Sagar: मौज भी .... सेहत भी - सिल्लू और उनकी साइकिल...
▪️साइकलिस्ट : इंजीनियर अभिनय श्रीवास्तव हर दिन करते हैं कम से कम 50 किलो मीटर की साइकलिंग
तीनबत्ती न्यूज : 14 मार्च, 2025
सागर, शहर की सड़कों पर फर्राटे भरती मोटर साइकिलों पर सवार, स्टंटबाजी करते युवा बाईकर्स के बीच, आचरण ईको सिटी कॉलोनी निवासी साइकलिस्ट अभिनय श्रीवास्तव अलग चेहरा बने हुए हैं । इन्हीं के बीच कहीं साइकिल से गुजरते हुए 43 वर्षीय अभिनय पर दूसरे राहगीरों की नज़र ठहरती भी है ।
जानिए साइकलिस्ट अभिनय के बारे में
सागर के शासकीय इंदिरा गांधी इंजीनियरिंग कॉलेज से इलेक्ट्रॉनिक्स एण्ड कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग के स्नातक, पेशे से सॉफ्टवेयर इंजीनियर, अभिनय हर दिन कम से कम 50 किलोमीटर की साइकलिंग अपनी कार्डियक एक्सप्लोरर साइकिल से कर रहे हैं । पिछले छह महीनों उन का ये क्रम टूटा नहीं है। कई बार ये 100 किलोमीटर भी पार हो जाता है । अभिनय का जन्म 1982 में सागर की इतवारी टौरी में हुआ । पिता स्व.राम भूषण श्रीवास्तव सागर में ही नायब तहसीलदार थे, जिनका देहान्त अभिनय की अल्पायु में 1987 में हुआ । परिवार में ‘सिल्लू’ के नाम से पुकारे जाने वाले अभिनय सात भाई -बहिनों के बीच में सबसे छोटे हैं । एक्सचेंजर कंपनी में 2021 में इंग्लैंड के मेनचेस्टर में तीन साल काम करने के बाद वर्क फ्रॉम होम लेकर सागर आ गए । साइकलिंग के प्यार में पड़ने से पहले अभिनय हर दिन 15-20 किलोमीटर तक की दूरियॉं पैदल तय करते थे । हिप ज्वाइंट में किसी तकलीफ के चलते, डॉक्टरों के परामर्श पर पैदल चलना कम किया । उसके बाद लगभग पिछले छह महीने से साइकिल पर दूरियां तय करना शुरू किया । सुबह 5-6 बजे घर से साइकिल पर निकल कर. दिन के 11 बजे तक घर वापिस आते हैं । अभिनय हर दिन न्यूनतम 50 और अधिकतम 100 किलोमीटर तक की साइकलिंग करते हैं । इसके लिए शाम को 7 बजे भोजन कर फिर साइकिल पर निकल पड़ते हैं । 12 वर्षीय पुत्री के पिता, शाकाहारी अभिनय अपने घर के दूसरे काम भी साइकिल से ही निपटाते हैं । अक्सर 52 किलोमीटर दूर अपने पैतृक गांव नाहरमऊ साइकिल से हो आते हैं । दिशा और स्थान निश्चित नहीं होते , एक ही दिन में सागर से रानगिर, राहतगढ आदि स्थान जाकर आते हैं ।
अपने इस शौक को लेकर अभिनय बताते हैं : ‘मेन्चेस्टर में रहते हुए मैं क्रिकेट खेलता था । मेरे पेशे में सारा काम कुर्सी-टेबल पर होता है जिसके साथ मैं एक तरह की सुस्ती अनुभव करता था । शारीरिक श्रम को टालने की आदत बनती जा रही थी । पैदल चलने में जितना समय देता था , उतने ही समय में कहीं अधिक दूरियां मैं साइकिल चला कर तय करता हूँ । पहले दो धण्टे पैदल चलकर लगभग 15 किलोमीटर तक की दूरी तय करता था । साइकिलिंग करते हुए, शहर से बाहर की ताजी हवा, ग्रामीण जनों से संपर्क - संवाद मुझे सक्रियता, ताजगी और ऊर्जा से भर देते हैं ।’
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