समाजवादी चिंतक हरीश अड्यालकर नहीं रहे , समाजवादी चिंतक रघु ठाकुर ने दी श्रद्धांजलि
नागपुर। लोहिया अध्ययन केंद्र के महासचिव व समाजवादी चिंतक हरीश अड्यालकर का गुरुवार को मेडिकल कॉलेज अस्पताल में निधन हो गया। वे 83 वर्ष के थे।
समाजवादी चिंतक डा. राममनोहर लोहिया के विचारों को जन-जन तक पहुंचाने के लिए प्रतिबद्ध श्री अड्यालकर ने करीब 45 वर्ष पूर्व लोहिया अध्ययन केंद्र की स्थापना की थी। लोहिया के प्रति निष्ठा, समर्पण और हिंदी की सेवा के लिए वे देशभर में जाने जाते थे। समाजवादी नेता मधु लिमये, जॉर्ज फर्नांडीस, कर्पूरी ठाकुर, रघु ठाकुर से उनके करीबी संबंध रहे। डा. लोहिया की जन्मशताब्दी पर उन्होंने 'लोहिया : तब और अब' का प्रकाशन भी किया था और लगातार एक वर्ष तक देशभर से अतिथि विद्वानों के व्याख्यान का आयोजन भी किया।
कामगार नेता श्री अड्यालकर ने सन 1974 मेंे जॉर्ज के नेतृत्व में हुए देशव्यापी रेल हड़ताल की नागपुर रेलवे स्टेशन पर अगुवाई की थी। इस मामले में वे भूमिगत भी रहे और जेल भी गए। सादा जीवन और ईमानदार छवि के लिए विख्यात श्री अड्यालकर के सभी दलों के राजनेताओं, साहित्यकारों, विचारकों से संबंध थे।
अहिंदी भाषी श्री अड्यालकर आजीवन हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए आजीवन समर्पित रहे। लोहिया अध्ययन केंद्र की ओर से 'सामान्यजन संदेश' का प्रकाशन कर रहे थे जिसके 129 अंक प्रकाशित हो चुके हैं। केंद्रीय हिंदी संस्थान तथा महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी के सहयोग से विभिन्न विषयों पर कार्यक्रमों का आयोजन कर चुके हैं। आकाशवाणी से निरंतर उनकी वार्ता और नाटकों का प्रसारण होता रहा।
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श्री हरीश अड्यालकर जी के निधन का पीड़ादायक समाचार मिला, एकदम हतप्रभ हूँ: रघु ठाकुर
नागपुर की कल्पना बगेर हरीश भाई के मेरे लिए असम्भव सी है। पिछले पचास वर्षों के साथी जिनका सम्पूर्ण समर्पण लोहिया जी के विचारों के लिए था। नागपुर का लोहिया अध्यन केंद्र बनाना व चलाना एक ही व्यक्ति की देन है। सामान्य जन संदेश नामक त्रेमासिक पत्रिका का निरन्त र प्रकाशन उन्हीं की क्षमता थी।
रेल की नौकरी करते हुए अपने वेतन को सार्वजनिक जीवन पर खर्च कर काम करने का जज्बा उनका था। लम्बे समय तक किराये के मकान में रहे। किरायेका घर छूटने के बाद कहाँ रहें यह समस्या थी। तब स्थानीय मित्रों ने श्री सुरेश अग्रवाल बाबू की पहल पर उनका सत्कार आयोजित किया तथा बाबू ने पैसा इकट्ठा कर एक मकान उन्हे खरीद कर दिया। इसी मकान में वे आखिर तक रहे। अस्सी वर्ष की उम्र के बाद भी प्रतिदिन लोहिया अध्यन केंद्र जाना केंद्र का काम देखना उसकी व्यवस्था की चिंता करना पत्रिका निकालना उसकी सामग्री तैयार करना हाथ मे कमजोरी के बाद भी एक उंगली से टाइप करना यह अदभुत समर्पण की मिशाल थी।
भारी अस्वस्थता के बाद भी लोहिया के लिए जीना ही उनका संकल्प था। तीस अगस्त को मुझे फोन पर बीमारी का हाल बताया और साथ में सामान्य जन के लिए जरूरतों को कहा। फिर नागपुर आने के लिए कहा। मैने उन्हे बताया कि अभी कोरोना के चलते रेल लगभग बन्द जैसी है। आप स्वस्थ हो जाये फिर मै आऊंगा। नागपुर में श्री सुरेश बाबू श्री अटलबहादूर और श्री प्रकाश दुबे से उन्हे सदेव उम्मीद रहती थी जिसे वे व्यक्त करते थे।
लोहिया अध्यन केंद्र को नागपुर की बौद्धिक गतिविधियों का केंद्र बनाना उन्हीं का परिश्रम व लगन का परिणाम है।
उनके साथ मेरा पारिवारिक रिश्ता रहा। जब वे किराये के मकान कुंडेकर भवन में रहते थे तब भी उन्हीं के घर ठ हरता था। उनकी बेटी व बेटा नितिन दोनों मुझे बचपन से प्रिय रहे हैं। नितिन को लेकर उनकी चिंताएं रहती थी। परंतु वे आश्वस्त भी रहते थे कि सुरेश बाबू उनकी देखभाल करेंगे।
उनकी मृत्यु का कारण उम्र व अन्य बीमारियों के अलावा कोविड भी बताया जा रहा है। अथ उनकी अंतिम क्रिया में शामिल होना और उन्हे आखिरी विदाई देने को भी नहीं पहुँच पा रहा हूँ। नागपुर में हरीश भाई कोई दूसरा होगा कल्पना भी कठिन है।
एक सच्चे समाजवादी साथी को विनम्र श्रद्धांजलि।
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