शौक सत्संग का, मृत्यु मन की, रोग प्रेम का और भोग कर्मों का होः संत श्री नागर जी
खुरई। दुनिया में आए हैं तो यहां शौक सत्संग का होना चाहिए, मृत्यु मन की होना चाहिए, रोग प्रेम का और भोग कर्मों का लगाना चाहिए। व्यास गादी यह चेतना व प्रेरणा देती है कि हमें भोग मिष्ठान का नहीं अपितु अपने कर्मों का रखाना चाहिए ताकि मृत्यु तक हमारे कर्म थोड़े-थोड़े कटते चले जाएं। इसलिए मन उदास हो,देह में कष्ट हो तो समझो कि यह कर्मों का ही भोग लगता है। यह चेतना पूर्ण संदेश पूज्य संत श्री कमल किशोर जी नागर ने खुरई में श्रीमद् भागवत कथा के द्वितीय दिवस पर अपने मंगल प्रवचनों में कथा श्रावकों को दिए।
मुख्य यजमान दंपति नगरीय विकास एवं आवास मंत्री श्री भूपेंद्र सिंह व श्रीमती सरोज सिंह द्वारा श्रीमद् भागवत जी की पूजा और गुरु आराधना के पश्चात कथा आरंभ हुई। संत श्री नागर जी की अमृतवाणी से कथा रसिकों का अनेक बार अंतस भीग गया। उन्होंने आज भागवत के रचयिता महर्षि वेदव्यास के पुत्र शुकदेव जी की राजा पारीक्षित के राज्य में हुई कथा में स्वयं उनके पिता व्यास जी के श्रोता रूप में उपस्थित होने के संदर्भ से कथा का आरंभ किया। संत श्री ने कहा कि जब लोगों ने व्यास जी से जिज्ञासा की कि आप तो भागवत जी के रचयिता हैं तब भी अपने पुत्र की कथा में आते हैं। ऋषि व्यास जी ने उत्तर दिया कि मुझे अपनी कृति कंठस्थ याद है किंतु आज प्रातः संधि उपासन ध्यान करते हुए मैंने देखा कि स्वयं गोविंद जी इस कथा में उपस्थित होते हैं। मेरे युवा पुत्र शुकदेव की आत्मा निर्मल है, वह केले के पत्तों की लंगोटी मात्र धारण करता है और विरक्त हो चुका है। ऐसे कथावाचक की कथा में गोविंद जी स्वयं आ रहे हैं और मैं इसलिए आ रहा हूं कि कथा में आए गोविंद मुझे भी देख लेंगे।
संत श्री ने बताया कि मुनि शुकदेव ने राजा पारीक्षित को शब्द दिए कि राजन ध्यान करने से भी महत्वपूर्ण है ध्यान का ध्यान रखना, चौबीसों घंटे प्रभु का ध्यान बना रहे। सूत अख्यायी कथा का सार सुनाते हुए शुकदेव जी बोले कि राजन मैं तुम्हें देवताओं का अमृत भी पिलवा सकता हूं। श्राप, मृत्यु, दुखों से बचा सकता हूं। लेकिन राजा पारीक्षित ने कहा कि मुझे न सिद्धि चाहिए न अमरत्व। यहां गंगा जी के किनारे सद्ग्रंथ और आप सामने हैं। देह त्यागने की ऐसी दिव्य जगह और कहां होगी। मैं ऐसा शुभ अवसर नहीं छोड़ना चाहता अपितु यह चाहता हूं कि मेरा शरीर यहीं छूटे। इस प्रकार शुकदेव जी ने राजा को गुहृय ज्ञान दिया जिससे उनका अंतःकरण शुद्ध हुआ और जिज्ञासा समाप्त हो गई।
संत श्री नागर जी ने कहा कि राजा पारीक्षित को कथा का सार यह मिला कि शरीर की मृत्यु होना मृत्यु नहीं है। मृत्यु हो जाती है पर मुक्ति नहीं होती। शरीर छूटने से पहले जिसकी गुहृय ज्ञान से मन की मृत्यु हो जाए वही पार हो सकता है। मन की मृत्यु मुक्ति है, तन की मृत्यु मुक्ति नहीं है चाहे हजार वर्ष की आयु क्यों न मिल जाए। नागर जी ने भजन के अंश सुनाए,“ माया मरी न मन मरा, मर- मर गया शरीर।“
संत श्री नागर जी ने कहा कि कथाएं इच्छाओं को समाप्त करती हैं। उन्होंने कहा कि भक्ति की शुद्धता तभी तक रहती है जब तक कि भक्त अपने भगवान से अपनी पीड़ा,अपने कष्ट नहीं कहता। पुष्टिमार्ग की यह भी एक विधा है कि जी लेते हैं जैसा भी है, कहते नहीं किसी से। यह भाव बन जाना कि उससे भरत कहो, वह तो आनंदकंद है, वह सुनेगा तो उसे दुख होगा। यहां तो सभी अपने दुख दूर करने को तैयार बैठे हैं अपने दोष दूर करने को कोई तैयार नहीं दिखता। भगवान के समक्ष यह भी तो कभी मुख से निकालो कि मेरे दोष दूर करो। उन्होंने दृष्टिहीन कृष्ण भक्त सूरदास जी का उद्धरण बताते हुए कहा कि उनके माता पिता बचपन में ही नहीं रहे। भाभी ने घर से भोजन की थाली पर से तिरस्कार करके निकाल दिया और मुंह का कौर तक थुकवा कर घर से निकाला पर सूरदास जी ने कभी प्रभु से शिकायत नहीं कि और कथा, भजन में लगे रहे। एक कथा में जाते हुए मार्ग में गहरे कुएं में गिर जाने पर भगवान श्री कृष्ण ने स्वयं आकर लाठी का सहारा देकर उन्हें निकाला और वे पहचान गये कि प्रभु स्वयं आए हैं। तब सूरदास जी ने भगवान से जीवन में पहली बार अनोखी शिकायत की। सूरदास जी ने कहा कि मैंने अंधे होते हुए माता पिता का विछोह, परिवार का तिरस्कार, भूख प्यास, पीड़ाएं सभी भोग ली पर आपसे व्यक्त नहीं किया। इनमें से कुछ भी मुझे भजन और कथा श्रवण से वंचित नहीं कर सका, मैंने हर क्षण गोविंद के गुण गाए। आप मेरे प्राण भी ले लीजिए पर मेरा कथा रस क्यों छुड़वा रहे हैं, मेरे कथा जाने के मार्ग में बाधाएं न आ सकें इतनी तो कृपा बनाए रखिए प्रभु। संत श्री नागर जी ने कहा कि इस कथा के सहारे अनेक लोगों का जीवन कट रहा है। कई बार मनुष्य हारने लगता है, टूट जाता है पर कथाओं से मिला ज्ञान हारे मन को संबल देता है।
सद्गुरु नागर जी ने सागर जिले में अपने अनुभवों के बारे में कहा कि सागर तो सागर जैसा ही है। यहां कथा सुनाने की मुझे याद आती है। जितनी कृष्ण भक्ति सागर में देखने को मिलती है वैसा सिर्फ वृंदावन जी में ही अनुभव होता है। सागर की कृष्ण भक्ति अद्वितीय है। मुख्य यजमान मंत्री श्री भूपेंद्र सिंह के गुणों की प्रशंसा करते हुए श्री नागर जी ने कहा कि प्राचीन परंपरा है कि पुरुषार्थ करने वालों का नाम लेने से भी कृपा बनी रहती है। इस अवधि में कथा का पवित्र मनोरथ लेकर मंत्री भूपेंद्र सिंह जी यह आयोजन कर रहे हैं। व्यास गादी उन्हें सद्गुणों से सुशोभित देखती है। ऐसे यजमान बहुत कम दिखाई देते हैं। यजमान जितना सरल और गुणों से सुशोभित होता है उतना ही रस कथा में उतरता है। संत श्री नागर जी ने मंत्री भूपेंद्र सिंह को आशीर्वाद देते हुए कहा कि आप धन्य हों, आपकी आभा बनी रहे और आप ऐसे ही पुण्य कार्य करते रहें। खुरई के कथा पंडाल के व्यवस्थित और शांत वातावरण की भी सद्गुरु ने प्रशंसा की और कहा कि सन्नाटे में ही कथा का दिव्य रस बहता है।
ये रहे मोजूद
आज कथा पंडाल में भाजपा जिलाध्यक्ष गौरव सिरोठिया, मंत्री प्रतिनिधि लखन सिंह,रामनिवास माहेश्वरी, नगर पालिका अध्यक्ष नन्हींबाई अहिरवार, सागर नगरनिगम परिषद वृंदावन अहिरवार, पृथ्वी सिंह, रश्मि सोनी, बलराम यादव, कल्लू यादव सहित गांव शहरों से पधारे हजारों महिला पुरुष श्रद्धालु शामिल हुए।
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▪️मंत्री भूपेंद्र सिंह व श्रीमति सरोज सिंह ने की पूजा और गुरू आराधना
खुरई। दुनिया में आए हैं तो यहां शौक सत्संग का होना चाहिए, मृत्यु मन की होना चाहिए, रोग प्रेम का और भोग कर्मों का लगाना चाहिए। व्यास गादी यह चेतना व प्रेरणा देती है कि हमें भोग मिष्ठान का नहीं अपितु अपने कर्मों का रखाना चाहिए ताकि मृत्यु तक हमारे कर्म थोड़े-थोड़े कटते चले जाएं। इसलिए मन उदास हो,देह में कष्ट हो तो समझो कि यह कर्मों का ही भोग लगता है। यह चेतना पूर्ण संदेश पूज्य संत श्री कमल किशोर जी नागर ने खुरई में श्रीमद् भागवत कथा के द्वितीय दिवस पर अपने मंगल प्रवचनों में कथा श्रावकों को दिए।
मुख्य यजमान दंपति नगरीय विकास एवं आवास मंत्री श्री भूपेंद्र सिंह व श्रीमती सरोज सिंह द्वारा श्रीमद् भागवत जी की पूजा और गुरु आराधना के पश्चात कथा आरंभ हुई। संत श्री नागर जी की अमृतवाणी से कथा रसिकों का अनेक बार अंतस भीग गया। उन्होंने आज भागवत के रचयिता महर्षि वेदव्यास के पुत्र शुकदेव जी की राजा पारीक्षित के राज्य में हुई कथा में स्वयं उनके पिता व्यास जी के श्रोता रूप में उपस्थित होने के संदर्भ से कथा का आरंभ किया। संत श्री ने कहा कि जब लोगों ने व्यास जी से जिज्ञासा की कि आप तो भागवत जी के रचयिता हैं तब भी अपने पुत्र की कथा में आते हैं। ऋषि व्यास जी ने उत्तर दिया कि मुझे अपनी कृति कंठस्थ याद है किंतु आज प्रातः संधि उपासन ध्यान करते हुए मैंने देखा कि स्वयं गोविंद जी इस कथा में उपस्थित होते हैं। मेरे युवा पुत्र शुकदेव की आत्मा निर्मल है, वह केले के पत्तों की लंगोटी मात्र धारण करता है और विरक्त हो चुका है। ऐसे कथावाचक की कथा में गोविंद जी स्वयं आ रहे हैं और मैं इसलिए आ रहा हूं कि कथा में आए गोविंद मुझे भी देख लेंगे।
आप सभी जो भी अच्छा,पुण्य कर्म करते हैं भरोसा रखना उस भगवान ने स्वयं वचन दिया है कि जहां-जहां भी कथा होगी वहां मैं स्वयं आऊंगा। सदगुरु नागर जी ने तत्पश्चात भजन गाया,“जहां सत्संग होता है वहां भगवान आते हैं।“ उन्होंने कहा कि इस कथा पंडाल में भी साधुसंत, विद्वान, महात्मा, पुजारी, स्थानधारी सभी बैठे में मैं उन सभी को सादर प्रणाम करता हूं।
संत श्री ने बताया कि मुनि शुकदेव ने राजा पारीक्षित को शब्द दिए कि राजन ध्यान करने से भी महत्वपूर्ण है ध्यान का ध्यान रखना, चौबीसों घंटे प्रभु का ध्यान बना रहे। सूत अख्यायी कथा का सार सुनाते हुए शुकदेव जी बोले कि राजन मैं तुम्हें देवताओं का अमृत भी पिलवा सकता हूं। श्राप, मृत्यु, दुखों से बचा सकता हूं। लेकिन राजा पारीक्षित ने कहा कि मुझे न सिद्धि चाहिए न अमरत्व। यहां गंगा जी के किनारे सद्ग्रंथ और आप सामने हैं। देह त्यागने की ऐसी दिव्य जगह और कहां होगी। मैं ऐसा शुभ अवसर नहीं छोड़ना चाहता अपितु यह चाहता हूं कि मेरा शरीर यहीं छूटे। इस प्रकार शुकदेव जी ने राजा को गुहृय ज्ञान दिया जिससे उनका अंतःकरण शुद्ध हुआ और जिज्ञासा समाप्त हो गई।
संत श्री नागर जी ने कहा कि राजा पारीक्षित को कथा का सार यह मिला कि शरीर की मृत्यु होना मृत्यु नहीं है। मृत्यु हो जाती है पर मुक्ति नहीं होती। शरीर छूटने से पहले जिसकी गुहृय ज्ञान से मन की मृत्यु हो जाए वही पार हो सकता है। मन की मृत्यु मुक्ति है, तन की मृत्यु मुक्ति नहीं है चाहे हजार वर्ष की आयु क्यों न मिल जाए। नागर जी ने भजन के अंश सुनाए,“ माया मरी न मन मरा, मर- मर गया शरीर।“
संत श्री नागर जी ने कहा कि कथाएं इच्छाओं को समाप्त करती हैं। उन्होंने कहा कि भक्ति की शुद्धता तभी तक रहती है जब तक कि भक्त अपने भगवान से अपनी पीड़ा,अपने कष्ट नहीं कहता। पुष्टिमार्ग की यह भी एक विधा है कि जी लेते हैं जैसा भी है, कहते नहीं किसी से। यह भाव बन जाना कि उससे भरत कहो, वह तो आनंदकंद है, वह सुनेगा तो उसे दुख होगा। यहां तो सभी अपने दुख दूर करने को तैयार बैठे हैं अपने दोष दूर करने को कोई तैयार नहीं दिखता। भगवान के समक्ष यह भी तो कभी मुख से निकालो कि मेरे दोष दूर करो। उन्होंने दृष्टिहीन कृष्ण भक्त सूरदास जी का उद्धरण बताते हुए कहा कि उनके माता पिता बचपन में ही नहीं रहे। भाभी ने घर से भोजन की थाली पर से तिरस्कार करके निकाल दिया और मुंह का कौर तक थुकवा कर घर से निकाला पर सूरदास जी ने कभी प्रभु से शिकायत नहीं कि और कथा, भजन में लगे रहे। एक कथा में जाते हुए मार्ग में गहरे कुएं में गिर जाने पर भगवान श्री कृष्ण ने स्वयं आकर लाठी का सहारा देकर उन्हें निकाला और वे पहचान गये कि प्रभु स्वयं आए हैं। तब सूरदास जी ने भगवान से जीवन में पहली बार अनोखी शिकायत की। सूरदास जी ने कहा कि मैंने अंधे होते हुए माता पिता का विछोह, परिवार का तिरस्कार, भूख प्यास, पीड़ाएं सभी भोग ली पर आपसे व्यक्त नहीं किया। इनमें से कुछ भी मुझे भजन और कथा श्रवण से वंचित नहीं कर सका, मैंने हर क्षण गोविंद के गुण गाए। आप मेरे प्राण भी ले लीजिए पर मेरा कथा रस क्यों छुड़वा रहे हैं, मेरे कथा जाने के मार्ग में बाधाएं न आ सकें इतनी तो कृपा बनाए रखिए प्रभु। संत श्री नागर जी ने कहा कि इस कथा के सहारे अनेक लोगों का जीवन कट रहा है। कई बार मनुष्य हारने लगता है, टूट जाता है पर कथाओं से मिला ज्ञान हारे मन को संबल देता है।
सद्गुरु नागर जी ने सागर जिले में अपने अनुभवों के बारे में कहा कि सागर तो सागर जैसा ही है। यहां कथा सुनाने की मुझे याद आती है। जितनी कृष्ण भक्ति सागर में देखने को मिलती है वैसा सिर्फ वृंदावन जी में ही अनुभव होता है। सागर की कृष्ण भक्ति अद्वितीय है। मुख्य यजमान मंत्री श्री भूपेंद्र सिंह के गुणों की प्रशंसा करते हुए श्री नागर जी ने कहा कि प्राचीन परंपरा है कि पुरुषार्थ करने वालों का नाम लेने से भी कृपा बनी रहती है। इस अवधि में कथा का पवित्र मनोरथ लेकर मंत्री भूपेंद्र सिंह जी यह आयोजन कर रहे हैं। व्यास गादी उन्हें सद्गुणों से सुशोभित देखती है। ऐसे यजमान बहुत कम दिखाई देते हैं। यजमान जितना सरल और गुणों से सुशोभित होता है उतना ही रस कथा में उतरता है। संत श्री नागर जी ने मंत्री भूपेंद्र सिंह को आशीर्वाद देते हुए कहा कि आप धन्य हों, आपकी आभा बनी रहे और आप ऐसे ही पुण्य कार्य करते रहें। खुरई के कथा पंडाल के व्यवस्थित और शांत वातावरण की भी सद्गुरु ने प्रशंसा की और कहा कि सन्नाटे में ही कथा का दिव्य रस बहता है।
ये रहे मोजूद
आज कथा पंडाल में भाजपा जिलाध्यक्ष गौरव सिरोठिया, मंत्री प्रतिनिधि लखन सिंह,रामनिवास माहेश्वरी, नगर पालिका अध्यक्ष नन्हींबाई अहिरवार, सागर नगरनिगम परिषद वृंदावन अहिरवार, पृथ्वी सिंह, रश्मि सोनी, बलराम यादव, कल्लू यादव सहित गांव शहरों से पधारे हजारों महिला पुरुष श्रद्धालु शामिल हुए।
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एडिटर: विनोद आर्य
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