नेता जी सुभाष चंद्र बोस की जयंती मनाई गई सरस्वती शिशु मंदिर में
सागर।सरस्वती शिशु मंदिर उच्चतर माध्यमिक मोती नगर सागर में सुभाष चन्द्र बोस की जयंती मनाई गई। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि राजकुमार ठाकुर प्राचार्य, अध्यक्षता प्रदीप सूबेदार विशिष्ट अतिथि रामबाबू पाराशर व बालकेश ठाकुर थे। कार्यक्रम के पूर्व अतिथियों ने मां सरस्वती जी व सुभाष चन्द्र बोस के छायाचित्र पर माल्यार्पण व पुष्प अर्पित किए। सरस्वती वंदना बहिन भाग्य श्री,आस्था बिल्थरे, चंचल कोरी के द्वारा संगीतबद्ध की गई। अतिथियों का परिचय स्वदेश तिवारी व स्वागत अशोक पटेल ने किया। विशिष्ट अतिथि बालकेश ठाकुर ने सुभाष चन्द्र बोस का परिचय देते हुए कहा कि आपका जन्म 23 जनवरी 1897 व मृत्यु18 अगस्त 1945 जो नेता जी के नाम से भी जाने जाते हैं, भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के अग्रणी तथा सबसे बड़े नेता थे। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान, अंग्रेज़ों के खिलाफ लड़ने के लिये, उन्होंने जापान के सहयोग से आज़ाद हिन्द फौज का गठन किया था। मुख्य अतिथि ने अपने उद्बोधन में कहा कि सुभाष चन्द्र बोस द्वारा दिया गया "जय हिन्द"का नारा भारत का राष्ट्रीय नारा बन गया है। "तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आजादी दूंगा" का नारा भी उनका था जो उस समय अत्यधिक प्रचलन में आया जब नेता जी ने जापान और जर्मनी से मदद लेने की कोशिश की थी तो ब्रिटिश सरकार ने अपने गुप्तचरों को 1941 में उन्हें ख़त्म करने का आदेश दिया था।
मनोज नेमा मीडिया प्रभारी ने अपने विचारों को व्यक्त करते हुए कहा कि नेता जी ने 5 जुलाई 1943 को सिंगापुर के टाउन हाल के सामने 'सुप्रीम कमाण्डर' के रूप में सेना को सम्बोधित करते हुए "दिल्ली चलो!" का नारा दिया और जापानी सेना के साथ मिलकर ब्रिटिश व कामनवेल्थ सेना से बर्मा सहित इम्फाल और कोहिमा में एक साथ जमकर मोर्चा लिया। 21 अक्टूबर 1943 को सुभाष बोस ने आजाद हिन्द फौज के सर्वोच्च सेनापति की हैसियत से स्वतन्त्र भारत की अस्थायी सरकार बनायी जिसे जर्मनी, जापान, फिलीपींस, कोरिया, चीन, इटली, मान्चुको और आयरलैंड ने मान्यता दी। जापान ने अंडमान व निकोबार द्वीप इस अस्थायी सरकार को दे दिये। सुभाष उन द्वीपों में गये और उनका नया नामकरण किया।
कार्यक्रम अध्यक्ष प्रदीप सूबेदार ने इतिहास की जानकारी देते हुए कहा कि 1944 को आजाद हिन्द फौज ने अंग्रेजों पर दोबारा आक्रमण किया और कुछ भारतीय प्रदेशों को अंग्रेजों से मुक्त भी करा लिया। कोहिमा का युद्ध 4 अप्रैल 1944 से 22 जून 1944 तक लड़ा गया वह एक भयंकर युद्ध था। इस युद्ध में जापानी सेना को पीछे हटना पड़ा था और यही एक महत्वपूर्ण मोड़ सिद्ध हुआ।6 जुलाई 1944 को उन्होंने रंगून रेडियो स्टेशन से महात्मा गांधी के नाम एक प्रसारण जारी किया जिसमें उन्होंने इस निर्णायक युद्ध में विजय के लिये उनका आशीर्वाद और शुभकामनायें माँगीं। रामबाबू पाराशर ने कहा कि नेताजी की मृत्यु को लेकर आज भी विवाद है। जापान में प्रतिवर्ष 18 अगस्त को उनका शहीद दिवस धूमधाम से मनाया जाता है वहीं भारत में रहने वाले उनके परिवार के लोगों का आज भी यह मानना है कि सुभाष की मौत 1945 में नहीं हुई। वे उसके बाद रूस में नज़रबन्द थे। यदि ऐसा नहीं है तो भारत सरकार ने उनकी मृत्यु से सम्बंधित दस्तावेज़ अब तक सार्वजनिक क्यों नहीं किये?यह विचारणीय प्रश्न है।मंच संचालन हरिशंकर दुबे व आभार व्यक्त संजय मोघे ने किया। कार्यक्रम में भैया बहनों द्वारा भाषण एवं राष्ट्र प्रेम पर गीत प्रस्तुत किए गए। कार्यक्रम में प्रदीप नामदेव, रणवीर सिंह, अरविंद साहू,वर्षा साहू,अनीता साहू,नीलू रिछारिया,आभा श्रीवास्तव, रामनिवास चौबे,व आचार्य गणमान्य नागरिक उपस्थित थे।