ओशो ध्यान साधना शिविर में आध्यात्मिक यात्रा जारी : डा शैलेंद्र सरस्वती और मां अमृत प्रिया ने बताई ध्यान साधना की विधि
तीनबत्ती न्यूज : 24 मई ,2024
सागर : सागर की हेरिटेज होटल में शुक्रवार 24 मई से ओशो की ध्यान पद्धति पर आधारित तीन दिवसीय सुख शांति साधना शिविर की शुरुआत हुई। यह शिविर ओशो फ्रेगरेंस सागर ग्रुप की ओर से आयोजित किया जा रहा है, जिसमें साधना की विधियां बताने खुद ओशो के अनुज स्वामी शैलेंद्र सरस्वती और सद्गुरु मां अमृत प्रिया सागर आए हैं।
सागर में चल रहे ध्यान शिविर में उपस्थित 140 जिज्ञासुओं को ओशो के अनुज, स्वामी शैलेन्द्र सरस्वती जी ने बताया कि जन्म से लेकर मृत्यु तक जो है, उसका नाम जीवन नहीं, बल्कि केवल जीवन का अवसर है। कुछ विरले सौभाग्यशाली ही इस सुअवसर का लाभ उठाकर वास्तविक जीवन को जी पाते हैं। किंतु अधिकांश लोग हजारों वर्षों से धर्म शास्त्रों का अध्ययन एवं चिंतन-मनन तो कर रहे हैं, किंतु उसमें बताए मार्ग पर चल नहीं रहे हैं। जैसे कोई पाक-शास्त्र को पढ़कर उस पर वाद-विवाद करे, बौद्धिक मत-मतांतर की प्रस्तुति और तार्किक बहस करे, मगर रसोई घर में जाकर भोजन न पकाए, पोषक तत्व ग्रहण न करे, तो पेट कैसे भरेगा, जीवन कैसे चलेगा? कुछ ऐसी ही दुर्घटना पवित्र ग्रंथों के संग हो गई है। जन्म से हमें सिर्फ बीज रूपी जिंदगी मिलती है। उसे अंकुरित, विकसित, पल्लवित, पुष्पित होने के लिए अनुकूल स्थितियों को जुटाना ही अध्यात्म की साधना है।
गुरुमाँ अमृत प्रिया जी ने समझाया कि सभी संतों के मतानुसार मनुष्य की जिंदगी संवारने का सार-सूत्र हैः ध्यान और भक्ति। शिविर में सुबह 7 बजे से लेकर रात 8 बजे तक 5 ध्यान प्रयोग प्रतिदिन होते हैं। जीवन केन्द्रित धार्मिकता सिखाने वाले सदगुरु ओशो की दृष्टि में जिंदगी को बेहतर, रसपूर्ण, ज्यादा सुंदर बनाने के लिये विज्ञान व आत्मजान, भौतिकवाद व अध्यात्मवाद का समन्वय अनिवार्य है। पूरब और पश्चिम का मिलन, गृहस्थ और संन्यस्थ का सुखद संयोग होना चाहिये। धन तथा ध्यान, दोनों का सदुपयोग करके ही हमारे तन-मन-चेतन की लयबद्ध दशा से सुमधुर संगीत उत्पन्न हो सकता है। सच्चिदानंद के परम लक्ष्य को पाने के लिए संसार और समाधि दोनों को साधना जरूरी है।
सदगुरु ओशो कहते हैं कि अतीत में संसार और संन्यास को विपरीत समझा गया था। मैटेरियलिज्म और स्प्रिचुअलिज्म परस्पर विरोधी मानी गई थीं। आधुनिक युग के क्रांतिकारी युग-पुरुष ओशो ने पहली बार बताया कि शक्ति और शांति में दुश्मनी नहीं है, वे परिपूरक हैं। इंसान को दोनों की जरूरत है। हमें भौतिक तल पर सुख, सुविधा, स्वास्थ्य एवं संपन्नता चाहिये। मानसिक तल पर विचारशीलता, चिंतन-मनन की क्षमता, आविष्कारक बुद्धि और विवेक जरूरी है। भावनात्मक रूप से कला, सृजनशीलता, सदभावना, प्रेम, मित्रता, करुणा एवं अनुग्रहभाव आवश्यक है। तथा, आत्मिक आयाम में ध्यान, समाधि, भक्ति और परम-मुक्ति चाहिये। मानव जीवन के उपरोक्त चारों आयाम जब तक समृद्ध न हों, तब तक कुछ न कुछ अधूरापन रहता है।
शिविर आयोजन में प्रमुख भूमिका निभा रहे स्वामी आनंद जैन ने कहा कि संपूर्ण विश्व में जीवन के प्रति सम्मान तथा ध्यान की प्यास जगाने वाले सदगुरु ओशो, आध्यात्मिक रहस्यों के वैज्ञानिक व्याख्याकार हैं। उनकी 650 किताबें अब तक दुनिया की 50 से अधिक आषाओं में अनुवादित हो चुकी हैं। सागर में तीन दिवसीय ध्यान शिविर में देश के कोने-कोने से पधारे 140 साधक मित्र भाग लेकर अपने जीवन को संवार रहे हैं। सदगुरु ओशो के द्वारा निर्मित ध्यान विधियां सारे विश्व में प्रचलित हो गई हैं। उनके व्याख्यानों में विभिन्न प्रकार के साधकों के लिए अलग-अलग तरह की मेडिटेशन टैक्नीक का वर्णन है। शिविर में प्रयोग करके हर ध्यानी को अपने लिए अनुकूल पद्धति चुन लेनी चाहिए। ध्यान के द्वारा हमारी समझ बढ़ती, मानसिकता बदलती, हृदय में सदभावनाएं जन्मती तथा चेतना में विस्तार होता है। परिणामस्वरूप जीवन में शांति, आनंद, तृप्ति का अहसास और आत्मज्ञान फलित होता है। अशांति के कारणों का ज्ञान होने पर उनसे निवारण पाना सरल हो जाता है।
स्वामी संतोष गुरु ने दो दिन पहले नरयावली में स्वामी शैलेन्द्र सरस्वती और गुरुमाँ अमृत प्रिया जी के कर कमलों से श्री रजनीश ध्यान मंदिर का उदघाटन करवाया है। संतोष जी ने कहा कि ओशो दवारा सिखाई गई जेट-स्पीड विधियों से साधक साधिकाओं की चेतना को उच्च शिखर तक उठने में अनूठी सहायता मिल रही है। जैसे विज्ञान विकसित हुआ है, ठीक वैसे ही भगवान शिव, महर्षि पतंजलि, बुद्ध, महावीर तथा अनेक रहस्यवादी संतों से लेकर ओशो तक आत्मज्ञान पाने की पद्धतियों में भी निरंतर उन्नति हुई है। आश्चर्यजनक सत्य है कि पहले साठ साल की कठिन तपस्या से जंगल-गुफाओं में रहकर जो ज्ञान प्राप्त होता था, अब वह छः दिन की सुख-सुविधापूर्ण सरल सी साधना द्वारा संभव है। नरयावली एवं सागर में ओशो द्वारा प्रस्तावित 'नव-संन्यास' दीक्षा गृहण करने से 50 से अधिक मित्रों के हृदय में साधना का संकल्प घना हुआ। गले में माला धारण करने से ओशो की दिव्य ऊर्जा का अहसास एवं ध्यान के प्रति संकल्प का स्मरण बने रहता है। इस वजह से तीव्रता से आध्यात्मिक प्रगति होती है।
उत्साह दिखा शहरवासियों में
इस साधना से जुड़ने के लिए शहरवासियो में जबरदस्त उत्साह देखा गया। शिविर शुरू होने से चार दिन पहले ही सभी सीटें भर चुकी थीं।शिविर की शुरुआत सुबह 7:00 बजे आचार्य स्वामी आनंद जैन द्वारा कराए गए डायनेमिक मेडिटेशन से हुई। इस ध्यान प्रयोग के जरिए मन में दबी कुंठाओं का रेचन किया जाता है।शनिवार 25 मई को शिविर का दूसरा दिन है। इस दिन भी सुबह 7 से रात 8 बजे तक साधकों को कई ध्यान प्रयोग कराए जाएंगे।
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