कोरोना ने भेद को भुला कर एक ही वर्ग दे दिया "इंसानियत"
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होमेंद्र देशमुख
अजीब दुनिया हो गई है ! अब यहां भाई भाई को नही पहचान रहा है । कई जगह खून के रिश्ते बेमानी हो रहे हैं । पुलिस के सख्ती से छुप के गली में निकल , कहीं रास्ते मे टकरा गए तो हाथ मिलाना तो बंद है ,नमस्कार भी नहीं कर रहे । गलत मत समझिए, असल मे सब के चेहरे पर चढ़ा मास्क आपस मे बड़ा कन्फ्यूज़न पैदा कर रहा है । अब किसी इमरजेंसी में कॉलोनी या अपार्टमेंट टाउनशिप के परिसर में लोग आपस मे पहचान के पहले फोन पर बात कर लेते हैं । मैं नीली कमीज और पीले मास्क पहना हूं , तुम्हारा फूफा हूं या मेडिकल वाला गुप्ता जी हूं । आपके लिए दवाई लेकर आया हूँ । गेट पर आकर ले जाओ ।
यह तो एक व्यंगात्मक उदाहरण है । पर सच कहें तो कोरोना ने कई रिश्तों ,वर्ण ,वर्ग के भेद को भुला कर एक ही वर्ग दे दिया है —
"इंसानियत"…!
पुराने शहर के *काजी कैम्प* के इदरीश भाई का एक दिन फोन आया ,मुन्ना भाई इदरीश खान बोल रिया हूं, काज़ी केम्प ,कांग्रेस नगर कने सौ-एक सौ पच्चास लोग दो दिन से खाने के लिए मोहताज़ हें । सब किराए पे रेते हें, कोई होटल पे कमाता था कोई टायर की दुकान पे । कोई लखनउ का हे कोई कानपुर का हम दो दिन तलक अपने घरों से सिप्लाई कर रिये थे अब हमारे कन्ने भी ख़तम हो गया । बैरागढ़ एसडीएम से बात करी, तो कह रिया कि सरकार और मुनिसपेलेटि केवल फुटपाट और मोहताज़ को पैकेट देंगे । मेरे कन्ने पूरी रिकारडिंग भी है आपको भेज रिया हूं । माननीय शिवराज जी तो बड़ी बड़ी फेंक रिये हैं फेसबुक पे, वो सच नई हे क्या ..
मैंने उसी क्षेत्र की खबरों में सक्रिय रहने वाले पत्रकार मित्र आबिद मुमताज़ से बात कर जानकारी दी ,उनसे पूछा किसी मस्ज़िद या कमेटी की आपको जानकारी हो तो कुछ लोगों को बता दीजिये भाई ।
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वो भी नगर निगम भोपाल के लोगों के साथ किसी दूसरे एरिया में ऐसे ही किसी शुक्ला या मिश्रा के यहां खाना बांट रहे थे । उन्होंने ज़ल्दबाज़ी में जवाब और सुझाव दिया । आप आलोक शर्मा जी को लगा लो आपकी बात नही टालेंगे । वो सिटी एरिया में किचन चलवा कर खाना बंटवा रहे ।
पूर्व महापौर आलोक शर्मा को किसी अखबार में दो दिन पहले ही पूड़ी सेंकते देखा था । उनसे बात की ,थोड़ी झिझक भी थी कि । जहां न उनकी पार्टी के लोग वोट मांगने जाते, न कोई उम्मीद करते, उनकी पार्टी के पार्षद नही जीतते वहां वो मदद पहुचाएंगे या नहीं..?
उन्होंने तपाक ,इदरीश भाई को फोन करवाने कहा । रात 11 बजे इदरीश भाई का फ़ोन आया ,शर्मा जी ने अस्सी पैकेट भिजवा दिए थे ,उसी को बंटवा रिया हूं ,कल के लिए सुबह से लिखवाने कहा है ,सभी एक सौ पच्चास कन्ने खाना आ जायेगा ।
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नाम है सेहतगंज पर यहां बनती है शराब ! जो समाज को जहर पिला रहे थे आज रायसेन के पर्यटन स्थल महादेव पानी तिराहे पर इस गांव में लगी डिस्टलरी का बदबू से सब परिचित होंगे । जब हम सागर की ओर से रात-बेरात लौटते, गाड़ी में झपकी ले रहे हों तो ड्राइवर से पूछने की जरूरत नही कि भोपाल कितनी दूर रह गया । चाहे आप शीशा-बंद मर्सिडीज़ के अंदर क्यों न बैठे हों । नर्सिंगगढ़ हाइवे पर पार्वती नदी के पार भी यही हाल है । हालांकि पिछले कुछ सालों में प्रसाशन की सख्ती, आधुनिक प्लांटों के कारण ये बदबू थोड़ी कम हुई है पर बंद तो अब भी नही हुई । समाज को जहर पिलाने के लिए बदनाम ये आधुनिक प्लांट कोरोना से निपटने आजकल दवा बना रही हैं । कोरोना का कोई दवा नही, अब सेनेटाइजर और मास्क का उपयोग और सावधानी ही सबसे बड़ी दवा बन गए हैं । भले सरकार का आदेश या कोई मजबूरी हो लेकिन समाज मे गैर इज्जतदार ,बदनाम ,डिस्टलरी उद्योग के कर्मचारी, शराब व्यवसाय और व्यवसायी के इन संयंत्रों में कोरोना के फैलाव को रोकने का सबसे कारगर 93 प्रतिशत एल्कोहल युक्त हैंड, और पूरा परिसर को सैनेटाइज़्ड करने वाला सैनेटाइज़र बना कर पूरे देश को रोज हजारों लीटर , 90 मिली,180 मिली, 35 लीटर और 250 लीटर के पैक में भेजा जा रहा है । बचाव और राहत के काम मे लगी कई सरकारी लोकल और स्थानीय एजेंसियां इनके सैनेटाइज़र रोज गेलनों में खरीद रही हैं ।
असल मे तकनीकी रूप से डिस्टलरीज में तीन तरह के स्प्रिट बनते हैं ,शराब बनाने के अलावा उस स्प्रिट को दवा कंपनियों को पहले भी भेजा जाता रहा है लेकिन स्थानीय जरूरतों के कारण स्प्रिट से यहीं कारगर सैनेटाइज़र बनवा रही है ।
डिस्टलरीज़ कोई भी हो, इनमे अब पिया हुआ,झूमता ,गुंडागर्दी करता आदमी काम नही करता । यहां आपके हमारे घर के ग्रेजुएट ,इंजीनयर बच्चे, सीए, आईटी, लैब ,और क्वालिटी एक्सपर्ट ,कारपोरेट अम्प्लॉयी की तरह काम करते हैं ।
खैर, डिस्टलरीज का मैं न वकील हूं न हिमायती । पर सरकार को सबसे ज्यादा राजस्व और नेताओं अधिकारियों को पल्लवित करने वाली लाइसेंस्ड उद्योग है यह उद्योग । शराब ' यानी धीमा ज़हर ! लेकिन देश भर में चल रहे सालों से हवा में बदबू फैलाती, नदियों को गंदा करती ये अलग अलग डिस्टलरीज़ आज लोगों के सेहत का ख़याल रख रही हैं । ये मेरा निजी अनुभव है 1995 से जब भी मैं सेहतगंज से गुजरता था । हमेशा इस गांव के नाम और यहाँ हो रहे विपरीत व्यवसाय को लेकर लिखने का मन करता था । आज उस गांव का नाम और मेरा लिखना ,दोनो सार्थक हो रहा है ।
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राजधानी के एक अच्छे अस्पताल में मेरा आना जाना हैं ,वहां के डॉक्टर फारुख ने मुझे कल फ़ोन किया पांच कर्मचारी को अशोकगार्डन के जनसेवा किचन में हैंड सैनेटाइज़र चाहिए,आप मीडिया में हैं , कहीं से हो सकता है क्या ..?
कहाँ वो डॉक्टर,-कहाँ मैं क्वेरेन्टाइन में कमरे में घुसा पड़ा सम्भावित मरीज !
मैंने एक मित्र से बात की 10 मिनट बाद मेरे बताए हुए जगह पर डॉक्टर साहब ,विशेष अनुमति के कारण ,एप्रेन पहन, मास्क लगा ,कार चला कर खुद पहुच गए । तब उन्हें चार बड़े पैक के बॉटल मिल पाए । पर मैंने उन्हें किसी खाली शीशी में छोटे पैक बना लेने का निवेदन कर क्षमा मांग ली । मेरे लिए तो यह डॉ फ़ारुख द्वारा दिया गया गौरव का अवसर था । वह ऐसा वर्ग जिसे मैं कोई मदद करूँ यह बहुत ही कम मुमकिन है ।
*बात* यह है कि कोरोना के खौफ और बचाव के तरीकों ने समाज मे फैले वर्ग, जाति, व्यवसाय, धर्म, वर्णभेद को मिटा सा दिया है । यह प्रयास समाज के उन दो विपरीत सोच को करीब लाने का काम कर रहे हैं जो एक दूसरे को कमतर या अभिजात्य समझ डिस्टेन्स मेंटेन करते हैं ।
कोरोना से बचने डिस्टेन्स जरूरी है लेकिन मात्र एक मीटर ! इससे ज्यादा नही । यह विभीषिका देश और समाज को नया 'मील का पत्थर' उसका नाम होगा …
"इंसानियत"..!
ऐसी मुझे आशा है..
भोपाल में पत्रकार होने के कारण ,क्वेरेंटाइन में बीत रहे मेरे एक और दिन के साथ..
आज बस इतना ही…!
★लेखक एबीपी न्यूज़ भोपाल के वीडियो जर्नलिस्ट है