एक साथ पूजा होती नक्षत्रों में दो देवियो माँ दुर्गा और माँ सरस्वती की, सागर के श्री सरस्वती मंदिर में
सागर । नवदुर्गामहोत्सव में बुंदेलखण्ड अंचल के सागर में एकलोते माँ सरस्वती के एकल मंदिर में प्रतिवर्ष एक अध्याय जुड़ता है ।इतवारा बाजार स्थित सरस्वती जी के मंदिर में मा सरस्वती की अचल प्रतिमा के दरबार मे मा दुर्गा की चल प्रतिमा विराजती है । जब दुर्गा महानवमी की अर्धरात्रि में हवनपूजन में दो नक्षत्रों उतरा आषाढ़ और पूर्वाषाढ़ के बीच दोनो देवियो की पूजा अराधाना क्षेत्रपाल के द्वारा होती है ।
यह जानकारी देते हुए इस मंदिर के पण्डित यशोवर्धन प्रभाकर चोबे ने बताया कि मध्यरात्रि में क्षेत्रपाल में स से सरस्वती देवी और श से शाकाम्बरी देवी का आव्हान कर माँ काली का रक्षा सूत्र जनमानस को बांधा जाता है।
पहले विराजी थी दुर्गा,फिर बना मा सरस्वती का मंदिर
सन 1961-62 में सागर के इतवारा बाजार में मा दुर्गा की प्रतिमा को विराजमानकर दुर्गा महोत्सव शुरू किया गया था । करीब 58 साल से यह परंपरा जारी है ।
इसके बाद पूर्व सांसद मनिभाई पटेल ,रामचन्द्र भट्ट,प्रभाकर चोबे , दिनेश दीक्षित हरि रावत, राजकुमार हर्षे और मुहल्ला के लोगो ने यहां सन 1971 में माँ सरस्वती की आदमकद की एकल प्रतिमा स्थापाना की थी।
पिछले 50 सालों से मासरस्वती के मंदिर में विराजी मा दुर्गा के दर्शन करने श्रद्धालुओ की भीड़ उमड़ती है।