डा गौर विवि के प्रो एम एल खान का शोध पत्र प्रतिष्ठित पत्रिका 'नेचर' में प्रकाशित
सागर। डॉ. हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर के वनस्पति विज्ञान विभाग के वरिष्ठ प्रोफेसर और पर्यावरण विज्ञान विभाग के समन्वयक प्रो. एम.एल. खान ने "आक्रामी जाति की समस्या के विरुद्ध मूल वनस्पतियों की विविधता का प्रतिरोध" विषय पर अंतरराष्ट्रीय स्तर की अत्यधिक प्रतिष्ठित शोध पत्रिका, नेचर (Impact factor 64.8) में विश्वस्तर के शोधकर्ताओं के साथ शोध पत्र प्रकाशित किया है। इस शोध पत्र में बताया गया है कि पेड़ों के आक्रमण को अपेक्षाकृत नजरअंदाज कर दिया गया है, भले ही उनमें पारिस्थितिकी तंत्र और अर्थव्यवस्थाओं को बदलने की क्षमता हो। पौधों के आक्रमण का दुनिया भर के पारिस्थितिक तंत्र और मानव कल्याण पर बहुमुखी प्रभाव पड़ता है। मानव-सहायता से लाए गए और इन प्रजातियों के प्राकृतिकीकरण के कारण आने वाले दशकों में पौधों का आक्रमण बढ़ता रहेगा, जिससे वन पारिस्थितिकी तंत्र के जैव विविधता पर प्रभाव लगातार बढ़ता रहेगा। ये आक्रमण निस्संदेह लकड़ी के उत्पादन, कृषि और मानव आजीविका को बाधित करके प्रबंधित परिदृश्य में आर्थिक प्रभाव डालते है। पारिस्थितिक तंत्र के प्रबंधन और आक्रामक प्रजातियों के प्रसार को सीमित करने के लिए गैर- मूल पेड़ों के आक्रमण का कारण निर्धारित करना महत्वपूर्ण है। प्रो. एम.एल. खान ने इस शोध पत्र में वैश्विक वृक्ष डेटाबेस का उपयोग करके पता लगाया है कि मूल वृक्ष समुदायों की फ़ाइलोजेनेटिक और कार्यात्मक विविधता, मानव दबाव और पर्यावरणीय कारक, गैर-मूल वृक्ष प्रजातियों की स्थापना और उसके बाद के आक्रमण की गंभीरता को कैसे प्रभावित करते हैं। उन्होंने कहा कि हम पाते हैं कि मानवजनित कारक यह अनुमान लगाने में महत्वपूर्ण हैं कि किसी स्थान पर विदेशी पौधों द्वारा आक्रमण किया गया है या नहीं, लेकिन आक्रमण की गंभीरता उस जगह की मूल विविधता पर आधारित होती है, उच्च विविधता कम आक्रमण गंभीरता का संकेत देती है। उन्होंने आगे कहा कि गैर- मूल पेड़ों पर आक्रमण के बारे में हमारा वैश्विक परिप्रेक्ष्य इस बात पर प्रकाश डालता है कि मानव कारक गैर- मूल पेड़ों की उपस्थिति को प्रभावित करते हैं, और बाद के आक्रमणों की स्थापना और प्रसार में देशी फ़ाइलोजेनेटिक और कार्यात्मक विविधता की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। प्रो खान को अभी हाल ही में राष्ट्रपति अवार्ड से सम्मानित भी किया जा चुका है।
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