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परंपरागत गुजराती गरबा : देवी आराधना निर्वहन के तीन सौ साल

परंपरागत गुजराती गरबा :  देवी आराधना निर्वहन के तीन सौ साल


तीनबत्ती न्यूज : 17 अक्टूबर,2023
सागर, शहर के चकराघाट के श्री मल्ली माता देवी मंदिर में  इस शारदीय नवरात्रि के गरबे लगभग  तीन शताब्दियों की गुजराती परंपरा संजोये हुए हैं । ऐतिहासिक पृष्ठभूमि में गुजरात के समुद्री तटों, बंदरगाहों से विदेशी संस्कृतियों के आवागमन, मुगल शासकों और पेशवाओं के संघर्षों  दौर ।  सत्रहवीं शताब्दि का उत्तरार्ध और अठारवीं शताब्दी की शुरुआत, बुंदेलखंड के पन्ना में महाराजा छत्रसाल का शासनकाल । भ्रमणशील गुजराती ब्राह्मणों की एक टोली नर्मदा के किनारों से होकर, पन्ना आई । अनेक विद्याओं में निपुण, हीरे जैसे मूल्यवान रत्नों के जानकार बाज खेड़ावाल गुजराती ब्राह्मण कहे जाते । पन्ना नरेश के सत्कार और राजाश्रय के प्रभाव से से ब्राह्मण अपने वतन गुजरात को छोड़कर यहीं के होकर रह गए  । पीढ़ी दर पीढ़ी इनके परिवार बढ़ते गए । कालांतर में ये गुजराती ब्राह्मण परिवार हटा, दमोह,सागर, जबलपुर आदि स्थानों में बसते चले गए और धीरे धीरे इनका विस्तार प्रदेश,देश और विदेशों  तक में होता चला गया ।
      देखे : पारंपरिक गुजराती गरबा



सीमित लेकिन अपनी पहचान बनाए समाज

ये सुशिक्षित,नौकरीपेशा सुसंस्कृत, और दहेज जैसी अनेक कुप्रथाओं से मुक्त गुजराती ब्राह्मण परिवार  अब भी सीमित संख्या में  सागर में  हैं, अपनी अलग प्रतिष्ठापूर्ण पहचान बनाए हुए हैं । रोचक तथ्य ये है कि गुजरात से बहुत ही नाममात्र का संबंध शेष रहने के बाद भी ये  समाज अपने सामाजिक रीति रिवाजों,कर्म काण्डों, पूजा आराधना पद्धतियों में  गुजरात से लाई परंपराओं का निर्वहन पीढ़ी दर पीढ़ी करता चला आ रहा है  । इन्हीं में से एक है- नवरात्रि में देवी आराधना और गरबा ।
सीमित शेष बचे गुजराती ब्राह्मण समाज का सागर के चकराधाट देवी मंदिर, श्री मल्ली माता मंदिर के नाम से जाना जाता है । पेशवा शासनकाल के समय लक्ष्मीपुरा, तालाब किनारे बरियाधाट, बड़ा बाजार आदि बसे हुए ये परिवार शहर के दूसरे हिस्सों में जा कर रहने लगे हैं । ये परिवार  शारदीय नवरात्रि में परंपरागत देवी आराधना और गरबों के लिए एकत्र होते हैं । इन गरबों गायन और नृत्य की विशेषता यह होती है कि ये आधुनिकता की  मिलावट और दिखावे से दूर  पवित्र भाव और भक्ति प्रधान होते हैं ।





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