कामना का सकारात्मक रूप धर्म और नकारात्मक रूप अधर्म,योग सात्विक बनाता है इसे अपनाए:पद्मभूषण स्वामी निरंजनानंद
आसन ही योग नही है योग के सभी अंगों को अपनाए तभी शारीरिक,मानसिक सुख मिलेगा ,अनुशासन बढ़ेगा स्वामी निरंजनानंद जी सरस्वती
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चार पीढियों से पर्यावरण को बचाने बांटते है मिट्टी की गणेश मूर्ति
सागर। । धार्मिक दृष्टि और पर्यावरण को प्रदूषण से बचाने के लिहाज से मिटटी की प्रतिमा का महत्व है।पर्यावरण संकट से बचने की बात तो आज गाँव से लेकर विश्व मंच पर भी होती है जागरूकता अभियान भी चलाये जाते है कई बार सरकार इसका बीड़ा उठाती है तो कभी कभार एक आम आदमी भी बड़ी पहल अकेले ही करता है। ऐसा ही कुछ किया है सागर के ताम्रकर परिवार ने जो चार पीढियों से पर्यावरण को बचाने हर गणेश उत्सव पर मिट्टी की गणेश मूर्ति को बांटते है। आज गणेश चतुर्थी पर पूरे श्रध्दा भाव से मिटटी के गणेश लेने श्रद्धालु उमड़े। आज सुबह से करीब दो हजार मूर्ति बांट चुके है।
सागर के इतवारा बाजार के स्वर्गीय रामेस्वर ताम्रकार का परिवार यह काम कर रहा है। उनके बेटे और मोहल्ला के लोग मिलकर भगवान गणेश की मूर्ती बनाते है। यह परिवार मिटटी की आकर्षक और पूर्ण अकार की भगवान श्री गणेश की प्रतिमा को बनाकर निःशुल्क श्रदालुओ को बाँटते है। यह संख्या हजारो में होती है। जिससे गणेश विशर्जन के कारण पर्यावरण दूषित न हो और उत्सव का रंग भी बना रहे।मिटटी के गणेश को बांटकर ये परिवार पर्यावरण को सहेजने का काम पिछले 100 साल से कर रहा है। गणेश मूर्ती लेने के लिए घर के पास मंदिर में लम्बी कतार आज के दिन लगी । इनके पास पहले एक पीतल का साँचा था मिटटी के गणेश की बढती मांग के कारण अब तीन सांचे बनवा लिए ,ताकि अधिक से अधिक संख्या में लोग गणेश प्रतिमा को ले सके ।
सांचे में शुद्ध काली मिटटी को डालते है और गणेश जी की मूर्ती निकलती है। श्री गणेश की बैठी हुई यह मूर्ती होती है। पुरे स्वरूप में गणेश जी है ,इसमें रिध्धि और सिध्धि और चूहा सब बना हुआ है। मिटटी के ये गणेश दस दिन तक ज्यो के त्यों बने रहते है। लोग पुरे श्रद्धा भाव से इसे ले जाते है। सबसे बड़ी बात यह है की इनका कोई पैसा नहीं लिया जाता है .
वर्तमान में प्लास्टर ऑफ़ पेरिस और केमिकल रंगो का प्रचलन है। इसी की मूर्तिया बनाई जाती है। जो पर्यावरण को बुरी तरह से प्रदूषित कर रही है। इस परिवार के शंकर ताम्रकार ने बतया की पिछली चार पीढ़ियों से यह परम्परा चली आ रही है। मिटटी की ये मूर्ति शुद्ध होती है। पानी में भी ये आसानी से घुल जाती है। करीब चार से पांच हजार की संख्या में निशुल्क केला के पत्ते पर वितरित करते है। बाटने के पहले इनको मंदिरों में पूजा के लिए भेजते है उसके बाद सभी को देते है।
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