आदरांजलि। कविता मंच के धाकड़ कवि-माणिक वर्मा
।अशोक मनवानी ।
कल समाचार मिला कि वरिष्ठ गीतकार , कवि सम्मेलनों की जान और शान रहे श्री माणिक वर्मा जी का अवसान हो गया है। कुछ साल पहले अमेरिका गए थे, धूम मचा दी थी।उसके किस्से उत्साह से सुनाते थे।जो भी उनसे एक बार भी मिला उनसे आजीवन स्नेह पूर्ण संबंध रहे। आत्मीय व्यवहार था,वर्मा जी का। उनके बड़े बेटे नीरज की कुछ बरस पहले लीवर कैंसर से मृत्यु हो गई थी।नीरज मेरा अभिन्न मित्र है।माणिक जी की कविता भारत बंद.. की अक्सर मैं मिमिक्री कर सुनाता तो माणिक जी बहुत प्रसन्न होते थे।25 दिसंबर 1939 को जन्मे माणिक जी की रचना आदमी और बिजली का खंभा काफी चर्चित कविता थी।हर मंच पर सुनाते।उनसेआखिरी भेंट में भोपाल के अशोक गार्डन के उनके घर मिलने गया तब एक ऑडियो कैसेट भेंट की थी ,साल 2016 की बात है।माणिक जी बोले इसे रखो,अमेरिका वाला कवि सम्मेलन सुनना..फिर बेटे राजकुमार के पास इंदौर चले गए।फोन पर भी बतियाए थे साल भर पहले.तब उनका स्वर तल्ख था।आज के काव्य सृजन पर बात चली तो मंच के गिरते स्तर से दुखी दिखे।फिर चुटकुलेबाजी से उनको खास ऐतराज था ही,जिन सालों में मंच के शहंशाह थे,तब भी इस प्रवृत्ति का विरोध करते थे,ग़ज़ल लेखन में भी उनकी महारत थी।हालांकि मंच पर उनसे सिर्फ हास्य व्यंग्य सुनाने की ही मांग की जाती थी।सरकार संस्कृति विभाग ने माणिक जी की साहित्य सेवा को देखते हुए उन्हें वर्ष 2012 में प्रतिष्ठित राष्ट्रीय शरद जोशी सम्मान प्रदान किया था।
"मांगीलाल और मैंने"शीर्षक से उनकी बहुत चर्चित कविता भी है।जब वर्मा साहब शिक्षा विभाग से रिटायर हुए तो उनके मन में ये भाव आया कि कवि समाज के लिए कुछ करूं।इसमें गीतकार भी शामिल हों,बाद में सहानुभूति की लहर खिलाड़ियों के लिए भी चली। उन्होंने प्रोविडेंट फंड की राशि से एक सम्मान स्थापित किया।माणिक वर्मा सम्मान।
ये साल 2002,2003 और 2004 तक चला,पहले मशहूर शहनाई वादक बिस्मिल्लाह खान,फिर संगीतकार नौशाद और आखिरी में हॉकी खिलाड़ी पूर्व कप्तान धनराज पिल्लै। बिस्मिल्लाह खान साहब के बेटे भोपाल आए थे सम्मान ग्रहण करने।नौशाद साहब भी अस्वस्थ थे,उन्हें मुंबई जाकर सम्मान दिया गया।धनराज पिल्लै जरूर भोपाल आकर सम्मान समारोह में शामिल हुए थे।उस साल हॉकी के एक मैच में भारत की हार से मायूस थे पिल्लै और अपमानजनक स्थिति में थे,ऐसे में उनको सम्मान देने का निर्णय लिया गया।ये माणिक जी की दृष्टि थी।उन्होंने कस्तूरी नामक वार्षिक स्मारिका भी निकाली।ये श्रीमती वर्मा के नाम से थी।बात जुनून कि हो तो माणिक जी का नाम लिया जा सकता है।एक बार अनूप जलोटा को बुलवा लिया।संस्था में कार्यकर्ता कम थे या बड़े गायकों की रुचि से वाकिफ न थे,कार्यक्रम के बाद सत्कार की वैसी व्यवस्था न थी।तब भोपाल के वरिष्ठ कवि महेंद्र गगन जी को उन्होंने आवश्यक व्यवस्था करने का संकेत किया। माणिक जी मित्रों से वार्तालाप बहुत पसंद करते थे।
दुनिया के बहुत से व्यसनों से दूर माणिक जी बेटे नीरज के असामयिक निधन से बेहद दुखी हो गए थे। कोई मिलने आया,बिना चाय- नाश्ते के वापस नहीं आता। रचना सुनाने का अनुरोध भी टाल जाते थे।उनके उदासी में ही दिन कटते थे।मंच के कार्यक्रम तो छोड़ ही दिए थे।उनके समकालीन भी सक्रिय नहीं रहे।ऐसे में स्वास्थ्य का बिगड़ना उन्हें हरदा के बाद भोपाल रहना भी उतना नहीं भाया।अन्य नगरों का प्रवास भी कम होता।खंडवा में बेटे की पोस्टिंग थी,फिर इंदौर में इलाज कराते रहने के बाद वे टूट चुके थे।आखिर काव्य मंच के शिखर पुरुष ने जीवन त्याग दिया।मध्यप्रदेश का नाम भी उन्होंने अपनी प्रतिभा से रोशन किया।सादर नमन दिवंगत विभूति माणिक जी को।