राष्ट्रपति ने गौर विवि के प्रो एम.एल. खान को विजिटर अवार्ड से किया सम्मानित
तीनबत्ती न्यूज : 11 जुलाई ,2023
सागर : डॉ. हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर के लिए यह बेहद गर्व की बात है कि वनस्पति विज्ञान विभाग के वरिष्ठ प्रोफेसर एवं पर्यावरण विज्ञान विभाग के समन्वयक; प्रो. मोहम्मद लतीफ खान को जैव विविधता और उसके संरक्षण के क्षेत्र में उनके महत्वपूर्ण और अद्वितीय योगदान के लिए 10 जुलाई को भारत के महामहिम राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू द्वारा "जैविक विज्ञान में अनुसंधान के लिए सातवें विजिटर अवार्ड" से सम्मानित किया गया है। नई दिल्ली में आयोजित अवार्ड समारोह में विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. नीलिमा गुप्ता भी उपस्थित थीं।
प्रो. मोहम्मद लतीफ खान ने वृक्ष पुनर्जनन प्रक्रियाओं, जैव विविधता संरक्षण, पारिस्थितिकी तंत्र और संबंधित सेवाओं की पुनर्स्थापन, कार्बन पृथक्करण, आणविक आनुवंशिकी और फाइलोजेनी जैसे जैविक विज्ञान के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
प्रोफेसर खान ने नेचर, पीएनएएस (यूएसए), नेचर इकोलॉजी एंड इवोल्यूशन, जर्नल ऑफ इकोलॉजी, नेचर साइंटिफिक रिपोर्ट्स, क्रिटिकल रिव्यू इन बायोटेक्नोलॉजी एवं साइंस ऑफ द टोटल एनवायरमेंट जैसी विश्व की प्रतिष्ठित वैज्ञानिक पत्रिकाओं में 208 शोध पत्र प्रकाशित किए हैं और 65 पुस्तक अध्यायों का संपादन किया है।
उन्होंने 23 से अधिक डॉक्टरेट और पोस्ट डॉक्टरेट थीसिस का मार्गदर्शन किया है। साथ ही उन्हें स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी, यूएसए द्वारा प्रकाशित शीर्ष 2% वैज्ञानिकों की सूची में भी शामिल किया गया है। इसके अलावा प्रोफेसर खान को उनके योगदान के लिए कई पुरस्कार भी मिल चुके हैं. उन्हें भारतीय कृषि विज्ञान अकादमी, रॉयल सोसाइटी ऑफ बायोलॉजी (लंदन, यू.के.) और कई अन्य प्रतिष्ठित वैज्ञानिक निकायों के सदस्य के रूप में चुना गया है। उन्हें प्रतिष्ठित लिनियन सोसाइटी, लंदन, यूके के फेलो के लिए भी चुना गया है । अपने शोध कार्य को आगे बढ़ाने के लिए उन्हें विभिन्न राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों से तैंतालीस शोध अनुदान भी प्राप्त हुए हैं। इसके अलावा उन्होंने भारत सरकार के मेगा साइंस विजन-2035 की तैयारी में भी योगदान दिया है।
उन्होंने भारत सरकार के पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के प्राकृतिक धारणा अवलोकन और सहयोगात्मक भूमि व्याख्या की स्थापना जैसे कार्यक्रमों पर भी काम किया है। पिछले चार दशकों में, प्रोफेसर खान ने पूर्वी हिमालय और मध्य भारत के जंगलों में उनकी वास्तविक स्थिति, पुनर्जनन विधियों, दुर्लभ प्रजातियों की जनसंख्या पारिस्थितिकी और उनके द्वारा प्रदान की जाने वाली पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं पर अपने अध्ययन के माध्यम से महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उनका शोध कार्य कार्बन पृथक्करण और शुष्क पर्णपाती जंगलों में आग के प्रसार को समझने में भी सहायक रहा है।
प्रोफेसर खान ने भारतीय वानिकी के बारे में हमारी समझ बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उनके शोध ने जैव विविधता संरक्षण पर वैश्विक पहलों को प्रभावित किया है और वन्यजीव संरक्षण संगठनों पर भी प्रभाव डाला है। उनके शोध कार्य ने भारत में वन प्रबंधन नीतियों के निर्माण की नींव भी रखी है। उन्होंने पौधों की विविधता के संरक्षण में उत्तर पूर्वी राज्यों के मौजूदा संरक्षित क्षेत्रों की प्रभावशीलता का आकलन करने के लिए अरुणाचल प्रदेश की पुष्प स्थिति का डेटाबेस भी स्थापित किया है।
उनकी इस उपलब्धि के लिए पर्यावरण विज्ञान एवं वनस्पति विज्ञान विभाग सहित समस्त विश्व विद्यालय परिवार ने शुभकामनाये दी है।
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