नवरात्रि में करें पूजा,लेकिन घर से बाहर नही निकले
पंडित नरेश शुक्ल ,सागर
शरीर रूपी इस देह दुर्ग में अष्टचक्र और नोँ द्वार ( दो आँख, दो कान , दो नासिका ,मुख ,पायु और उपस्थ) है। शरीर रूपी इसी दुर्ग में ये देविया जीवन को देने वाली कईं नामों से जानी जाती है। "इडा को गंगा , पिंगला को यमुना ,और इन दोनो के मध्य जाने वाली नाड़ी सुषुम्ना को सरस्वती कहते है । इस त्रिवेणी का जहां संगम है उसे तीर्थराज कहा गया है। इसमें स्नान करके साधक समस्त पापों से मुक्त हो जाता है । यह त्रिवेणी संगम बाहर नही अपितु हमारे भीतर ही है । यदि कोई प्राणायाम एवं ध्यान द्वारा आज्ञा चक्र में सन्निहित त्रिवेणी संगम में मन को टिकाकर ज्ञान की गंगा में नहाता है तो देवी कृपा से समस्त पापों से मुक्ति पाता है
कैसे करें कन्या पूजन
एक वर्ष की उम्र वाली बालिका "सन्ध्या कहलाती है दो वर्ष वाली सरस्वती तीन वर्ष वाली त्रिदधा मूर्ति चार वर्ष वाली कालिका पांच वर्ष की होने पर सुभगा छह वर्ष की उमा सात वर्ष की मालिनी आठ वर्ष की कुब्जा नो वर्ष की काल संदर्भी दसवे वर्ष की अपराजिता ,ग्यारह वर्ष में रुद्राणी बारहवे वर्ष में भैरवी ,तेरहवें वर्ष में महालक्ष्मी चौदह पूर्ण होने पर पीठ नायिका पन्द्रहवें में क्षेत्रज्ञा ओर सोलहवें में अम्बिका मानी जाती है
इस प्रकार वेदमतनुसार ऋतु का उदगम न हो तभी तक क्रमशः संग्रह करके प्रतिपदा से पूर्णिमा तक वृद्धि भेद से " कुमारी पूजन करना चाहिए ।
वैज्ञानिक आधार
घट स्थापना आंतरिक जगत के कई रहस्योद्घाटन करने वाली प्रक्रिया है तो बाहरी जगत में आनेवाली फसल के विषय मे एक सटीक जानकारी भी है ।मिट्टी , गेंहू के दाने फिर नवम दिन में इनकी कितनी व्रद्धि हुई है इन तरीकों से आने वाली फसल के विषय मे अनुमान लगाया जा सकता है ।
नवरात्र के किस दिन कहा रहे ध्यान -
1- शैलपुत्री --- मूलाधार चक्र
2- ब्रह्मचारिणी -- स्वाधिष्ठान चक्र
3-चंद्र घँटा --मणिपुर चक्र
4- कुष्मांडा - अनाहत चक्र
5- स्कंदमाता- विशुद्ध चक्र
6- कात्यायनी- आज्ञा चक्र
7- कालरात्रि-- भानु चक्र
8- महागौरी -- सोमचक्र
9-सिद्धिदात्री- निर्वाण चक्र
शैलपुत्री
शैल का अर्थ है शिखर| दुर्गा को शैल पुत्री क्यों कहा जाता है, यह बहुत दिलचस्प बात है| जब ऊर्जा अपने शिखर पर होती है, केवल तभी आप शुद्ध चेतना या देवी रूप को देख, पहचान और समझ सकते हैं| उससे पहले, आप नहीं समझ सकते, क्योंकि इसकी उत्त्पति शिखर से ही होती है – किसी भी अनुभव के शिखर से| यदि आप 100% क्रोधित हैं, तो आप देखें कि किस प्रकार क्रोध आपके सारे शरीर को जला देता है| किसी भी चीज़ का 100% आपके सम्पूर्ण अस्तित्त्व को घेर लेता है – तब ही वास्तव में दुर्गा की उत्पत्ति होती है|
ब्रह्मचारिणी
ब्रह्मचारिणी का अर्थ है अनंत में व्याप्त, अनंत में गतिमान – असीम| ब्रह्मा असीम है जिसमें सबकुछ समाहित है| आप यह नहीं कह सकते कि, 'मैं इसे जानता हूँ', क्योंकि यह असीम है; जिस क्षण 'आप जान जाते हैं', यह सीमित बन जाता है और अब आप यह नहीं कह सकते कि, "मैं इसे नहीं जानता", क्योंकि यह वहां है – तो आप कैसे नहीं जानते? क्या आप कह सकते हैं कि, "मैं अपने हाथ को नहीं जानता| आपका हाथ तो वहां है न| है न ? इसलिये, आप इसे जानते हैं| ब्रह्म असीम है, इसलिये आप इसे नहीं जानते – आप इसे जानते हैं और फिर भी आप इसे नहीं जानते| दोनों ! इसीलिये, यदि कोई आपसे पूछता है तो आपको चुप रहना पड़ता है| जो लोग इसे जानते हैं वे बस चुप रहते हैं क्योंकि यदि मैं कहता हूँ कि, "मैं नहीं जानता" , मैं पूर्णत: गलत हूँ और यदि मैं कहता हूँ कि, "मैं जानता हूँ", तो मैं उस जानने को शब्दों द्वारा, बुद्धि द्वारा सीमित कर रहा हूँ| इस प्रकार, ब्रह्मचारिणी वो है, जोकि असीम में विद्यमान है, असीम में गतिमान है| गतिहीन नहीं, बल्कि अनंत में गतिमान| ये बहुत ही रोचक है – एक गतिमान होना, दूसरा विद्यमान होना|ब्रह्मचर्य का अर्थ है तुच्छता में न रहना, आंशिकता से नहीं पूर्णता से रहना| इस प्रकार, ब्रह्मचारिणी चेतना है, जोकि सर्व-व्यापक है|
चन्द्रघंटा
प्राय:, हम अपने मन से ही उलझते रहते हैं – सभी नकारात्मक विचार हमारे मन में आते हैं, ईर्ष्या आती है, घृणा आती है और आप उनसे छुटकारा पाने के लिये और अपने मन को साफ़ करने के लिये संघर्ष करते हैं| मैं कहता हूँ कि ऐसा नहीं होने वाला| आप अपने मन से छुटकारा नहीं पा सकते| आप कहीं भी भाग जायें, चाहे हिमालय पर ही क्यों न भाग जायें, आपका मन आपके साथ ही भागेगा| यह आपकी छाया के समान है|हाँ, प्राणायाम, सुदर्शन क्रिया बहुत सहायक हो सकते हैं; पर फिर भी मन सामने आ ही जाता है| मन को घंटे की ध्वनि के समान स्वीकार करें – घंटे की ध्वनि एक होती है, यह कई नहीं हो सकती, यह केवल एक ही ध्वनि उत्पन्न कर सकता है - सभी छायाओं के बीच मन में एक ही ध्वनि ! सारी अस्तव्यस्तता दैवीय शक्ति का उद्भव करती है – वो है चन्द्रघंटा अर्थात् चन्द्र और घंटा|
कूष्माण्डा
'कू' का अर्थ है छोटा, 'इश' का अर्थ है ऊर्जा और 'अंडा' का अर्थ है ब्रह्मांडीय गोला – सृष्टि या ऊर्जा का छोटे से वृहद ब्रह्मांडीय गोला| यह बड़े से छोटा होता है और छोटे से बड़ा ; यह बीज से बढ़ कर फल बनता है और फिर फल से दोबारा बीज हो जाता है| इसी प्रकार, ऊर्जा या चेतना में सूक्ष्म से सूक्ष्मतम होने की और विशाल से विशालतम होने का विशेष गुण है; जिसकी व्याख्या कूष्मांडा करती हैं|
स्कंदमाता
स्कन्दमाता वो दैवीय शक्ति है जो व्यवहारिक ज्ञान को सामने लाती है – वो जो ज्ञान को कर्म में बदलती हैं|
कात्यायनी
कात्यायनी अज्ञात की वो शक्ति हि, जोकि अच्छाई के क्रोध से उत्पन्न होती है| क्रोध अच्छा भी होता है और बुरा भी| अच्छा क्रोध ज्ञान के साथ किया जाता है और बुरा क्रोध भावनाओं और स्वार्थ के साथ किया जाता है| ज्ञानी का क्रोध भी हितकर और उपयोगी होता है; जबकि अज्ञानी का प्रेम भी हानिप्रद हो सकता है| इस प्रकार, कात्यायनी क्रोध का वो रूप है जो सब प्रकार की नकरात्मकता को समाप्त कर सकता है|
कालरात्रि
कालरात्रि देवी माँ के सबसे क्रूर,सबसे भयंकर रूप का नाम है| दुर्गा का यह रूप ही प्रकृति के प्रकोप का कारण है| प्रकृति के प्रकोप से कहीं भूकंप, कहीं बाढ़ और कहीं सुनामी आती है; ये सब माँ कालरात्रि की शक्ति से होता है| इसलिये, जब भी लोग ऐसे प्रकोप को देखते हैं, तो वो देवी के सभी नौ रूपों से प्रार्थना करते हैं|
महागौरी
महागौरी, माँ का आठवां रूप, अति सुंदर है, सबसे सुंदर ! सबसे अधिक कोमल, पूर्णत: करुणामयी, सबको आशीर्वाद देती हुईं| यह वो रूप है, जो सब मनोकामनाओं को पूरा करता है|
सिद्धिदात्री
नवां रूप, सिद्धिदात्री, सिद्धियाँ या जीवन में सम्पूर्णता प्रदान करने वाला है| सम्पूर्णता का अर्थ है – विचार आने से पूर्व ही काम का हो जाना, यही सम्पूर्णता है|आप कुछ चाहो और वो पहले से ही वहां आ जाये| आपकी कामना उठे, इस से पहले ही सबकुछ आ जाये – यही सिद्धिदात्री है|