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बुन्देली संस्कृति के केन्द्र में हैं राम : कुलपति प्रो. नीलिमा गुप्ता▪️‘‘रामकाव्य परम्परा और बुन्देलखण्ड: साहित्य, संस्कृति और इतिहास’’ पर संगोष्ठी

बुन्देली संस्कृति के केन्द्र में हैं राम : कुलपति प्रो. नीलिमा गुप्ता

▪️‘‘रामकाव्य परम्परा और बुन्देलखण्ड: साहित्य, संस्कृति और इतिहास’’  पर संगोष्ठी


सागर,24 फरवरी ,2023. डाॅक्टर हरीसिंह गौर विष्वविद्यालय, सागर के  हिन्दी विभाग द्वारा आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी ‘‘रामकाव्य परम्परा और बुन्देलखण्ड: साहित्य, संस्कृति और इतिहास’’ का कुलपति प्रो. नीलिमा गुप्ता की अध्यक्षता में अटल बिहारी वाजपेयी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. खेमसिंह डेहरिया जी के मुख्य आतिथ्य में उद्घाटन हुआ। उद्घाटन सत्र के मुख्य वक्ता वरिष्ट साहित्यकार और संस्कृति चिंतक प्रो. श्यामसुन्दर दुबे थे। 


कुलपति प्रो नीलिमा गुप्ता ने कहा कि बुन्देली संस्कृति के केन्द्र में राम बसते हैं। बुन्देली लोक के कण-कण में राम ध्वनित होते हैं। जीवन के आदि से अंत तक सफर राममय है। राम के जीवन पर शोध और अध्ययन की अनंत सम्भावनाएँ हैं। बशर्ते हम उनको उस दृष्टिकोण से देखें, जिसमें सामाजिक-सांस्कृतिक और आध्यात्मिक पहलू शामिल हों। 

बुंदेली लोक संस्कृति के वरिष्ठ साहित्यकार और चिंत प्रो. श्यामसुन्दर दुबे ने बुन्देली, अवधी, बघेली, भोजपुरी के लोक जीवन और संस्कृति में अपनी-अपनी क्षेत्रीय रामकथाओं का उल्लेख किया और उन्होंने इस बात पर दिया कि मातृभाषाओं में ही राम के चरित्र को सबसे पहला विस्तार प्राप्त होने के प्रमाण प्राप्त होते हैं। संगोष्ठी के मुख्य अतिथि अटल विहारी वाजपेयी हिन्दी विश्वविद्यालय, भोपाल के कुलपति प्रो. खेमसिंह डेहरिया जी ने बुन्देलखण्ड अंचल में रामकथाओं की परम्परा को विस्तार से प्रस्तुत किया, जिसमें उन्होंने अनेक ऐसी रामकथाओं के प्रमाण दिये, जिनके बारे में अकादमिक जगत अनभिग्य था। तुलसीदास कृत ‘श्रीरामचरितमानस’ एवं महाकवि केशवदास कृत ‘रामचन्द्रिका’ के पूर्व उन्होंने ग्वालियर में जन्में विष्णुदास कृत ‘रामायण कथा’ का उल्लेख किया। साथ ही राम से जुड़ी अनेकानेक बुन्देली रचनाओं का परिचय दिया। 
संगोष्ठी के प्रारम्भ में हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रो. आनन्दप्रकाश त्रिपाठी ने स्वागत वक्तव्य दिया। राष्ट्रीय संगोष्ठी की मुख्य संयोजक एवं भाषा अध्ययनशाला की अधिष्ठाता एवं विश्वविद्यालय की प्राॅक्टर प्रो. चन्दा बैन ने राष्ट्रीय संगोष्ठी ‘रामकाव्य परम्परा और बुन्देलखण्ड: साहित्य, संस्कृति और इतिहास’ का आरम्भिक विषय प्रवर्तन किया, उन्होंने केशवदास कृत ‘रामचन्द्रिका’ के अंगद-रावण संवाद सहित अनेक उद्धरणों के माध्यम से विषय प्रवर्तन किया। 


संगोष्ठी में इस अवसर पर प्रो. ए.डी. शर्मा, प्रो. पदीप कठल, प्रो. नागेश दुबे, प्रो. श्रीभागवत, प्रो. अशोक अहिरवार, प्रो. बी.आइ. गुरू, प्रो. नरेन्द्र सिंह, प्रो. सरोज गुप्ता, डाॅ. सुश्री शरद सिंह, डाॅ. कालीनाथ झा, डा. रश्मि सिंह, डाॅ. टीकाराम त्रिपाठी रूद्र, उमाकांत मिश्र, डाॅ. अरविन्द कुमार, डाॅ. हिमांशु कुमार, डाॅ. अफरोज बेगम, डाॅ. किरण आर्या, डाॅ. शशिकुमार सिंह, डाॅ. लक्ष्मी पाण्डेय, डाॅ. सुजाता मिश्र, श्री प्रदीप कुमार एवं डाॅ. अवधेश कुमार के साथ हिन्दी विभाग के शोधछात्रों में विशेष रूप से ज्योति गिरि, आकांक्षा जैन, शैलेन्द्र यादव, सृष्टि सिंह, कृति कुमारी, हरिओम, सूर्यकांत, पंकज, रामधीरज, हरीशंकर, गव्वर, गोविन्द एवं विभिन्न प्रदेशों से आये शिक्षक एवं विद्यार्थी मौजूद रहे।  
उद्घाटन सत्र में संगोष्ठी का संचालन डाॅ. आशुतोष मिश्र एवं आभार डाॅ. राजेन्द्र यादव ने व्यक्त किया। 



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एडिटर: विनोद आर्य
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