मदरसा में गौशाला और गौसेवा का पाठ.....
@ ब्रजेश राजपूत
(सुबह सवेरे में ग्राउंड रिपोर्ट )
भोपाल से इंदौर जाने पर फंदा गांव के आगे दायीं तरफ जो पक्का रास्ता कटता है वो चोंडीं गांव की ओर जाता है। इसी पक्के रास्ते पर चलने पर बायीं तरफ पडती है। एक बडी सी वि़शाल मसजिद। जिसका नाम जामिया इसलामिया अरबियाँ मसजिद है। मसजिद परिसर के प्रमुख दरवाजे में प्रवेश करते ही बना है डिस्पेंसरीनुमा अस्पताल जहां आसपास के गांव वालों की भीड लगी रहती है। थोडे अंदर जाते ही दिखती है बडी सी मसजिद। साठ एकड के खेतों के बीच में खडी ये मसजिद इस मायने में अलग है कि यहां पर एक बडा मदरसा तो है ही चारों तरफ खेत हैं और उनसे लगा तालाब भी है। जो साल भर भरा रहता है मगर हाल की बारिश के बाद तो तालाब की रौनक देखते ही बनती है। मसजिद में ही दीनी तालीम देने के लिये चलता है एक बडा मदरसा जिसमें आसपास के गांव और कस्बे श्यामपुर, सिहोर, फंदा और कुरवाई के करीब दौ सौ बच्चें आते हैं रहते हैं और यहां पर शिक्षा पाते है।
तालाब के किनारे बनी मसजिद की सीढियां चढकर पहले आती है लंबी दहलान और फिर सामने ही पडता है बडा सा हाल जहां प्लास्टिक की चटाई पर बैठ कर ढेर सारे बच्चे अरबी भाषा में लिखी अपनी दीनी किताबों का पाठ हिल हिलकर पढ रहे थे। उनकी बैठक भी कुछ अलग थी आलथी पालथी मारने के बजाय सारे बच्चे अपना एक एक पैर सीधा खडाकर सीने से लगाये थे तो दूसरा पैर नीचे रहता है जिस पर वो शरीर का वजन रखकर बैठे हुये थे। उनके शिक्षक मोहम्मद अलीम ने बताया कि इस प्रकार की बैठक से बच्चों को लंबे समय तक नीद नहीं आती और पेट भी नहीं निकलता। वरना कई घंटे इस तरह बैठकर पढने से बच्चों को दूसरी परेशानियां आने लगती है। ये बच्चे खेलते भी हैं हां क्यों नहीं शाम को मसजिद के सामने बने मैदान में खेलते हैं फिर वहीं पर बनी गौशाला में गायों को रोटियां और चारा खिलाने भी जाते हैं। अरे तो क्या यहाँ पर गौशाला भी है अरे हां क्या ये आपको नहीं मालुम। यहाँ पर 1980 से गौशाला चल रही है। जिसमें पहले एक दो गाय ही थी मगर अब दस से पंद्रह गाय और पांच भैंस हैं जिनका चारा पानी हमारे ये बच्चे और यहाँ के स्टाफ मिल जुलकर ही करते हैं। चलिये फिर तो गौशाला ही देखी जाये वो भी मदरसे में बनी हुयी। और हम मसजिद की सीढ़ियाँ उतर कर चल पडे गौशाला की ओर। जो मदरसे के बाहर की बाउंडी में टीन के लंबे से शेड में बनी थी। गौशाला का दरवाजा खोलते ही सामने दिखीं सात जर्सी नस्ल की गाय और उनके कुछ बछडे। गौशाला का फर्श वैसा ही टूटा हुआ था जैसा गौशाला का होता है मगर नीचे गोबर की गंदगी को साफ कर साफ सफाई की गयी थी। यहाँ पर एक दो टोपी पहने छात्र भी थे जो वहां पर रखी सूखी रोटियों को टुकडे कर गायों को खिलाने की तैयारी में जुटे थे। हमने पूछा अरे गाय को रोटी खिला रहे हो तो क्या हुआ गाय भी तो जानवर है और हमारे घरों में भी गाय पाला जाती है हम तो कभी कभी गाय का दूध भी निकालते हैं ये था मोहम्मद मुबीन जो सिहोर के पास बिलकिसगंज का रहने वाला था और पिछले छह सालों से इसी मदरसे में पढाई कर रहा था। उस के दोस्त इरफान ने बताया कि इस गौशाला में इन गाय और भैंसों का करीब चालीस किलो दूध होता है जिसे मदरसे के काम में ही लिया जाता है बच्चों के लिये चाय और कभी कभी छाछ और दही इसी दूध से बनता है इसके लिये कहीं बाहर से इंतजाम नहीं करना पडता है इसलिये इस गौशाला और यहां की गायों से हमको लगाव है। भोपाल की मोती मसजिद के पास बनी तर्जुमे वाली मसजिद में चलने वाले मदरसे को भी यहीं से दूध जाता है। और वहां के छात्र भी कभी कभी यहाँ की मसजिद के खेत और इस गौशाला को देखने आते है। वहीं मिले हमें मुफती मोहम्मद अजाज जिनको थोडा छेडने पर ही मुसकुराकर बोल उठे देखिये नफरत के इस दोर में लोग कुछ भी कहते हैं मगर हम मुसलमानों को गाय से नफरत नही है प्यार है क्योंकि ये तो हमारे अल्लाह का हुकुम है कि हम सब जानवरों को प्यार करें उनकी हिफाजत करें तो ये मत समझिये कि हमने इस गौशाला को आप हिन्दुओं को खुश करने के लिये बनाया है ये गौशाला तो कई सालों से यहां पर है और आसपास के गांवों के जरूरतमंदों को भी हम निःशुल्क दूध बांटते है जरूरत पडने पर बाकी के यहां का दूध भोपाल के मदरसों तक जाता है। यहां के बच्चे तो इस दूध का उपयोग तो करते ही है ओर इस गौशाला में बच्चें के आने जाने पर कोई रोक नहीं है बल्कि उनको तो यहाँ पर हम लाते हैं गाय की खिदमत कराने गाय का काम सिखाने। अब आप हैरान हो रहे हैं कि मदरसा में गौशाला है तो इसमें आपकी गलती और आपका नजरिया है। गाय की आप पूजा करते हैं तो हम उसकी खिदमत करते हैं दूध वो आपको भी देती है हमको भीं। अब आप यदि समझते हैं कि मुसलमान गाय से नफरत करते हैं और उनको कटने के लिये ही ले जाते हैं तो कुछ लोग ऐसा करते हैं तो उसकी सजा हमको क्यों देते हो आप सब। वो जो गलत काम करेंगे भुगतेंगे हम तो अपनी गौशाला में गाय की खिदमत कर खुश हैं। इसी बीच में मदरसे के सबसे बुजुर्ग कर्मचारी आरिफ बोल उठते हैं और आपको एक बात और बताउं रात होते ही इस सडक पर गांवों की गाय बैठ जाती है तो हम कई दफा उनको अपने मसजिद परिसर में ही दरवाजा खोलकर बैठने की जगह देते है क्योंकि सडकों पर बैठी गाय दुर्घटना का कारण बनती हैं। हम नहीं चाहते ये अजीम जानवर घायल हो और राहगीरों को घायल करे। अब आप को मदरसे की गौशाला पर कहानी बनानी है तो बना लीजिये मगर ये गौशाला इस मदरसे की जरूरत है और हमेशा यहां बनी रहेगी। हांलाकि मुफती साहब ने चलते चलते एक बात और कह दी जो मुझे भूली नहीं उन्होंने कहा हम सब मुहब्बत के भूखे लोग है मगर मुहब्बत नहीं मिलती इसलिये एक दूसरे से अकारण ही नफरत करने लगते है। सच है आज के दौर में नफरत का सामान्य हो जाना ही अखरने लगा है।