OSHO : 23 मई को पद्माकर भवन में ओशो समारोह, सुख और शांति का मिलन : ओशो के अनुज डॉ. शैलेन्द्र सरस्वती एवं मां अमृत का होगा संबोधन ▪️‘बाहर सुख, भीतर शांति’ विषय पर सत्संग एवं प्रश्नोत्तरी कार्यक्रम

OSHO : 23 मई को पद्माकर भवन में ओशो समारोह, सुख और शांति का मिलन : ओशो के अनुज डॉ. शैलेन्द्र सरस्वती एवं मां अमृत का होगा संबोधन

▪️‘बाहर सुख, भीतर शांति’ विषय पर सत्संग एवं प्रश्नोत्तरी कार्यक्रम

 




तीनबत्ती न्यूज : 19 मई,2024

सागर। मोतीनगर स्थित पद्माकर सभागार में 23 मई को सागरवासी अध्यात्म की गंगा में डुबकी लगा सकेंगे। गुरुवार 23 मई को महान दार्शनिक सद्गुरू ओशो के अनुज डॉ. स्वामी शैलेंद्र सरस्वती एवं मां अमृत प्रिया, ‘बाहर सुख, भीतर शांति’ विषय पर सारगर्भित संबोधन देने सागर पहुंच रहे हैं।

श्री रजनीश ध्यान मंदिर, सोनीपत, हरियाणा से ओशो के अनुज डॉ. स्वामी शैलेंद्र सरस्वती एवं मां अमृत प्रिया 23 मई को संध्या 4.30 बजे से पद्माकर सभागार में ओशो की शिक्षा पर प्रवचन देंगे एवं ध्यान प्रयोग कराएंगे। इस दौरान जिज्ञासुओं के प्रश्नों के उत्तर भी दिए जाएंगे।



सदगुरुओशो सांसारिक सफलता, सुविधा, स्वास्थ्य के संग आंतरिक शांति, प्रीति एवं समाधि को समान रूप से महत्वपूर्ण बताते हैं। संक्षेप में वे इस संश्लेषण को ‘झोरबादि बुद्ध’ कहकर पुकारते हैं। ओशो के अनुसार पूर्व और पश्चिम का मिलन, अर्थात् आध्यात्मिक परंपराओं और सांसारिक गतिविधियों का एकीकरण जरूरी है। जैसे गौतम बुद्ध आत्म-ज्ञान, शांति, प्रेम और करुणा के प्रतीक हैं, वैसे ही ग्रीक शब्द ज़ोरबा भौतिक धन-धान्य और विलासिता का प्रतीक है। सदगुरुओशो ध्यान एवं विज्ञान के संतुलन पर जोर देते हैं, वे पूर्व और पश्चिम, दोनों संस्कृतियों के योगदानों का सामंजस्य चाहते हैं।


सागर विश्वविद्यालय से प्रथम श्रेणी में स्थान प्राप्त किए, स्वामी शैलेंद्र जी ने बताया कि पूरे इतिहास में, मानवता खंडित ढंग से जीती रही है, कुछ भौतिकवादी और कुछ आत्मवादी हो गए। हालांकि, सच्ची पूर्णता इन विपरीत तत्वों के बीच सामंजस्य स्थापित करने में निहित है। 


जबलपुर विश्वविद्यालय से प्रथम श्रेणी में दर्शन शास्त्र में एम. ए. और प्रयाग से संगीत विशारद की उपाधि से विभूषित मां प्रिया जी ने कहा कि आज ध्यान और विज्ञान के संयोजन की सख्त जरूरत है। वैश्विक तबाही से बचने के लिए बाहरी शक्ति के साथ आंतरिक शांति भी होनी चाहिए। अशांत व्यक्तियों का शक्तिशाली होना उतना ही खतरनाक है जितना कि शांत लोगों का अशक्त होना। अपने-आप में दोनों सभ्यताएं अधूरी, अपंग और अस्वस्थ हैं। दोनों के संतुलन से ‘पूर्ण एवं स्वस्थ मनुष्यता’ का जन्म संभव है। 

ओशो संन्यासी स्वामी आनंद जैन ने ओशो फ्रेगरेंस स्पिरिचुअल ग्रुप सागर की अपनी कार्यक्रम आयोजक टीम की ओर से निवेदन किया है कि सभी जिज्ञासुगण अधिक से अधिक संख्या में पधारकर अपनी जिंदगी की शंकाओं का समाधान हासिल करें।

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