सहयोग, समर्पण और कर्म से डॉ. गौर के सपनों में रंग भरें-कुलपति
▪️तीनबत्ती पर गौर प्रतिमा पर श्रद्धासुमन अर्पित किए
सागर. महान दानवीर, विधिवेत्ता एवं डॉ. हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय के संस्थापक सर डॉ हरीसिंह गौर की 153 वीं जयन्ती के अवसर पर विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. नीलिमा गुप्ता ने सागर शहर के तीनबत्ती पहुँचकर डॉ. गौर की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया और सभा को संबोधित किया. उन्होंने भारतीय मेधा के प्रखर स्तम्भ और बुन्देली पुरुषार्थ के जागतिक पुरूष डॉ. हरीसिंह गौर के जन्मदिवस की सभी को हार्दिक बधाई दी.
उन्होंने कहा कि आज से 153वर्ष पहले सूरज वैसे ही निकला होगा जैसे आज निकला है, हवा में वैसी ही एक गुनगुनी सी ठंडक होगी जैसा आज है। पर उस दिन सूरज के साथ उसके एक ऐसे सहचर ने जन्म लिया था जो आगे चलकर पूरे बुन्देलखंड की आबरू बन गया। उन्होंने कहा कि गौर साहब के संघर्षों से हम सभी परिचित हैं. कितनी कठिन मुष्किलों और अभावों के बीच वे पले और बढ़े जिसका ख्याल और बोध हम सभी को है। सागर में पढ़ाई की समुचित व्यवस्था नहीं होने के कारण बहुत दुःख के साथ उन्हें सागर छोड़ना पड़ा था। अपने उस दुःख को उन्होंने एक महान संकल्प में बदल लिया कि जैसे भी हो सागर में उच्च अध्ययन की व्यवस्था होना ही चाहिए। और उन्होंने अपने उस संकल्प को साकार करके दिखाया भी।
18 जुलाई 1946 को इस धरती पर डॉ. हरीसिंह गौर ने ज्ञान का जो विरवा रोपा था, आज वह ज्ञान के एक विषाल और छतनार कल्पवृ़क्ष में परिवर्तित हो चुका है। प्रगति और उन्नयन की अनेक उपलब्धियाँ विश्वविद्यालय के साथ जुड़ती जा रही हैं।
उन्होंने बताया कि नये भवनों और नये पाठ्यक्रमों के साथ अपनी अधिरचना में विस्तार करने के साथ ही हमारा विश्वविद्यालय ज्ञान-विज्ञान क्षेत्र में प्रखरतम विद्यार्थी और सचेत एवं संवेदनषील नागरिक तैयार कर रहा है।
उन्होंने इंजीनियरिंग और मैनेजमेंट में शुरू किये जा रहे पाठ्यक्रमों की जानकारी साझा की. उन्होंने यह भी बताया कि जल्द ही इंस्टिट्यूट ऑफ़ पैरामेडिकल साइंसेस भी खुलने जा रहा है जहां नए-नए पाठ्यक्रम शुरू किये जा रहे हैं. उन्होंने विद्यार्थियों और शिक्षकों की उपलब्धियों को साझा करते हुए कहा कि विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में मेरी कोशिष है कि मैं डॉ. हरीसिंह गौर के सपनों को अपने प्रत्येक विद्यार्थी की आँखों में झलकता देखूँ।
उन्होंने कहा कि मैं पूरे गर्व के साथ कहना चाहती हूँ कि आप एक श्रेष्ठ शहर के कृतज्ञ नागरिक हैं। आप सभी गौर साहब के प्रति न सिर्फ श्रद्धा का भाव रखते हैं बल्कि उसे उल्लास के साथ व्यक्त भी कर रहे हैं।
डॉ. गौर का विश्वविद्यालय निरन्तर प्रगति-पथ पर अग्रसर है। पर अभी इसे और आगे जाना है। समय आ गया है कि अब हम सभी अपने सवालों को सहयोग में, अपनी श्रद्धा को समर्पण में और अपनी निष्ठा को कर्म में रूपान्तरित कर अपने गौर साहब के सपनों में रंग भरें।
कार्यक्रम में सागर शहर के जनप्रतिनिधि, गणमान्य नागरिक, विद्यार्थी, विश्वविद्यालय एवं जिला प्रशासन के अधिकारी, कर्मचारी, शिक्षक एवं जनसामान्य बड़ी संख्या में उपस्थित थे.
डॉ. गौर जयन्ती पर निकली भव्य शोभायात्रा
परम्परानुसार शहर के तीनबत्ती से बैंड बाजे के साथ भव्य शोभायात्रा निकली जो प्रमुख मार्गों से होती हुई विश्वविद्यालय पहुँची. इस दौरान शहर के नागरिक, जनप्रतिनिधि, विद्यार्थी और आमजन इस शोभायात्रा का हिस्सा बने. शोभायात्रा का जगह-जगह स्वागत हुआ.
विवि में हुआ मुख्य समारोह आयोजित
महान दानवीर, विधिवेत्ता एवं डॉ. हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय के संस्थापक सर डॉ हरीसिंह गौर की 153 वीं जयन्ती के अवसर पर विश्वविद्यालय के गौर प्रांगण में मुख्य समारोह में मुख्य अतिथि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के पूर्व अध्यक्ष एवं उच्च शिक्षा सलाहकार, उप्र. सरकार प्रो. धीरेन्द्र पाल सिंह जी, विश्वविद्यालय के कुलाधिपति प्रो. बलवंतराय शांतिलाल जानी एवं विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. नीलिमा गुप्ता ने संबोधित किया.
डॉ. गौर सच्चे अर्थों में सामाजिक समता और न्याय के पुरोधा थे- कुलाधिपति
कुलाधिपति प्रो. बलवंतराय शांतिलाल जानी ने कहा कि डॉ गौर ने दासत्व की पीड़ा समझी। वे सह शिक्षा के पक्षधर थे. उन्होंने बाल विवाह आदि कुप्रथाओं के बारे में सोचा और इसके लिए विधि लेकर आए। उनके जीवन के इस अनेक उदाहरण है जो नारी सशक्तिकरण और नारी चेतना को समझने में मदद करते है। अंतर्जातीय विवाह की संतान को संपत्ति में मान्यता दी। उन्होंने सामाजिक चेतना को बदलने पर ध्यान दिया, कुप्रथाओ को बदला और समाज को बदला।
नागरिकता को लेकर लड़े। समानता का भाव रखा. आज से कई वर्ष पहले उन्होंने सामुदियक रूप से विकास को महत्व दिया। विधि के आधार पर सभी कुप्रथाओं को तोड़ने का काम किया। जिस तरह अंबेडकर बुद्ध धर्म अधिकार करके बुद्ध वादी बन गए वे भी बने। पहली बार दिल्ली विश्वविद्यालय में भारतीय भाषा के अध्ययन की भूमिका बनी। हम उनके जैसे बुद्धिजीवी बनें जिससे राष्ट्र को हम परम वैभव के शिखर पर ले जा सके।
*डॉ. गौर ने बुंदेलखंड का नाम विश्वपटल पर स्थापित किया- प्रो. डीपी सिंह*
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रो डी पी सिंह ने अपने उद्बोधन में कहा कि डॉ गौर सिर्फ सागर ही नहीं बल्कि देश के महान सपूत जिन्होने बुंदेलखंड की मिट्टी का नाम देश और विदेश में रोशन किया।
हमारे चिंतन में डॉ गौर हमेशा बने रहे ऐसी कामना करते हुए उन्होंने गौर जयंती की सभी को शुभकामनाएं दी। उन्होंने कहा कि वे सदैव सागर के ऋणी रहेगें, सागर उनकी सांसों में बसता है। उनके शैक्षिक पदो की यात्रा सागर से शुरू हुई थी जिसमें उन्होंने सबसे कम उम्र के कुलपति बनने का अवसर मिला। उन्होंने कहा कि डॉक्टर गौर के व्यक्तिव एवं कृतत्व के बारे में सभी जानते है। हम सभी को विवि के भविष्य के बारे में सोचना चाहिए कि वह कैसे और ऊंचाई पर जाए। देश के विकास में शिक्षा व्यवस्था का योगदान अहम होता है।
तकनीक और विज्ञान के साथ आज की आवश्यकता अनुसार, व्यवसायिक, कौशल विकास, कंटीन्यूइंग शिक्षा सम्मिलित कर नए सिरे से बनाना चाहिए। सभी शैक्षिक व्यवस्था एवं गतिविधियों को विद्यार्थी केंद्रित बनाना चाहिए। सभी के लिए गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा उपलब्ध हो यह भारत सरकार का लक्ष्य है, शिक्षा तक जिसकी पहुंच न हो शिक्षा वहां पहुंचनी चाहिए। विवि को एक्सटेंशन एवं रिक्रूटमेंट जैसे केंद्र की शुरुआत करनी चाहिए। अपनी नेटवर्किंग बढ़ाने के विश्वसनीयता का प्रचार करना चाहिए।
उन्होंने कहा कि विवि को अपनी प्रोफाइल सशक्त बनानी चाहिए एवं नेक आदि विदेशी रैंकिंग में प्रतिभागिता करनी चाहिए। विवि को अपने आप में अनूठा बनाने का प्रयास करना चाहिए। विवि की विशिष्टता ही उसकी मुख्य ताकत होनी चाहिए। उन्होंने कहा की विद्यार्थियो को डॉ गौर से यह सीख अवश्य लेनी चाहिए की आप चाहे जहां भी रहें एक बाद अपनी जन्म स्थली के लिए लौट कर कुछ करें। डॉ गौर ने बुंदेलखंड क्षेत्र के विकास के लिए शिक्षा का माध्यम चुना। कोठारी आयोग की रिपोर्ट में भी शिक्षा को देश के समूचे विकास से जोड़ा गया था। आज जब नई शिक्षा नीति का क्रियान्वन इस विवि में हो रहा है, यह एक उपलब्धि की बात है। इसके लिए उन्होंने सभी को बधाई दी और यही कामना की इस विवि की उपलब्धियां हर क्षेत्र में उल्लेखित हों।
डॉ. गौर का जीवन और कर्म हम सभी के लिए प्रेरणा का अक्षय स्रोत है- कुलपति प्रो. नीलिमा गुप्ता
कुलपति प्रो. नीलिमा गुप्ता ने शैक्षिक एवं सामाजिक नवजागरण के अद्वितीय नायक और विश्वविद्यालय के संस्थापक पितृपुरुष डॉ. हरीसिंह गौर जी की 153वीं जयंती सभी को बधाई देते हुए कहा कि हरीसिंह गौर की जयंती हमारे विश्वविद्यालय के लिए, बुन्देलखण्ड के लिए और पूरे देष के लिए ज्ञान की उज्ज्वल चेतना का महापर्व है। आज का यह दिन हमें विश्वास दिलाता है कि मनुष्य की सामर्थ्य से कुछ भी बड़ा नहीं है, हारा वही है जो लड़ा नहीं है। उन्होंने कहा कि घोर अभाव और मुष्किलें जोर आजमाइष करती रहीं पर गौर साहब ने अपने इस्पाती इरादों सेएक सामान्य सी लगने वाली जिन्दगी को असाधारण अफसाने में बदल दिया। सागर के शनीचरी से कैम्ब्रीज विश्वविद्यालय तक की उनकी यात्रा एक किरदार का किस्से में रूपान्तरित होते जाने की महागाथा है। गौर साहब का जीवन और कर्म उन सबके के लिए प्रेरणा का अक्षय स्रोत है जो समाज-हित में कुछ नया और सुन्दर करना चाहते हैं। डॉ. गौर का सम्पूर्ण जीवन मनुष्य के अदम्य पुरुषार्थ की जय-गाथा है। प्रतिकूल जीवन-संदर्भों के बीच अपनी मातृभूमि के उन्नयन के लिए आपने जो सपना देखा था उसे सर्वस्व अर्पण कर पूरा किया।
उन्होंने कहा कि मैं पूरे विश्वास के साथ कहना चाहती हूँ कि यह गौर साहब का इस्पाती-इरादा ही था कि उन्होंने अपने सपने को सरोकार में, मिट्टी को चंदन में और अपनी मातृभूमि को ज्ञान के तीर्थ में बदल दिया। मैं विशेष तौर पर अपने विद्यार्थियों को याद दिलाना चाहती हूँ कि आप डॉ. हरीसिंह गौर जैसे आधुनिक युग के दधीचि की तपस्या और त्याग के परिसर में शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। अध्ययन, शोध और चिन्तन के क्षेत्र में आप सबकी सजगता और उपलब्धियाँ हमारे विश्वविद्यालय के यष में श्रीवृद्धि करेंगी। आज हमारा विश्वविद्यालय अपने श्रेष्ठ शिक्षकों, योग्य अधिकारियों, कर्मठ कर्मचारियों तथा संस्कारी विद्यार्थियों के प्रेरक समन्वय साथ निरन्तर प्रगति की ओर उन्मुख है। हमें इस बात का गर्व है कि हम डॉ. गौर जैसे मसीहा के सपनों के सिपाही हैं।
उन्होंने कहा कि हम शैक्षिक नवाचार, प्रशासनिक दक्षता एवं अकादमिक दृढ़ता के साथ राष्ट्रीय षिक्षा नीति-2020 का क्रियान्वयन इस अकादमिक सत्र से कर रहे हैं। जिससे कि हमारे विद्यार्थी ज्ञान-विज्ञान की वैष्विक दुनिया और भविष्य की चुनौतियों के समक्ष स्वयं को एक सक्षम विकल्प के रूप में तैयार कर सकें।
उन्होंने विश्वविद्यालय की अकादमिक उपलब्धियों की लंबी श्रृंखला प्रस्तुत की जिसमें बहुत से शिक्षकों और विद्यार्थियों ने अकादमिक उपलब्धियां हासिल की हैं और कहा कि हमारे शिक्षक और विद्यार्थी विश्वविद्यालय की श्रेष्ठ अकादमिक निरन्तरता को जीवंत बनाये रखें हुए हैं. उन्होंने सभी शिक्षकों, विद्यार्थियों एवं कर्मचारियों-अधिकारियों को बधाई प्रेषित की.
उन्होंने विश्वविद्यालय में आयोजित किये गए विभिन्न अकादमिक, एवं सह शैक्षणिक गतिविधियों के संबंध में प्रतिवेदन प्रस्तुत करते हुए आगामी रूपरेखा पर विस्तार पूर्वक चर्चा की और कहा कि हमारा विश्वविद्यालय अपने विद्यार्थियों के चतुर्दिक विकास हेतु अपनी अकादमिक प्रतिबद्धता और अपने सामाजिक सरोकारों को नये सिरे से मूल्याकिंत, सृजित और विस्तृत कर रहा है। उन्होंने कहा कि हमारा विश्वविद्यालय अपने अधिकारियों एवं कर्मचारियों के सर्वौच्च हितों के संरक्षण के लिए कृत संकल्पित है। मैं इस विश्वविद्यालय की कुलपति के रूप में विश्वविद्यालय के शिक्षकों की गरिमा एवं अधिकारों के प्रति बचनबद्ध हूँ। आज हमारा सबसे बड़ा कर्तव्य है कि हम सभी आत्मिक श्रद्धा और समर्पण भाव से अपनी भूमिका का निर्वहन करें जिससे कि शैक्षिक नवजागरण के पुरोधा और बुन्देली आकांक्षा के महासूर्य डॉ. हरीसिंह गौर का स्वप्न पूरे वैभव के साथ इस धरती पर उतर सके।
स्वागत भाषण कुलसचिव संतोष सहगोरा ने दिया. गौर उत्सव के मुख्य समन्वयक प्रो सुबोध जैन ने सात दिवासीय गौर उत्सव का प्रतिवेदन प्रस्तुत किया। सभी अतिथियों को शाल, श्रीफल एवं स्मृति चिंह भेंट किया गया. विभिन्न दानदाताओं के नाम पर पदक एवं पुरस्कारों को प्रदान किया गया. खेल प्रतियोगिताओं में विजित टीम और प्रतिभागियों को भी पुरस्कार प्रदान किये गये. अवसर पर विश्वविद्यालय के शिक्षक एवं विद्यार्थियों द्वारा लिखित कई पुस्तकों का विमोचन भी अतिथियों द्वारा किया गया.
गौर पीठ शोध एवं अध्ययन का अनूठा केंद्र बनेगा- कुलपति
विश्वविद्यालय में हुआ गौर पीठ का उदघाटन
तीन बत्ती और मुख्य समारोह में अपने संबोधन के दौरान उन्होंने विश्वविद्यालय में गौर पीठ की स्थापना की घोषणा भी और इसमें सहयोग करने की भी अपील की. उन्होंने कहा कि यह केंद्र शोध एवं अध्ययन का अनूठा केंद्र बनेगा. उन्होंने कहा कि मध्य प्रदेश सरकार से मेरी गुजारिश है कि डॉ गौर संग्रहालय स्थापित करने में सहयोग करें ताकि उनके जीवन से जुडी तमाम उन चीजों का संग्रह और प्रदर्शन किया जा सके और ज्यादा से ज्यादा लोग उनके जीवन, संघर्ष और उनके विचारों के बारे में जान सकें. उन्होंने जनसहयोग के लिए भी सभी का धन्यवाद ज्ञापित किया. मुख्य समारोह आरम्भ होने के पूर्व अतिथियों की उपस्थिति में गौर पीठ का उद्घाटन भी हुआ.
गौर प्रांगण स्थित गौर समाधि पर सभी अतिथियों ने पुष्पांजलि दी.
*तुम्हें दिल्लगी भूल जानी पड़ेगी, मोहब्बत की राहों में आ कर तो देखो......*
*गौर जयंती पर विश्वविद्यालय के छात्रों की कौव्वाली, प्रहसन, गीतों की प्रस्तुतियों ने समाँ बांधा*
सागर. महान दानवीर, विधिवेत्ता एवं डॉ. हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय के संस्थापक सर डॉ हरीसिंह गौर की 153 वीं जयन्ती के अवसर पर विश्वविद्यालय के छात्रों द्वारा सांस्कृतिक संध्या कार्यक्रम का आयोजन किया गया। जिसमें विश्वविद्यालय के छात्रों द्वारा गौर गीत, स्किट (द शूज), कव्वाली विश्वविद्यालय के वर्तमान एवं पूर्व छात्रों द्वारा, ताल तरंग जैसे कई कार्यक्रम विश्वविद्यालय के वर्तमान एवं पूर्व छात्रों द्वारा प्रस्तुत किये गए.
'जूते' स्किट के मंचन पर दर्शकों ने खूब आनंद करते हुए तालियां बजाईं। नाम गुम जाएगा, चेहरा ये बदल जायेगा..... एकल गीत की प्रस्तुति दी गई। वर्तमान एवं पूर्व छात्रों ने तुम्हें दिल्लगी भूल जानी पड़ेगी कौव्वाली की शानदार प्रस्तुति दी। विद्यार्थियो ने कई तरह के ताल वाद्य की प्रस्तुति दी। ऑर्केस्ट्रा पर कई शानदार गीतों ने दर्शकों को आनंदित किया। अंत में प्रसिद्ध बुंदेली लोकनृत्य बधाई की शानदार प्रस्तुति हुई।
कार्यक्रम का संचालन ओशी जैन ने किया। विश्वविद्यालय के कुलाधिपति प्रो बलवंतराय शांतिलाल जानी, कुलपति प्रो नीलिमा गुप्ता, एवं विवि के कई शिक्षक, कर्मचारी, अधिकारी, विद्यार्थी एवं नगरवासी उपस्थित रहे।
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एडिटर: विनोद आर्य
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+91 94244 37885
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