MP: किसान का बेटा बना फ्लाइंग ऑफिसर
▪️पहले ही प्रयास में पास की एएफ कैट की परीक्षा
▪️सेकंड हेड खरीदी साइकिल से गया चार साल कालेज
▪️जिस स्कूल ने निकाला उसने किया सम्मान
▪️ मयंक भार्गव, बैतूल
बैतूल, 31 जनवरी 2023.एयरफोर्स में कॉमन एडमिशन टेस्ट (एएफ-कैट) को भारत की सबसे कठिन परीक्षाओं में माना जाता है लेकिन आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिले के एक किसान के बेटे ने इस परीक्षा को पहले ही प्रयास में बिना कोचिंग के उत्तीर्ण कर लिया। आज किसान का बेटा फ्लाइंग आफिसर बन चुका है। उसकी इस उपलब्धि पर परिजनों सहित जिले को गर्व है।
संघर्ष भरा रह है स्नेहल का सफर
जिले के भरकावाड़ी निवासी स्नेहल वामनकर ने वर्ष 2020 में एएफ -कैट पास किया था। एयर फोर्स में फ्लाइंग आफिसर बनने का जुनून ऐसा था कि उसने कई नौकरियां छोड़ दी। दो साल की मेहनत के बाद 21 जनवरी 2023 को फ्लाइंग ऑफिसर की पासिंग आउट परेड के बाद वे ऑफिसर बन गए। उन्होंने बताया कि कक्षा 8 वीं और 9 और 10 वीं में वह स्वतंत्रता दिवस पर परेड में हिस्सा लेना चाहता था लेकिन हर बार उसे हाईट कम होने के कारण फेर कर दिया गया। वह बहुत रोया और अंतत: कालेज में आने के बाद एनसीसी में हिस्सा लिया। यहां पर जी तोड़ मेहनत कर स्टेट लेवल परेड में मेरा 3 बार सिलेक्शन हुआ।
इसके अलावा मैंने कर्तव्य पथ (राजपथ) में भी प्रदेश का प्रतिनिधित्व करते हुए पार्टिसिपेट किया। कालेज जाने के लिए एक सेकेंड साइकिल खरीदकर चार साल तक पढ़ाई की क्योंकि बस में प्रतिदिन 30 से 40 रुपए लगते थे और मेरे पास रुपए नहीं होते थे। स्नेहल ने बताया कि उन्होंने भोपाल की आरजीपीवी यूनिवर्सिटी से स्नेहल ने कम्प्यूटर साइंस में ग्रेजुएशन किया।
लक्ष्य पाने छोड़ दी नौकरी
आरजीपीवी में कैंपस आए। पहला मौका उन्हें आईसीआईसीआई बैंक में मिला। ज्वाइनिंग लेटर भी मिला, लेकिन स्नेहल ने ज्वाइन नहीं किया। इसके बाद इंडिगो एयरलाइंस में एक्जीक्यूटिव के पद पर भोपाल एयरपोर्ट में जॉब मिली। उन्होंने गुडग़ांव में ट्रेनिंग ली, वापस भोपाल लौए, एक महीने जॉब की और फिर रिजाइन दे दिया। इसके बाद वेदांता से कॉल लेटर आ गया। ट्रेनिंग के लिए स्नेहल चंडीगढ़ चला गया, पोस्टिंग ओडिशा में हुई। वहां भी 20 दिन ही काम करके रिजाइन दे दिया। जुलाई 2020 में एफ-कैट की तैयारी शुरू की। परीक्षा से 22 दिन पहले ओडिशा वाली जॉब छोड़ी। स्नेहल ने बताया कि गाड़ी, बंगला, अच्छी सैलरी को छोडऩे आसान नहीं था। लेकिन आर्मी के जुनून के कारण फैसला लेना आसान हो गया।
युवाओं को दिया संदेश ले रिस्क
एफ-कैट की इस परीक्षा में देश भर के 204 प्रतिभागी पास हुए थे। इसमें स्नेहल भी शामिल थे। सिलेक्शन के बाद हैदरबाद एयरफोर्स एकेडमी में एक साल की ट्रेनिंग हुई और फिर 1 साल तकनीक कॉलेज बेंगलुरु में ट्रेनिंग चली। 2 साल की मेहनत के बाद 21 जनवरी को स्नेहल पास आउट हो गया।
स्नेहल का कहना है की युवा अपना एक लक्ष्य रखे। अपने गोल को अचीव करने के बीच में परेशान न हो। कभी-कभी असफलताएं आती हैं, लेकिन इसका मुकाबला करें। कभी यह न सोचे की मेरा सिलेक्शन नहीं होगा रिस्क लें।
गर्व से चौड़ा किया पिता का सीना
स्नेहल के पिता घनश्याम वामनकर के पास 12 एकड़ खेत हैं। घनश्याम ने बताया कि मैं ज्यादा पढ़ नहीं सका। बच्चों को अच्छी शिक्षा मिले यह सोचता था। इसके लिए भरकावाड़ी से रोज बच्चों को बैतूल ले जाता था। इस वजह से खेती पर ध्यान नहीं दे पाता था। खेती बस गुजर बसर के लिए ही हो पाती थी। कई मौके ऐसे आए कि बच्चों की फीस के लिए रुपए नहीं होते थे। अपने खर्च कम किए अभाव में समय काटा। बच्चों ने इस संघर्ष को देखा तो उन्होंने कभी कुछ मांगा नहीं। आज एक बेटा फ्लाइंग आफिसर बन गया तो दूसरा तपत्युस एग्रीकल्चर फील्ड ऑफिसर का मेंस एग्जाम दे रहा है। हमारी मेहनत आज सफल हो गई।
जिस स्कूल ने निकाला उसने किया सम्मान
स्नेहल के लिए यह गौरव का विषय था कि उन्हें 26 जनवरी को जिस स्कूल ने चीफ गेस्ट बनाकर बुलाया था, वह वही स्कूल था, जिसने कभी 11 वीं क्लास में कम नंबर के कारण एडमिशन नहीं दिया था। ये वही स्कूल था, जिसने कम हाइट के कारण स्नेहल को परेड में शामिल नहीं होने दिया था। हालांकि, अब स्कूल प्रशासन का कहना है कि अब वे कभी भी किसी को कम हाइट के कारण परेड में शामिल होने से नहीं रोकेंगे और न ही किसी को कम नंबर होने के कारण एडमिशन देने से रोकेंगे।
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