उपाध्यक्ष राजेंद्र सिंह मोकलपुर ,पंडित सुशील तिवारी , नरयावली विधायक प्रदीप लारिया राजेश केशरवानी, सोहन, मोहन, अनिमेष केशरवानी, राकेश राय, मदन सिंह राजपूत ,कृष्ण मोहन माहेश्वरी ,राजेंद्र बरकोटी, इंद्रराज सिंह केरबना, जगदीश गुरु, विनोद गुरु, प्रवीण केशरवानी आदि का पंडित नागर ने हाटकेश्वर धाम का प्रतीक चिन्ह भेंट कर सम्मान किया।
सागर| सागर में रहने वाले सागर से ही शुरू होते हैं| सागर का फैलाव तो करोड़ों कोस है लेकिन उसकी बेबसी है, जो वह किसी से कह नहीं सकता ।सागर की बेबसी यह है कि वह सब कुछ कर सकता है, लेकिन बह नहीं सकता। इससे तो लाख अच्छी नदियां और झरने हैं ,जो हिंदुस्तान की यात्रा तो करते हैं फिर चाहे वह भले ही सागर में समा जाए। उक्त अमृतमयी वचन संत कमल किशोर नागर जी ने पटकुई बरारू वृंदावन धाम में श्रीमद् ज्ञानगंगा भागवत कथा की पूर्णाहुति के अवसर पर श्रद्धालुओं के समक्ष व्यक्त किए ।
श्रीमद् ज्ञानगंगा भागवत कथा सप्ताह के अंतिम दिवस कथा वाचक पं. कमल किशोर नागर जी ने कहा कि कथा यजमान ने श्रद्धा भाव से जो पुरुषार्थ किया है भुलाया नहीं जा सकेगा। हमें हमेशा ध्यान रखना है कि छोटी सी व्यवस्था से संतुष्ट रहना है ।यदि विस्तार कर दिया तो सागर की तरह कर सकते हो, लेकिन फिर अव्यवस्था होती है ।ध्यान रखो कि सागर भी नदी, झरना की तरह बनना चाहता है ,ताकि बह सके । सागर भी तैयार होकर उठता है बहने के लिए, निकलता है लेकिन किनारे से टकराकर वापस लौट जाता है। सागर की बेबसी को समझ कर आप भी नदी, झरने की तरह बनो और धर्म कर्म की राह पर बहने का प्रयास करो। सत्कर्म के मार्ग पर चलोगे तो नदी, झरने की तरह दूसरों के काम आओगे और खुद का भी उदधार करोगे।
धर्म के लिए घर से निकलो:-
संत श्री नागर जी ने कहा कि लोग परिवार से बंधे हैं। धन दौलत ,जमीन, जायदाद के चक्कर में उलझे हैं ।धन कमाने की लालसा उतनी है कि उसमें ही सुख तलाशा जा रहा है ।जो सुख पाने के चक्कर में लगा रहा और धर्म सत्कर्म ध्यान में मन नहीं लगा, तो उसे आखिर में दुख अवश्य उठाना पड़ेगा। धर्म के लिए घर से बाहर निकलो और आग लगा दो ऐसी प्रॉपर्टी, संपत्ति को जो अपनी रक्षा के लिए आपको रोकती है। संत श्री ने कहा कि आजकल सबसे बड़ी समस्या है सुख के पीछे भागना, धन के पीछे भागना ।धन तो एक नर्तकी भी कमा लेती है। धन कमाओ तो दान पुण्य भी कमाते चलो। अंत समय में दुख नहीं सहना पड़ेगा और आराम से सद्गति मिलेगी।
समस्या पाने की नहीं, छोड़ने की है:-
संत श्री नागर जी ने कहा कि वर्तमान में समस्या कोई चीज पाने की नहीं बल्कि किसी का त्याग करने की है। जो आपाधापी में लगे रहे और उस पृथ्वी पर कीमती सामान छोड़ गए ,उन्हें फिर वापस आना पड़ेगा और जो झोपड़ पट्टी में रहे, भगवान में ध्यान लगाया ,ना कुछ लाए ना ले गए ,उन्हें लौटना नहीं है। यह युग भी हल्का है और लोग की सोच भी हल्की है। हम खाए जा रहे हैं लेकिन त्यागने की इच्छा नहीं है ।जिस तरह भोजन ग्रहण करते हो, पेट में संग्रह करते हो और यदि अचानक मल के रूप त्यागने की बारी आ जाए तो व्यवस्थाएं जैसे लोटा ,एकांत जगह आदि तलाश लेते है। संग्रह के बारे में नहीं सोचा लेकिन त्यागने के बारे में कितना सोचना पड़ा। व्यवस्थाएं करना पड़ी। ,इसलिए कोई भी वस्तु संग्रह करने के पहले उसके त्यागने पर ध्यान दो, त्याग करके भगवान के भजन में मन लगाओ तो जीवन तर जाएगा।
भजन करो तो देश के लिए आत्मा के लिए:-
संत श्री नागर जी ने कहा कि हमेशा भजन करो तो यह ध्यान रखो कि अपने देश के लिए कर रहे हो। मेरा भारत महान बने ऐसी कामना रखो। भजन अपनी सीमा पर देश की रक्षा के लिए लगे जवानों के लिए करो ,ताकि वह यश कीर्ति प्राप्त करके लौटे और भारत का गौरव बढ़ाएं। भजन गाय के लिए करो और ऐसी भावना हो कि भारत में भी ऐसा सूर्य कभी निकले कि उस दिन एक भी गौ माता ना काटी जाए। भजन धर्म के लिए करो, यदि इस धरती पर धर्म रहेगा, सत्कर्म रहेंगे, तो सब जगह सुख शांति समृद्धि होगी। आखिर में भजन अपनी आत्मा के लिए करो, इसलिए कि वह पवित्र रहे। धन की नहीं ,ईश्वर की लालसा आत्मा से निकले।ईश्वर से सदैव यही कामना करना कि मेरा देश और मेरी काया कभी पराधीन ना हो। भक्ति और भजन करोगे तो यह सब करने वाला भी ऊपर बैठा है, वह है गोविंद ।
पाषाण में ही परमात्मा का निवास:-
रुक्मणी ने दुर्गा के रूप में मूर्ति की पूजा की थी तब उन्हें भगवान मिले। मूर्ति भले ही पाषाण की हो, लेकिन उसमें निवास भगवान का ही होता है। पाषाण में भगवान का नाम होता है ,इसलिए उसे पूजा जाता है। भगवान राम का नाम लिखकर, जब पत्थर पानी में तैरने लगे तो, मनुष्य भी राम का नाम लेकर इस बैतरणी रूपी सागर को पार कर सकता है।
आखिर में 108 ही काम आएगी:-
संत श्री ने कहा कि माला टांगने के लिए नहीं, फेरने की चीज है ।यदि माला टांग दी जाए तो आपकी जिंदगी भी टंगी रह जाएगी ।माला में 108 मनके रहते हैं और इससे जाप करने से हरि मिलते हैं। आजकल तो शासन ने भी 108 एंबुलेंस की व्यवस्था कर रखी है। इसको समझो जब आप किसी दुर्घटना या शारीरिक क्षति के शिकार होते हो ,तो 108 को फोन लगाते हो। वह तत्काल आकर आपको मुकाम तक पहुंचा देती है। इसी तरह 108 मनकों की माला फेरोगे तो शासन की 108 की जरूरत नहीं पड़ेगी । ध्रुव ,प्रहलाद ने भी जप किया कष्ट के समय भगवान खड़े नजर आए । जाप करोगे तो भगवान अवश्य आएंगे ।करोड़ों की गाड़ी चलाने वाले गाड़ी में लगे 4 फुगगो की सुरक्षा के भरोसे हैं ,और जब गाड़ी ठुकती है तो 108 ही नजर आती है ।जीवन में माला के 108 मनको को अपनाओगे तो फिर भगवान से साक्षात्कार होगा, ना कि अस्पताल से ।भजन करते रहो और जीवन को सुखमय बनाओ।
नारी की किनारी में भगवान का वास:-
संत श्री नागर जी ने कहा की बहू बेटियां साड़ी पहनती है और उसकी जो किनारी रहती है वह गिरधारी की होती है जिसके सिर पर किनारी रहती है उस पर भगवान की असीम कृपा होती है भगवान करे सब नारियों के सिर पर किनारी हो गिरधारी है तो नारी है, सनातन धर्म है। सब कुछ उसी से चल रहा है । दुशाशनो का काम तो है साड़ी खींचना, लेकिन किनारी है तो गिरधारी है ।और फिर कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकेगा।
नीति धर्म भगवान को मत छोड़ो:-
संत नागर जी ने कहा कि राम जी जब वन को गए तो वह यह कुछ नहीं कह गए कि यह संभालना ,वह संभालना ,सिर्फ एक बात कह गए कि भरत जब आए तो उन्हें एक संदेश देना कि राज पाकर नीति नहीं तज देना। राज को पाकर नीति पर चले यह धर्म का संदेश है। राज तो लंका में ,अयोध्या में भी था लेकिन एक जगह अनीति थी ,तो राज्य नष्ट हुआ है और दूसरी जगह नीति थी जिससे विजय हुई। रावण के पास महाशंख (दौलत) थी लेकिन वह उसे छोड़कर एक शंख वाले को नहीं पकड़ सका ।धन में शून्य बढ़ाने की ओर ध्यान देने की वजह, शंख वाले के प्रति भक्ति बढ़ाओगे तो राम अवश्य मिलेगे। ध्यान रखो कि राजनीति संख्या है और धर्म को शंख से जीता जा सकता है ।जो नीति पर चलते हैं, जो धर्म पर चलते हैं उनकी वजह होती है इसलिए राम को, धर्म को हमेशा पकड़ कर रखो मनुष्य जीवन मिला है इसकी को पर्याप्त समझो और कुछ भी पाने के लिए भागम भाग मत करो।
फिर हो सकती है कथा:-
संत श्री कमल किशोर नागर जी ने श्रीमद्भागवत कथा के यजमान श्रीमती राम श्री, श्याम केशरवानी का विभिन्न व्यवस्थाओं के लिए तारीफ की, धन्यवाद ज्ञापित किया एवं कहा की एक और यजमान ने अगले वर्ष इन्हीं दिनों में कथा कराने के लिए इच्छा व्यक्त की है। सागर तो सागर है और यहां के श्रद्धालुओं की इच्छा, भावनाओं को देखकर को इस पर विचार किया जा सकता है ।गीता पाठ के साथ पटकुई बरारू में श्रीमद् भागवत कथा का समापन हुआ।
नागर जी ने किया सम्मानित:-
श्रीमद् भागवत कथा के अंतिम दिवस पीडब्ल्यूडी मंत्री पंडित गोपाल भार्गव ने कथा का रसास्वादन किया एवं पंडित नागर जी से भेंट की ।कथा के सफल आयोजन के लिए खनिज विकास निगम उपाध्यक्ष राजेंद्र सिंह मोकलपुर ,पंडित सुशील तिवारी , नरयावली विधायक प्रदीप लारिया राजेश केशरवानी, सोहन, मोहन, अनिमेष केशरवानी, राकेश राय, मदन सिंह राजपूत ,कृष्ण मोहन माहेश्वरी ,राजेंद्र बरकोटी, इंद्रराज सिंह केरबना, जगदीश गुरु, विनोद गुरु, प्रवीण केशरवानी आदि का पंडित नागर ने हाटकेश्वर धाम का प्रतीक चिन्ह भेंट कर सम्मान किया।