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दुष्यंत-शकुन्तला के पात्र-चेहरे बदलते रहेंगे...कालीदास की कालजयी कृति के यक्ष प्रश्न हर युग में उत्तर तलाशते रहेंगे▪️अर्पिता धगट निर्देशित नाटक “अभिज्ञान शाकुंतलम् "▪️राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय और रंग थिएटर फोरम,सागर की संयुक्त प्रस्तुतिसमीक्षक : डॉ.नवनीत धगट

दुष्यंत-शकुन्तला के पात्र-चेहरे बदलते रहेंगे...कालीदास की कालजयी कृति के यक्ष प्रश्न  हर युग में उत्तर तलाशते रहेंगे

▪️अर्पिता धगट निर्देशित नाटक  “अभिज्ञान शाकुंतलम् "

▪️राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय और रंग थिएटर फोरम,सागर  की संयुक्त  प्रस्तुति


समीक्षक : डॉ.नवनीत धगट

सागर शहर का दर्शकों से खचाखच भरे रवीन्द्र भवन सभागार में 27-28 मार्च को अर्पिता धगट निर्देशित , अनूठे रूपकों के साथ प्रस्तुत नाटक “अभिज्ञान शाकुंतलम् ” का दर्शक साक्षी बना । कुमार संभवम्, मेधदूतम्, विक्रमोवंशीयम्, ज्योतिर्विदभरणम्, जैसी महान रचनाओं के रचनाकार कालीदास के नाटक “अभिज्ञान शाकुंतलम् ” को आम तौर पर  श्रंगार, प्रकृति वर्णन, प्रेम, विरह, विछोह और पुनर्मिलन की कहानी के तौर पर लिया जाता  है  । आध्यात्मिक दृष्टि इसे आत्मा से परमात्मा के मिलन की बिम्ब कथा की तरह भी व्याख्यायित कर सकती है ।
ईसा पूर्व पहली शताब्दी में रचे गए “अभिज्ञान शाकुंतलम् ”  की कहानी में दुष्यंत - शकुन्तला के गंधर्व विवाह, पार्थक्य, पुनर्स्थापना  के प्रयास, गर्भस्थ शिशु  के दायित्व के  वाद प्रश्नों का राजसभा में स्वयं के का न्याय कर रहे पुरुकुल राजा दुष्यंत युग की विडम्बना है  । जिस में नायक दुष्यंत ,न्यायाधीश होकर स्वयं के लिए न्याय कर फैसले सुना रहा था ।
आज भी विधिमान्य विवाहों के अप्रिय विच्छेद, लिव इन रिलेशन नुमा अपरिभाषित साहचर्य, परित्याग, फ्रिज में 35 टुकड़ों में काट कर रखे गए श्रद्धा की शरीर की त्रासदी. विवाह संस्था को नकारते चोरी-छिपे कराए जाते गर्भपात, डस्ट बिन,कूड़ा घरों  में फेंके गए अनचाहे नवजात - समाज के सामने वैसे  ही यक्ष प्रश्न  खड़े करते हैं, जो कालीदास की प्रेम कथा के बीच में कहीं थे । परिवार न्यायालयों के सुलह समझौतों के जतन और डीएनए टेस्ट तक कहानियों के पात्र बदलते हैं । समकालीन समाज ऐसे प्रश्नों के उत्तरों  से बचता हुआ नज़र आता है ।
नाटक की निर्देशक ,परिकपनाकार अर्पिता धगट इन तमाम तीखे सुलगते हुए सवालों पर विलक्षण  पैनी नज़र बनाये रखती हैं । 

मुख्य पात्र दुष्यंत की भूमिका एक ही मंच पर अलग-अलग कलाकारों को देना निर्देशक अर्पिता धगट का संभवतः बड़ा और दर्शकों को चौंकाने वाला प्रतीक  प्रयोग कहा जायेगा । जिसका अर्थ होगा  कि युग बदलेगा पर  दुष्यंत शकुंतला की कहानियां अलग पात्रों और परिस्थितियों के साथ सामान शास्वत प्रश्न खड़े करती रहेंगी  ।
नवोदित युवा रंगमंच कलाकारों को परिश्रम पूर्वक तैयार कराके,बहुसंख्य  पात्रों को नाट्य संवाद के जटिल अभ्यास से विरत करती हैं  । पर उनका परिचय नाट्य भंगिमाओं से बखूबी कराती हैं ।  अनूठी रंग योजना, नृत्य-दृष्य- श्रव्य संयोजन, मूल कहानी के साथ उठाये जा रहे प्रश्नों  से प्रबुद्ध दर्शकों  का साक्षात्कार कराने में सफल हैं । संस्कृत नाटकों के दर्शकों अभिजात्य के होने के मिथक से बाहर निकाल कर, स्थानीय बुंदेली बोली और इंग्लिश  की स्वीकार्य सीमा तक प्रयोग करके इसकी सम्प्रेश्नीयता  बढ़ा पाती हैं । नाटक के सूत्रधारों को  गंभीर विषय और सन्देश लिए हुए इस प्रेम-विरह  कथानक को समकालीन समाज की डेटिंग,फ्लर्ट और लव स्टोरीज़  से जोड़ने की थोड़ी सी स्वतंत्रता देकर अर्पिता धगट समय की मांग के साथ  न्याय करती हैं । महाभारत ,पद्मपुराण में और कालीदास के “अभिज्ञान शाकुंतलम् ” के दुष्यंत-शकुन्तला की कहानी को वे परंपरागत सुखांत तक नहीं ले जातीं ।  

              अर्पिता धगट 
दुर्वासा ऋषि के श्राप जनित विस्मृतियों, तर्पण करते हुए  प्रणय साक्षी अंगूठी , बहते हुए जल में खो जाने जैसे अनेक प्रसंगों को प्रतीकात्मक संक्षेप की भंगिमाओं और बिम्बों के साथ पूर्ति कर तेजी से लांघते हुए  मूल प्रश्न  की ओर बढ़ती हैं । कहानी को शकुन्तला की दुविधा की विकट स्थिति में ठहरती हैं, यहाँ आकर मुखर हो जाती हैं  । यहॉं  विस्तार करते हुए शकुन्तला के लिए मूल कथानक के विकल्प से बाहर निकल कर अन्य रास्ते सुझाती हैं । सुझाये हुए विकल्प हर युग में नारी के सामने मुंह बाए खड़े सवालों के हल  तलाशते हैं- दर्शकों  से उनका अभिमत चाहते हैं ।  । भरत नाट्यम प्रयोग ,शास्त्रीयता लिए हुए संगीत,मंच सज्जा,वस्त्र विन्यास , प्रकाश  संयोजन सभी सफल मंचन के तत्व आला दर्जे के और  नवीनता लिए हुए  है ।  सामान्य दर्शक  इस नाटक को देखकर मैं अभिभूत हुआ, मानस पटल पर उठे हुए प्रश्नों की उधेड़-बुन लिए हुए सभागार से बाहर निकलता है  । दुष्यंत शकुंतला के प्रेम का साक्षी विदूषक मित्र न्याय के सभागार में अनुपस्थित क्यों रहा ?  जैसे अनेक विचार लिए हुए । प्रेम, विवाह, विरह ,पुनर्मिलन के  एक असाधारण कालजयी कथानक को आधुनिक संदर्भों तक ला के खड़ा करने के लिए निःसंदेह राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय,निर्देशक-परिकल्पनाकार-नृत्य संयोजिका अर्पिता धगट, संगीत संयोजक धानी गुंदेचा,अनंत गुंदेचा, मंच-परे रंग थिएटर फोरम, सागर  के साधक  संगीत श्रीवास्तव,मनीष बोहरे सहित उनकी समूची  टीम बधाई के पात्र हैं । इनके ऐसे  ही और प्रयास नाटक प्रेमियों को रंगमंच की विविधताओं से  रस सराबोर करते रहेंगे - आशा है , शुभकामनायें भी ...।
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समीक्षक : डॉ.नवनीत धगट ,  सागर
9827012124 


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एडिटर: विनोद आर्य
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+91 94244 37885

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