जब्तशुदा साहित्य विशेषांक" को प्रकाशित किया जाना सचमुच एक बड़ा काम : राजगोपाल सिंह
▪️ युवा पीढ़ी अपने आदर्श, अपने प्रेरणा पुरुष सोच समझकर चुनें : कर्नल पंकज सिंह
▪️भारत के जब्तशुदा साहित्य पर हुआ गंभीर विमर्श
तीनबत्ती न्यूज : 17 मार्च,2024
सागर: विगत वर्ष उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा अपनी पत्रिका "उत्तर प्रदेश" के "जब्त शुदा साहित्य विशेषांक" को प्रकाशित किया जाना सचमुच एक बड़ा काम था। उसी बहाने इस विषय पर चर्चा करने के लिए सागर आने का संयोग बन पाया। सागर आने की वर्षों से इच्छा रही। कारण 1857 की क्रांति से डेढ़ दशक पूर्व ही इस संभाग ने क्रांति कर देश को ईस्ट इण्डिया कंपनी के राज से मुक्ति दिलाने में अग्रणी भूमिका निभाई थी। आज यहाँ आकर उस धरा को नमन करने का मेरा वह संकल्प पूरा हुआ है। भविष्य में 1842 की इस 'बुंदेला क्रांति' पर विस्तृत और गहन रूप से लिखना मेरी प्राथमिकता में शामिल है। यह बात आगरा से पधारे सुप्रसिद्ध साहित्यकार व इतिहास लेखक राजगोपाल सिंह वर्मा ने श्यामलम् और बुनियाद संस्थाद्वय द्वाराभारत के जब्तशुदा साहित्य पर रविवार को सरस्वती वाचनालय में आयोजित विमर्श कार्यक्रम के अवसर पर बोलते हुए कही।
उन्होंने कहा कि इस अंक में ब्रिटिश काल के जब्त इतिहास, जब्त पत्रिकाएं, अंग्रेजों की फूट डालो और राज करो नीति का पर्दाफाश करती रचनाओं, कविताओं, पुस्तकों, कहानियों, संस्मरण, दस्तावेजों, उपन्यासों, आत्मकथाओं, व्यंग, नाटकों, यहां तक कि व्याकरण और यात्रा वृतांतों को भी जब्त किए जाने के इतिहास का प्रामाणिक वर्णन है। ऐसा कोई पक्ष भी अनदेखा नहीं किया गया है जिस पर ब्रिटिश सरकार की नजर पड़ी हो और जिस पर इस अंक में चर्चा न की गई हो। यहां तक कि स्वतंत्रता आंदोलन में कला की भूमिका पर भी, कि कैसे कलाकारों ने आजादी की लड़ाई में अपना योगदान दिया था, चर्चा की गई है। उन्होंने श्यामलम् एवं बुनियाद संस्था सागर का इस आयोजन के लिए आभार व्यक्त किया।
मुख्य अतिथि कर्नल पंकज सिंह ने अपने संबोधन में कहा कि हमारे स्वतंत्रता संग्राम के क्रान्तिकारी श्री गुरु गोविन्द सिंह जी के असली अनुयायी थे, वे उन्हीं के समान संत भी थे सैनिक भी थे, आत्मज्ञानी थे आत्म निर्लिप्त थे। वे उनके सामान अप्रतिम साहित्यकार थे, संगठन कर्ता थे, अद्भुत नेतृत्व क्षमता रखते थे । उन्होंने युवा पीढ़ी से यह आग्रह किया की वे भी अपने आदर्श, अपने प्रेरणा पुरुष सोच समझकर चुनें।
विशिष्ट अतिथि इंक मीडिया पत्रकारिता संस्थान सागर के निदेशक डा.आशीष द्विवेदी ने कहा कि अभिव्यक्ति की आजादी पर हमेशा से ही कड़े पहरे रहे हैं, इतिहास इस बात को प्रमाणित करता है। अंग्रेजी हुकूमत ने देश के प्रथम समाचारपत्र हिक्की गजट को ही इतना प्रताड़ित किया कि उसे महज दो वर्ष में ही बंदी का सामना करना पड़ा, यह सिलसिला निरंतर चलता रहा। भारतीय स्वतंत्रता के इतिहास में अनगिनत अखबार, नाटक,लेख, कविताएं और कहानियां जब्त की गईं, किंतु यह भी उतना ही सत्य है कि लाख तरह की यंत्रणाओं, गलघोंटू कानून, कारागार की काल कोठरियों से विचलित हुए बगैर उनकी कलम दोगुनी हिम्मत और हौसले से ब्रिटिश हुकूमत पर कहर बरपाने लगतीं। उत्तर प्रदेश सरकार ने जब्तशुदा साहित्य पर जितना तथ्यपरक, शोधपरक और दुर्लभ ग्रंथ प्रकाशित किया है वह इस बात की तस्दीक करता है कि हमारे पुरखों ने किस तरह ब्रितानी सरकार के विरुद्ध अंतिम सांस तक प्रतिकार किया।
अध्यक्षीय उद्बोधन देते हुए वरिष्ठ गांधीवादी विचारक शुकदेव प्रसाद तिवारी ने महात्मा गांधी के सत्याग्रह आंदोलन का उल्लेख करते हुए उसमें महिलाओं की सक्रिय भूमिका को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि आजादी के सेनानी पत्रकार भी थे और साहित्यकार भी जिसके माध्यम से उन्होंने अपनी बात जनता तक पहुंचाई और जनता को आंदोलित किया।
कार्यक्रम की शुरूआत अतिथियों द्वारा मां सरस्वती जी के प्रतिमा पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्ज्वलन से हुई। बाल सरस्वती ऐश्वर्या दुबे ने मधुर सरस्वती वंदना की। श्यामलम् अध्यक्ष उमाकांत मिश्र ने कार्यक्रम परिचय एवं स्वागत उद्बोधन दिया। बुनियाद संस्था से एडवोकेट राजू प्रजापति, श्यामलम सचिव कपिल बैसाखिया, श्रीमती किरणप्रभा मिश्र एवं पाठक मंच संयोजक आर के तिवारी ने अतिथि स्वागत किया। कवयित्री डॉ चंचला दवे ने प्रमुख वक्ता राजगोपाल सिंह का तथा कथाकार डॉक्टर सुश्री शरद सिंह ने मुख्य अतिथि करनाल पंकज सिंह के जीवन परिचय दिया। कार्यक्रम का व्यवस्थित एवं सुचारु संचालन मध्य प्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन सागर इकाई के अध्यक्ष आशीष ज्योतिषी ने किया तथा सुप्रसिद्ध कथाकार डॉक्टर आशुतोष मिश्र ने कृतज्ञता ज्ञापित की। इस अवसर पर 1962, 1965 और 1971 के युद्धों में वायु सेना के माध्यम से भाग लेने वाले श्री बच्चा सिंह का अभिनंदन सरस्वती वाचनालय एवं आयोजक संस्थाओं की ओर से किया गया।
ये रहे उपस्थित
इस अवसर पर बड़ी संख्या में प्रबुद्ध वर्ग की उपस्थिति महत्वपूर्ण रही जिनमें डॉ सुरेश आचार्य, डॉ लक्ष्मी पांडेय,एल एन चौरसिया, प्रोफेसर जे के जैन,डा गजाधर सागर, टी आर त्रिपाठी, डॉ शशि कुमार सिंह, शिवरतन यादव,पी आर मलैया, वीरेंद्र प्रधान, हरी सिंह ठाकुर, डॉ विनोद तिवारी, मितेंद्र सिंह सेंगर,जी एल छत्रसाल, पी एन मिश्रा,बी पी उपाध्याय, अभिनंदन दीक्षित, देवी सिंह राजपूत, पूरन सिंह राजपूत, मुकेश निराला, सुप्रिया नवाथे, अर्चना प्यासी, नील रतन पात्रा, डॉ अरविंद गोस्वामी, डॉ अमर जैन,आनंद मंगल बोहरे, संतोष पाठक, कुंदन पाराशर, दामोदर अग्निहोत्री, क्रांति जबलपुरी, अंबिका यादव,आर एस यादव आदि के नाम उल्लेखनीय हैं।
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एडिटर: विनोद आर्य
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+91 94244 37885
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