मध्यप्रदेश उर्दू अकादमी द्वारा सागर में "सिलसिला" के तहत पंडित ज्वाला प्रसाद ज्योतिषी को समर्पित स्मृति प्रसंग एवं रचना पाठ आयोजित

मध्यप्रदेश उर्दू अकादमी द्वारा सागर में "सिलसिला" के तहत पंडित ज्वाला प्रसाद ज्योतिषी को समर्पित स्मृति प्रसंग एवं रचना पाठ आयोजित


तीनबत्ती न्यूज : 07 अक्टूबर,2024

सागर : मध्य प्रदेश उर्दू अकादमी, संस्कृति परिषद, संस्कृति विभाग के तत्त्वावधान में ज़िला अदब गोशा, सागर के द्वारा सिलसिला के तहत प्रसिद्ध साहित्यकार एवं समाजसेवी पंडित ज्वाला प्रसाद ज्योतिषी को समर्पित स्मृति प्रसंग एवं रचना पाठ का आयोजन एक होटल में ज़िला समन्वयक और मशहूर युवा शायरआदर्श दुबे के सहयोग से किया गया।

उल्लेखनीय है कि "मध्यप्रदेश के विभिन्न जिलों में आयोजित होने वाले इन कार्यक्रमों का उद्देश्य स्थानीय विभूतियों के योगदान को नई पीढ़ी के समक्ष लाना है। सागर से सम्बन्ध रखने वाले पंडित ज्वाला प्रसाद ज्योतिषी ऐसे ही महान साहित्यकार एवं समाजसेवी थे जिनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व दोनों से हमें प्रेरणा लेने की ज़रूरत है।" 

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सागर ज़िले के समन्वयक आदर्श दुबे ने बताया कि सिलसिला के तहत स्मृति प्रसंग एवं रचना पाठ का आयोजन हुआ जिसकी अध्यक्षता सागर के वरिष्ठ शायर अशोक मिज़ाज बद्र ने की  कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथियों के रूप में भोपाल के उस्ताद शायर शाहिद सागरी, डॉ अनीस काशिफ़ और सुरेश जैसवाल (सीहोर) मंच उपस्थित रहे। इस सत्र के प्रारंभ में  प्रसिद्ध साहित्यकार एवं समाजसेवी पंडित ज्वाला प्रसाद ज्योतिषी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर सागर के साहित्यकार आशीष ज्योतिषी ने पंडित ज्वाला प्रसाद ज्योतिषी व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डाला और उनके जीवन और साहित्य  से जुडे कई अनछुए पहलु साझा किये  उन्होंने बताया कि देश के स्वाधीनता संग्राम में लड़ते हुए उन्हें जेल भी जाना पड़ा और उन्होंने में जेल में रहकर कविताएं लिखीं...जनम जनम के हैं हम बाग़ी लिखी बग़ावत भाग्य हमारे जेलों में ही कटी जवानी ऐसे ही कुछ पड़े सितारे

रचना पाठ में जिन शायरों ने अपना कलाम पेश किया उनके नाम और अशआर निम्न हैं :

अशोक मिज़ाज बद्र  

उस ज़माने में जुदाई का तसव्वुर ही न था 

आप के साथ मेरी एक भी तस्वीर नहीं 

शाहिद सागरी

यक़ीनन आपका पैग़ाम होगा

खुली छत पर कबूतर बोलता है

डॉ अनीस खान काशिफ़

सब के दिल की प्यारी आंख 

जैसे   राजकुमारी  आंख 

सुरेश जैसवाल अहम 

होने को वक़्त जुदा आया 

ज़मी पे याद ख़ुदा आया।

वृन्दावन राय सरल

कच्चे फलों से छीन ली जीने की आरज़ू 

मौसम का इंतज़ार किसी ने नहीं किया 

अरुण दुबे 

शरीफों की नहीं अब पूछ कोई

गुनहगारों की अब इज़्ज़त तो देखो  

मोहम्मद शरीफ़ 

दिल हैं हमारे अब तो कैसे ये जल रहे हैं 

जैसे कि ज़ख्म ताज़े बरसों से पल रहे हैं 

ईश्वर दयाल गोस्वामी 

ये  अमीरी  कि   शे'र  कहने  को,

लफ्ज़ आते हैं ख़ुद-ब-ख़ुद चलकर ।

अबरार अहमद

बेटी को बोझ कहते हैं वो जानते नहीं ।

बरकत इन्हीं के दम से हमारे घरों में है ।।

क्रांति जबलपुरी 

मालिक मेरे उरूज को ऐसा कमाल दे। 

पत्थर की आंख से भी जो आंसू निकाल दे

शफ़ीक़ अनवर

नफ़रतों ने मिटा दिया हमको।

नफ़रतें अब हमें मिटाना है।।

प्रभात कटारे 

जिनकें नइयां फ्रेंड गुरु   

मस्ती सब दी एन्ड गुरु

भानु प्रताप सिंह

क्या तेरी अदालत है क्या तेरी ज़मानत है

खोल दे ज़रा पट्टी ज़िंदगी बिखरती है

सुल्तान ख़ान

रख सोच अपनी खुशदिल क्यों है तू अश्कबार

तू ज़िन्दगी बना ले मानिंद ए आबशार 

मुकेश रहबर

नज़र से भी उतारा जा रहा है 

ये दिल चाहत में मारा जा रहा है 

आमीन अली

मत लगा इस पे पहरे पहरेदार की तरह

मुहब्बत आम होनी चाहिए खुले बाज़ार की तरह ।।

नईम माहिर 

अपनी हिम्मत को हम आज़माते रहे।

चोट खाते रहे मुस्कुराते रहे ।।

कार्यक्रम का संचालन वरुण प्रधान द्वारा किया गया। कार्यक्रम के अंत में ज़िला समन्वयक आदर्श दुबे ने सभी अतिथियों, रचनाकारों एवं श्रोताओं का आभार व्यक्त किया।


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एडिटर: विनोद आर्य
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