Pitru Paksha 2024: शुरू होने वाले हैं पितृ पक्ष, जानें कितने प्रकार के होते हैं पितृ : किन चीजों का रखे ध्यान
तीनबत्ती न्यूज : 15 सितम्बर ,2024
पितृ पक्ष की शुरुआत हर साल भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से होती है। तर्पण, श्राद्ध, पिंडदान आदि। पितृ पक्ष के 15-16 दिनों के बाद पितरों के सम्मान में तर्पण, श्राद्ध, पिंडदान आदि किया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, पितृ पक्ष के दौरान पितर पृथ्वी पर आते हैं। तर्पण, श्राद्ध आदि सभी प्रसन्न या असंतुष्ट पितरों के लिए किया जाता है। पितृ दोष से पीड़ित लोग पितृ पक्ष के दौरान इससे छुटकारा पाने के उपाय भी कर सकते हैं। पितृ पक्ष में तर्पण, श्राद्ध आदि की 16 तिथियां होती हैं। प्रत्येक पूर्वज की अपनी-अपनी निश्चित तिथि होती है जिस दिन उनके लिए तर्पण, श्राद्ध आदि किया जाएगा। जिनकी मृत्यु की तारीख अज्ञात होती है उनके लिए भी अमावस्या की तिथि तर्पण के लिए शुभ मानी जाती है। आइए जानते हैं कि पितृ पक्ष कब है और कितने परकर पितर होते हैं।
2024 में श्राद्ध पक्ष कब है?
इस वर्ष का पितृ पक्ष 17 सितंबर को भाद्रपद पूर्णिमा तिथि से शुरू हो रहा है। इस दिन श्राद्ध पूर्णिमा रहेगी। पितृ पक्ष 2 अक्टूबर को सर्व पितृ अमावस्या या आश्विन अमावस्या के दिन समाप्त होता है। कुछ में तिथियों का अंतर के चलते 18 सितम्बर से शुरुआत हो रही है।
श्राद्ध मुहूर्त
हिंदू पंचांग के अनुसार, भाद्रपद माह की पूर्णिमा तिथि का आरंभ 17 सितंबर को प्रातः 11 बजकर 44 मिनट से शुरू होगा। पूर्णिमा तिथि का समापन 18 सितंबर को सुबह 8 बजकर 4 मिनट पर होगा। श्राद्ध संपन्न करने के लिए कुतुप, रौहिण मुहूर्त अच्छा माना गया है।
कुतुप मूहूर्त - प्रातः 11:51 से दोपहर 12:40
रौहिण मूहूर्त - दोपहर 12:40 से 13:29
अपराह्न काल - 13:29 से 15:56
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श्राद्ध की प्रमुख तिथियां
पितृ पक्ष प्रारंभ, पूर्णिमा का श्राद्ध- 17 सितंबर
प्रतिपदा तिथि का श्राद्ध (पितृपक्ष आरंभ)- 18 सितंबर
द्वितीया तिथि का श्राद्ध- 19 सितंबर
तृतीया तिथि का श्राद्ध- 20 सितंबर
चतुर्थी तिथि का श्राद्ध- 21 सितंबर
पंचमी तिथि का श्राद्ध- 22 सितंबर
षष्ठी और सप्तमी तिथि का श्राद्ध- 23 सितंबर
अष्टमी तिथि का श्राद्ध- 24 सितंबर
नवमी तिथि का श्राद्ध- 25 सितंबर
दशमी तिथि का श्राद्ध- 26 सितंबर
एकादशी तिथि का श्राद्ध- 27 सितंबर
द्वादशी तिथि का श्राद्ध- 29 सितंबर
त्रयोदशी तिथि का श्राद्ध- 30 सितंबर
चतुर्दशी तिथि का श्राद्ध- 1 अक्टूबर
सर्व पितृ अमावस्या, पितृ पक्ष समाप्त- 2 अक्टूबर
कितने प्रकार के होते हैं पितर
शास्त्रों के अनुसार चंद्रमा के ऊपर एक और लोक है, जिसे पितरों का लोक माना जाता है। पुराणों के अनुसार पितरों को दो भागों में बांटा गया है। एक हैं दिव्य पितर और दूसरे हैं मनुष्य पितर। दिव्य पितर मनुष्य और जीवित प्राणियों के कर्मों के आधार पर उनका न्याय करते हैं। अर्यमा को पितरों का मुखिया माना जाता है और उनके न्यायाधीश यमराज हैं।
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पितरों को कैसे मिलता है भोजन ?
पुराण कहते हैं कि पितर गंध और स्वाद के तत्वों से प्रसन्न होते थे। दूसरी ओर, शांति के लिए जातक जब जलते हुए उपले (गाय के गोबर से बने कंडे) में गुड़, घी और अन्न अर्पित करते हैं तो गंध पैदा होती है। वे इसी गंध से भोजन करते हैं।
पितृ पक्ष में पितरों को जल कैसे दें ?
पितरों को जल अर्पित करने की विधि को तर्पण कहा जाता है। कुश लें, हाथ जोड़ें और जिन्हें अर्पित करें उनका ध्यान करते हुए इस मंत्र का जाप करें ‘ॐ आगच्छन्तु में पितर एवं ग्रहन्तु जलान्जलिम’" अब इसे धीरे-धीरे अपने अंगूठे का उपयोग करते हुए 5-7 या 11 बार जमीन पर चढ़ाएं। ऐसा माना जाता है कि अंगूठों से जल देने से ही पितर संतुष्ट हो जाते थे।
पितृ पक्ष में क्या रखे ध्यान
ज्योतिषाचार्य पंडित अनिल पांडेय के अनुसार पितृपक्ष में वास्तु शास्त्र के अनुसार कुछ विशेष बातों का ध्यान रखना आवश्यक होता है ताकि घर में सकारात्मक ऊर्जा बनी रहे और पितरों की कृपा प्राप्त हो। यहाँ पितृपक्ष में वास्तु शास्त्र से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें दी गई हैं:
घर की सफाई और शुद्धिकरण
पितृपक्ष में घर के हर कोने की अच्छी तरह सफाई करें, खासकर घर के उत्तर-पूर्व दिशा (ईशान कोण) की। गंदगी और धूल को हटाएं क्योंकि यह नकारात्मक ऊर्जा का स्रोत हो सकती है।
शुद्धिकरण: घर में गंगा जल या गौमूत्र का छिड़काव करें। इसके अलावा, धूप, कपूर, या लोबान जलाकर घर में शुद्धि करें। इससे नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और सकारात्मक वातावरण बनता है।
पितरों का स्थान
उत्तर दिशा में स्थान : पितरों की तस्वीरें या उनकी पूजा के लिए स्थान घर के उत्तर दिशा में होना चाहिए, क्योंकि यह दिशा पितरों के लिए शुभ मानी जाती है।
दीपक और अगरबत्ती : प्रतिदिन शाम के समय पितरों के स्थान पर दीपक जलाएं और अगरबत्ती लगाएं। इससे वातावरण शुद्ध और सकारात्मक रहता है।
प्रकाश और वेंटिलेशन
-प्राकृतिक प्रकाश : घर में पर्याप्त प्राकृतिक प्रकाश और हवा का प्रवाह सुनिश्चित करें। घर के अंदरुनी हिस्सों में रोशनी की कमी न होने दें, खासकर पूजा स्थल पर।
खिड़कियां और दरवाजे : सुबह और शाम के समय खिड़कियां और दरवाजे खोलें ताकि ताजगी और सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह हो सके।
वास्तु दोष निवारण
घर में यदि कोई वास्तु दोष हो, तो उसे पितृपक्ष के दौरान निवारण करने का प्रयास करें, जैसे कि टूटा हुआ सामान, कूड़ा-कर्कट, या बेकार सामान हटाएं।
ध्यान केंद्र : घर में पितरों के लिए एक शुद्ध और शांतिपूर्ण स्थान निर्धारित करें जहाँ नियमित रूप से ध्यान, तर्पण, और पूजा की जा सके।
शांति और साधना का वातावरण
शांति बनाए रखें : घर में शांति और सुकून का माहौल बनाए रखें। परिवार के सदस्यों के बीच विवाद या कलह न होने दें।
ध्यान और मंत्र जाप : नियमित रूप से पितरों के लिए मंत्र जाप और ध्यान करें, खासकर ईशान कोण में बैठकर।
पानी के स्रोत का ध्यान
घर में पानी का स्रोत (जैसे कि नल, टंकी) पवित्र और साफ रखें। पानी का रिसाव या नल का टपकना वास्तु दोष माना जाता है, इसे जल्द ठीक करवाएं।
तर्पण स्थान
उत्तर दिशा की ओर मुख करके करें तर्पण : पितृ पक्ष में तर्पण या पिंडदान करते समय उत्तर दिशा की ओर मुख करके करें, क्योंकि यह दिशा पितरों की मानी जाती है।
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रसोईघर और भोजन
रसोई में साफ-सफाई : रसोई घर को साफ रखें और वहां से आने वाले धुएं और गंध को बाहर जाने दें। अन्न को सम्मान दें और श्राद्ध के भोजन में शुद्धता का विशेष ध्यान रखें।
भोजन का दान : जरूरतमंदों, ब्राह्मणों या गायों को भोजन दान करें। इससे पितरों को संतुष्टि मिलती है।
सकारात्मक चित्र और प्रतीक
घर में पवित्र और धार्मिक प्रतीकों (जैसे ॐ, स्वास्तिक) का प्रयोग करें। इससे सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है। इन सब उपायों से पितृपक्ष में वास्तु शास्त्र के अनुसार घर में सकारात्मकता बनी रहेगी और पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होगा।
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