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सुश्री मेधा पाटकर का अनशन खत्म

मेधा पाटकर का धरना ख़त्म
एनबीए नेता सुश्री मेधा पाटकर का अनशन खत्म



बड़वानी ।नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता सुश्री मेधा पाटकर ने आज रात मुख्यमंत्री के प्रतिनिधि पूर्व मुख्य सचिव एस.सी. बैहार से चर्चा के बाद अपना अनशन और धरना आंदोलन खत्म किया। सुश्री पाटकर ने श्री बेहार के हाथों नीबू पानी पीकर अपना अनशन खत्म किया। सुश्री पाटकर के साथ अनशन पर बैठे नर्मदा बचाओ आंदोलन के अन्य छह कार्यकर्ताओं, जिनमें चार महिलाएँ हैं, ने भी अपना अनशन खत्म किया।

सोमवार की देर शाम मुख्यमंत्री  कमल नाथ के प्रतिनिधि के रूप में बड़वानी जिले के छोटा बड़दा आये पूर्व मुख्य सचिव श्री बैहार ने धरना स्थल पर पहुँचकर सुश्री पाटकर और उनके साथियों से चर्चा कर उन्हें मुख्यमंत्री के संदेश और सरदार सरोवर परियोजना के जल स्तर को कम करवाने के प्रयासों के बारे में विस्तार से जानकारी दी। श्री बैहार ने सुश्री पाटकर एवं डूब प्रभावितों से भी चर्चा कर पूरी जानकारी ली। उन्होंने अनुरोध किया कि सुश्री पाटकर और अन्य साथी अपने स्वास्थ्य एवं मध्यप्रदेश सरकार पूर्ण समर्थन को देखते हुए अपना अनशन और धरना समाप्त कर दें। इसके बाद तय हुआ कि सुश्री पाटकर और साथी 9 सितम्बर को भोपाल में एनवीडीए के पदाधिकारियों के साथ बैठक करेंगे। बैठक में उनके मुद्दों का निराकरण नहीं होने पर भोपाल में धरने का निर्णय लेंगे।

सुश्री पाटकर और उनके साथी विगत 25 अगस्त से अनशन और धरना आंदोलन पर थे।
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हाकी के जादूगर ध्यानचंद की याद





हॉकी के जादूगर पर ही जादू चला,ध्यानचंद की टीम एक गोल से हारी
         
                                                                                                                          जबलपुर। मेजर ध्यानचंद निर्विवाद रूप से हॉकी के सर्वश्रेष्ठ सर्वकालिक खिलाड़ी माने जाते हैं। १९३६ के बर्लिन ओलिम्पिक में तो ध्यानचंद के विलक्षण खेल ने हॉकी के चहेतों को असमंजस में डाल दिया था। तभी से लोगों ने उन्हें हॉकी का जादूगर कहना शुरू कर दिया। किन्तु इसके अगले ही वर्ष पचमढ़ी में सतपुड़ा क्लब ने जिस बखूबी से ध्यानचंद की टीम को परास्त किया, वह भी कम चौंकाने वाली बात नहीं थी। गोया उस मैच में जादूगर पर ही जादू चल गया हो। जबलपुर एवं मध्यप्रदेश के वरिष्ठ क्रीड़ा समीक्षक और खेल पितामह माने जाने वाले बाबूलाल पाराशर ध्यानचंद के समकालीन हॉकी खिलाड़ी रहे हैं। भारतीय पुलिस सेवा के वरिष्ठ अधिकारी रहे बाबूलाल पाराशर लम्बे समय तक मध्यप्रदेश क्रीड़ा परिषद के सदस्य व उपाध्यक्ष भी रहे। वे अपने जमाने के अच्छे सेंटर हॉफ माने जाते थे। बाबूलाल पाराशर का निधन 23 जुलाई 1993 को जबलपुर में हुआ। स्मरणीय है कि बाबूलाल पाराशर के नेतृत्व में ही सतपुड़ा क्लब ने ध्यानचंद की टीम पर अपूर्व विजय दर्ज की थी। इस मैच का विवरण स्वर्गीय पाराशर से बातचीत के आधार पर यहां प्रस्तुत किया गया है।
             सन्‌ 1937 में बाबूलाल पाराशर की नियुक्ति पचमढ़ी में हुई थी। यह एक महत्वपूर्ण मिलेट्री स्टेशन था और फिर उच दिनों तो वहां हॉकी का अच्छा खासा प्रचार था। करीब चार प्रथम श्रेणी के हॉकी मैदान थे और 6 पलटन की टीमें थीं। सबसे तगड़ी टीम इंडियन ग्रुप थी। सतपुड़ा क्लब के नाम से जानी जाने वाली सिविलियन टीम एक ही थी। जिसमें ज्यादातर पलटन के कैंप फ्लोअर यानी भिश्ती, मोची, दर्जी आदि थे। इसके अलावा कुछ विद्यार्थी, स्वयं बाबूलाल पाराशर, एक नायाब तहसीलदार और एक पुलिस हेड कांस्टेबल टीम में थे।
               उन दिनों पचमढ़ी में चार-चार माह के मिलेट्री आर्म्स कोर्स हुआ करते थे। जिसके अंतर्गज पलटन के अंग्रेज तथा हिन्दुस्तानी कमीशंड और नॉन कमीशंड अफसर प्रशिक्षण के लिए भेजे जाते थे। इस तरह नया कोर्स शुरू होते ही चार महीने का कार्यक्रम बन जाता था, जिसमें सब मैच लीग पद्धति के आधार पर खेले जाते थे। ध्यानचंद तब पलटन में सैनिक थे और इसी कोर्स में शामिल होने के लिए पचमढी आए थे। वे इंडियन ग्रुप टीम की ओर से खेला करते थे। इसके पहले बाबूलाल पाराशर ने ध्यानचंद का खेल सर्वप्रथम 1931 में ऑल इंडिया रजिया सुल्तान टूर्नामेंट के दौरान कुरबाई में देखा था। इस टूर्नामेंट में भारत की मशहूर टीमें जैसे गवर्नमेंट कॉलेज लाहौर (जिसमें लालशाह बुखारी, दारा जफर आदि खिलाड़ी थे), मानबदर स्टेट, जहां प्रसिद्ध ओलिम्पिक शाहबुद्दीन मसूद और मोहम्मद हुसैन थे, सुविखयात खिलाड़ी ध्यानचंद और रूप सिंह से सुसज्जित झांसी हीरोज की टीमें भाग लिया करती थीं। फाइनल में झांसी हीरोज और मानबदर स्टेट के मध्य एक संघर्षमय मुकाबला हुआ। अभी दर्शक अपनी जगह पर बैठ भी नहीं पाए थे कि ध्यानचंद ने विलक्षण फुर्ती के साथ बुली ऑफ से पहला गोल ठोंक दिया। मानबदर के जाने माने लेफ्ट इन जॉनी पिंटो मात्र एक गोल ही कर सके, जिनके बारे में ऐसा कहा जाता था कि वे रूप सिंह से भी बेहतर खिलाड़ी थे। ध्यानचंद ने इसके अलावा तीन गोल और किए। टूर्नामेंट के श्रेष्ठ खिलाड़ी को स्वर्ण पदक प्रदान किया जाता था। परन्तु कुरबाई के नवाब ने यह कह कर कि ध्यानचंद जैसे महान्‌ खिलाड़ी के लिए एक स्वर्ण पदक मामूली इनाम है, उनका सम्मान शाही खिल्लत दे कर किया। इसके अतिरिक्त स्वर्गीय पाराशर ने ध्यानचंद का खेल भोपाल में ही 1932 और ओलिम्पिक टीम के साथ में भी देखा था।बाबूलाल पाराशर ने बताया कि ध्यानचंद का अप्रतिम खेल देख कर उनके मन में भी विचार आया कि काश ध्यानचंद के विरूद्ध खेलने का मौका मिले और फिर वे कैसे स्वयं प्रदर्शन कर पाते हैं। अंततः उन्हें 1937 में पचमढ़ी में मौका मिला। स्वर्गीय पाराशर ने बताया कि ध्यानचंद का खेल सचमुच लाजवाब होता था। उनका खेल खिलाड़ी भावना से ओतप्रोत रहता था। व्यक्तिगत प्रदर्शन का तो उनमें नामो निशान तक नहीं था। यही कारण है कि कई बार स्वयं गोल करने में सक्षम होते हुए भी वे गेंद झट आसपास के दूसरे खिलाड़ी को थमाकर गोल करवा देते थे। उनके खेल की यही खूबी थी कि वे या तो खुद गोल कर सकते थे अथवा राइट इन या लेफ्ट इन के खिलाडि यों को पास दे कर गोल करवा लेते थे। गेंद ध्यानचंद को मिली कि नहीं उनमें बिजली की सी फुर्ती आ गई। कभी यदि वे विपक्षी खिलाडि यों से घिर जाते थे, तो पीछे सेंटर हॉफ को पास देते थे या फिर ऐसे खिलाड़ियों को पास देते जो सुरक्षित स्थान पर खड़ा हो।

बाबूलाल पाराशर के अनुसार उनकी टीम सतपुड़ा क्लब को ध्यानचंद की टीम के विरूद्ध चार या पांच बार खेलने का अवसर आया। यद्यपि पहले मैच में बराबरी की टीम होने के बावजूद भी ध्यानचंद की टीम ने उन्हें 7-0 से हराया, तथापि एक दो मैच खेलने के बाद पाराशर की टीम ने उनके खेल का सूक्ष्मता से भली-भांति अध्ययन कर लिया और आगे के मैचों में गोलों का अंतर क्रमशः कम होने लगा।

वर्ष 1937 में नवम्बर माह के अंतिम सप्ताह में अंग्रेज उच्च सेनाधिकारी ध्यानचंद का खेल देखने खास तौर से पचमढी आए। एक प्रदर्शन मैच होने वाला था। मैदान पर अच्छी भीड थी। पचमढी के करीब-करीब सभी हॉकी प्रेमी नागरिक उपस्थित थे। पलटन के समर्थकों को पूरा विश्वास था कि उनकी टीम आसानी से विजय दर्ज कर लेगी, मगर उस दिन पाराशर की टीम भी बहुत उत्साह से खेली।

'बुली ऑफ' के साथ ही सतपुड़ा क्लब के सेंटर फॉरवर्ड सल्लू ने आनन-फानन में ध्यानचंद की टीम के विरूद्ध एक गोल दाग दिया। यहां सल्लू के संबंध में बताना उचित होगा कि वह एक भिश्ती था और देखने में वह बिल्कुल हॉकी खिलाड़ी नहीं लगता था। इतना अपढ और पिछड़ा था कि जीवन में कभी रेल भी नहीं देखी थी। सल्लू जमीन पर टिप्प मार कर विरोधी खिलाड़ी को स्टिक के ऊपर से गेंद उचकाते हुए सीधे आगे बढ ता था। इस गोल के पश्चात्‌ ध्यानचंद के खेल में तेजी आ गई। आर्मी पलटन के अफसर और जवानों में भी जोश आ गया। उन्होंने सतपुड़ा टीम को आमतौर पर और ध्यानचंद की टीम को खासतौर पर चिल्ला-चिल्ला कर गोल करने के लिए उत्साहित करना शुरू कर दिया। पाराशर ने बताया ''उस दिन का मुझे यही याद है कि चारों तरफ बैठे दर्शकों की आवाज से मैदान गूंज उठा था। ध्यानचंद ने गोल करने की भरसक कोशिश की और गोल करने या कराने के हर संभव हुनर अपनाए, लेकिन हमने सब विफल कर दिए। दस मिनट बाद सल्लू ने फिर दूसरा गोल करके सबको आश्चर्य में डाल दिया।''
मध्यांतर के पश्चात्‌ ध्यानंचद येन-केन प्रकारेण गोल करने के लिए आमादा हो गए। पाराशर कहते हैं कि वैसे तो ध्यानचंद का खेल बहुत साफ-सुथरा रहता था, लेकिन उस मैच में एक-दो बार उन्होंने बाबूलाल पाराशर को गिरा दिया और बाद में सॉरी भी कहते गए, क्योंकि इस दौरान चार माह साथ-साथ रहने और खेलने के कारण दोनों अच्छी तरह से परिचित थे। बड़ी मुश्किल से ध्यानचंद अपनी टीम के लिए एकमात्र गोल बना सके। वैसे तो अंत तक गोल करने की कोशिश करते रहे, पर और गोल करने में सफल नहीं हुए। इस तरह सतपुड़ा टीम ने ध्यानचंद की टीम पर 2-1 गोल से विजय प्राप्त की। कुल मिला कर उस दिन सतपुड़ा टीम के खिलाडि यों ने बहुत बढि या प्रदर्शन किया था। हरेक खिलाड़ी ने अपना दायित्व बखूबी निभाया था। खेल के पश्चात्‌ सेनाधिकारियों ने भी सतपुड़ा टीम के सदस्यों की काफी तारीफ की। ध्यानचंद भी सतपुड़ा टीम से प्रभावित हुए बिना नहीं रहे। जब सल्लू ने अपनी टीम के लिए दूसरा गोल किया किया तो ध्यानचंद कहने लगे-''वाह साहब! आज तो सतपुड़ा टीम कमाल कर रही है। इस छोटी- सी जगह में इतने अच्छे खिलाड़ी कहां से भर लिए।''

बाबूलाल पाराशर ने बताया कि इस रोमांचकारी विजय से पचमढ़ी में हर्षोल्लासमय वातावरण निर्मित हो गया। उस दिन इस विजय की खुशी में एक विशाल जुलूस निकाला गया। आज भी पचमढी के बुजुर्ग हॉकी प्रेमी इस बात की चर्चा करते हैं कि किस तरह इस छोटे से नगर के खिलाडियों ने उस महान्‌ खिलाड़ी के खेल का अनुशरण किया और वह गौरवशाली विजय अर्जित की थी, जो नवयुवक खिलाड़ियों के लिए प्रेरणास्पद है। यहां यह स्मरणीय है कि सेंटर हॉफ बाबूलाल पाराशर का खेल काफी प्रभावपूर्ण रहा। स्वयं ध्यानचंद ने उनके खेल से प्रभावित हो कर झांसी हीरोज की तरफ से बेटन कप हॉकी प्रतियोगिता (कलकत्ता) में खेलने का प्रस्ताव रखा था, किन्तु पर्याप्त अवकाश न मिलने के कारण यह संभव न हो पाया। यहां यह उल्लेखनीय है कि ध्यानचंद की मशहूर पुस्तक 'गोल' के पृष्ठ 83 के द्वितीय परिच्छेद में भी इस मैच का वर्णन मिलता है।
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आर्थिक गणना शुरू,कलेक्टर ने अपनी जानकारी भरी

आर्थिक गणना शुरू,कलेक्टर ने अपनी जानकारी भरी

सागर ।  कलेक्टर श्रीमती प्रीति मैथिल नायक द्वारा सागर जिला में 7वीं आर्थिक गणना का शुभारंभ मोबाईल एप्प पर स्वयं की जानकारी अंकित कर किया गया। इस मौके पर कलेक्टर श्रीमती नायक ने गणना में प्रगणक व पर्यवेक्षकों को गणना कार्य गुणवत्ता पूर्ण एवं समय सीमा में करने के निर्देष देते हुए शुभकामनाएं दी। साथ ही जिले के नागरिकों व उद्योग संघों से उक्त कार्य में सहयोग करने की अपील की। 
इस अवसर पर  वीरेन्द्र निषाद वरिष्ठ सांख्यिकी अधिकारी, दिलीप कुमार साहू, सहायक सांख्यिकी अधिकारी,  अमित ठाकुर, जिला प्रबंधक सीएससी जिला सागर व सीएससी के प्रगणक व पर्यवेक्षक उपस्थित रहे। आर्थिक गणना एप्प  जो की एक एंड्राईड एप्प है। जिसका उपयोग सीएससी वीएलई एवं उनके द्वारा नियुक्त किए गए प्रगणकों द्वारा सर्वे के दौरान परिवारों की आर्थिक गतिविधियों के आनलाईन संकलन में किया जाएगा। इस एप्प के माध्यम से समस्त आर्थिक गतिविधिओं को आनलाईन फीड किया जाएगा।                                              
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संगोष्ठी : शोधकार्य की गुणवत्ता के लिए होगा कार्यशालाओं का आयोजन- प्रो.ए.पी.दुबे

पाक्षिक शोध संगोष्ठी


सागर। डाॅं. हरीसिंह गौर केंद्रीय विश्व विधालय, सागर में मानविकी एवं समाज विज्ञान अध्ययनषाला के अधिष्ठाता प्रो.ए.पी. दुबे ने पाक्षिक शोध संगोष्ठी के अवसर पर कहा कि शोधकार्य की गुणवत्ता को बढ़ावा देने के लिए शीघ्र ही विभिन्न कार्यषालाओं के आयोजन पर अमल किया जायेगा। प्रो.ए.पी. दुबे ने कहा कि मानविकी एवं समाज विज्ञान अध्ययनशाला स्तर पर वर्तमान में पाक्षिक शोध संगोष्ठी का आयोजन किया जा रहा है। इससे शिक्षक, षोधार्थी एवं छात्र-छात्राऐं लाभांवित हो रही है।  विष्वविद्यालय केन्द्रीय पुस्तकालय कक्ष में आयोजित संगोष्ठी में अध्ययनशाला के शिक्षक, षोधार्थी एवं छात्र-छात्राओं ने सहभागिता की।
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बच्चों को नमक-रोटी खिलाने की खबर छापने वाले पत्रकार पर मुकदमा दर्ज



लखनऊ। यूपी के मिर्जापुर में  एक  प्प्रायमरी स्कूल में  मिडडे  मील के  तहत बच्चों को नमक के साथ  रोटी खिलाए जाने की खबर छापने वाले पत्रकार और ग्राम प्रधान के प्रतिनिधि समेत कई लोगों के खिलाफ सरकार की छवि खराब करने के 'कुत्सित प्रयास' के आरोप में मुकदमा दर्ज किया गया है।   पुलिस विभाग के एक वरिष्ठ अफसर ने  बताया कि एक हिन्दी दैनिक के स्थानीय पत्रकार पवन कुमार जायसवाल, ग्राम प्रधान के प्रतिनिधि राजकुमार पाल तथा अन्य अज्ञात लोगों के खिलाफ साजिश रचने, सरकारी काम में बाधा डालने, झूठी बातों को तथ्य के तौर पर पेश करने और धोखाधड़ी कर सरकार की छवि खराब करने के 'कुत्सित प्रयास' के आरोप में अहिरौरा थाने में मुकदमा दर्ज किया गया है.।यह मुकदमा पिछले 31 अगस्त को खण्ड शिक्षाधिकारी प्रेम शंकर राम की शिकायत पर दर्ज किया गया है.।मुकदमे में आरोप लगाया गया है कि पत्रकार पवन ने सोची—समझी साजिश के तहत स्कूल में वीडियो तैयार किया ताकि सरकार को बदनाम किया जा सके.।इससे पहले 22 अगस्त को मिर्जापुर के जमालपुर विकास खण्ड स्थित सियूर प्राथमिक विद्यालय की इस घटना का वीडियो वायरल होने के बाद जिला प्रशासन ने इसकी जांच कराई थी और प्रथम दृष्ट्या दोषी पाये जाने पर दो शिक्षकों मुरारी और अरविंद कुमार त्रिपाठी को निलम्बित किया था.।अब इसी मामले का खुलासा करने वाले पत्रकार और अन्य लोगों पर दर्ज मुकदमे में आरोप लगाया गया है कि ग्राम प्रधान के प्रतिनिधि राजकुमार को जानकारी थी कि घटना के दिन स्कूल में सिर्फ रोटी ही बनी है मगर उसने सब्जी का इंतजाम कराने के बजाय पत्रकार पवन जायसवाल को बुलाया, जिसने रसोइयों द्वारा बच्चों को केवल रोटी नमक खिलाते हुए वीडियो बना लिया और उसे एक इलेक्ट्रॉनिक मीडिया एजेंसी को भेज दिया.उस वीडियो में एक महिला बच्चों को रोटी दे रही है और एक व्यक्ति उनकी थाली में नमक परोस रहा है.
मध्याह्न भोजन योजना के तहत परिषदीय स्कूलों में बच्चों को मेन्यू के हिसाब से दाल, चावल, रोटी, सब्जी, फल और दूध दिए जाने की व्यवस्था है, ताकि उन्हें बेहतर पोषण मिल सके.
इस योजना को इस तरह से तैयार किया गया है कि हर बच्चे को प्रतिदिन न्यूनतम 450 कैलोरी मिले. इसमें रोजाना 12 ग्राम प्रोटीन भी शामिल होना चाहिए.
योजना के अनुसार, हर बच्चे को साल में कम से कम 200 दिन ऐसा भोजन दिया जाना चाहिए.
मिर्जापुर के प्राथमिक स्कूल की इस घटना से प्रदेश सरकार की आलोचना हुई थी.
कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने कहा था कि मिर्जापुर के स्कूल में मध्याह्न भोजन योजना के तहत रोटी और नमक दिया जा रहा है तथा भाजपा सरकार के जमाने में प्रदेश का यह हाल है.
(न्यूज़ प्लेटफार्म)
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परमात्मा बनने की साधना है पर्यूषण पर्व: आचार्य निर्भय सागर जी

परमात्मा बनने की साधना है पर्यूषण पर्व:
आचार्य निर्भय सागर जी

 सागर।संसार के सभी प्राणियों में इंसान सर्वश्रेष्ठ प्राणी है, इंसान को अपनी श्रेष्ठता बनाए रखने के लिए पर्यूषण पर्व तोहफे के रूप में मिला है ।इस पर्युषण पर्व की व्याख्या करते हुए आचार्य श्री निर्भय सागर जी महाराज ने कहा की जो चारों ओर से आत्मा में रहने वाले पाप कर्मों को जलाए उसे पर्यूषण पर्व कहते हैं ।कर्मों के जलने पर संसारी आत्मा परमात्मा बनती है अतः उन्होंने पर्यूषण को आत्मा में परमात्मा बनाने वाला साधन बताया ।यह पर्युषण पर्व की साधना मुनि जीवन पर्यंत करते हैं। जबकि घर में रहने वाले श्रावक भादो माह की शुक्ल पंचमी से चतुर्दशी तक साधना करते हैं ।इन 10 दिनों में की जाने वाली साधना में *उत्तम क्षमा धर्म* से क्रोध को पी जाना, आवेग में नहीं आना ,अपराधी को क्षमा करना ।*मार्दव धर्म  से एक दूसरे के सामने विनय पूर्वक झुक जाना। *आर्जव धर्म* से छल कपट माया चारी नहीं करना ।*शौच धर्म* से लोभ लालच नहीं करना । *सत्य धर्म* से नाजायज तरीके से धन संग्रह नहीं करना, झूठ नहीं बोलना, ईमानदारी से कार्य करना ।
*संयम धर्म* से सब्र रखना ।मन वचन काया में लगाम लगाना। *तप धर्म* से अपने आप को त़पाना और आत्मा को 100 टंच शुद्ध बनाना। *त्याग धर्म* से गरीब ,असहाय ,दीन दुखियों का सहयोग करना ।संग्रह किए हुए धन आदि को समाज एवं 
धर्मात्माओं की मदद में लगाना। *आकिंचन धर्म* से शरीर के प्रति मोह ममता ना रखकर त्याग तपस्या में लगाना । *ब्रह्मचर्य धर्म* से पराई नारी के प्रति बुरी नियत नहीं रखना और अंत में समस्त विषय कषायों को छोड़कर, इंद्रियों को जीतकर अपनी आत्मा में लीन हो जाने की शिक्षा और साधना पर्यूषण पर्व के माध्यम से की जाती है ,यही वजह है कि दुनिया भर के जैनी लोग इस पर्व में उपवास रखते हैं अथवा दिन में मात्र एक बार भोजन करते हैं ।इंद्रिय और प्राणी संयम रखते हैं एवं समस्त सांसारिक क्रियाएं छोड़कर त्याग, तपस्या ,आत्म भावना ,धर्म ग्रंथों का अध्ययन एवं विश्व की शांति की भावना कामना करते हैं इस पर्व में भक्ति ,पूजा ,योग ,ज्ञान, ध्यान ,स्वाध्याय एवं पूरे वर्ष में हुए जाने अनजाने में पापों के प्रायश्चित हेतु प्रतिक्रमण को दिन में तीन बार किया जाता है जिससे मन एवं आत्मा विशुद्ध होती है यही पर्यूषण पर्व का उद्देश्य होता है।
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चार पीढियों से पर्यावरण को बचाने बांटते है मिट्टी की गणेश मूर्ति



चार  पीढियों से पर्यावरण को  बचाने बांटते है मिट्टी की गणेश मूर्ति  


सागर। । धार्मिक दृष्टि और पर्यावरण को प्रदूषण से बचाने के लिहाज से मिटटी  की प्रतिमा  का महत्व है।पर्यावरण संकट से बचने की बात तो आज गाँव से लेकर विश्व मंच पर भी होती है जागरूकता अभियान भी चलाये जाते है कई बार सरकार इसका बीड़ा उठाती है तो कभी कभार एक आम आदमी भी बड़ी पहल अकेले ही करता है। ऐसा ही कुछ किया है सागर के ताम्रकर परिवार ने जो  चार  पीढियों से पर्यावरण को  बचाने हर गणेश उत्सव पर मिट्टी की गणेश मूर्ति को बांटते है।  आज गणेश चतुर्थी पर पूरे   श्रध्दा  भाव से मिटटी के गणेश लेने श्रद्धालु उमड़े। आज सुबह से करीब दो हजार मूर्ति बांट चुके है।

                          सागर के इतवारा बाजार के स्वर्गीय रामेस्वर ताम्रकार का परिवार यह काम कर रहा है। उनके बेटे और मोहल्ला के लोग मिलकर भगवान गणेश की मूर्ती बनाते है। यह  परिवार  मिटटी की आकर्षक और पूर्ण अकार की भगवान श्री गणेश की  प्रतिमा को बनाकर निःशुल्क  श्रदालुओ को बाँटते  है।  यह संख्या हजारो में होती है।   जिससे गणेश विशर्जन के कारण पर्यावरण दूषित न हो और उत्सव का रंग भी बना रहे।मिटटी के गणेश को बांटकर ये परिवार पर्यावरण को सहेजने का काम पिछले 100 साल से कर रहा है। गणेश मूर्ती लेने के लिए घर के पास मंदिर में    लम्बी कतार आज के दिन लगी ।  इनके पास  पहले एक पीतल का साँचा था मिटटी के गणेश की बढती मांग के कारण अब तीन सांचे बनवा लिए ,ताकि अधिक से अधिक संख्या में लोग गणेश प्रतिमा को ले सके ।  

                         सांचे में शुद्ध काली मिटटी    को डालते है और गणेश जी की मूर्ती निकलती है। श्री गणेश की बैठी हुई यह मूर्ती होती है। पुरे स्वरूप में गणेश जी है ,इसमें रिध्धि और सिध्धि और चूहा सब बना हुआ है। मिटटी के ये गणेश दस दिन तक ज्यो के त्यों बने रहते है।   लोग पुरे श्रद्धा भाव से इसे ले जाते है।  सबसे  बड़ी  बात यह है की इनका कोई पैसा नहीं लिया जाता है . 

वर्तमान में प्लास्टर ऑफ़  पेरिस  और  केमिकल  रंगो का प्रचलन है।  इसी की मूर्तिया बनाई जाती है।  जो पर्यावरण को  बुरी तरह से  प्रदूषित कर रही है। इस परिवार के शंकर ताम्रकार ने बतया की पिछली  चार  पीढ़ियों से यह परम्परा चली आ रही है।  मिटटी की ये मूर्ति शुद्ध होती है।  पानी में भी ये आसानी से घुल जाती है। करीब चार से पांच हजार की संख्या में  निशुल्क केला के पत्ते पर वितरित करते है।  बाटने के पहले इनको   मंदिरों में पूजा के लिए भेजते है उसके बाद सभी को देते है। 




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पाँचवा स्तंभ ।अब तो गणेश जी सद्बुद्धि दें ताकि दुनिया बन सके पर्यावरण मित्र

Eco-Friendly: गणेश जी बनाने के पहले दुनिया बने पर्यावरण मित्र


  • ब्रजेश त्रिपाठी


आजकल सोसल मीडिया से लेकर सब दूर हेश टेग के साथ साथ बॉक्स आइटम में लिखा आ रहा है.. "इको फ्रेंड गणेश जी.."अब मूढ़ मति कलजुगी संसार को श्री गणेश जी सद्बुद्धि दें कि दुनिया इकोफ्रेंड बने न कि प्रभु श्री गणेश जी.. श्री गजानन महाराज तो सनातन काल से प्रकृति उपासना के साक्षात वाहक है..!!!
           फूल चढ़े दूब चढ़े और चढ़े मेवा..यह सब प्रकृति से तादाम्य का ही सुर है प्रभु को सेवा में पूजन अर्चन में पर्यावरण ही प्रिय है..शादी व्याह - तिलकोत्सव लेकर स्थानीय पूजन में गाय के गोबर की रचना भी प्रकृति पूजन का सबसे बड़ा प्रतीक है.. मायावी संसार खुद तो सुधरना नही चाहता उल्टे प्रभु स्वरूप को लेकर ज्ञान पेल रहा है..!!!
         तिलक महाराज ने भी श्री गणेशोत्सव परम्परा में सनातनी स्वरूप और प्रतीकों को ही बनाये रखा था.. यह स्वरूप ही सालो साल सजता आया है लेकिन मार्केट ने इसमे घुसपैठ करके केमिकल गिरी को चमका दिया है..!!!
          माटी पूजन हमारी अमिट  थाती रही है..भूमि पूजन के बिना कोई भी पूजन परम्परा का शुभारम्भ ही नही होता क्योकि जीवन का आरम्भ और अंत उसी में समाहित है ..लेकिन अब मिट्टी के बजरिकरण(रेत सीमेंट) के चलते शुद्ध मिट्टी भी दूभर हो गई है..!!!
       हमने अकेली माटी या गाय का गोबर ही नही खोया है बल्कि अपनी प्रकृति से ही खिलवाड़ की है इस खेल के चलते ही मूर्ति कारों को प्लास्टर ऑफ पेरिस जैसे कृत्रिम आसान उपायों को आजमाने की मोहलत मिली और रंगीन चकाचौन्ध ने इस मोहलत को अंधाधुंध धंधे में बदल दिया नतीजा हमारे सामने है..!!!
      इस नतीजे का कुछ घटिया लोगों ने आस्था विरोध के रूप में ऐसा दुष्प्रचार किया कि वह विसर्जन के समय की तस्वीरों को सोशल मीडिया पर धर्म पर चटखारे लेकर पोस्ट करने लगे जबकि यह निहायत ही गैर जिम्मेदाराना कृत्य है क्योकि इसके लिए आस्था नही बल्कि मुनाफाखोरी की भूख की   लपलपाहट दोषी है..!!!
         आज जब प्रायोजित रूप से हमारे पर्व, उत्सवधर्मिता को निपट कुत्सित लोगों की गैंग के द्वारा हर स्तर पर हतोसाहित करने का अभियान सनातन चेतना को कुंद करने के उद्देश्य से चलाया जा रहा हो तब हम सबको अपने प्रतीकों के प्रति ज्यादा सचेत रहने की जरूरत है और इसे हम सनातन तरीकों से ही हासिल कर सकते हैं न कि केमिकल्स रंग रोगन से..!!!
    धर्म की जय हो.. अधर्म का नाश हो.. प्राणियों में सद्भाव हो.. विश्व का कल्याण हो..गौ माता की जय हो ..हर हर महादेव के जयकारे के साथ ..घर घर मे श्री गणेश कीजिये ..जय श्री गणेश..आप सभी को श्री गणेश उत्सव की अग्रिम बधाई ..!!!

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