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ध्यान और विज्ञान का संगम ही सुख शांति का माध्यम : डॉ. स्वामी शैलेंद्र सरस्वती ▪️ 23 मई को सागर में ओशो समारोह, सुख और शांति का मिलन,भौतिकवाद और आत्मवाद का संगम

ध्यान और विज्ञान का संगम ही सुख शांति का माध्यम : डॉ. स्वामी शैलेंद्र सरस्वती

▪️ 23 मई को सागर में ओशो समारोह, सुख और शांति का मिलन,भौतिकवाद और आत्मवाद का संगम


तीनबत्ती न्यूज : 22 मई,2024

सागर। महान दार्शनिक सदगुरु ओशो के अनुज डॉ. स्वामी शैलेंद्र सरस्वती का कहना है कि वर्तमान में  बढ़ते तनाव और हिंसक होती सोच तेजी बढ़ रही है। अशांति का वातावरण बढ़ रहा है। भारत में भी पश्चिम की बढ़ती सोच ने तनाव और आत्महत्या को बढ़ाया है। पूरी दुनिया में पूर्व और पश्चिम  की धाराएं चल रही है। भारत में ध्यान और धर्म से शांति के वातावरण की विचारधारा रही है। दूसरी तरफ पश्चिम में विज्ञान की तरक्की ने हिंसा और अशांति बढ़ाया है। इन परिस्थितियों में ओशो की विचारधारा से सुख शांति आ सकती है। उन्होंने मीडिया से चर्चा में कहा कि यदि हम ध्यान और विज्ञान का संगम करे तो जीवन में बदाव आ सकता है। उन्होंने भगवान बुद्ध के ज्ञान प्राप्ति पर चर्चा करते हुए बताया कि उन्होंने सांसारिक और तपस्वी जीवन दोनो बिताने बाद समझ में आया कि सोच से शांति है। सांसारिक सुख के चरम के बाद  परिपक्वता से शांति का मार्ग बनता है। उन्होंने कहा कि घर में ध्यान और धर्म की शक्ति और  बाहर वैज्ञानिक चिंतन सफलता का रास्ता है। इस विचार को बढ़ाना होगा। तभी बदलाव आएगा। इस मौके पर मां प्रिया ने कहा कि जीवन में मन में जैसे जैसे शांति का भाव बढ़ेगा वैसे ही सुख का अहसास बढ़ेगा। यदि मन अशांत रहेगा तो अशांति बढ़ेगी। और गलत दिशा में बढ़ेगी।


23 मई को ओशो समारोह, सुख और शांति का मिलन,भौतिकवाद और आत्मवाद का संगम


सदगुरुओशो के अनुसार पूर्व और पश्चिम का मिलन, अर्थात् आध्यात्मिक परंपराओं और सांसारिक गतिविधियों का एकीकरण जरूरी है। जैसे गौतम बुद्ध आत्म-ज्ञान, शांति, प्रेम और करुणा के प्रतीक हैं, वैसे ही ग्रीकज़ोरबा भौतिक धन-धान्य और विलासिता के प्रतीक हैं। सदगुरुओशो ध्यान एवं विज्ञान के संतुलन पर जोर देते हैं, पूर्व और पश्चिम, दोनों संस्कृतियों के योगदोनों का सामंजस्य चाहते हैं। वे सांसारिक सफलता, सुविधा, स्वास्थ्य के संग आंतरिक शांति, प्रीति, समाधि को समान रूप से महत्वपूर्ण बताते हैं। संक्षेप में वे इस संश्लेषण को ‘झोरबादि बुद्ध’ कहकर पुकारते हैं।

श्री रजनीश ध्यान मंदिर, सोनीपत, हरियाणा से ओशो के अनुज डॉ. स्वामी शैलेंद्र सरस्वती एवं मां अमृत प्रिया जी, ‘बाहर सुख, भीतर शांति’ विषय पर सारगर्भित संबोधन देने पधार रहे हैं। 23 मई को संध्या 4 बजे से ओशो की शिक्षा पर प्रवचन एवं ध्यान प्रयोग होंगे। जिज्ञासुओं के प्रश्नों के उत्तर भी दिए जाएंगे।

सागर में की पढ़ाई

सागर विश्वविद्यालय से प्रथम श्रेणी में प्राप्त स्थान प्राप्त किए, स्वामी शैलेंद्र जी ने बताया कि पूरे इतिहास में, मानवता खंडित ढंग से जीती रही है, कुछ भौतिकवादी और कुछ आत्मवादी हो गए। हालांकि, सच्ची पूर्णता इन विपरीत तत्वों के बीच सामंजस्य स्थापित करने में निहित है। ओशो के क्रांतिकारी नजरिये में भौतिकवादी अंधे और आत्मवादी लंगड़े हैं।

पौराणिक कथा में जिस तरह एक अंधा और एक लंगड़ा, परस्पर सहयोग से जलते हुए जंगल में अपनी रक्षा करते हैं, उसी तरह संपूर्ण मानवता को संभावित तीसरे विश्व युद्ध के उभरते खतरे का सामना करने के लिए एकजुट होना चाहिए। लंगड़े व्यक्ति द्वारा निर्देशित दिशा में, अंधा व्यक्ति चले तो दोनों अग्नि से बच सकते हैं।


जबलपुर विश्वविद्यालय से प्रथम श्रेणी में दर्शन शास्त्र में एम. ए. और प्रयाग से संगीत विशारद की उपाधि से विभूषित मां प्रिया जी ने कहा कि आज ध्यान और विज्ञान के संयोजन की सख्त जरूरत है। वैश्विक तबाही से बचने के लिए बाहरी शक्ति के साथ आंतरिक शांति भी होनी चाहिए। अशांत व्यक्तियों का शक्तिशाली होना उतना ही खतरनाक है जितना कि शांत लोगों का अशक्त होना। अपने-आप में दोनों सभ्यताएं अधूरी, अपंग और अस्वस्थ हैं। दोनों के संतुलन से ‘पूर्ण एवं स्वस्थ मनुष्यता’ का जन्म संभव है। आलसी पूरब और अतिकर्मठ पश्चिम के बीच संश्लेषण की तत्काल आवश्यकता है।

ओशो संन्यासी स्वामी आनंद जैन ने ओशो फ्रेगरेंस स्पिरिचुअल ग्रुप सागर की अपनी कार्यक्रम आयोजक टीम की ओर से निवेदन किया है कि सभी जिज्ञासुगण अधिक से अधिक संख्या में पधारकर अपनी जिंदगी की शंकाओं का समाधान हासिल करें।।


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एडिटर: विनोद आर्य
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