सागर। शासकीय स्वशासी कन्या स्नातकोत्तर उत्कृष्टता महाविद्यालय, सागर में व्यक्तित्व विकास प्रकोष्ठ के तत्वाधान में ''वर्तमान युग में नैतिक मूल्यों की आवश्यकता व शिष्टाचार, सम्यता ओर सौम्य व्यवहार'' विषय पर एक व्याख्यानमाला आयोजित की गई ।
कार्यक्रम में प्रजापति ब्रह्म कुमारी बहिन ज्योति दीदी ने कहा कि व्यक्ति की कीमत उसके गुणों से होती है। गुणों से तात्पर्य नैतिक मूल्यों से होता है। शिक्षा मूल्यों का खजाना है परन्तु नैतिक मूल्यों की शिक्षा घर परिवार से प्रारम्भ हाती है। जैसा बीज बोया जाएगा वैसे फल की प्राप्ति होगी। अतः हर परिवार को श्रेष्ठ नैतिक मूल्यों का बीज अपने बच्चों में बोना होगा। शिक्षा नवीनता लाती है। अतः युवाओं को सीखते रहना चाहिए। नैतिक मूल्य रचनात्मकता, सत्यनिष्ठा, एकाग्रता, आशावादिता जैसे गुणों का व्यक्तित्व में बढ़ाते हैं। उन्होंने कहा हर युवा को अपने को पहचानना चाहिए और विचार से अपने को शान्त सकारात्मक और शक्तिशाली मानना चाहिए। ।
प्राचार्य डाॅ. ए.के. पटैरिया के निर्देशन में कार्यक्रम का आयोजन किया गया।
व्यक्तित्व विकास प्रकोष्ठ प्रभारी डाॅ. इला तिवारी ने कहा कि नैतिक मूल्य शाश्वत होते हैं जिन पर चल कर आप श्रेष्ठ जीवन को प्राप्त करेंगे।युवाओं को आवश्यकता है कि नैतिक मूल्यों को समझें, उन्हें अपनाएं और उनके महत्व से सभी को अवगत कराएं। इन शाश्व्त मूल्यों पर चल कर ही आप वास्तविक रूप से सफल होंगे। उन्होंने कहा कि व्यक्तित्व निर्माण में शिष्टाचार, सम्यता और सौम्य व्यवहार अनिवार्य है। इसी से युवाओं का भविष्य सुदृढ़ होगा।
प्रकोष्ठ सदस्य डाॅ. प्रतिमा खरे ने कहा कि व्यक्तित्व निर्माण में नैतिक मूल्यों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है और छात्राओं को उज्जवल भविष्य हेतु शुभकामनाएँ दी।
आयोजन प्रभारी डाॅ. भावना यादव ने कहा कि नैतिक मूल्य परिवेश से प्रभावित होते हैं। यदि परिवेश में सकारात्मक नैतिक मूल्य यथा सदाचार, सत्य, त्याग, प्रेम, सहृदयता, परोपकार, सहनशीलता, संवेदनशीलता होगी तो व्यक्तित्व में स्वतः ही नैतिकता आएगी। इसके विपरीत यदि परिवेश में अहम, चरित्रहीनता, असहिष्णुता, बेइमानी, भ्रष्टाचार होगा तो नैतिक हेतु प्रयास करना होगा। आज बदलते समय और विकास के दौर मे ंनैतिक मूल्यों के आधारों में हो रहे परिवर्तनों को समझना होगा। युवाओं की नैतिकता सुदृढ़ राष्ट्र निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाहन करती हैं। छात्रा सृष्टि शांडिल्य ने फीडबैक देते हुए कहा कि आपके व्याख्यान में बताए गए शिष्टाचार, अनुशासन, ज्ञान एवं आत्मशान्ति की मार्ग ही जीवन में प्रगति करने का एकमात्र उपाय है। छात्रा प्रतिभा चैरसिया ने कहा कि पवित्र मन रखो, पवित्र तन रखों। पवित्रता ही मनुष्य की शान है, जो मन वचन कर्म से श्रेष्ठ है, वो चरित्रवान ही मान है।
आभार डाॅ. अंजलि दुबे ने व्यक्त किया। इस अवसर पर डाॅ. मंगला सूद, डाॅ. सुनीता त्रिपाठी, डाॅ. सुनीता सिंह, डाॅ. दीपा खटीक तथा बड़ी संख्या में छात्राएं उपस्थित थीं।