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Navratri 2024 :: बुंदेलखंड अंचल के रानगिर और टिकिटोरिया में सजा है देवी का दरबार : उमड़ रहे है श्रद्धालु

Navratri 2024 :: बुंदेलखंड अंचल के रानगिर और टिकिटोरिया में सजा है देवी का दरबार : उमड़ रहे है श्रद्धालु


तीनबत्ती न्यूज : 04 अक्टूबर, 2024


नवरात्रि पर पूरे देश में मां दुर्गा की पूजा अर्चना हो रही है। मां दुर्गा के मंदिरों में श्रद्धालुओ की भीड़ उमड़ी है। मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड अंचल के सागर जिले  प्रसिद्ध देवी स्थान हरसिद्धि माई रानगिर ( Harsiddhi Mata Mandir Rangir ) और टिकिटोरिया ( Tikitoriya Devi Templ, rahil ) पर पहाड़ी की चोटी पर विराजी में जगदम्बा देवी के मंदिर श्रद्धालुओ की आस्था के केंद्र बने है। पूर्व मंत्री गोपाल भार्गव अपने मंत्रित्व कार्यकाल और वर्तमान में लगातार इन स्थानों को भव्य और आस्था पर्यटन केंद्र बनाने में जुटे है। इस कारण सालभर लोग इनके दर्शनों को पहुंचते  है। 


दूर-दूर तक फैली है रानगिर की मां हरसिद्धि माता की ख्याति


सागर से करीब 60 किलोमीटर दूर नरसिंहपुर मार्ग पर रहली स्थित प्रसिद्ध तीर्थ क्षेत्र रानगिर अपने आप में एक विशेषता समेटे हुए है। देहार नदी के तट पर स्थित इस प्राचीन मंदिर में विराजी मां हरसिद्धि की ख्याति दूर दूर तक फैली है। मां के दर पर आने वाले मे श्रद्धालुं की हर मनोकामना पूरी होती है। यहां पर हर दिन अनेक श्रद्धालुओं का आना होता है लेकिन साल की दोनो नवरात्रि पर हजारों श्रद्धालु मां के दर्शन कर प्रसाद, भेट चढ़ाते हैं तथा मां के दरबार में अनुष्ठान करते है।

श्रद्धालुओं का जनसैलाब तो नवरात्रि और सभी प्रमुख तीज त्यौहार पर उमड़ता है लकिन चौत्र माह की नवरात्रि पर यहां विशाल मेला लगता है जिसमें सागर जिला सहित पूरे मध्यप्रदेश और प्रदेश के बाहर तक के श्रद्धालु रानगिर आते हैं और मां के दरबार में मनौती मांगते है। कुछ श्रद्धालु जहां मनौती लेकर आते हैं वही कई श्रद्धालु मनौती पूरी होन पर मां के दरबार मे हाजिरी लगाते है। कहा जाता है कि सच्चे मन से मां हरसिद्धि के सामने जो भी कामना की जाती है वह पूरी हे जाती है और मां के भक्त इसी आशा और विश्वास से मां के दरबार में दौडे चले आते हैं और मां भी अपने भक्तो की मनोकामना पूरी करती हैं।

पुराणो में वर्णित है रानगिर की कथा

किवदंती के अनुसार देवी भगवती के 52 सिद्ध शक्ति पीठों में से एक शक्तिपीठ है सिद्ध क्षेत्र रानगिर है। पौराणिक कथा के अनुसार दक्ष प्रजापति के अपमान से दुखित हो सती ने योगबल से अपना शरीर त्याग दिया था भगवान शंकर ने सती के शव को लेकर विकराल तांडव किया तो सारे संसार में हाहाकार मच गया तब विष्णु के सुदर्शन चक्र ने सती के शव को कई अंगों वे बांट दिया। ये अंग जहां जहां भी गिरे वे सिद्ध क्षेत्र के नाम से जाने जाते हैं। कथानुसार सती की रान एवं दांत के अंश जहां  गिरे वह स्थान सिद्ध क्षेत्र रानगिर एवं गौरी दांत नाम से विख्यात हुये। अन्य कथानक में यह भी कहा जाता है कि इस क्षेत्र की पहाड़ी कंदराओं में रावण ने घोर तपस्या की थी इस कारण इसका नाम रावणगिरी हुआ और कालांतर में परिवर्तित होता हुआ सूक्ष्म नाम रानगिर पड़ा। वैसे इस सिद्ध क्षेत्र के संबंध में अनेकानेक किवदंतियां हैं। कहा जाता है कि उक्त स्थान पर भगवान राम के वनवास काल में चरण कमल पड़े थे जिससे इसका नाम रामगिर पड़ा एवं परिवर्तित होते-होते रानगिर हो गया।


इतिहास में दर्ज है रानगिर की कहानी

1732 मे सागर प्रदेश का रानगिर परगना मराठों की राजधानी था। जिसके शासक पंडित गोविंद राव थे। वर्तमान मंदिर पंडित गोविंदराव का निवास परकोटा था। 1760 मे पंडित गोविंद राव की मृत्यु के बाद यह स्थल खण्डहर मे बदल गया। इसी खण्डहर के बीच एक चबूतरा था कुछ सालों बाद इसी चबूतरे पर मां हरसिद्धि देवी जी की मूर्ति स्थापित की गई। बाद मे धीरे-धीरे श्रद्धालुओं ने इस खण्डहर को पुनजीर्वित कर विशाल मंदिर का रूप दिया। वर्तमान मंदिर का निर्माण करीब दो सौ साल पहले हुआ था।

पहाड़ों पर विराजीं रानगिर की हरसिद्धि माता, तीन रूपों में होते हैं भक्तों को दर्शन

रहली के रानगिर में विराजी मां हरसिद्धि तीन रूप में दर्शन देती हैं।  प्रातरू काल मे कन्या, दोपहर में युवा और सायंकाल प्रौढ़ रुप में माता के दर्शन होते है। जो सूर्य, चंद्र और अग्नि इन तीन शक्तियों के प्रकाशमय, तेजोमय तथा अमृतमय करने का संकेत है।

रानगिर में विराजित मां की लीला अपरंपार है। दिन मे तीन प्रहरों मे मां तीन रूप में दर्शन देती हैं। सूर्य की प्रथम किरणों के समय मां बाल रूप में दर्शन देती हैं तो  दोपहर बाद  युवा रूप में एवं शाम के  वृद्धा दर्शन देती हैं। परिवर्तित हेने वाले मां की छवि में श्रद्धालु अपने आस्था और श्रद्धा मां के चरणो मे समर्पित कर धन्य हो जाते हैं। मां महिमा अपरंपार हैं भक्त जो भी मनोकामना लेकर आते हैं मां उसे अवश्य ही पूर्ण करती हैं।मां की यह प्रतिमा अति प्राचीन है।  प्रतिमा के साथ छोटी मूर्ति भी बनी हुई है जो किसी सेवक के लिए इंगित करती है। हरसिद्धि का भावार्थ पार्वती देवी ही है। हर का अर्थ महादेव और सिद्धि का अर्थ प्राप्ति है।

 आधुनिक झूला पुल का हो रहा निर्माण

रानगिर सिद्ध क्षेत्र में पर्यटन एवं श्रृद्धालुओं की सुविधा को देखते हुए आधुनिक झूला पुल का निर्माण कराया जा रहा है। यह पुल रहली और सुरखी को जोड़ेगा जिससे यहाँ अवागमन बढ़ेगा। रानगिर में शासन के द्वारा अनेक विकास कार्य किये जा रहे हैं जिसमें फोरलाईन से पक्की सड़क, मंदिर परिसर, सीसी रोड, देहार नदी पर नवीन पुल आदि प्रमुख निर्माण एवं जीर्णाेद्धार कार्य किये जा रहे हैं अपनी प्रसिद्धि एवं भक्तों के अटूट विश्वास के कारण रानगिर बुंदेलखंड का प्रसिद्ध तीर्थ क्षेत्र बन गया है।


माता के दरबार में पहुंचने के लिए

देहार नदी के पूर्व तट पर घने जंगलों एवं सुरम्य वादियों के बीच स्थित हरसिद्धि माता के दरबार में पहुंचने के लिए जिला मुख्यालय सागर से दो तरफा मार्ग है। सागर, नरसिंहपुर नेशनल हाइवे पर सुरखी के आगे मार्ग से बायीं दिशा में आठ किलोमीटर अंदर तथा दूसरा मार्ग सागर-रहली मार्ग पर पांच मील नामक स्थान से दस किलोमीटर दाहिनी दिशा में रानगिर स्थित है। मेले के दिनों में सागर, रहली, गौरझामर, देवरी से कई स्पेशल बस दिन-रात चलती हैं। दोनों ओर से आने-जाने के लिए पक्की सड़कें हैं। निजी वाहनों से भी लोग पहुंचते हैं।


मिनी मैहर के नाम से प्रसिद्ध है टिकीटोरिया : पहाड़ी की चोटी पर विराजी हैं जगदम्बा 

सागर जिले के रहली के नजदीक टिकीटोरिया पहाड़ी पर विराजी मां शेरावाली के दरबार को मिनी मैहर के नाम से जाना जाता है, यहां पर माता के दरबार में आने वाले भक्तों की मुरादें मां पूरी करती है। रहली जबलपुर रोड पर रहली से 5 किमी दूर स्थित टिकीटोरिया पहाड़ी पर विराजमान मां सिंहवाहिनी के इस मंदिर को मिनी मैहर के नाम से जाना जाता है।

टिकीटोरिया माता मंदिर का इतिहास

अज्ञात है मां सिंहवाहिनी के मंदिर निर्माण की कहानी पर इंतिहास एवं किवदंतियों के अनुसार टिकीटोरिया का मन्दिर मराठाकालीन है। पं गोपालराव और रानी लक्ष्मीबाई के द्वारा सन् 1732 से 1815 में मध्य निर्मित हुआ तब यहां पत्थर की मूर्ति स्थापित की गई थी। इस मन्दिर की भी प्राचीन मूर्ति अन्य मन्दिरों की प्राचीन मूर्तियों के भांति विदेशियों के द्वारा खण्डित कर दी गयी थी। जिससे वह मूर्ति नर्मदा नदी में विसर्जित करने के उपरान्त पुनः मां दुर्गा जी की मूर्ती सन् 1968 में ग्राम बरखेडा के अवस्थी परिवार श्रीमती द्रौपदी मातादीन अवस्थी के द्वारा स्थापित कराई गई। वर्तमान में टिकीटोरिया के मुख्य मंदिर में अष्टभुजाधारी मां सिंगवाहिनी की नयनाभिराम प्रतिमा है। लगभग 30 से 35 साल पहले यहां पहाड़ काटकर मिट्टी की सीढ़ियां बनायी गयी थीं फिर पत्थर रख दिये गये और जीर्णाेद्धार समिति का गठन किया गया। वर्तमान में जनसहयोग से मंदिर में ऊपर तक जाने के लिए 365 सीढ़ियां हैं। माता के भक्तों द्वारा दिये गए दान से यहां संगमरमर की सीढ़ियों का निर्माण किया गया हैैं। इसके अलावा यहां विभिन्न धार्मिक आयोेजन, विवाह आदि के लिए धर्मशालाएं भी हैं जो विभिन्न समाज समितियों द्वारा बनवायी गयी हैं।


मंदिर परिसर एक नजर में

टिकीटोरिया के मुख्य मंदिर के सामने ही ऊंचाई पर शंकर जी का मंदिर बना है तथा मंदिर के दाहिनी ओर से एक गुफा है जिसमें राम दरबार तथा पंचमुखी हनुमान जी की विशाल प्रतिमा है। अंनतेश्वर मंदिर है जो पूरा संगमरमर का बना हुआ है। मंदिर के पीछे यज्ञशाला और भैरव बाबा का मंदिर भी है।  मान्यता के अनुसार टिकीटोरिया में मां भवानी के दरबार में आकर मांगी गई हर मन्नत पूरी होती है।



 प्रकृतिक सुन्दरता समेटे हुए है मंदिर परिसर


टिकीटोरिया का पहाड़ सागौन के वृक्षों से भरा हुआ है। मंदिर पहाड़ी के ऊपर होने के कारण यह पहाड़ सिद्ध क्षेत्र होने के साथ-साथ प्राकृतिक सौंदर्य से भरा हुआ है, पूरी पहाड़ी सागौन, बबूल, पलास, नीम एवं अन्य छायादार एवं फलदार वृक्षों से आच्छादित है। टिकीटोरिया मन्दिर पहाडी के नीचे एक तालाब भी बना हुआ है जिसे लोग रामकुंड के नाम से जानते हैं।

मां भवानी के दरबार में पूरी होती है भक्तों की मनोकामनाएं


ऐेंसी मान्यता है कि टिकीटोरिया मंदिर में आने वाले भक्तों की सारी मनोकामनाएं माता पूरी करतीं हैं दरबार की इसी ख्याती के कारण माता के दरबार पर नवरात्रों पर मेला लगता है। मेले के अवसर पर अनेक लोग अपने परिवार के साथ आते हैं। लोगों मनोकामना पूरी होने के बाद वे मां भवानी के दरबार में उपस्थिति देते है। ऐसी मान्यता है कि मां शेरावाली के दरबार में संपत्ति ही नही संतान की भी प्राप्ति होती है। मां के दरबार में लोग रोते रोते आते है हंसते हंसते जाते है।

 बुंदेलखंड का पहला रोप वें स्वीकृत

दो दशक पहले यहां केवल पहाड़ी पर मां जगदंबा का मंदिर था और सीढ़ियाँ भी नही थी, मंदिर तक जाने के लिए भक्तों को काफी मशक्कत करनी पढती थी लेकिन अब काफी जीर्णाेद्धार हो गया हैं। तत्कालीन पीडब्ल्यूडी मंत्री गोपाल भारत के प्रयासों से सिद्ध धाम टिकिटोरिया बुंदेलखंड का पहला रोप-वे लगने वाला है जिससे यहाँ आने वाले श्रद्धांलुओं को और भी सहूलियत होगी।

टिकीटोरिया माता मंदिर कैसे  पहुंचे

टिकीटोरिया मंदिर एक प्रसिद्ध मंदिर है। यह मंदिर सागर जिले की रहली तहसील में स्थित है। यह मंदिर जबलपुर सागर राजमार्ग में स्थित है। टिकीटोरिया मंदिर में पहुंचना बहुत ही आसान है, क्योंकि यह मंदिर जबलपुर और सागर हाईवे पर स्थित है। सागर अथवा जबलपुर से आप बड़ी ही आसानी से अपने निजी वाहन द्वारा अथवा सार्वजनिक यात्री बस इत्यादि के द्वारा आसानी से पहुंच सकते हैं।


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एडिटर: विनोद आर्य
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