सेरेनडिपिटी, सिनरिन योकू और सरकारी फरमान
ब्रजेश राजपूत/सुबह सवेरे में ग्राउंड रिपोर्ट
आफिस से जब तामिया जाने का बताया था तो यही मकसद था कि मुख्यमंत्री कमलनाथ से बेहतर तरीके से संवाद हो जायेगा और मीडिया की भीड भाड कम रही तो अच्छा फुरसत का इंटरव्यू जिसे टीवी की घनघोर भाषा में टिक टैक कहा जाता है, भी किया जा सकता है। मगर हमारे नये सीएम कमलनाथ जी के पास जो नहीं है वो है फुरसत उनका मिनिट मिनिट का शेडयूल होता है और वो पूरे वक्त नये नये काम में अपने आपको व्यस्त रहते हैं चलते चलते ही बाइट देते हैं और यदि वो जरूरी समझेंगे तो आपको बैठकर इंटरव्यू दे देंगे, तो इन सारी परिस्थितियों के मददेनजर ये तो मालुम था कि टिक टैक या इंटरव्यू की गुंजाइश कम ही है मगर ये उत्साह जरूर था कि अपने राष्ट्रीय चैनल के दोस्तों के साथ एक नयी जगह देख ली जाये वो जगह थी तामिया। जहाँ पर सीएम कमलनाथ एक नये रिसोर्ट सेरेनडिपिटी का उद्घाटन करने आने वाले थे।
रात के अंधेरे में तो सेरेडिपिटी एक सामान्य सा रिसोर्ट ही लगा जिसके नागपुर के रहने वाले मालिक डाक्टर सुश्रुत बाभुलकर दिलचस्प व्यक्ति लगे जिन्होंने अपने परिवार की डाक्टरी की कमाई से तामिया में ये रिसोर्ट बनाया और कोशिश की कि जितना लंबा वक्त लगे उतना अच्छा जिससे स्थानीय लोगों को लंबे समय तक रोजगार मिलता रहे। रात में बातों बातो में उन्होंने हम सबको पास की पहाड की चोटी पर ब्रेकफास्ट करने का आइडिया दिया। इसे वो ब्रेकफास्ट आन टाप कह रहे थे। पहले तो ये बात अनोखी लगी कि सुबह सुबह पहाडी की चोटी पर कौन बैठकर नाश्ता करेगा फिर उनकी सबसे कठिन शर्त ये थी कि इसके लिये सुबह छह बजे उठकर जाना होगा उफ। जब ये बात हो रही थी उस वक्त तक रात के साढे बारह बज गये थे और अगले एक दो घंटे हम दोस्तों को और गपियाना था ऐसे में सुबह उठना कितना मुश्किल था हम सब जानते थे मगर अपने होस्ट का दिल रखने के लिये एक सुर में हम सभी ने हामी भरी और चल दिये अपने कमरों की ओर जहां एकाध घंटे की पंचायत और हुयी और सोते सोते रात के दो ढाई बज गये ऐसे में सुबह पास के कमरे से छह बजे फोन बजा तो भरोसा नहीं हुआ कि कोई उठ भी गया है अरे यार उठना नहीं है, पहाड पर चलना नहीं है, ऐसे हम कुनमुनाये तो फोन पर ही गालियां और ताने मिलने एक साथ शुरू हो गये तो क्या इस सब के लिये आये थे एक दिन उठ नहीं सकते।
मरता क्या नहीं करते उठे तो ये सेरेडिपिटी कुछ और ही लगा बिलकुल अपने नाम के मुताबिक यानिकी अकस्मात से कुछ खोज लेना या आकस्मिक लाभ। हम आये तो तामिया थे मगर ये बडी सी खूबसूरत जगह अचानक ही मिल गयी। चारों तरफ जंगल की हरियाली से घिरा और बीच में छोटी सी झील के किनारे बने इसे रिसोर्ट की खूबसूरती देखकर हम सब तकरीबन चमत्कृत थे मगर बडी सरप्राइज तो पहाड की चोटी पर हमारा इंतजार कर रही थी। बडे बेमन से बिस्तर छोडने के बाद कमरे से बाहर आकर चेहरे पर जो तेज ताजी हवा लगी तो सारा का सारा मूड ही बदल गया। बस फिर क्या था उसके बाद दोस्तों को उठाया और चल पडे पास के पहाड की ओर पैदल। रिसोर्ट के बाहर निकलते ही लंबे लंबे साल के पेडों के बीच से निकलकर ठंडी मद्धम हवा हमें छूकर ऐसी गुजर रही थी मानो हाल पूछ रही हो हमारा। ओर हम हवा से क्या कहते बहुत दिनों के बाद ऐसी हवा को महसूस किया था। साथ चलने वाले नेचुरलिस्ट पराग देशपांडे ने बताया कि यहां पर हवा पचासी फीसदी से ज्यादा शुद्व है क्योकि शुद्व हवा का संकेत होती है यहां पर कुछ पेडों पर चिपकी हुयी लायकेन। हरे रंग की ये लायकेन को हम आसान शब्दों में काई और फफूंद का मिश्रण कह सकते हैं जो वहाँ कुछ पेड़ों पर चिपकी हुयी थी। और वाकई वो ऐसी हवा थी जो हमें तेजी से तरोताजा कर रही थी। पराग ने बताया कि जापानी पद्वति है सिनरिन योकू यानिकी जंगल स्नान, हममें से किसी ने हंसकर क्या जंगल में आकर नहाना। तब पराग ने समझाया कि पहाड और जंगल के परिवेश की ताजी हवा, सुबह की रोशनी और चहचहाते पक्षियों के मधुर कोलाहल को महसूस कर उसमें अपने आपको डुबा कर ताजादम होना ही जंगल स्नान यानिकी सिनरिन योकू है।
तो जंगल स्नान करते और कवि भवानी प्रसाद मिश्र की कविता सतपुडा के घने जंगल उंघते अनमने जंगल को गुनगुनाते हुये हम उपर चढ रहे थे और तामिया की इस नैसर्गिक सुंदरता के दीवाने होते जा रहे थे। उंचे नीचे खुरदुरी चटटानों पर चढते हुये जब हम उपर पहंचे तो हवा का स्वर ही बदल गया था अब वो हमें गुदगुदाकर पूछ रही थी कैसा लगा यहाँ आकर और हम क्या बोलें।
हम समुद्र सतह से तकरीबन तेरह सौ फीट उपर आ गये थे सामने लाल पहाडी थी जिसे वल्चर पाइंट कहा जाता है। बस फिर क्या था मोबाइल के कैमरे चमकने लगे कोई फेसबुक लाइव तो कोई सेल्फी तो कोई ग्रुप फोटो के लिये चिरोरी कर रहा था। जब इससे फुर्सत हुये तो उधर लाल कुर्सियां और सफेद टेबल हमारा इंतजार कर रही थीं ब्रेकफास्ट आन टाप के लिये। गर्मागर्म चाय और काफी के साथ सेंडविच पोहा, और दही परांठा खाकर हम संतृप्त हो गये थे मगर लंबा सुकून हम टीवी पत्रकारों के नसीब में नही होता तो फिर वही पुरानी कहानी दोहरायी गयी। रास्ते में ही दिल्ली के किसी अखबार में छपी खबर से चैनलों में जो हंगामा मचा तो वो पूरे दिन रहा। फिर दिन भर हमारे साथी सेरेनडिपिटी की खूबसूरती छोड लाइव और अदद बाइट की मारामारी में जुट गये। खबर नसबंदी को लेकर जारी हुये एक अजीबो गरीब सरकारी फरमान से जुडी हुयी थी। जिसमें सुबह से लेकर शाम तक विकेट गिरते रहे।
ब्रजेश राजपूत, एबीपी न्यूज, भोपाल