सागर 3 दिसंबर 2022।
मन में लगन और मंजिल पाने का जुनून हो तो हर मुकाम आसान है। गढ़ाकोटा के छोटे से गांव संजरा के रहने वाले दिव्यांग जगदीश पटेल ने साबित कर दिया है कि हौसला हो तो विकलांगता हार जाती है। जगदीश पटेल कहते हैं कि सोच हमेशा बड़ी रखो। ख्वाब हमेशा ऊंचे देखो। एक न एक दिन कामयाबी जरूर मिलेगी।
28 वर्षीय जगदीश पटेल विशेष रूप से ऐसे शख्स का नाम है, जो अपने सपनों को हासिल करने के लिए उन तमाम बाधाओं के खिलाफ मजबूती से खडा है, जिनका सामना उसे अपनी जिंदगी में कदम-कदम पर करना पड़ा है।
जगदीश का मानना है कि अगर कोई अपने लक्ष्य को लेकर दृढ़ निश्चय कर ले और अपनी पूरी ताकत उस लक्ष्य को प्राप्त करने में लगा दे, तो इस दुनिया में कुछ भी असंभव नहीं है।
मन में लगन और मंजिल पाने का जुनून हो तो हर मुकाम आसान है। गढ़ाकोटा के छोटे से गांव संजरा के रहने वाले दिव्यांग जगदीश पटेल ने साबित कर दिया है कि हौसला हो तो विकलांगता हार जाती है। जगदीश पटेल कहते हैं कि सोच हमेशा बड़ी रखो। ख्वाब हमेशा ऊंचे देखो। एक न एक दिन कामयाबी जरूर मिलेगी।
28 वर्षीय जगदीश पटेल विशेष रूप से ऐसे शख्स का नाम है, जो अपने सपनों को हासिल करने के लिए उन तमाम बाधाओं के खिलाफ मजबूती से खडा है, जिनका सामना उसे अपनी जिंदगी में कदम-कदम पर करना पड़ा है।
जगदीश का मानना है कि अगर कोई अपने लक्ष्य को लेकर दृढ़ निश्चय कर ले और अपनी पूरी ताकत उस लक्ष्य को प्राप्त करने में लगा दे, तो इस दुनिया में कुछ भी असंभव नहीं है।
सागर जिले के तहसील गढ़ाकोटा के छोटे से गांव (संजरा ग्राम) रहने वाला है। जगदीश पटेल ने बताया कि पांच महीने की उम्र में उसे तेज बुखार की शिकायत हुई। जहां जगदीश पोलियो का शिकार हो गया।जगदीश की उम्र जब तीन साल की हुई, तो उसने स्कूल में दाखिला ले लिया। लेकिन स्कूल में किसी ने उसकी सहायता नहीं की और ऐेसे हालात में उसे दो बार स्कूल छोडना पड़ा ।गोविंद जब पांचवीं कक्षा में आया, तो उसने अपने बडे भाई जगदीश को भी प्रेरित किया कि वह एक बार फिर स्कूल में दाखिला ले ले। उसने जगदीश से वादा किया कि वो उसे रोज अपनी साइकिल पर लेकर स्कूल जाएगा। अब यह रोज का रूटीन बन गया था और इस तरह जगदीश एक बार फिर पढाई की तरफ उन्मुख हुआ।
कुदरत के प्रकोप से पीडित जगदीश ने दस साल की उम्र में व्हीलचेयर का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया था। अब वो बिना किसी सहारे के अपना सफर खुद तय कर लेता था। इसी दौर में उसने पहले ग्रेजुएशन किया और फिर मास्टर्स डिग्री भी हासिल कर ली।
जगदीश एक स्टंटमैन-सिंगर कैसे बना
जगदीश के मन में इस बात को लेकर गहरी निराशा थी कि वह खेती-बाडी में अपने घर वालों का हाथ नहीं बंटा पा रहा था। अपने मन की बात उसने अपने दादा को बताई, जिन्होंने उसे सलाह दी कि वह म्यूजिक थैरेपी का रास्ता अपनाए। यह सलाह उसके लिए एक वरदान साबित हुई और उसकी तमाम चिंताएं इससे मानो दूर हो गईं। उसे इस बात का एहसास ही नहीं हुआ कि म्यूजिक थैरेपी कब उसका जुनून बन गई और कब वो एक साधारण इंसान से एक गायक में बदल गया।
हार्मोनियम के साथ अपनी पहली पहचान उसे आज भी याद है। वो आठवीं क्लास में था और फिल्म ‘राजा हिंदुस्तानी‘ के गीत ‘परदेसी...परदेसी...‘ को वो गाया करता था। इस गाने की वजह से वो अपने दोस्तों और अपने घर वालों के बीच बहुत मशहूर हो गया था और वो अपने सर्किल में एक नामी गायक बन गया था। किशोरावस्था में जगदीश अक्सर एक स्थानीय अखाडे में जाता था जहां उसके दोस्त इंडियन मार्शल आर्ट सीखा करते थे। उसके दोस्त अपने खेल में मगन रहते और जगदीश अपनी व्हीलचेयर पर बैठा-बैठा उनकी नकल करने की कोशिश करता। मजाक-मजाक में शुरू हुए इस सिलसिले ने उसे शारीरिक तौर पर फिट बना दिया और इस तरह एक स्टंटमैन-सिंगर के तौर पर उसका सफर यहीं से शुरू हुआ।
जगदीश की पहली सार्वजनिक परफॉर्मेंस 2012 में श्रीविजयनगर, राजस्थान में हुई, जहां उसने एक ऑडिशन के दौरान अपनी कला का प्रदर्शन किया। उसके समर्पण और जुनून ने उसे लोगों के बीच बेहद लोकप्रिय बना दिया और अब गांवों में लगने वाले मेलों-प्रदर्शनियों और उत्सवों में वो लगातार अपनी कला का जादू बिखेरता रहा। जबलपुर, बैंगलोर, जयपुर, उदयपुर, अहमदाबाद और अन्य अनेक स्थानों पर जगदीश ने एक दिव्यांग स्टंटमैन-गायक के तौर पर अनेक कार्यक्रम पेश किए।
जगदीश नारायण सेवा संस्थान में कंप्यूटर कौशल के व्यावसायिक पाठ्यक्रम को करना चाहता था। संस्थान में रहने और खाने-पीने की निशुल्क व्यवस्था के साथ उसने 3 महीने का कंप्यूटर कौशल प्रशिक्षण हासिल किया। वह एक ऐसे एंटरटेनर और एक ऐसे सच्चे शोमैन के तौर पर उभरा, जो अपनी कला के सहारे लोगों का मनोरंजन करता था। नारायण सेवा संस्थान के कर्मचारियों ने उसके मन की सच्ची भावनाओं को महसूस किया और उन्हें शो बनाने का प्रस्ताव दिया। उन्हें गुजरात के सूरत में नारायण सेवा संस्थान के टैलेंट और फैशन शो में प्रदर्शन करने का मौका दिया गया। जगदीश उस शो का नायक बना और यहीं से एक स्टार का जन्म हुआ। और अब देश के कोने-कोने में ही नहीं, बल्कि भारत के बाहर विदेशो में भी अपनी कला का परचम लहरा रहे है कई बार दक्षिण अफ्रीका ,के डर्बन , नैरोबी , केनिया , मुम्बासा और केनेडा जैसे देशो में, अपने देश प्रदेश , जिला एवं गांव का नाम रोशन करके आये है।
जगदीश नारायण सेवा संस्थान में कंप्यूटर कौशल के व्यावसायिक पाठ्यक्रम को करना चाहता था। संस्थान में रहने और खाने-पीने की निशुल्क व्यवस्था के साथ उसने 3 महीने का कंप्यूटर कौशल प्रशिक्षण हासिल किया। वह एक ऐसे एंटरटेनर और एक ऐसे सच्चे शोमैन के तौर पर उभरा, जो अपनी कला के सहारे लोगों का मनोरंजन करता था। नारायण सेवा संस्थान के कर्मचारियों ने उसके मन की सच्ची भावनाओं को महसूस किया और उन्हें शो बनाने का प्रस्ताव दिया। उन्हें गुजरात के सूरत में नारायण सेवा संस्थान के टैलेंट और फैशन शो में प्रदर्शन करने का मौका दिया गया। जगदीश उस शो का नायक बना और यहीं से एक स्टार का जन्म हुआ। और अब देश के कोने-कोने में ही नहीं, बल्कि भारत के बाहर विदेशो में भी अपनी कला का परचम लहरा रहे है कई बार दक्षिण अफ्रीका ,के डर्बन , नैरोबी , केनिया , मुम्बासा और केनेडा जैसे देशो में, अपने देश प्रदेश , जिला एवं गांव का नाम रोशन करके आये है।
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