ओशो महोत्सव : सागर विवि दुनिया का एकमात्र विश्वविद्यालय जहां भगवान ने शिक्षा पाई
सागर,19 जनवरी,2023. सागर के मकरोनिया बुजुर्ग में बटालियन स्थित रजनीश हिल्स पर ओशो (OSHO) को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। ओशो को जिस जगह पर ज्ञान की प्राप्ति हुई थी, उसके आसपास अब वीरानगी छाई रहती है। कहानी 66 साल पहले की है। 12 फरवरी 1956 की सर्द रात में महुए के पेड़ के नीचे बैठा एक लड़का साधना में लिप्त था। उस समय ओशो के साथ कुछ ऐसा हुआ, जिसके बाद वह दुनिया के महान दार्शनिक बन गए। 11 दिसंबर को ओशो का जन्म हुआ था।
रजनीश हिल्स पर हैं कई यादें
महुआ के पेड़ से जुड़ी यादें आज भी रजनीश हिल्स पर मौजूद है। यहां देश भर से उनके अनुयायी आते हैं। यह सागर के उपनगरीय क्षेत्र मकरोनिया में स्थित है सारी दुनिया में अपने अनुयायी के बीच भगवान बन बैठे ओशो से जुड़ी यादों को नजरअंदाज किया जा रहा है। यहां लगा वह पेड़ अब नहीं है लेकिन उसकी जगह एक बादाम का पेड़ लगाया गया है। समाधि स्थल को लकड़ियों से घेरकर सुरक्षित किया गया है। साथ ही यहां एक शिलालेख है जो रजनीश हिल्स का महत्व है।
ओशो शब्द के पीछे भी सागर
रजनीश ओशो का संबंध सागर शहर से ऐसा रहा कि उन्होंने जब अपना नाम ओशो रखा, तब भी उन्होंने सागर यानी ओशियन शब्द को चुना। खुद ओशो कहते थे कि ओशो शब्द कवि विलयम जेम्स की एक कविता ओशनिक एक्सपीरियंस के शब्द ओशनिक से लिया गया है, जिसका अर्थ है सागर में विलीन हो जाना।
विवि से दर्शन शास्त्र की पढ़ाई की
बात उन दिनों की है, जब रजनीश ओशो सागर विश्वविद्यालय में दर्शन शास्त्र की पढ़ाई कर रहे थे। महान दार्शनिक आचार्य रजनीश के जीवन का यह स्वर्णिम काल था। ओशो ने डॉ. हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय को अपनी शिक्षा स्थली चुना। तीन वर्ष तक वे यहाँ पड़े। उस समय इस विश्वविद्यालय का नाम सागर विश्वविद्यालय था। विश्वविद्यालय के पास की पहाड़ी रजनीश मोहन जैन (ओशो) को आकर्षित करती थी। वे अक्सर यहाँ आकर घंटों बैठा करते ध्यान मगन हो जाते।
तीर्थ से कम नहीं है यह स्थल
एक दिन ओशो इसी पहाड़ी पर आए। 12 फरवरी की रात, जब मध्यभारत में रात में काफी सर्दी होती है। वह महुए के वृक्ष के नीचे आकर बैठे, तब ध्यान में ही ओशी अचानक एक चांदी से चमकते तार से बंधकर शरीर से अलग हो गए। उन्होंने अपनी आत्मकथा में इस आज भी जाना जाता है। महान घटना को सतोरी कहा है। तब से यहbस्थान उनके अनुयायियों के लिए किसी तीर्थ से हैं। कम नहीं है।
धीरे-धीरे खत्म हो रहीं यादें
दरअसल, इस क्षेत्र को ओशो का ज्ञान रास नहीं आया। वे रूढ़ियों के बड़े प्रभावी आलोचक थे। उन्हें देश के बाहर तो सराहा गया, उनके विचारों को माना गया लेकिन जो शहर ओशो के दिल में बसा था। यहां उनसे जुड़ी स्मृतियां धीरे-धीरे खत्म हो रही हैं। इतना ही नहीं, विश्वविद्यालय जब से पथरिया हिल्स गया है, जब से ओशो से जुड़ी किसी भी चीज को संरक्षित न किए जाने का सिलसिला जारी है। इस शहर ने ओशो को ऐसा भुलाया कि उनसे जुड़ी ऐसी कोई स्मृति ही नहीं, जिस पर सागर के लोग गर्व करें। इंसान से भगवान बन जाने वाले एक शख्स की एक निशानी यह पहाड़ी, जिसे ओशो हिल्स के नाम से जानते है।
गाडरवारा में जन्मे थे ओशो
ओशो का जन्म 11 दिसंबर 1931 को मप्र के गाडरवारा के कुचबाह्य में 1955 से 1957 तक वे सागर में रहे और हुआ था। डॉ. हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय से दर्शन शास्त्र की डिग्री ली। पहाड़ी पर एक महुआ के वृक्ष के नीचे संबोधी, जिसे उन्होंने सतोरी ज्ञान कहा है। इसे मिलने के बाद वे आचार्य रजनीश हुए। जहां उन्हें ज्ञान मिला, उस जगह को उनके एक अनुयायी ने ओशो प्वाइंट नाम दिया। महुआ के वृक्ष और चबुतरे को संरक्षित किया है। उसके समाधि मार्ग की कल्पना पूरी नहीं हो सकती है। वहीं, वर्तमान में यहां हनुमान जी का एक मंदिर है, जहां दर्शन करने 10वीं बटालियन के रहवासी आते हैं। शहर में भी ओशो के बारे में कम ही लोग जानते
जहां 'भगवान' ने ली शिक्षा
पूर्व राज्यपाल महावीर भाई ने विश्वविद्यालय के एक कार्यक्रम के दौरान कहा था कि विश्व का यह एक मात्र विश्वविद्यालय है, जहां से भगवान ने शिक्षा ग्रहण की है। उनका इशारा ओशो की ओर ही था। दूसरी ओर 1980 के दशक तक विश्वविद्यालय की लाइब्रेरी में ओशो से जुड़े कुछ मूल दस्तावेज जैसे महुआ वृक्ष, एमए का फॉर्म, परीक्षा की कॉपियां, लाइब्रेरी कार्ड उनके दस्तखतों वाले दस्तावेज सब कहीं गायब हो गए। इन्हें लापरवाही पूर्वक खुर्दबुर्द कर दिया गया। 19 जनवरी 1990 को उनका निधन हुआ। उन्हें मानने वाले लोग उनकी पुण्यतिथि को ओशो महोत्सव के रूप में मनाते हैं ।
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