#तीन दिवसीय अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन तथा पारम्परिक चिकित्सा पद्धति का शुभारम्भ
सागर। डाॅ. हरीसिंह गौर केंद्रीय विश्वविद्यालय, सागर के स्वदेशी ज्ञान अध्ययन केन्द्र एवं मानव विज्ञान विभाग के संयुक्त तत्वाधान में तीन दिवसीय अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन स्वदेषी ज्ञान एवं प्रामाणिक प्रथायें विषय पर केंद्रित तथा पारम्परिक चिकित्सा पद्धति शिविर का शुभारम्भ किया गया। इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डाॅ. विनय प्रभाकर सहस्त्रबुद्धे, अध्यक्ष, भारतीय सांस्कृतिक सम्बन्ध परिषद्, राज्यसभा सदस्य तथा स राज बहादुर सिंह, सांसद एवं शैलेन्द्र जैन, विधायक, भारत के जल पुरूष डाॅ. राजेन्द्र सिंह, अध्यक्षता कुलपति प्रो. राघवेन्द्र पी. तिवारी, अधिष्ठाता प्रो. आर. पी. मिश्रा एवं अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन के समन्वयक प्रो. काशी कैलाश नाथ शर्मा ने दीप प्रज्वलन, माँ सरस्वती व डाॅ. गौर की प्रतिमा पर माल्यार्पण करके किया।
मुख्य अतिथि डाॅ. विनय प्रभाकर सहस्त्रबुद्धे ने स्वदेशी ज्ञान एवं प्रामाणिक प्रथायें पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यह भारत की ऋषियों, मनीषियों के द्वारा किये गए लिपिबद्ध, वेद, उपनिषद एवं वैदिक संस्कृति की उपज है जिसे हम विस्मृत कर चुके थे, आज उन्हें पुनः पुनर्जीवित कर शोध के साथ स्थापित करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि वर्तमान में हम सभी शिक्षा को बाहर से प्राप्त कर रहे हैं जिस कारण हम आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि मर्गेटर मेप 16 ई. से पूरे विश्व में उपयोग में लाया जा रहा है। विकासशील देश उसको बड़ा करके दिखाते हैं। वहीं दक्षिण तरफ के देश उनके वर्गमान की तुलना में छोटा करके देखते हैं। उन्होंने बताया कि अग्रोनोपीटर ने एक मैप बनाया, जिसके हर देश को उसके वर्गमान के दिखाया गया। हर देश की तुलना दूसरे देशों से की जाये, तो समान ही निकलेंगे। इससे मर्गेटर मेप की तुलना स्वतः समाप्त हो जाती है। पीटर के मैप को यूनोस्को, यूनीसेफ एवं अन्य संस्थाओं ने आजमाया और धीरे-धीरे प्रचलित हुई जिससे यह साबित हो जाता है कि जो पहले प्रचलित हो चुकी थी, उसे आज के हिसाब से सुधारा जा सकता है और इससे हरेक देश की पारम्परिक ज्ञान शामिल हैं। उन्होंने बताया कि तेहरान के एक सम्मेलन में वहाँ के राष्ट्राध्यक्ष ने बताया कि उपनिषद् हमारे यहाँ बढ़ाया जाता है और व्याख्यान कराये जाते हैं। क्या यह भारत में हो रहा है। उन्होंने कहा कि अपने ज्ञान और परम्पराओं को आत्मविश्वास के साथ अनुभव से सहेजना पड़ेगा। भारत में ऐसे बहुत से मनीषी हुए हैं जिन्होंने भारत की परम्पराओं, ज्ञान को आत्मसात कर जीवन को जीने के लिए मार्ग दिखाया है जिनमें महात्मा बुद्ध प्रमुख हैं। व्यक्ति को स्वयं आत्म दीपो भवः बनना पड़ेगा।
वैज्ञानिक पक्ष मजबूत करना होगा:सांसद राजबहादुर
सांसद राज बहादुर सिंह ने कहा कि विश्वविद्यालय के स्वदेशी ज्ञान अध्ययन केन्द्र द्वारा जो भी प्रकल्प शुरू किये गये हैं इससे वैज्ञानिक पक्ष उजागर होगा तथा लोग लाभान्वित होंगे। उन्होंने कहा कि नाड़ी वैद्य हमारे उपचार की प्राचीन विधा है। वहीं दूसरी ओर कृषि, कला, जल, भूमि संरक्षण, जैव विविधता, वन प्रबन्धन यह हमारी स्वदेशी ज्ञान अध्ययन वैज्ञानिक पक्ष को जोड़कर विश्व में स्थापित कर सकेगा।
आयोजन की सोच सराहनीय विधायक जैन
विधायक शैलेन्द्र जैन ने कहा कि स्वदेशी ज्ञान एवं प्रचलित परम्पराएँ, चिकित्सा पद्धतियाँ वैज्ञानिक कसौटियों पर खरी उतरती हैं। विश्वविद्यालय द्वारा इस पर शोध के क्षेत्र में कदम रखा है, जो कि सराहनीय है।
विलुप्त होती औषधियों का संरक्षण होगा:कुलपति प्रो तिवारी
अध्यक्षता कर रहे कुलपति राघवेन्द्र प्रसाद तिवारी ने कहा कि हमारे पूर्वज द्वारा अपने अनुभवों पर प्रयोग करके जीवन को जीने के लिए आवश्यक औषधियों को उजागर किया था। वह विलुप्त होती जा रही थीं, उनके अनुभवजनित ज्ञान को वैज्ञानिक प्रामाणिकता देकर संरक्षित कर जनमानस के सामने उजागर करने के लिए स्वदेशी ज्ञान अध्ययन केन्द्र की स्थापना विश्वविद्यालय में की गई है जिसमें एक पहलु स्वास्थ्य से जुड़ा हुआ चिकित्सा पद्धतियों का शिविर मनमानस के साथ लगाया गया है। इसमें विदेश के विद्वान आये हुए हैं, जो कि परम्परागत चिकित्सा पद्धतियों को भी प्रदर्शित करेंगे।
55 चिकित्सको का लगेगा शिविर
सम्मेलन के समन्वय प्रो. काशी कैलाश नाथ शर्मा ने कार्यक्रम की रूपरेखा प्रस्तुत करते हुए कहा कि देश-विदेश के लगभग 55 पारम्परिक चिकित्सकों का गौर समाधि प्रांगण में तीन दिवसीय शिविर चलेगा जिसमें वैज्ञानिक शोध पत्रों के लिए 45 विद्धान सम्मिलित हो रहे हैं। जिनमें विदेश के पारम्परिक चिकित्सक श्रीलंका के अशोक करूणारथना एवं ववेला अप्पूहामलेज, युगांडा के डाॅ. यहाया सेकेज्ञा तथा दक्षिण अफ्रीका के हसन ओ. काया शामिल हुए हैं।
जलवायु परिवर्तन से पीड़ित:जलपुरुष राजेन्द्र सिंह
द्वितीय सत्र में जल पुरूष डाॅ. राजेन्द्र सिंह ने कहा कि भारत में आजादी से पहले धरती पर पर्याप्त पानी और जंगल था। आजादी के 72 वर्ष बाद 10 गुना जल एवं 08 जंगल की गिरावट आयी है। जिसके कारण आज हम सभी जलवायु परिवर्तन से पीड़ित हैं। बीमार हैं तथा वैश्विक स्तर पर इसके उन्मूलन के लिए संघर्षरत हैं। इसका उन्मूलन तरूण भारत संघ ने अनुभव के आधार पर समाधान दिया है। उन्होंने बताया कि भारत के लोग भगवान शब्द का प्रयोग भ से भूमि, ग से गगन, व से वायु, अ से अग्नि तथा न से नीर के रूप प्रतिपादित करते हैं। नीर के बिना यह प्रकृति टिक नहीं सकती। नीर ही उन चार तत्वों को जोड़ने का कार्य करता है। यही कारण है कि भारत के लोग नीर, नारी और नदी का सम्मान करते हैं। क्योंकि नीर प्रकृति को चलाता है। नदी से जीवन में प्रवाह आता है एवं नारी दूसरे के जीवन का सृजन करती है। परन्तु आज जल का व्यापार 50 हजार करोड़ पर पहुँचा है। भारत की ज्ञान परम्पराएँ प्रभावी हैं। हमारे ज्ञान के लिए विज्ञान जीवन के अनुभवों से आत्मा में व्यवहार में धड़के और तब ज्ञान निकले। ज्ञान के अर्जित करके स्वतः अनुभूति को बोलने लगता है। हम जब कार्य करते हैं तो मस्तिष्क तथा आत्मा को जोड़कर ज्ञान बनता है। ज्ञान साधना चाहता है। यह कक्षा में पढ़ने से सम्भव नहीं है। ज्ञान सृजन करती है। उन्होंने स्पष्ट किया कि 365 जिला जल से 72 प्रतिशत अभाव से जूझ रहे है। यह नीति आयोग का डाटा है। भारत के लोगों के लिए 28 प्रतिशत पानी बचा है। धरती के दरारों को देखें तो महसूस होता है कि रिजर्व पानी का उपयोग करने लगे हैं। नदियाँ सूख रही हैं। कुछ नदियाँ नालों में परिवर्तित हो गई जिनमें गंगा, यमुना, कावेरी शामिल हैं। उन्होंने जल को रिचार्ज करने की विधि स्पष्ट करते हुए बताया कि सनातन का कार्य नित्य नूतन निर्माण करना है। जो कि अनादि काल तक बना रहता है। सनातन पुनर्जीवन सभी के लिए धरती एवं प्राणियों के लिए था। भारतीय ज्ञानतंत्र का मूल मंत्र प्रकृति को पुनजीवित करना है। भारत को पुनः विश्व गुरू बनाना है तो विकास के रास्ते से नहीं, बल्कि सनातन एवं पुनर्जीवन से बनाया जा सकता है। उन्होंने बताया कि हमारे बुजुर्ग पेड़ों को देखकर बता देते थे कि धरती में पानी का स्तर क्या है। उनमें जल उपयोग की दक्षता थी। उन्होंने बताया कि राजस्थान में हमने सूखे क्षेत्र को हरित धरती में बदला है।
द्वितीय सत्र में गौर समाधि प्रांगण में पारम्परिक चिकित्सा शिविर का शुभारम्भ विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. राघवेन्द्र पी. तिवारी, अधिष्ठाता प्रो. आर. पी. मिश्रा एवं प्रभारी प्रो. काशी कैलाश नाथ शर्मा ने वैद्यों के साथ रिबन काटकर किया। इस अवसर पर अतिथियों ने पीड़ितों की परम्परागत चिकित्सा का निरीक्षण करते हुए आमंत्रित वैद्य लोमश कुमार वच्छ, कोरबा, छत्तीसगढ़ ने नाड़ी के माध्यम से वात रोग, एलर्जी, पथरी, धातु दोष, प्रमेह, मधुमेह जैसे प्रमुख रोगों की चिकित्सा करते देखे गये। उन्होंने उपचार के रूप में सुधा हरिद्रा, श्यामा तुलसी चूर्ण, गिलोय, विदारी कन्द, फेट कन्द, माल कायनी, बिहारी कन्द, कुउ कन्द, कंठ करंज, नागर मौथा, भुईचम्पा, अनन्तमूल, सफेद मूसली, काली मूसली के बने हुए चूर्णों को भी उपचार में दी। वहीं छत्तीसगढ़ के वैद्य तिलकराम केवरते ने रोगों में दमा, मधुमेह, उच्च रक्त चाप, मिर्गी, पथरी, पीलिया, बबासीर, उदर विकार, कैंसर की बीमारियों के लिए भी आयुर्वेदिक दवाओं से उपचार किया। इस प्रकार आँखों, कमर, जोड़ों का दर्द एवं असाध्य बीमारियों के भी उपचार किये।
इनका हुआ सम्मान
इस अवसर पर विभिन्न क्षेत्रों में उल्लेखनीय योगदान के लिए विश्वविद्यालय की ओर से शाल, श्रीफल एवं स्पमण चिन्ह देकर सम्मानित किया गया जिनमें डाॅ. राजेन्द्र सिंह, प्रो. सुरेश व्यास, प्रो. के. सी. मल्होत्रा, प्रो. संजय जैन, डाॅ. रवीन्द्र शर्मा, प्रो. गौतम क्षत्रिय, प्रो. ए. पी. दास, प्रो. ए. के. दास, डाॅ. एस. एच. एन. रिजी को सम्मानित किया गया। उद्घाटन सत्र में शोधपत्रों की लघु संक्षेपिका का विमोचन किया गया।
संचालन डाॅ. सर्वेन्द्र यादव और डाॅ. सोनिया कौशल ने किया। आभार प्रो. उमेश कुमार पाटिल ने व्यक्त किया।
ये रहे उपस्थित
इस कार्यक्रम में प्रमुख रूप से प्रा.े आर. पी. त्रिवेदी, प्रो. श्रीकमल शर्मा, प्रो. अरूण पलनेटकर, प्रो. उदय कुमार जैन, पूर्व कुलपति, डाॅ. अजय तिवारी, कुलाधिपति, एस.व्ही. एन. विश्वविद्यालय, प्रो. पी. पी. सिंह, प्रो डी. के. नेमा, प्रो. एम. एल. खान, प्रो. नागेश दुबे, प्रो. ए. एन. शर्मा, प्रो. एच. थाॅमस, प्रो. अर्चना पाण्डेय, डाॅ. निवेदिता शर्मा, डाॅ. कल्पना शर्मा, प्रो. पी. के. खरे, प्रो. पी. के. राय, प्रो. जी. एल. पुनताम्बेकर, योगाचार्य विष्णु आर्य, सुनील देव, बीनू राना एडव्होकेट, नारायण प्रसाद कबीरपंथी, डाॅ. सुखदेव मिश्रा, सुधीर यादव, कुलसचिव कर्नल राकेश मोहन जोशी, संयुक्त कुलसचिव संतोष सहगौरा, प्रो. सी.एच.एस. ठाकुर, प्रो. दिवाकर शर्मा, डाॅ. निवास मिश्र, प्रो. अरूण शांिडल्य, प्रो. राजेश गौतम, डाॅ. अरिबम बिजयासुन्दरी देवी, डाॅ. बी. अनुरागी, डाॅ. सी. सतीश कुमार, डाॅ. हेमन्त पाटीदार, डाॅ. प्रभाकर चतुर्वेदी सहित अनेक शोधार्थी एवं प्रतिभागी उपस्थित थे।
टीएलसी भवन का लोकार्पण
सांसद डॉ विनय सहस्त्रबुद्धे ने विवि परिसर में नवनिर्मित टीएलसी भवन का लोकार्पण किया। यह 294 लाख रुपये की लागत से बनाया गया है।