बागेश्वर धाम पीठाधीश्वर पं. धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री की श्रीमद भागवत कथा के दूसरा दिन
▪️सागर की तीनबत्ती का किया जिक्र
#bageshwardham
सागर। बहेरिया स्थित बांके बिहारी नगर में मंगलवार को बागेश्वर धाम पीठाधीश्वर पं. धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री की श्रीमद भागवत कथा की शुरुआत शाम 4 बजे हुई कथा स्थल पर प्रवेश के साथ ही व्यास पीठ की की आरती हुई। आरती में कथा की अध्यक्षता कर रहे संत रामाश्रय दास, मुख्य आयोजक मुख्य आयोजक भूपेंद्र सिंह बहेरिया, संदीप दुबे के परिवार सहित अथिति के रूप में विनीत पटेरिया जनपद अध्यक्ष देवरी, राजस्व एवं परिवहन मंत्री के पुत्र आकाश राजपूत, राजीव हजारी, अनिल तिवारी एसवीएन एवं फ्रांस से आय भक्त थिबाऊल्ट थामस, अमेरिका से आय राजेश जी एवं जापान से आए सकुरई ने व्यास पीठ की आरती की।
फिर सीताराम हनुमान नाम जप के साथ कथा के दौरान कथा वाचक पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री ने मीरा और राधा के जीवन चरित्र एवं दोनो के प्रेम में अंतर पर प्रकाश डालते हुए कहा कि राधा रानी द्वापर युग में हुई मीरा कलयुग में राधा ने वियोग सहा मीरा ने हर समय अपने प्रभु को देखा। राधा जी ठाकुर जी को श्रृंगार कर दिखाया मीरा भगवान के लिए जोगन बन भाव में रहते हुए जीवन घनश्याम को समर्पित किया।
राधा के साथ अष्ट सखियां रहती थी और भगवान कृष्ण को राधा के संदेश देती रहती थी, मीरा के साथ तो उनके परिवार जन भी नहीं थे। एक बार मीरा ने महल की छत पर खड़े होकर कहा मां मेरा दूल्हा कहां है मां मुझे दूल्हा चाहिए मुझे भी श्रृंगार करना है। बेटी की संतुष्ट करने के लिए उनकी मां ने ठाकुर जी की मूर्ति को उनके हाथ में देते हुए कहा कि यही है तुम्हारा दूल्हा। मीरा ने श्रृंगार किया और मां से कहा की मां रात में मेरी शादी हो गई।
जाके सिर मोर मुकुट मेरो पति सोई। उन्होंने कहा राधा ने कभी घर नहीं छोड़ा वे कहीं भी गई चाहे वृंदावन, नंदगांव गई या कहीं और गई वहां से घर वापिस आ गई। मीरा ने भगवान के लिए अपने घर, परिवार, रिश्तेदार के साथ सब कुछ छोड़ दिया, राधा लाली कहलाती थी मीरा दासी के भाव में थी। अंतर क्या दोनों की प्रीत में देखो इक प्रेम दीवानी इक दरस दीवानी, इक जीत न पाती एक हार न पाती। इसके बाद भी दोनों समान है दोनों के प्रेम में कोई अंतर नहीं है।
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