देह कंचन है इसे श्रम का नगीना चाहिये : निर्मलचंद
★ साहित्यकारों की ऑन लाईन संगोष्ठी
सागर । समाज में सकारात्मक ऊर्जा संचार हेतु बुंदेलखंड हि. सा. सं. वि. मं के द्वारा मणीकांत चौबे के संयोजन में विगत 27वर्षों से निरंतर संगोष्ठी का आयोजन किया जा रहा है, संचालक डा नलिन जैन ने कोविड के दौरान आन लाईन संगोष्ठी लगतार चलायी है जिसमें मध्यप्रदेश,कर्नाटक, राजस्थान, गुजरात, यू.पी. के साहित्यकार काव्यपाठ हेतु उपस्थित रहते हैं। आज 1360वी संगोष्ठी के शुभारंभ में श्री पूरन सिंह राजपूत जी ने भक्ति भाव से माँ सरस्वती की वंदना प्रस्तुत की। उपरांत मुख्य अतिथि निर्मल चंद्र जी निर्मल ने काव्य रूप में विचार प्रस्तुत करते हुए कहा - देह कंचन है ,इसे श्रम का नगीना चाहिए ।हर लम्हे को जिंदगी की तरह जीना चाहिए ।दूसरों का आसरा बहता हुआ पानी है,दोस्त, मंजिलें पाने को खुद का पसीना चाहिए ।हिंदु व मुसलमान है अखबार की तरह, रीति रिवाज चल रहे पतवार की तरह।संसार के सब दृश्य लिपटी सी रील है,काटा समय को हमने भी रफ्तार की तरह।संगोष्ठी के अध्यक्ष डॉ श्याम मनोहर सिरोठिया ने बसंत पर , काव्य रूप में विचार व्यक्त करते हुए कहा कि -- मधुमासी संदर्भ हुये सब,कली देख, अलि का गुंजन है।सांसोंमें महुआ उतर गया, टेसू का अनुरागी मन है।वाचाल हुईँ चितवन प्रिय की,संयम के धागे टूट गये।।
संस्था के संयोजक मणीकांत चौबे बेलिहाज ने अपने उद्बोधन में कहा -- साहित्य कारो की रचनात्मक प्रस्तुतियां लोगों को आनंदित व उत्साहित करतीं हैं । कोरोना त्रासदी में वांछित सावधानियों को ध्यान में रखते हुए आन लाईन संगोष्ठी प्रारंभ की गयी थी ।त्रासदी विरूद्ध जंग जारी है, प्रभाव शिथिल हो रहा है तथापि त्रासदी यथावत है, सावधानियों हेतु सजगता की चेतावनी अभी भी दी जा रही है ऐसी विषम स्थिति में जब आम-जन के मनोबल क्षीण हो रहें हैं, साहित्यकारों की प्रेरणा दायी रचनाएँ ही; लोगों को आनंदित करके, उनके अन्तर्निहित भय को शिथिल करके; उन्हें कोरोना से जूझने का हौसला भी देने में सक्षम हैं ।काव्य पाठ में उन्होंने कहा कि-- गर दुनिया में भगवान कहीं है, तो केवल अपने भारत देश में।कृपा उनकी मिलतीं रहतीहरदम, सबको हरबार हर परिवेश मे।सभी विडम्बनाओं में रहते हैं, विकट विषमताओं को सहते हैं ।मालूम है कोई समाधान नहीं, पर शांत हैं हरपल के आवेश में। संतोष श्रीवास्तव विद्यार्थी ने अपने इलेक्ट्रॉनिक चित्रकला संयोजन से आन लाईन संगोष्ठी को जीवंत कर दिया ।
संगोष्ठी में काव्यपाठ हेतु आमंत्रित साहित्य मनीषी गण ,सूरत गुजरात से डाॅ चंचला दवे, बैंगलुरु कर्नाटक से डाॅ अनिता एस कर्पूर, रीवा से डा बारेलाल जैन ,टीकमगढ़ से एच पी सिंह व श्रीमती संध्या साहू , दमोह से डाॅ रघुनंदन चिले,पवई पन्ना से रघुवीर तिवारी,पृथ्वीपुर से वीरेंद्र त्रिपाठी,निवाडी से रामनिवास तिवारी, बिजावर से हीरालाल विश्वकर्मा, , बडा मलहरा से डाॅ देवदत्त द्विवेदी, खुरई से शैलेश दुबे सर दर्द , सागर से पूरन सिंह राजपूत, , डॉ वर्षा सिंह,डॉ सीता राम श्रीवास्तव भावुक,शिखर चंद शिखर,देवकीनन्दन रावत, ने अपने अपने अंदाज में, सुन्दर रचनाओं की प्रस्तुति दी। श्रोताओं के रूप में विभिन्न साहित्य मनीषियों व नगर तथा नगर के बाहर के भीविद्वज्जनों की गरिमामयी उपस्थिति से गोष्ठी का स्वरूप आनंदमयी रहा।
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उपस्थित साहित्यमनीषी गण डा सुरेश आचार्य,शुक देव प्रसाद तिवारी , के के सिलाकारी,डॉ लक्ष्मी पांडेय , मुन्ना लाल मिश्र, ,डॉ सरोज गुप्ता, डाॅ प्रेमलता नीलम, डॉ करूणा ठाकुर, श्रीमती पुष्पा चिले, अमित मणीकांत चौबे, डॉ शरद सिंह ,डाॅ राजेन्द्र मलैया,श्रीमती रागिनी सिंह,अनिल जैन विनर , कल्याण दास साहू पोषक, मणिदेव ठाकुर,रामलाल द्विवेदी , प्रशांत दीक्षित, प्रतीक द्विवेदी,श्रीमती विमला तिवारी सिराज सागरी, मुकेश तिवारी , अबरार अहमद उमाकांत मिश्र अध्यक्ष श्यामलम परिवार, तितलागढ उडीसा से ईश्वर चंद जैन, कपिल बैसाखिया, राजेन्द्र दुबे कलाकार, शरद् जैन गुड्डू ,कृष्ण कांत बख्शी , डॉ योगेश दत्त तिवारी, आन लाईन उपस्थित रहकर कवियों का उत्साह वर्धन करते रहे । डॉ नलिन जैन ने संगोष्ठी का कुशल संचालन व राधाकृष्ण व्यास ने समस्त सम्माननीय जनों के प्रति आभार व्यक्त किया
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