तीन दिवसीय जनयोद्धा नाट्य समारोह शुभारंभ 21दिसंबर से
सागर। स्वराज संस्थान संचनालय संस्कृति विभाग,मध्यप्रदेश शासन के द्वारा, रंगप्रयोग थिएटर ग्रुप एवं जिला प्रशासन के सहयोग से 3 दिवसीय 21,22,23 दिसंबर 2022 को नाट्य समारोह का आयोजन रविंद्र भवन में किया जा रहा है। इस नाट्य समारोह में आजादी के समय के जन नायकों के जीवन चरित्र एवं आजादी के दौरान उनका अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह और योगदान का चरित्र चित्रण होगा। जिसमेें एक ओर आदिवासी जननायक बिरसा मुंडा, तो दूसरी ओर बुंदेली वीर महाबली छत्रसाल के साथ बुंदेली सपूत हृदये शाह जूदेव के 1842 के बुंदेली विद्रोह के नाटक का प्रस्तुतिकरण किया जा रहा है। चर्चा के दौरान वरिष्ठ रंगकर्मी राजकुमार ने बताया की बुधवार 21 दिसंबर को रंग प्रयोग थिएटर ग्रुप,सागर द्वारा "अबुआ दिसुन अबुआ राज बिरसा मुंडा" की प्रस्तुति होगी जो उनके द्वारा ही निर्देशित किया गया है उन्होंने बताया कि स्वतंत्रता का आंदोलन और भगवान ऐसे शब्द है जो अलग- अलग क्षेत्र के लिए माने जाते है जब पहली बार भगवान बिरसा मुंडा का नाम सुना था तो मुझे आश्चर्य भी हुआ था कि ये भगवान कौन हैं जो भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय रहे । जानने की उत्सुकता बड़ी । जब उनकी जीवन गाथा पर आधारित यह नाटक को पढ़ने का मौका मिला तो मुझे लगा कि एक सामान्य व्यति किस तरह से अपने समाज के लिए अपने देश के लिए क्रांतिकारी काम करके स्वयं भगवान के रूप में प्रतिष्ठापित हो जाता है। वनवासी के रूप में बिरसा मुंडा ने जिस तरह का कार्य किया है निश्चित रूप से एक सामान्य आदमी की संवेदनाओं से परे का काम है । हेजा, चेचक जैसी बीमारियो के बीच भी समाज की सेवा करना और उसी के साथ अपने जल जंगल और जमीन के लिए शक्तिशाली राज्य से सामना करना यह किसी सामान्य व्यति का कार्य नहीं हो सकता । मैं मानता हूं कि उनका कार्य महत्वपूर्ण है । भगवान बिरसा के जीवन के अंतरंग प्रसंगों को यहा प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। कुछ लोककथाएं भी है जिन्हें लेकर इस नाटक में काम किया गया है और स्क्रिप्ट तैयार कर नाट्य शैली में प्रस्तुत किया।
22 दिसंबर गुरुवार को शंखनाद नाट्य मंच, छतरपुर के शिवेंद्र शुक्ला द्वारा निर्देशित "महाबली छत्रसाल" नाटक में बुंदेलखंड के उस वीर सपूत की गाथा है जिसने कठिन परिस्थितियों से जूझते हुए अपना साम्राज्य स्थापित किया।छतरपुर (छत्रपुर)नगर उन्ही के नाम पर बसा है।उनके जीवन की खास बात यह है कि उन्होंने अपने जीवन मे 52 छोटे बड़े युद्ध लड़े और किसी मे पराजित नहीं हुए।प्राणनाथ और शिवाजी से मुलाकात ने उनका जीवन बदल दिया और यमुना से लेकर नर्मदा और चंबल से लेकर टोंस नदी तक अपना साम्राज्य स्थापित किया और मुगलों को बुंदेलखंड में पैर जमाने का मौका नहीं दिया।
23 दिसंबर शुक्रवार को युवा नाट्य मंच, दमोह के राजीव अयाची द्वारा निर्देशित" बुंदेला विद्रोह-1842" जो की
सन 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के पंद्रह वर्ष पूर्व 1842 में शुरू हुए बुंदेलखंड विद्रोह के द्वारा ईस्ट इंडिया कंपनी को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए उसके खिलाफ सशस्त्र विद्रोह करने वाले प्रमुख नायक और 1857 की क्रांति में बलिदानी भूमिका निभाते हुए पूरे परिवार के साथ शहीद होने वाले हीरापुर बुंदेलखंड के राजा हृदेयशाह लोधी के कृतित्व और व्यक्तित्व पर आधारित नाटक "बुंदेला विद्रोह-1842" न सिर्फ बुंदेलखंड बल्कि समस्त भारतवासियों के लिए गौरवान्वित करने वाला विषय है ।
राजा हृदेयशाह जी ने बुन्देलखण्ड की पावन भूमि पर सबसे पहले अपने शौर्य और साहस से आज़ादी का शंखनाद किया। बुन्देलखण्ड के वीरों संगठित कर अंग्रेज़ो को खदेड़ कर देश से भागने संघर्ष के दौरान हृदेयशाह जू देव को अपने साथियों के द्वारा किए गए विश्वासघात के कारण 1842 की क्रांति में हार स्वीकार करनी पड़ी थी, पर उनके मन ने हार नही मानी। हालाँकि उन्हें अग्रेज़ों द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया था, लेकिन 15 वर्ष बाद सन 1857 के गदर में अपने साथियों के साथ पुनः रणक्षेत्र में कूद गए । उन्ही घटनाओं को नाटक के केंद्र में रखा है। इन तीन नाटकों की प्रस्तुति की जाना है। इस दौरान प्रकाश सिंह ठाकुर, मनोहर सिंह ठाकुर,अश्विन सागर, शरद यादव एवं कुलदीप महरोत्रा उपस्थित थे।
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