फिर उसी गांव में पांच साल बाद घँटी बजाना
ब्रजेश राजपूत/सुबह सवेरे में ग्राउंड रिपोर्ट
ये हमारे चैनल के कार्यक्रम घंटी बजाओ का ही मजा है कि हम ना केवल खबर दिखाते हैं बल्कि उस खबर का पीछा करते हुये उसके असर पर भी नजर रखते हैं। यूं तो घंटी बजाओ मुहावरा नहीं जुमला ही है। मुगल काल के शासक जहांगीर के काल में न्याय के लिये घंटा बजाने की कहानी तो हम सबने सुनी है मगर सरकारी योजनाओं की पोल खोलकर घंटी बजाते हुये केंद और राज्य सरकारों की नींद खोलने का ये प्रयास एबीपी न्यूज चैनल का है।
ये नयी सोच का कार्यक्रम जो तीन साल पहले शुरू हुआ और इसमें अब तक चार करोड लोग एक खास नंबर पर मिस काल कर अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुके हैं। इस कार्यक्रम के प्रोडयूसर नृपेन्द्र सिंह याद करते हैं कि हम जनता के नाम पर खर्च किये गये पैसों का पीछा करने वाला ऐसा शो बनाना चाहते थे जो जनता को बताये कि आपके लिये सरकार ने जो लाखों करोडों रूप्ये खर्च किये हैं उसकी सच्चाई क्या है और साथ ही जनता को मंच देकर टीवी में दोतरफा संवाद शुरू करना चाहते थे। कार्यक्रम के दर्शक अपना वीडियो भी डालते हैं जो उनके नाम के साथ दिखाया जाता है। खैर अब घंटी बजाना मुहावरा बन गया है। राष्ट्र निर्माण के लिये रोज करो मतदान के श्लोगन वाले इस कार्यक्रम की लोकप्रियता का आलम ये है कि लोग हमसे तो ठीक अब दूसरे चैनल के रिपोर्टरों से भी कहते हैं कि आप इस घोटाले की घंटी बजाइये।
इस बार घंटी बजाओ की लंबी भूमिका इसलिये क्योंकि पिछले दिनों एक ऐसा अनुभव हुआ तो रिपोर्टरों की जिंदगी में कभी कभी ही होता है। खबर जो सामने आयी वो ये थी कि हमारे एमपी में 2014 से पिछले साल तक प्रदेश के पचास हजार से ज्यादा गांवों में जो नब्बे लाख छप्पन हजार शौचालय बनाये गये हैं। इन शौचालयों की हालत जानने 21 हजार सर्वे करने वालों को जब जमीन पर उतारा गया पता चला कि करीब साढे चार लाख घरों में ये शौचालय हैं ही नहीं। साथ ही साढे पाँच लाख शौचालय ऐसे भी सामने आये जो किसी काम के नहीं थे यानिकी तेजी से लक्ष्य पूरा करने के लिये फाइलों का पेट भर कर आंकडे बाजी कर दी गयी मगर या तो शौचालय जमीन पर हैं ही नहीं या फिर आनन फानन में बस बना दिये गये क्योंकि सरकारी आदेश पूरा करने के लिये बनाने थे। सरकार स्वच्छ भारत मिशन के नाम पर शौचालय बनाने पर बारह हजार रूप्ये का अनुदान देती है ऐसे में ये कई सौ करोडों का भ्रष्टाचार भी है।
मजे की बात ये है कि देश को स्वच्छ बनाने और जनता को स्वच्छता का पाठ पढाने के लिये बनायी गयी इस योजना में तैयार शौचालय की हितग्राही के साथ फोटो खींचकर सरकारी साइट पर अपलोड की गयी और इसे जिओ टैगिग भी की गयी ताकि गलती और भ्रष्टाचार की गुंजाइश कम से कम हो। राजनेता और लेखक शशि थरूर अपनी किताब "अंधकार काल"में बताते हैं कि हमारे पुराने अंग्रेज शासकों को इस बात का बडा गुमान था कि उनके शासन में भ्रष्टाचार की गुंजाइश जरा भी नहीं होती क्योंकि उनका शासन पूरा लिखत पढत में चलता था। सारे आदेश लिख कर दिये जाते और उनका पालन भी लिख कर किया जाता। पर हम भारतीय तो भ्रष्टाचार के नये नये रिकार्ड और नवाचार करने के लिये ही जाने जाते हैं तभी तो मशहूर व्यंगकार शरद जोशी पहले ही लिख गये है हम भ्रष्टन के भ्रष्ट हमार।
तो घंटी बजाओ शो के लिये जब हम इस योजना की पडताल करने निकले तो सिहोर के साथी नितिन ठाकुर के कहने पर उस जिले के बावडिया नौवावद जा पहंुचे। गांव में गाडी के प्रवेश करते ही कैमरामेन साथी होमेंद्र देशमुख बोल उठे सर ये तो वही गांव है जहां हम कुछ साल पहले आये थे तब भी शायद शौचालय की कहानी ही थी। हमने कहा चलो देखते हैं गांव में पहुंचते ही गांव के युवकों ने पहचान लिया थोडी देर में ही इंटरनेट के डाटा के प्रताप के चलते यू टयूब पर 13 अप्रेल 2015 को एबीपी न्यूज पर चली कहानी मोबाइल पर दिखा दी। पांच साल पहले की गयी कहानी के सारे किरदार सामने ही दिखने लगे थे। बुजुर्ग गांव वालों के चेहरों पर झुर्रियां जरूर बढ गयीं थी मगर खुशमिजाजी और संतोप में ही सुख तलाशने की चमक अब तक बरकरार थी। तब इस गांव में एक भी शौचालय नहीं था और गांव की महिलाओं ने पास के समाजसेवी एमएस मेवाडा की अगुआई में कलेक्टेट तक टैक्टर में भरकर जाकर हमें चाहिये शौचालय के नारे बुलंद किये थे। हमने तब इस गांव में जाकर कहानी कर चैनल के प्राइम टाइम पर दिखायी थी।
अब इस गांव में अधिकतर घरों में शौचालय तो दिख रहे थे। गांव की वो सास भी खुश दिखीं जो पांच साल पहले हमारी कहानी में कह रही थीं कि हमारे घर में शोचालय नहीं होने से बहु मायके चली गयी है और अब आने को तैयार नहीं है। घरों में बहुयें तो वापस आ गयीं है उनके बच्चे भी हो गये है। मगर जो ाशौचालय जल्दबाजी में बने थे उनकी हालत खस्ता हो गयी। अधिकतर शौचालयों के दरवाजे टूटे हुये थे और आड के नाम पर प्लास्टिक की बोरी के परदे लटके हुये थे। गांव के लोग अब इन शौचालयों की मरम्मत की मंाग करने लगे तब उनको समझाना पडा कि सरकार ने बारह हजार रूप्ये में जो ये शौचालय बनाये हैं अब उनकी मरम्मत साफ सफाई के लिये फिर सरकार नहीं आयेगी ये जिम्मेदारी तो आपको ही उठानी पडेगी। हां इस गांव में वैसे तीन लोग मिले जिनके घरों में शौचालय के नाम पर पैसे निकाले गये मगर शौचालय मौके पर नहीं मिला। खैर पूरे प्रदेश में हुये इस भारी भ्रष्टाचार की हमने शुक्रवार को घंटी बजायी मगर उस गांव में जाकर ये अच्छा लगा कि गांव के लोग हमें और हमारे चैनल को बहुत आत्मीयता से इस बात के लिये याद कर रहे थे कि आपने आकर घंटी बजायी तो शौचालय बने। पत्रकारिता के करियर में किसी रिपोर्टर के लिये इससे बढकर संतुष्टि कोई दूसरी नहीं हो सकती।
ब्रजेश राजपूत,एबीपी न्यूज़,भोपाल