महेंद्र फुसकेले स्मृति पर अलंकृत हुए हरगोविंद विश्व

महेंद्र फुसकेले स्मृति पर अलंकृत हुए हरगोविंद विश्व


तीनबत्ती न्यूज : 14 अक्टूबर, 2024

सागर: प्रगतिशील लेखक संघ सागर इकाई द्वारा महेन्द्र फुसकेले स्मृति साहित्य अलंकरण 2024 समारोह एवं  महेन्द्र फुसकेले स्मरण आयोजित हुआ।महेन्द्र फुसकेले स्मृति साहित्य अलंकरण 2024 से लोकगायक, कवि श्री हरगोविंद विश्व को शॉल श्रीफल, स्मृति चिन्ह, सम्मान पत्र एवं सम्मान निधि भेंट करते हुए सम्मानित किया।

नही रही तीनबत्तिया...

इस मौके पर वरिष्ठ साहित्यकार लेखक कैलाश तिवारी 'विकल' ने कहा कि महेन्द्र फुसकेले रूढ़ियों को तोड़कर धनात्मक पक्ष में खड़े होने वाले व्यक्तित्व के धनी थे। उनके लेखन में बुंदेली अंचल का सांप्रदायिक सौहार्द, प्रेम, त्याग और जनहित संघर्ष की गाथा के चित्र दर्ज हैं। उनकी दृष्टि में मूल्यों और विचारों की एकता है। यह उनके निबंधों को पढ़ने से स्पष्ट भी होता है ।फुसकेले जी की वर्णनात्मक शैली को बताते हुए विकल जी ने आगे कहा फुसकेले जी ने लिखते हैं मुंशी सुन्दर लाल जैन, परमानंद स्वर्णकार, वैद्य रामसेवक दुबे, जैसे सैकड़ों स्वतंत्रता सेनानियों की कर्मभूमि तीन बत्ती रही है। अब न रहा वह झिरना, न रहा रूसिया होटल, न रहा वह युनिवर्सिटी रेस्टोरेंट,न रही म्यूनिसिपल हाई स्कूल की सोशल गेदरिंग, न रहे वे कवि सम्मेलन- मुसायरा, न रहे शास्त्रीय गायक रिंगे साहब, अलगोजा बजाने वाला बल्लू बरौआ, न रहे हारमोनियम सुधारने और बेचने वाले कन्हैया लाल तथा काश्मीरी बट साहब जो हारमोनियम सुधारते थे और सांप पकड़ते थे, सांप खाते भी थे। अजगर सांपों के साथ सड़क किनारे मजमा लगाकर बिच्छू-सांप-गुहेरा काटने की और जले कटे की दवा बेचने वाला सत्तार खाँ नहीं रहा। सड़क किनारे दरी बिछाये मुफ्त आसन दिखाने वाला, पेट को मथानी की तरह चलाकर दिखाने वाला बाबा रामदास जोगी भी न रहा। जमुना मिठया, हबीब दर्जी, हुसैन दर्जी, बेनी तथा मुल्ला पान वाला, डॉ. गौर, गुप्ता ग्रामोफोन वाले भी न रहे। वे हिन्दू भी न रहे जो मुहर्रम में ताजिया और बुराक बनाते थे। वे मुसलमान भी न रहे जो काली उत्सव में शरीर रँगवाकर शेर बनकर देवी के समक्ष एवं सड़क पर नाचते थे। फन्नूसा कुआं के पास चाट का खोमचा लगाने वाला रम्मू पंडित भी न रहा। इन सबसे तीन बत्ती थी, ये सब तीन बत्ती से थे। वह तीन बत्तियां भी नहीं रहीं।


डॉ गजाधर सागर ने कहा कि महेन्द्र फुसकेले जी मजदूरों, शोषितों और निचले तबके की समस्याओं को उजागर करने वाले अग्रणी नेता और साहित्यकार थे, सागर नगर में यूँ तो और भी किरदार इस सोच के रहे हैं पर फुसकेले सबसे अग्रणी रहे हैं। बचपन से मैंने उन्हें देखा है मनन किया है। मुहल्ले के नाते सदैव बड़े भाई के नाम से ही सम्बोधित किया है।एक साहित्यकार के रूप में भी फुसकेले जी ने मध्यम और निम्न वर्ग की समस्याओं और सच्चाई पर खूब लिखा। कहानी, निबन्ध, उपन्यास और समाचार पत्रों में स्तम्भ लिखे जो पठनीय रहे।

टीकाराम त्रिपाठी ने कहा-श्री फुसकेले ने बुन्देलखण्ड के प्रति प्रेम प्रदर्शित करने के लिए आल्हा का गायन बीड़ी मजदूरों के अपने धरना प्रदर्शन आन्दोलन के अवसर पर कराया है, फुसकेले जी के लेखन की विषय वस्तु में प्रकृति है, पर्यावरण है, मानवीय संबंध है।वे साहित्यकार ही नहीं अपितु साहित्यकारों के कुशल मार्गदर्शक थे।



कार्यक्रम की मुख्य अतिथि-डॉ सुश्री शरद सिंह ने कहा कि स्त्रियों के जीवन की तमाम त्रासदियां किसी से छिपी नहीं हैं लेकिन उन्हें खुल कर रेखांकित करने का साहस विरलों में ही होता है। यह साहस महेन्द्र फुसकेले जी में कूट-कूट कर भरा हुआ था। एक साहित्यकार के रूप में, एक कवि के रूप में और एक अधिवक्ता के रूप में वे पहले मनुष्यत्व की दृष्टि से देखते थे फिर कोई निर्णय लेते थे। इस बात के एक नहीं, अनेक उदाहरण हैं। आज भी लोग उनके संस्मरण सुनाते हुए कई ऐसी घटनाओं की चर्चा करते हैं जिनसे उनके मानवीय मूल्यों को बाखूबी समझा जा सकता है। महेन्द्र फुसकेले जी और मैं हम दोनों परस्पर एक-दूसरे के स्पष्टवादी लेखन और स्त्रीविमर्श के विचारों के प्रशंसक थे। मेरे पहले उपन्यास ‘‘पिछले पन्ने की औरतें’’ पर कुछ लोगों द्वारा यह आक्षेप लगाया गया कि उसमें अश्लीलता है, तब फुसकेले जी ने विश्वविद्यालय में आयोजित एक कार्यक्रम में यह कहा था कि ‘‘शीलता और अश्लीलता सोचने वाले के दिमाग की उपज होती है। एक स्त्री साड़ी पहनी हुई है, किन्तु यदि कोई उसकी पांच मीटर साड़ी के बजाए उसकी चार इंच खुली कमर को देख रहा है तो इसका मतलब है कि उसकी सोच में अश्लीलता भरी हुई है। सत्य को अश्लील करार दे कर नकारना खुद के पांव पर कुल्हाड़ी मारने के समान है।’’
अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ साहित्यकार लेखक लक्ष्मीनारायण चौरसिया ने अपने उद्बोधन में सभी के विचारों पर अपने विचार व्यक्त किए और सभी वक्ताओं की भूरि भूरि प्रसंशा की, श्री फुसकेले के प्रकाशित सम्पूर्ण साहित्य पर अपने विचार व्यक्त किए।

अतिथियों का हुआ स्वागत
प्रलेस इकाई अध्यक्ष द्वारा स्वागत भाषण के साथ ही मंचासीन अतिथियों, द्वारा पुष्पांजलि से कार्यक्रम की शुरुआत हुई। तत्पश्चात् मंचासीन अतिथियों का प्रलेस के महासचिव एडवोकेट पेट्रिस फुसकेले,अरुण दुबे, वीरेन्द्र प्रधान, सुश्री सुमन झुड़ेले ने स्वागत किया।
आयोजक संस्था एवं अतिथियों व फुसकेले जी के परिजनों अशोक फुसकेले प्रोफेसर नरेन्द्र जैन, श्रीमती रजनी जैन द्वारा महेन्द्र फुसकेले स्मृति साहित्य अलंकरण 2024 से लोकगायक, कवि श्री हरगोविंद विश्व को शॉल श्रीफल, स्मृति चिन्ह, सम्मान पत्र एवं सम्मान निधि भेंट करते हुए सम्मानित किया।


डॉ नलिन जैन ने सम्मान पत्र का वाचन किया डॉ नम्रता फुसकेले ने हरगोविंद विश्व के जीवन परिचय का वाचन किया। और हरगोविंद विश्व ने अपने उद्बोधन में संस्था के प्रति आभार व्यक्त किया, साथ ही मधुर कंठ से लोकगीत गायन और उस गीत की पूर्ण व्याख्या की तो समस्त सदन भाव विभोर हो उठा।

स्मारिका का विमोचन

श्री फुसकेले जी की स्मृति में प्रतिवर्ष  प्रलेस सागर इकाई द्वारा एक स्मारिका का प्रकाशन किया जाता है इस वर्ष कवि लेखक मुकेश तिवारी द्वारा संपादित स्मारिका का विमोचन व मुकेश तिवारी का सम्मान मंचासीन अतिथियों व उमाकांत मिश्र, पूर्व विधायक सुनील जैन, डॉ मनीष झा, सुकदेव तिवारी द्वारा किया गया।

इस अवसर पर जिला अधिवक्ता संघ सागर से एडवोकेट जितेन्द्र सिंह राजपूत, राजेश पांडेय, वीरेन्द्र सिंह राजपूत डॉ अंकलेश्वर दुबे, संजय गुप्ता, सैयद नजीर, विजय सरवटे विनीत ताम्रकार, आर के पांडेय ने हरगोविंद विश्व जी का सम्मान किया।

ये रहे मोजूद

डॉ श्याम मनोहर सीरोठिया, प्रोफेसर जी एल पुणतांबेकर, प्रोफेसर सरोज गुप्ता, के के सिलाकारी, एकता समिति के चंपक भाई जैन भ्रात संघ से अशोक साहू, अजीत मलैया, अशोक पिडरुआ, साहित्यकार अशोक मिजाज बद्र, दिनेश साहू, के एल तिवारी अलबेला,  वृन्दावन राय सरल, कमल सोनी, पूरन सिंह राजपूत , डॉ एम के खरे, ममता भूरिया, आर के तिवारी, परमानंद अहिरवार, डा विनोद तिवारी, ज्योति झुड़ेले आदि की उपस्थिति उल्लेखनीय रही।अंत में प्रलेस के प्रांतीय सचिव श्री पी आर मलैया ने उपस्थित समस्त साहित्यानुरागियों और श्रोताओं सहित सभी का आभार ज्ञापित किया।

             
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एडिटर: विनोद आर्य
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+91 94244 37885
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