...कुर्सी का मोह होता तो सारे संघर्ष और जेलों की यातनाएं क्यों सही होतीं... ▪️पूर्व मंत्री भूपेंद्र सिंह ने सोशल मीडिया पर लिखी पोस्ट ... कांग्रेस में जाने का दवाब था..चाहता तो करोड़ों रुपए की जमीन बचा लेता....

 ...कुर्सी का मोह होता तो सारे संघर्ष और जेलों की यातनाएं क्यों सही होतीं...

▪️पूर्व मंत्री भूपेंद्र सिंह ने सोशल मीडिया पर लिखी पोस्ट ... कांग्रेस में जाने का दवाब था..चाहता तो करोड़ों रुपए की जमीन बचा लेता....


तीनबत्ती न्यूज : 29 सितम्बर ,2024

सागर। मध्यप्रदेश की बीजेपी और सरकार के बीच सबकुछ ठीक नही चल रहा है। दो कद्दावर  गोपाल भार्गव और भूपेंद्र सिंह को कार्यक्रमों में उपेक्षा किए जाने की खबरे खूब आ रही है। जानबूझकर उपेक्षा की जा रही है। बीजेपी के पुराने संघर्ष भरे दौर से राजनीतिक जीवन की शुरू करने वाले इन नेताओं का दर्द सोशल मीडिया पर दिख रहा है। रीजनल इंडस्ट्री कांक्लेव को लेकर दोनो दिगाजो ने अपनी पोस्ट लिखी और राजनेतिक सफर पर चर्चा की। ये पोस्ट राजनेतिक हलकों में जमकर चर्चा में है।  दोनो पूर्व मंत्रियों की पोस्ट में पुराने भाजपाइयों अपना सा दर्द महसूस कर रहे है।


पूर्व गृहमंत्री भूपेंद्र सिंह ने यह लिखा

छात्र राजनीति से लेकर विधायक और सांसद तक का चुनाव जीतने वाले और क्षेत्र बदलकर पार्टी के निर्देशों का पालन करने वाले पूर्व मंत्री और खुरई विधायक भूपेंद्र सिंह हाल ही में  रीजनल इंडस्ट्री कांक्लेव की छपी खबरों से उनका मन की व्यथा सामने आई। इस पोस्ट से पुराने भाजपाइयों को अपना दर्द भी दिखा। 

पूर्व गृहमंत्री भूपेंद्र सिंह ने लिखा कि 
"आज एक समाचार पत्र में इस आशय की पंक्तियां पढ़ कर मन व्यथित हुआ जिसमें लिखा गया है कि सागर इन्वेस्टर्स कान्क्लेव के मंच पर अपनी कुर्सी लगवाने के लिए मैंने प्रयास किए या बैठक व्यवस्था से मुझे एतराज था। 

कई दफा गए जेल, झेली यातनाएं

विधायक भूपेंद्र सिंह ने  लिखा कि " संघ और भाजपा मेरे खून में है और इनके अनुशासन का अनुसरण सदैव मैंने किया है। जिसके लिए विगत 45 वर्षों से मैं कार्यकर्ता के रूप में काम कर रहा हूं। इन 45 वर्षों में से लगभग 25 वर्ष ऐसे संघर्षों से भरे थे जिनमें कांग्रेस की सरकार थी। उस समय जनसमस्याओं को लेकर आंदोलनों में पुलिस की लाठियां खाईं, अनेक बार जेलों की यातनाएं सहीं लेकिन संघर्ष का मार्ग नहीं छोड़ा और न ही विचारधारा से समझौता किया। कांग्रेस के सत्ता काल में अपनी पार्टी के लिए छात्र जीवन से ही दरी बिछाने, दीवाल लेखन करने, सड़कों पर जनसमस्याओं को लेकर आंदोलन करने पर बिना किसी अपराध के जेलें काटीं। तब अनेक दिन ऐसे थे जब जेलों में खाना नहीं मिला, कड़ाके की सर्दियों में दरी और कंबल भी नहीं मिले और जेल के ठंडे फर्श पर बैठे-बैठे ही रातें गुजारीं। तब युवावस्था थी जब कांग्रेस सरकार ने मुझे प्रताड़ित करने के लिए एक वर्ष तक लगातार जेल में रखा और इस दौरान 7 बार जेलें बदलीं पर मैं झुका नहीं। पुलिस ने पीटा, दर्जनों झूठे मुकदमे लगाए।

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कांग्रेस में शामिल होने डाला गया दवाब

उन्होंने लिखा कि "मुझे स्मरण आता है कि मुख्यमंत्री श्री अर्जुन सिंह जी के सागर आगमन पर छात्र आंदोलन हुआ तब उसमें सक्रिय हिस्सा लेने के प्रतिशोध में हमारे परिवार की बहुत सारी बेशकीमती जमीनों के अधिग्रहण की कार्रवाई शुरू कर दी गई थी। मेरे पूज्य पिता और मुझ पर दबाव डाला गया कि कांग्रेस पार्टी में आ जाएं तो कुर्सी मिलेगी और जमीन का अधिग्रहण भी नहीं होगा।... लेकिन हमने कीमती जमीनों का सरकारी दरों पर अधिग्रहण हो जाने दिया लेकिन विचारधारा त्याग कर कांग्रेस में जाने और कुर्सियां लेने के प्रस्ताव को ठोकर मार दी। हजार करोड़ रुपए से अधिक कीमत की हमारी जमीन पर हाऊसिंग बोर्ड की कालोनियां बना दी गईं। पर आज मैं गर्व और गौरव से कह सकता हूं कि 45 वर्षों से राजनीति में होने और विपरीत समय में प्रताड़ना सहने के बाद भी मेरे भरे पूरे परिवार के एक भी सदस्य ने कुर्सी के मोह में भाजपा के अलावा किसी और पार्टी या विचारधारा को अपने जीवन में स्थान नहीं दिया। किसी सदस्य ने कांग्रेस में जाने का कभी विचार भी मन में नहीं आने दिया। "

वैचारिक वैचारिक दृढ़ता और अनुशासन आज हमारी सर्वश्रेष्ठ पूंजी

भूपेंद्र सिंह के अनुसार। "संघ और भाजपा के प्रति यही वैचारिक दृढ़ता और अनुशासन आज हमारी सर्वश्रेष्ठ पूंजी है। कुर्सियों का मोह हमने तब नहीं किया तो अब कुर्सियों के लिए मोह और समझौते क्या करेंगे! कुर्सियों की चाह मन में होती तो सारे संघर्ष और जेलों की यातनाएं क्यों सही होतीं ?"
 

पूर्व मंत्री गोपाल भार्गव ने लिखा : " राजनीति और पद यदि आपको मान-सम्मान एवं प्रतिष्ठा देते है तो आपसे उससे कई गुना ज्यादा छीन भी लेते हैं।"


मध्यप्रदेश के सबसे सीनियर विधायक और पूर्व मंत्री गोपाल भार्गव एक दफा फिर चर्चा  में है। पूर्वमंत्री अक्सर अपने बेबाक बयानों और कार्यशैली को लेकर मीडिया की सुर्खी में बने रहते है। ताजा मामला अपने नाती पोते को स्कूल लेने के बाद सोशल मीडिया में लिखी पोस्ट है। जिसमे सत्ता के ग्लैमर और उससे हटने के बाद दर्द को लिखा है। लगातार 9 वा चुनाव सागर जिले की रहली विधानसभा से जीतने का रिकार्ड बनाने वाले गोपाल भार्गव  एमपी की  बीजेपी सरकारो में 15 साल मंत्री और नेता प्रतिपक्ष भी रहे है। मोजूदा मोहन यादव सरकार में मंत्री नही बनाया गया है। 
सीएम मोहन यादव का कार्यक्रम बीच में छोड़ा 

मुख्यमंत्री डा मोहन यादव ने कल 27 सितम्बर को सागर रीजनल इंडस्ट्री कांक्लेव का शुभारंभ किया और करीब सात घंटे निवेशकों और मंत्री विधायको के साथ रहे। इस कार्यक्रम में पूर्व मंत्री गोपाल भार्गव मंच पर रहे उनका स्वागत भी हुआ। इसके बाद पूर्व मंत्री मंच से उठाकर चले गए। सीएम मोहन यादव ने जब मंच से उनका नाम लिया तो वह जा चुके थे। गोपाल भार्गव का इस तरह जाना चर्चा का विषय बना ।

कार्यक्रम छोड़ा और पहुंचे स्कूल में : लिखा..सत्ता के ग्लैमर और हटने का दर्द

कद्दावर मंत्री गोपाल भार्गव का इस तरह चले जाने का माजरा उनके अफीशियाल फेसबुक पेज से रात में सामने आया। कार्यक्रम गोपाल भार्गव सागर में एक स्कूल में अपने नाती और पोते को लेने पहुंच गए। इसका जिक्र किया फेसबुक पर किया और दर्द भी सामने आया। 
पूर्व मंत्री गोपाल भार्गव ने लिखा कि 
" भौर होते ही बच्चों को तैयार कर स्कूल छोड़ने तथा बाद में वापिस लाने का आनंद और अनुभव बहुत ही अलग होता है, जिसका आज मुझे पहली बार एहसास हुआ। आज सागर में मुख्यमंत्री जी के कार्यक्रम में मुझे सम्मिलित होना था, सागर के ही एक स्कूल में मेरा नाति आशुतोष पहली कक्षा में पढ़ता है, सुबह स्कूल जाते समय उसने मुझसे कहा "दादू आप सागर जा रहें हैं ? लौटते समय मुझे स्कूल से लेते आना, मैंने कहा ठीक है, समय मिला तो तुम्हे साथ ले आऊंगा, कार्यक्रम से फुर्सत होते ही जीवन में पहली बार बच्चे को लेने स्कूल पहुंचा, स्कूल की छुट्टी होते ही बाहर निकलते मुझे देख आशुतोष मुझसे आकर लिपट गया। 

71 साल में पहला अनुभव :अपने बेटे बेटी के स्कूल नही गए कभी

गोपाल भार्गव ने लिखा कि  " 71 साल के जीवन में यह पहला अनुभव था, क्योंकि मैं कभी अपने पुत्र अभिषेक और तीनो बेटियों को बचपन में एक बार भी कभी स्कूल भेजनें या लेने नहीं गया, न ही कभी साथ घुमाने ले गया, अवकाश या जन्मदिन उस समय कोई जानता ही नहीं था !!
उन्होंने लिखा कि " राजनीति के कठोर धरातल पर चलते हुए परिवार के प्रति मेरी संवेदनाएं लगभग शून्य हो चुकी थी, इस बीच आज एक हल्का सा पारिवारिक एहसास हुआ। मैं सन 1974 में जय प्रकाश जी के सम्पूर्ण क्रांति आंदोलन के माध्यम से राजनीती में आया था तथा इस वर्ष सक्रिय राजीनीति में मुझे पूरे 50 वर्ष हो चुके है। यह भी सही है कि राजनीति और पद यदि आपको मान-सम्मान एवं प्रतिष्ठा देते है तो आपसे उससे कई गुना ज्यादा छीन भी लेते हैं। "
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एडिटर: विनोद आर्य
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