भारतीय शिक्षण मंडल महिला प्रकल्प की मण्डल परिचर्चा--"बढ़ती नास्तिकता : कारण और निवारण पर
सागर। भारतीय शिक्षण मंडल महिला प्रकल्प की "जाह्नवी मंडल "की संयोजक डॉ अनुपमा कौशिक द्वारा मण्डल परिचर्चा
विषय --"बढ़ती नास्तिकता : कारण और निवारण" का आयोजन किया गया।संगठन गीत के साथ परिचर्चा का शुभारंभ परिचर्चा प्रवर्तक डॉ शशि ठाकुर ने अपने उद्बोधन में कहा कि आज के परिपेक्ष्य में हमारे बच्चों एवं युवाओ में नास्तिकता दीमक की तरह संस्कारो को समाज और देश को खोखला कर रही है । यह सभी के लिए बहुत सोचनीय विषय है। हमें सिर्फ अपनी सोई शक्ति को वीर हनुमान जैसी जगाने की आवश्यकता है ।डॉ ज्योति चौहान जी ने कहा कि हमारे सुकर्मों द्वारा ही आत्मा कि शुद्धि ही सही आस्तिकता है ।आज विवेकानंद की तरह युवाओं को कर्मयोगी बनने की आवश्यकता है।डॉ उषा मिश्रा ने कहा कि सबसे पहले हमारे समाज में परिवारों में ,स्कूल के पाठ्यक्रमों में धर्म की शिक्षा बड़ी व्यापक एवं तथ्यात्मक दी जाती थी। पेरेंट्स बच्चों को धर्म और अध्यात्म की वैज्ञानिकता समझाते थे। डॉ कृष्णा गुप्ता ने कहा कि संयुक्त परिवार में संस्कारों को जिया जाता था अब परिवारों में ये बहुत बड़ी कमी आ चुकी है । कविता के माध्यम से सुंदर तरीके से कृष्णा जी ने आस्तिक होने के महत्व को समझाया। राजश्री दवे ने कहा कि युवा पीढ़ी को श्रेष्ठ व संस्कारित करने में पारिवारिक ढाँचा महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है । श्रीमती शैलबाला सुनरया ने कहा कि पंडितो ने हिन्दू धर्म को आडंबर से जोड़ कर सभी को बहुत भ्रमित किया है । श्रीमती स्मिता गोडबोले ने कहा कि हम सभी को धर्म के नाम पर होने वाली दोहरी भूमिका वाली बातें परेशान करती हैं और आस्था को कम करती हैं।
श्रीमती संध्या दरे ने कहा हम आज की पीढी के सामने धर्म के तथ्यपूर्ण उदाहरण और धर्म को विज्ञान से जोड़कर प्रस्तुत करेंगे तो आज के युवा उसे सरलता से आत्मसात करेंगे। श्रीमती आराधना रावत ने कहा कि हमारे घरों में हिन्दू परम्पराओं का निर्वहन अच्छे तरीके से हो इसके लिए सबको गम्भीरता से सोचना होगा तब इसका प्रभाव सकारात्मक होगा। श्रीमती पूनम मेवाती ने कहा आस्तिक और नास्तिक होने में हमारा ही दोष है क्योंकि हम जहां चिंतन से बचते हैं तो हम अपनी भावी पीढ़ी को कैसे समझ पाएंगे। श्रीमती मनीषा मिश्रा ने कहा कि गर्भ में एवं जन्म के साथ ही बच्चों में अच्छे संस्कार पड़ जाते है ये बात बहुत ध्यान रखने योग्य है।घर का वातावरण बहुत अच्छा हो तभी संस्कारों का प्रभाव पड़ता है। श्रीमती प्रीति शर्मा ने कहा कि पहले हम स्वयं धर्म को सही रूप में जाने । श्रीमती रूपा राज ने कहा कि मीडिया के द्वारा फैलाई जा रही गलत बातो को वही रोक देना चाहिए। श्रीमती वर्षा तिवारी ने कहा कि हमारी संस्कृति पूरे विश्व में समृद्धशाली है इसे और मजबूत करना हमारा परम लक्ष्य होना चाहिये।श्रीमती उर्वशी लोधी ने कहा कि बालकों में बचपन से ही धर्म के प्रति ज्ञान और जागरूकता जैसी आदतों का शुमार होना ही हमारी सही तपस्या है।श्रीमती माया जायसवाल ने कहा कि हमें लकीर के फकीर नही बल्कि तथ्यों के साथ धर्म को बढ़ाना चाहिए हमारे बच्चे ही देश का भविष्य हैं।संगठन मंत्र के साथ परिचर्चा पूर्ण हुई । श्रीमती अनुपमा कौशिक जी ने सभी के प्रति आभार व्यक्त करते हुए कहा कि सभी बहिनों से आग्रह है कि हमें सुबह और सायंकाल आरती के वक्त जो भी मंदिर पास हो वहाँ पहुंचना चाहिए. कुछ मंदिर हैं देश में जहां लोग घण्टों दर्शन के लिए लाइन लगी रहती है, पर हमारे आसपास के मंदिरों की बात करें तो हालात बहुत बुरे हैं. वहाँ आरती के वक्त झालर, शंख, नगाड़ा बजाने को लोग नहीं होते हैं. कुछ लोगों ने इलेक्ट्रिक मशीनें रख ली हैं.शंख, झालर के वैज्ञानिक महत्व को हम नहीं जानते ,यह कितना दुर्भाग्यपूर्ण है ?कोई इस पर विचार नहीं करता कि कहने को हम करोड़ों हैं, पर मंदिरों में आरती के वक्त 4-5 लोग भी नहीं पहुँच पाते. इसी कारण मोहल्ले वाले भी एक दूसरे को पहचान नहीं पाते और एकता की कमी देखी गई है। मिलने मिलाने से विचारों का आदान प्रदान भी होता है तथा राम-राम भी हो जाती है। कम से कम ये बात हम अपने बच्चों को तो सिखा सकते हैं।इस पर विचार होना चाहिए।हमारे संस्कार और मंदिर ही हैं जो हमें एक दूसरे से जोड़ने में सहायक हो सकते हैं ।आओ प्रयत्न करें। अपने व्यस्त समय में से कुछ समय धर्म की रक्षा राष्ट्र की एकता, अखंडता अपने संस्कारों हेतु निकालें । संगठन मंत्र से परिचर्चा सम्पन्न हुई।